Kataasraj.. The Silent Witness - 46 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 46

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 46

भाग 46

उर्मिला बोली,

"हम तो जानते ही थे कि सब दुनिया में अपने अपने मतलब से रिश्ता रखते हैं। और चाची और उनका परिवार भी उसी इससे अलग थोड़े ही है। पर आपको ही बड़ा यकीन है उन लोगों पर। हम को तो पता था कि हम चाहे जितना भी उनकी मदद करें उनकी, चाहे जितना भी उनके कहे अनुसार चलें। पर जब हमारी बारी आएगी तो ये हमें ठेंगा ही दिखाएंगे।"

बस मौका चाहिए था उर्मिला को चाची और उनके परिवार की कमियां गिनाने का। वो ऊपरी मन से भले ही खूब अच्छा व्यवहार करती हो, पर दिल से शायद उनको अपने परिवार जैसा नहीं मानती थी। अशोक को उलाहना देने लगी।

अशोक को भले ही खुद भी बुरा लगा हो चाची का घर की देख भाल से इनकार का। पर उर्मिला का चाची की शिकायत करना अच्छा नही लग रहा था। इस लिए अशोक बात बदलने की गर्ज से उठ कर जाना ही सही उपाय समझ आया।

उर्मिला जानती थी कि अशोक भले ही अपनी जुबान से जाहिर नही करते अपने दिल की बात किसी पर। लेकिन इस समय उनके विश्वास को ठेस पहुंची है। चाची के ना करने से उनको दुख हुआ है। यकीन आहत होने की तकलीफ चेहरे पर साफ झलक रही थी।

पर अशोक इसे उर्मिला के सामने जाहिर ना करके बाहर चला गया।

बाहर जाने को निकला तो चाची बाहर ही नीम के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठी हुई थीं। अशोक की नजरें उस और गई तो देखा वो उसकी ओर ही देख रही थीं। पहले तो अशोक ने सोचा कि क्या फायदा इनसे रिश्ता निभाने का। देखती है तो देखती रहें। हमारे काम का अकाज होगा। मैं चला जाता हूं। खेत की ओर। पर फिर सोचा नहीं ये ठीक नही। अभी पुरवा की शादी इनकी ही बेटी के घर तो करनी। है। फिर मुंह मोड़ कर चलने से काम नहीं चलेगा।

अशोक ने सोचा चलो ’अपना अपना करम,अपने अपने साथ’ जो इनको उचित लगा इन्होंने किया। अब जो मेरा धरम है मैं निभाऊंगा। इतना सोच कर वो। चाची की ओर चल पड़ा। करीब जा कर पाएं लागन किया और बोला,

"और चाची..! सब बढ़िया..! कुछ चाय.. मट्ठा पिया या नही।"

चाची को लगा था कि उनके इनकार के बारे में जरूर उर्मिला ने बताया होगा अशोक को। और वो जरूर नाराज होगा। दो एक दिन तो मुझसे बात चीत नही ही करेगा। पर उसे सामान्य तरीके से बात करते देख चाची को खुशी हुई। उन्होंने सोचा.. एक कोशिश अशोक को समझा कर के देखती हूं।

वो बोली,

"खुश रह बेटा..! खुश रह..। दुपहरे तेरी बहुरिया आई थी। ना जाने क्या बोल रही थी, कहां जाना है..! बड़ी दूर.. दर्शन करने..। उस शमशादवा के महतारी के बहिन के संग। हमने तो बहुत मना किया.. बेटा । उस तुरकिया के संग जाने को। कुछ बोली नही। अब जाने मानी कि नही।"

अशोक को भी चाची द्वारा किया गया इस तरह का संबोधन शमशाद और सलमा के लिए अच्छा नही लगा। वो चाची के मुंह नही लगाना चाहता था। उनकी अपनी सोच है जो इस उम्र में बदलने से रही। वो उनकी बातों को अनसुना कर के बोला,

