भाग 69
नानी धीरे धीरे पांव रखते हुए अमन का सहारा लेते हुए पुरवा के बिलकुल पास आ कर खड़ी हो गई। घबराई हुई पुरवा का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया और उसे निहारते हुए बोली,
"माशा अल्लाह.. या खुदा तूने क्या नायाब खूबसूरती बख्शी है… मेरे छोटे लाला की दुल्हन को।"
फिर जल्दी से अपने हाथों में पड़े मोटे मोटे जड़ाऊ कंगन को उतार कर पुरवा के नाजुक हाथों में पहना दिया।
अमन और पुरवा को एक साथ निहारते हुए अपना हाथ दोनो के सिर से फिरा कर बलइया लेते हुए सिर के बगल उंगलियां चटका कर बोली,
"सदा सलामत रहे तुम दोनो की जोड़ी। जुग जुग जियो मेरे बच्चों। मेरे जिगर के टुकड़ों।"
इसके बाद वो भूंजी का सहारा ले कर बड़ी ही उपेक्षा से सलमा और साजिद को एक नजर देख कर अंदर अपने कमरे में चली गईं।
उनकी नजर में वो दोनो (सलमा और साजिद) ही दोषी थे, अमन के निकाह की बात छुपाने के लिए।
इस सब के लिए कोई भी तैयार नहीं था। सब भौचक्के से ये सब देख रहे थे।
सलमा और साजिद खुद को दोषी समझ रहे थे अशोक और उर्मिला के सामने। उनसे कुछ बोलते नही बन रहा था। तभी उर्मिला आगे बढ़ी और पुरवा के हाथों से कंगन उतारने को बोली,
"पुरवा..! बिटिया.. इसे उतार कर सलमा बहन को वापस कर दो।"
पुरवा उतारने लगी तो साजिद ने आगे बढ़ कर पुरवा को रोक दिया और दोनो हाथ जोड़ कर बोले,
"आप दोनो से हाथ जोड़ कर अर्ज है कि नानी की बातों का बुरा मत मानिए। उनकी उमर हो गई है, दिमाग ठिकाने नही रहता। ऊपर से इस अफीम के लत ने बिलकुल ही पागल कर दिया है इनको। इसे आप बिटिया के हाथों में ही रहने दीजिए। मत उतारिए बच्ची के हाथों से। इसे एक सनकी बुजुर्ग का आशीर्वाद समझ कर बच्ची की शादी में दे दीजिएगा।"
इतनी नम्रता से साजिद ने कहा कि उर्मिला और अशोक से इंकार करते नही बना।
सलमा ने उर्मिला का हाथ कर आहिस्ता से शुक्रिया कहा।
इसके बाद माहौल को सामान्य करने की गर्ज से जैसे कुछ हुआ ही ना हो, साजिद जल्दी मचाते हुए बोले,
"चलो…चलो… भाई सब लोग जल्दी करो.. चलो मोटर गाड़ी में बैठो। सभी मुझे तुम लोग को छोड़ कर वापस नमक खोह भी जाना है। तेज धूप होने पर परेशानी होगी।"
सलमा बोली, "हां.. हां..! चल रहे है। आपसे पीछे नहीं रहेंगे। (फिर उर्मिला को साथ ले कर चलते हुए बोली) चलो उर्मिला बहन।"
उन सब के पीछे पुरवा भी हो ली।
नानी वाली पहाड़ी गली से हिचकोले खाती हुई मोटर आगे बढ़ चली।
कुछ दूर आगे जा कर एक बड़ी पहाड़ी की शुरुआत हुई। उसका आकार किसी बड़े गोल कटोरे जैसा था। उसी में से पतला सा रास्ता निकाला गया था। जैसे वो कटोरे के किनारे से अंदर उतर रहे हों।
अब कुछ और आगे आने पर रास्ता और भी संकरा हो गया। अब मोटर का आगे जाना संभव नहीं था। यहां से कोई एक डेढ़ मील का रास्ता पड़ता था पवित्र कुंड का और उसके किनारे बने शिवालय का।
साजिद ने सब को वहीं उतार दिया और फिर अच्छे से अमन को रास्ता समझा दिया कि कैसे ले कर जाना है और कैसे आना है..?
