Kataasraj.. The Silent Witness - 59 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 59

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 59

भाग 59

अमन को जगाने की हिदायत दे कर सलमा और उर्मिला आराम करने लेट गईं।

उधर साजिद और अशोक के सोने की वजह से अमन सिमटा हुआ था। इधर सलमा और उर्मिला के आ कर लेट जाने की वजह से पुरवा भी थोड़ी सी जगह में अधलेटी हो कर दूर आसमान में चमकते चांद को देख रही थी। आज उसे अपने दोनो छोटे भाइयों की बहुत याद आ रही थी। वो दोनो होते तो कितना खुश होते…..! उनके साथ उसे भी मजा आता। पर अम्मा बाऊ जी तो कुछ सुनते समझते ही नही हैं। उसे जबरदस्ती ले कर आए और चंदू नंदू को नही ले कर आए।

जल्दी ही सवा बारह बज गए। दूसरे प्लेटफार्म पर गाड़ी लग चुकी थी। अमन ने धीरे से सलमा को कुरेदा और बोला,

"अम्मी…! उठिए…सवा बारह बज गए। ट्रेन भी लग गई है।"

सलमा तुरंत उठ कर बैठ गई और अमन की बोली सुन कर उर्मिला भी उठ गई। सलमा ने अशोक और साजिद को भी जगाया और साजिद से बोली,

"आप दोनों ने तो खूब गहरी नींद खींची। दूर तक आप दोनो के खर्राटे सुनाई दे रहे थे। अब जाग जाइए चलिए गाड़ी का समय हो चुका है।"

अशोक और साजिद के खड़े होते ही उर्मिला ने अपनी ओर उनकी दोनों चादरें खींच कर पुरवा को थमा दी और बोली,

"पुरवा.…! इन्हें तह करके अच्छे से झोले में रख दे।"

इसके बाद तत्परता से सभी समान समेट कर गाड़ी में चढ़ने की तैयारी करने लगे। और करीब दस मिनट बाद सभी लोग ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में बैठे हुए थे। साजिद ने सुरक्षा और आराम के लिहाज से इसका चुनाव किया था। एक बार अपना पूरा डिब्बा रिजर्व करवा लो फिर किसी और के चढ़ने उतरने की चिक चिक नही रहेगी। ये डिब्बा काफी बड़ा भी था और साथ में अलग से शौचालय भी था। अब सफर काफी लंबा था। सीट तो गद्दे दार थी। पुरवा को वैसे ही इस पर मजा आ रहा था। सभी ने चादर बिछाई पर वो ऐसे ही आराम महसूस कर रही थी।

अशोक और उर्मिला इस तरह के डिब्बे में बैठना तो दूर कभी देखा भी नहीं था। गाड़ी के स्टेशन छोड़ते ही साजिद ने उठ कर दरवाजा दोनो तरफ से बंद कर लिया। और बोले,

"अब कोई डर नही है। तुम सब आराम से सो जाओ। दरवाजा बंद है बिना हमारे खोले कोई घुस नही सकेगा। (फिर पुरवा और अमन से बोले) बच्चों तुम लोग ऊपर की सीट पर चले जाओ और आराम से चादर तान कर सो जाओ। अब कल शाम चार बजे तक हम मंदरा पहुचेंगे। तब तक बच्चो खूब आराम कर लो तुम दोनो। (फिर सलमा और उर्मिला की ओर देख कर बोले) और आप दोनों भी। क्योंकि घर पहुंचने के बाद फिर से घर गृहस्ती की भाग दौड़ शुरू हो जाएगी। तो ये आराम फिर नसीब नही होगा।

पुरवा को सलमा ने बैठे देखा तो समझ गई कि वो ऊपर सोने क्यों नहीं जा रही है। वो खुद शौचालय गई और फिर पुरवा को भी जाने को बोला।

