भाग 68
आगे आगे भूंजी थी और पीछे सलमा और साजिद थे। ओढ़गाए हुए दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दे कर भूंजी और सलमा साजिद ने कमरे में दाखिल हुए।
सलमा ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा,
"मैने सोचा सब साथ ही बैठते है।"
उर्मिला ने अपने बगल में रक्खा सामान हटाया और सलमा को बैठने को कहा।
साजिद बगल में रक्खी कुर्सी पर बैठ गए।
भूंजी ने सब को अपनी खास हरी चाय थमा दी। साथ ही नानी की पूरी कहानी उन्हें बताते हुए समझाने लगी,
"अरे… अब मैं आपको क्या बोलूं..? आप दुल्हन की सहेली हैं तो आप भी दुल्हन ही हुईं ना। ये नानी के अनाप शनाप बकने से लगता है मैं भी उन्हें जैसी हो जाऊंगी एक दिन।"
सबको देने के बाद वहीं फर्श पर बैठ गई और बोली,
"पता है आपको..! एक दिन वो अपना माली उनसे कुछ पूछने के लिए गया था। अब उसे देख कर उनको ऐसा लगा कि आपके अब्बा ( साजिद की ओर इशारा कर के बोली ) आ गए हैं। उसे जमाई राजा… जमाई राजा करके इतना लाड प्यार जताया कि क्या बताऊं..! अब उस बिचारे से ना तो नानी के सामने बिस्तर पर बैठा जा रहा था.. ना कुछ बोला जा रहा था। उसे अपनी जान बचानी मुश्किल हो गई थी। फिर किसी तरह वो अपनी जान बचा कर भागा। आप सब देखना .. अब रात में तो उठेगी ही नही। सुबह फिर से उनका दिमाग ठीक हो जायेगा।"
फिर खड़ी होते हुए सलमा और साजिद से पूछा,
"दुलहन..! लाला जी…क्या पकवाऊं आपके लिए..? अब इस समय गोश्त तो मिलेगा नही। मुर्गा ही पक सकता है, या फिर अंडा तरी बनवा दूं..?"
सलमा भूंजी की बात सुन जल्दी से बोली,
"नही.. नही.. ये सब कुछ नही पकाना है। आप तो बस मसाला दाल बना दीजिए और रायता साथ में कोई हरी सब्जी और रोटियां सिकवा दीजिए। और हां.…! इस बार ऐसा ही शाकाहारी खाना बनेगा।"
भूंजी "जी .. दुल्हन" कह कर खाने का इंतजाम करने उठ गई।
रात का खाना रसोई के सामने दरी बिछा कर भूंजी ने परोसवाया।
जब भी सलमा, साजिद या अमन भूंजी को पुकारते उसके नाम से पुरवा को एक गुदगुदी सी होती थी। पर किसी तरह खुद को काबू में करती थी वो।
खाना समाप्त होने के बाद ये योजना बनी कि कल सुबह कटास राज के दर्शन के लिए निकल लिया जाएगा।
भूंजी से कुछ खाना सुबह खाने के लिए और कुछ साथ बांध देने के लिए सलमा ने कह दिया।
इसके बाद सभी अपने कमरों में जा कर सो गए।
नानी की नींद सुबह दिन का उजाला फैलते ही खुल गई।
भूंजी तो पहले ही जाग गई थी। नानी को उठा देखा तो उनके लिए दातून और नहाने का पानी तैयार कर उनको गुसलखाने में ले गई।
नानी नहा धो कर तैयार हो कर भूंजी के साथ बरामदे में लगे झूले पर आ कर बैठ गई। पर एक बार भी साजिद या और किसी के बारे में नही पूछा। झूले में झूलते हुए रोज की ही तरह अपनी बगल में रक्खे एक ओर के कटोरे से बाजरे के दाने निकल कर सामने बिखेर रही थीं। जिसे चुगने के लिए गुटुर गूं… गुटुर गूं करते हुए कबूतर और तोते बड़ी तादात में घूम रहे थे।
दूसरी ओर के कटोरे में सूखे भून हुए मसाले दार मेवे और हरी चाय थी। उसे नानी खाते हुए चाय भी पी रही थी।
अमन सुबह तड़के ही उठ कर ताजी हवा में वर्जिश कर रहा था। जब फारिग हुआ तो अंदर नहाने के लिए आने लगा।
उसे सामने ही झूले पर मस्त अंदाज में नानी बैठी दिखीं। नानी भी उसे देख कर मुकुराई।
अमन आ कर उनके बगल झूले पर बैठ गया। और बोला,
"और महारानी विक्टोरिया.…! आज आप इतनी दिलकश क्यों नजर आ रही हैं..?"
