Kangana in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | कंगना

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कंगना

*कंगना*
हाल ही में अर्जुन से शादी करके आई कंगना अपने ससुराल में अपनी सासूंमां सुशीला जी के साथ बडी खुश थी, कारण दोनों ही एक - दूसरे को सम्मान और प्यार करती थी, कंगना और सुशीला जी के बीच इतना अच्छा ताल-मेल था कि जब कंगना की सखियाँ या रिश्तेदार घर आते तो सुशीला जी उसे अपने सखियों और रिश्तेदारों के साथ बिताने का पूरा समय देती...
रसोई वही संभालती और ठीक उसी तरह कंगना भी सुशीला जी की तरह उनकी सखियों के आने पर या रिश्तेदारों के आने पर स्वयं रसोईघर संभालती और सासू-मां को पूरा समय बातें करने का देती...
मगर उस दिन सुशीला जी की एक दूर की सखी घर आई...
आपसी तालमेल के चलते कंगना रसोईघर में लगी हुई थी, और सुशीला जी अपनी सखी के साथ बातें कर रही थी चाय - पकौड़े देने के बाद, जब कंगना ये पूछने की मम्मी जी आंटीजी को क्या पसंद है लंच मे, आज वही बनाती हूं, दरवाजे तक पहुंची ही थी कि उसके कानों में सासू-मां की आवाज आई...
हां...
रेणुका...
सच बता रही हूं बेटियां शक्कर की तरह होती हैं और बहुऐ नमक की तरह....
मैंने भी कंगना के आने के बाद महसूस किया...
और हंस पडी...
कंगना को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था जिस सासू-मां को मां मानकर पूरा सम्मान दे रही थी वो उसे नमक समझती है, वैसे तो सखियों के जैसे व्यवहार करती थी तो क्या वो सब सिर्फ एक दिखावा था...
क्या बेटियां ही शक्कर की तरह मीठी होती है बहुऐ नहीं...
बस कंगना का मन उस दिन से सुशीला जी के प्रति खट्टा हो गया उसके साथ बोलने में पहले की तरह साथ खाने - पीने मे बदलाव आने लगा उस दिन वो सासू-मां की देखभाल करती तो थी, मगर केवल खानापूर्ति करने के लिए...
एक दिन बीता, दो दिन आखिर, तीसरे दिन सुशीला जी ने कंगना को जबर्दस्ती पास बिठा कर पूछा...
क्या हुआ है बेटा...
तेरी तबीयत तो ठीक है ना...
माथे पर हाथ लगाकर पूछते हुए कहा...
हां...
ठीक है मम्मी...
मुझे काम है रसोईघर में...
कहकर मुंह पिचकाते हुए उठने लगी...
अरे रुक तो...
बता क्या हुआ मेरी प्यारी लाडो को...
क्या अर्जुन ने...
आने दे खबर लेती हूं मेरी फूल जैसी बच्ची को उसने कुछ कहा तो क्या...
अब बोल ना...
पहले तो दोस्तों की तरह बातें करते हुए नहीं थकती थी साथ खाना साथ टीवी सीरियल देखना...
अब तीन दिनों से ऐसे क्यूँ परेशान सी लग रही है बोल मेरी बच्ची... देख मां हूं ना तेरी मुझे नहीं बताएगी...
बोल...
मेरी बेटी...
कहकर सीने से लगा लिया...
सुशीला जी का स्नेह भरा अहसास पाकर आखिर कंगना ने उस दिन की वो बातचीत की बातें बता दी जब सुशीला जी अपनी सखी रेणुका जी से कह रही थी बेटी शक्कर की तरह होती है और बहुऐ नमक की तर...
आपने भी मुझे बहु रुप मे पाकर महसूस किया है...
और रोने लगी...
ये सुनकर सुशीला जी हंसी...
और बोली...
पगली...
वैसे मुझे दोस्त मानती हैं और इतनी सी बात मन मे रखकर बैठी थी पूछ लेती तो ये बीते तीन दिन यूं उदास परेशान नहीं रहती...
कंगना हैरानी से सासू-मां की ओर देखने लगी...
हां सच कह रही हूं और आज भी उस बात पर कायम हूं...
कंगना मैनें सच कहा है मेरी बच्ची...
बेटियां शक्कर की तरह होती हैं जो हर हाल मे मीठी लगती है मगर बहुऐ...
बहुऐ नमक की तरह होती है जिनका कर्ज नहीं चुकाया जा सकता...
वो हर खाने मे होती हैं मगर दिखाई नहीं देती उनके बिना हर खाना बेस्वाद हो जाता है जैसे कि तू...
कंगना...
तेरे आने के बाद हमारे छोटे से परिवार में तेरी अहमियत हर जगह है और यही हर बहु की होती हैं अपने ससुराल में वो अपना बचपन माता, पिता, भाई, बहनों को छोडकर नये साथी उसके माता - पिता परिवार को यूं अपना लेती हैं जैसे वो यहां की हो...
मैंने भी यही किया आज तुम भी कर रही हो और दुनिया की हर लडकी ऐसे ही बहु के रुप मे जब ससुराल जाती हैं, तो खाने में नमक की भांति घुलमिल जाती है और फिर उसके बिना कोई भी खाना बेस्वाद लगता है...
मेरी बच्ची...
इसलिए बहुऐ नमक की तरह होती है समझी...
और अगर फिर भी तुम्हें बुरा लगा तो मुझे...
इससे पहले सुशीला जी कुछ कहें कंगना ने उनके होठों पर हाथ रख दिया...
नहीं मां...
मन के सभी ग्लानि घुल गए...
आपको गलत समझने के लिए आप मुझे माफ...
इस बार सुषमा जी ने सुधा के होठों पर हाथ रख दिया...
दोनों एक - दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा दी...