इसके बाद बिना एक पल गंवाने वो ऊपर की सीट पर चली गई।

अमन भी सामने वाली ऊपर की सीट पर अपनी चादर ले कर चढ़ गया।

जब सुबह खूब लंबी नींद लेने के बाद पुरवा नीचे आई तो अम्मा खिड़की के पास बैठी बाहर चारों ओर फैली सुंदरता निहार रही थी। अब गाड़ी पंजाब से गुजर रही थी। दूर तक फैले खेत और उनके लगे धान के पौधे बेहद आकर्षक लग रहे थे। वो अम्मा के कंधे से सट कर बैठ गई और अपना सर उर्मिला के कंधे पर दुलराते हुए रख दिया। पुरवा ने बाहर निहारते हुए मीठे स्वर में अम्मा से पूछा,

"अम्मा..! ये किस चीज का पौधा है, इतना सुंदर हरा हरा..?"

उर्मिला बोली,

"बिटिया ये धान के पौधे हैं।"

उर्मिला की ओर जिज्ञासा से देखते हुए पुरवा ने पूछा,

"पर अम्मा..! अभी अपने यहां तो गेंहू ही कटा है। धान कैसे यहां अभी ही लग गया।"

उर्मिला उसे समझाती उससे पहले साजिद ने उसका सवाल सुन लिया इस लिए उसे समझाते हुए बोले,

"बिटिया..! ऐसा है कि हर प्रदेश का अलग अलग खेती का तरीका होता है। मौसम भी अलग अलग होता है। कहीं फसल जल्दी पक जाती है तो कहीं देर में। कहीं नए तरीके से खेती होती है, कही पुराने तरीके से। ये पंजाब प्रदेश है। यहां के किसान बहुत मेहनती होते हैं और अच्छी और अगड़ी खेती करते हैं। इस लिए यहां धान के पौधे जल्दी लगा दिए गए। अब यहां सबसे पहले धान तैयार हो जाएगा। ऐसे ही सब्जियां भी यहां समय से पहले उपजा ली जाती हैं,जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। समझी बिटिया..!"

पुरवा ने धीरे से मुस्कुरा कर हां में सर हिलाया।

और फिर से बाहर देखने में व्यस्त हो गई।

अगला स्टेशन आने की हुए उससे पहले ही साजिद ने सबको बोल दिया कि सभी लोग मुंह हाथ धो कर तैयार हो जाएं। अगला स्टेशन आते ही वो चाय मंगवायेगें।

बारी बारी से सभी वही डिब्बे के कोने में लगे छोटे बरतन और उसने लगे नल से हाथ मुंह धोने लगे।

अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही दरवाजा खोल कर साजिद ने चाय गरम चाय की पुकार लगाते आदमी को आवाज दे कर बुलाया। उससे अंदर आ कर सभी को चाय देने को कहा।

चाय के साथ कुछ खाने के लिए पूछने पर उसने अपने साथ चलने वाले साथ को आवाज लगा कर बुलाया।

उसके पास मक्के के आटे की बनी खस्ता भरवा कचौड़िया थी। सभी को साजिद ने एक एक दोना देने को बोला।

बस थोड़ी देर रुक कर फिर गाड़ी चल पड़ी।

चट पटी कचौड़ियो का नाश्ता कर सभी को मजा आ गया।

अमन और पुरवा दोनो ही थोड़ी देर बैठ कर फिर से ऊंघने लगे। और फिर से अपनी अपनी सीट पर ऊपर सोने चले गए।

जब वो जागे तो शाम बस होने ही वाली थी। अभी आंख खुले कुछ देर ही बीता था कि सलमा ने आवाज दी,

"बच्चों… अब बहुत आराम कर चुके। अब जागो और नीचे आ जाओ। मंदरा आने ही वाला है। अपनी अपनी चादर तह कर दो और मुझे दो झोले में रख दूं।"

अमन ने अपनी चादर तह करने की बजाय उसे गोला कर के पुरवा की ओर फेंक दिया। और फिर खुद कूद कर नीचे आ गया।

संकोच वश पुरवा को दोनो ही चादर तह करनी पड़ी। पर मन ही मन इसके बदले दोगुना काम करवा लेने का प्रण कर लिया।