इसके बाद साजिद सब से विदा ले कर अपने काम वाले जगह के लिए निकल पड़े।
अमन पहाड़ी रास्ते पर खुद आगे आगे चल कर सब को रास्ता दिखाते हुए चलने लगा। अशोक, उर्मिला और पुरवा एक दूसरे का हाथ थामें बड़ी सावधानी से चल रहे थे। सूरज की तेज रौशनी से पुरवा के हाथों में पड़ा कंगन उसकी दूधिया कलाइयों में जगमगा रहा था।
बस अब प्रतीक्षा खत्म ही होने वाली थी। अशोक और उर्मिला को उनके आराध्य के दर्शन बस होने ही वाले थे।
कुछ ही देर में कटास राज सरोवर के सामने वे खड़े हुए थे। अशोक और उर्मिला की अपनी किस्मत पर यकीन नही हो रहा था कि वो इस अद्भुत सरोवर के किनारे खड़े हुए हैं। उनका रोम रोम आनंद से रोमांचित हो रहा था। इस समय की खुशी को शब्दों में व्यक्त नही किए जा सकता था।
हाथ जोड़े हुए उन्होंने आंख बंद कर के भोले नाथ को नमन किया।
आहिस्ता आहिस्ता सीढ़ियों से उतर कर कुंड का पानी अपनी आंखो पर लगाया। उन्हें जाते देख पुरवा लंबे समय बाद अपनी वास्तविक व्यवहार में आ गई। तेजी से भागते हुए वो भी सरोवर के किनारे आ गई।
सबसे नीचे वाली सीढ़ी जो जल में डूबी हुई थी। उसी पर आ कर झुक के पानी से अपने चेहरे पर छींटा मार कर धोने लगी।
जब अच्छे से वो अपना चेहरा धो चुकी तो ऊपर देखा, अम्मा बाऊ जी वापस जा कर सलमा और अमन के साथ खड़े हुए थे। उसका ये बचपना देख वो सभी मुस्कुरा रहे थे।
पुरवा समझ गई कि सब उसी पर मुस्कुरा रहे।
उसने एक अंजुली पानी भर कर लिया और "बाऊ जी…!" कहते हुए उनके ओर उछाल दिया।
पुरवा का निशाना चूक गया। वो पानी की बूंदें अशोक की बजाय अमन पर पड़ गई। अमन के बालों में पड़ कर पानी की बूंदें मोती जैसे चमकने लगी।
पुरवा अपना निशाना चूका देख कर सकुचाते हुए ऊपर आ गई।
उसके आते ही अमन के एक झटके से पुरवा के सामने जा कर उसके मुंह पर अपने बालों पर पड़े पानी की सारी बूंदे झार दी। और मुस्कुराते हुए दोनो हाथ उठा कर बोला,
"बदला पूरा। है ना मौसी..!"
उर्मिला भी अमन का साथ देते हुए बोली,
"बिलकुल बेटा..! इस शैतान के साथ यही होना चाहिए।"
अशोक मंदिर के पास जा कर दर्शन के समय के बारे में पुजारी जी से पता करने चले गए थे।
पुजारी ने बताया कि इस समय दर्शन वर्जित है। ये भगवान के आराम का समय है। आप सब भी पास के धर्मशाला में जा कर विश्राम करें और कुछ समय पश्चात आएं।
यही बात अशोक ने आ कर सबसे बताई।
अमन बोला,
"अम्मी जान..! चलते चलते मुझे थकान भी हो गई है और जोरों की भूख भी लग आई है। चलिए ना.. आप सब आराम भी कर लीजिए और मुझे कुछ खाने को भी दे दीजिए।"
सलमा से पहले ही उर्मिला बोल उठी,
"हां बेटा..! चलो..। थक तो गए ही होगे।"