नानी ने मुस्कुरा कर हल्की सी चपत उसके गालों पर लगा दी।
अमन बोला,
"क्या हो रहा है..? परिंदो को दाना चुगाया जा रहा है, ( फिर उनकी आंखों में झांकते हुए बोला ) साथ में खुद भी चुगा जा रहा है। और एक तरफ इस गरीब को अभी तक एक गस्सा भी नसीब नही हुआ।"
नानी ने आंखे तरेरते हुए कहा,
"क्यों…? तेरी दुल्हन तेरा खयाल नहीं रखती क्या..? और कुछ खाने को भी नही दिया..! जा उससे ही मांग ले। मैं कौन हूं. तेरी.? मुझसे तो उसका तारुफ भी नही करवा।"
नानी मुंह फुला कर नाराजगी से बोली।
अमन तो इस उम्मीद में था कि रात गई बात गई। लेकिन नानी का तो रात वाला सुर अभी भी लगा हुआ था। क्या अभी अफीम की पिनक उतरी नही या सुबह जागते ही फिर से लगा ली।
वो अपनी जान बचाने को उठ खड़ा हुआ।
बोला,
"नानी .. जान..! बहुत पसीना हुआ है, बदबू आ रही है कपड़ों से। जाऊं गुसल कर लूं।"
बात को टालते कर वो ये कहते हुए अंदर चला गया।
करीब एक घंटे बाद सभी तैयार हो कर नाश्ता करके जाने को बाहर निकले। नानी आज बाहर बैठ कर थकी नही थीं। वैसे आम दिनों में तो थोड़ी ही देर वो बैठती थीं।
साजिद उन्हें कुछ दूर जहां तक मोटर जाती छोड़ कर चले आने वाले थे। उन्हें नमक खोह में जा कर खोदाई और गोदाम के साथ कारखाना भी देखना था।
साजिद सलमा, अशोक उर्मिला और पुरवा को साथ ले कर नानी से जाने की इजाजत लेने के लिए उनके झूले के पास आए।
सलमा ने नानी से सलाम किया और बोली,
"नानी जान..! हम जा रहे हैं, कल वापस आयेंगे। आप अपना खयाल रखना।"
नानी जान ने गुस्सा से अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया।
साजिद बोले,
"जाऊं नानी जान..?"
नानी नाराजगी से ही बोली,
" जा.. ना…! मैं रोक थोड़ी ना रही हूं। मैं हूं ही कौन तुझे रोकने वाली..!"
साजिद समझाते हुए बोले,
"नही ..! ऐसा नहीं बोलते.. आप तो सब कुछ हो हमारे लिए।"
नानी बोली,
"रहने दे… लाला..! ये सब चोंचले बाजी। मुझे नही बताया ना सही। पर छोटे लाला की दुल्हन को मुझसे मिलवाया भी नही और बात करता है बड़ी बड़ी।"
साजिद सलमा के साथ ही सब हैरत में थे कि अभी तक इनका दौरा ठीक नही हुआ।
वो अपनी छड़ी का सहारा ले कर उठने की कोशिश करने लगीं। ये देख कर अमन ने आगे बढ़ कर नानी को सहारा दिया। नानी उसका सहारा ले कर आगे बड़ी और पुरवा के करीब आ गईं।
पुरवा उनकी हालत देख हैरान सी खड़ी थी।
नानी को अपने पास आता देख वो डर गई और नजरें झुका ली।