"चाची ..! मैं चलता हूं। सोच रहा हूं। उरद सींच दूं आज। देर हो जायेगी फिर आज भी टल ही जायेगा। "

इतना कह कर अशोक खेत की ओर चल पड़ा।

इधर धनकू बहू ने घर वापस आने के बाद धनकू से उर्मिला के घर जाने और उससे हुई बात चीत को बताया। धनकू भी खुश हुआ उर्मिला के प्रस्ताव पर। अब वो इस अच्छे मौके को किसी दूसरे के पाले में नही जाने देना चाहता था।

जब धनकू के अशोक के घर का दरवाजा खुलने की आहट सुनी और उसे बाहर निकल कर जाते देखा तो वो भी उसके पीछे पीछे जाने की सोचने लगा। जिससे पूरी बात पता चल सके कि आखिर जाना कहां है..?

फिर जब अशोक चाची पास गया तो वो वापस अपने घर के पास ओट में खड़ा हो गया और अशोक को देखता रहा।

जैसे ही आशिक चाची से बात कर खेत की ओर जाने लगा.. धनकू भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा।

घर से कुछ दूर आकर वो अपनी चाल तेज कर अशोक के करीब आ गया और हाथ जोड़ कर बोला,

"राम राम अशोक भईया .!"

अशोक बोले,

"राम राम धनकू। कैसे हो..?"

धनकू बोला,

"सब राम जी की कृपा और बड़ों का आशीर्वाद है भईया। खेत जा रहे हो क्या..?".

अशोक बोले,

"हां धनकू..! खेत ही जा रहा हूं। वो उरद वाले खेत ऊंचा है ना। इस लिए पानी बड़ी ही जल्दी सूख जाता है। दो दिन से सोच रहा हूं। पर कोई ना कोई काम आ जाता है और उसी में में उलझ जाता हूं। पर आज बहुत ही जरूरी है सींचना। वहीं जा रहा हूं। और तुम..?"

धनकू बोला,

"हमारे पास कहां कितना खेत ही है जो बोए, सींचे। थोड़े से तो खेत हैं। उनमें कितना काम करें। उसके लिए तो बच्चों के अम्मा ही पर्याप्त है। हम तो बस ऐसे ही घूम रहे हैं। आपको जाते देखा तो पाए लागन करने चले आए भईया।"

फिर कुछ दूर साथ चल कर बोला,

"चलिए भईया खेत सिचवाने में आपकी मदद कर देता हूं। खाली घूम कर बढूंगा थोड़ी ना।"

अशोक बोले,

"अरे.. नही धनकू..! मेरा तो हमेशा का काम है, कर लूंगा। तुम जाओ।"

धनकू बोला,

"क्या भईया..! कोई घिस थोड़े ना जाऊंगा आपकी मदद कर के। अब आप लोगों का ही तो सहारा है। भौजी कितना ध्यान देती हैं मेरे बाल बच्चों और घर वाली का। बिना मांगे ही बहुत कुछ दे देती है। अब हम क्या जांगर खर्च करने से भी गए। बड़े की सेवा करना हमारा अधिकार है मना मत करिए।"

अशोक ने धनकू की पीठ पर हाथ मारा और हंस कर बोले,

"अच्छा चल देखूं कितनी ताकत है देते अंदर।"

इसके बाद अशोक और धनकू खेत के पास वाले कुंए के पास आ गए।

कुंए में चमड़े का बना छाता नुमा पानी निकालने का लगा हुआ था।

अशोक कुएं के पास खड़े हो गए और उसे कुएं के अंदर डाल दिया। धनकू उसे तेजी के साथ दौड़ कर खीच कर बाहर ले आया। अशोक ने उसका पानी लकड़ी के बने नाली नुमा जगह पर गिरा दिया। धीरे धीरे पानी खेत की ओर बह चला।

इस तरह अशोक और धनकू खेत में लगी उरद की फसल फटाफट सींचने लगे।