भाग 38
ज्यादा लंबा रास्ता तो था नहीं पुरवा के गांव का। अंधेरा अभी ठीक से हुआ नही था। सूरज डूबने के बाद भी हल्का उजाला था अभी। अशोक अभी घर वापस नहीं आए थे। उर्मिला धूप दरवाजे पर आते ही से पुरवा की राह देखने लगी थी। जब भी किसी के गुजरने की आहट होती उसे लगता पुरवा आ गई क्या..! पर
पर सूरज ढलने की शुरुआत होते ही उर्मिला की सांस ऊपर-नीचे होने लगी। वो बेचैन हो कर बाहर आ गई और रास्ते की ओर खड़ी हो कर इंतजार करने लगी। जब उसे इंतजार करते कुछ पल बीत गए तो उसका बड़बड़ाना चालू हो गया।
’ये लड़की ना.. चैन से जीने नही देगी। देखो.. इसे इतना सहेजा था कि जल्दी चली आना। अंधेरा मत होने देना। पर ना.. इसे तो किसी भी बात की कोई परवाह ही नही है। बस नाज़ मिल भर जाए। फिर उसे किसी बात का होश नही रहता। अब बगिया का रास्ता सूना-साना रहता है। कोई जानवर या कोई बदमाश मिल जाए तो ये महारानी क्या बिगाड़ लेंगी उसका..? लड़की जात.. कुछ ऊंच नीच हो गई तो क्या इज्जत रह जायेगी गांव-जवार में..? आने दो वापस.. अच्छे से आरती उतारती हूं इन महारानी का।"
बेटी पर सुबह बरसने वाला प्यार देर होने की वजह से इस समय गुस्से की आंच में खौल रहा था।
तभी दूर उसे शाम के धुंधलके में दूर से दो साया आता दिखा। इंतजार तो उसे पुरवा का था। अब ये दो लोग कौन आ रहे हैं..? इस ओर तो उसी का घर है। फिर कुछ पास आने पर स्पष्ट हुआ कि पुरवा ही है, पर साथ में दूसरा एक आदमी कौन है..? उर्मिला ने सोचा देर होने की वजह से संभव है शमशाद ने किसी को साथ में छोड़ आने को भेजा हो। अच्छा लगा कि देखो शमशाद कितना भला इंसान है। उस को परवाह है उसकी बेटी की। तभी तो उसे अकेले नहीं आने दिया। साथ में किसी को भेज दिया।
कुछ और पास आने पर अब स्पष्ट दिख रहा था। पुरवा के साथ अमन है। अब उसका गुस्सा उड़न छू हो गया अमन को साथ देखते ही।
पास आते ही पुरवा तेजी से घर के अंदर घुस गई और अमन ने उर्मिला से नमस्ते किया।
उर्मिला ने उसे आशीर्वाद दिया और बोली,
"आओ बेटा ..! आओ..! इस लापरवाह लड़की की वजह से तुम को भी परेशान होना पड़ा। क्या बताऊं जहां जाती है वहीं बस जाती है। आओ बेटा, अंदर चलो।"
अमन सकुचाते हुए उर्मिला के साथ आया और बारंडे में बिछी हुई खटिया पर बैठ गया।
"अब ये लड़की भीतर कहां घुस गई..! ये नही कि साथ ले कर आई है। बच्चे को प्यास लगी होगी, पानी वानी ले आए। तुम बैठो बेटा मैं ही ले आती हूं।"
इधर पुरवा अंदर आते ही ’जुदाई की शाम का गीत’ ढूंढने लगी। ढिबरी की रोशनी में पूरा रैक उलट पलट दिया था। बड़ी ही मुश्किल से वो किताब मिली। तब पुरवा के जान में जान आई।
एक लंबी सांस ले कर बाहर आई और उसे अमन को थमा दिया। फिर वापस अंदर चली गई।
अंदर उर्मिला बताशे को तश्तरी में रक्खा और घड़े का ठंडा पानी निकाल कर गिलास भर रही थी। तभी पुरवा पास आ कर खड़ी हो गई। उर्मिला बिगड़ते हुए बोली,
"एक तो वापस आने में इतनी देर लगा और उसे भी परेशान किया साथ ला कर। पानी कौन पूछे… तू तो अंदर ही घुस गई। क्या कर रही थी।"
पुरवा बोली,
"वो मुझे छोड़ने थोड़ी ना आए हैं..। वो तो एक किताब आरिफ भाई ने दी थी, वही इन्हे भी पढ़नी है। उसे ही लेने आए हैं। वही ढूंढ रही थी।"
उर्मिला बोली,
"अच्छा जा.. जल्दी से चूल्हे पर दाल चढ़ी है उसे उतार दे और चाय चढ़ा दे। साथ ने थोड़े होली वाले चिप्स भी छान देना। जा जल्दी कर।"
भुनभुनाती हुई पुरवा रसोई में चली गई कि अभी इत्ती दूर से पैदल चल कर आ रही हूं और अब अम्मा घड़ी भर भी चैन नहीं लेने देगीं। अब चलो चाय बनाओ, चिप्स छानो।
बाहर जाते जाते उर्मिला ने हिदायद दी,
"देख चाय में पानी मत डालना। केवल दूध में ही बनाना।"
अमन किताब पाते ही वापस जाने को उतावला बैठा हुआ था। जैसे ही उर्मिला को देखा खड़े होते हुए बोला,
"मौसी .. अब मुझे इजाजत दें चलता हूं।"
उर्मिला बोली,
"ऐसे कैसे बेटा…! बिना चाय पानी के जाने दूं तुम्हे। बैठो लो पानी पियो। पुरवा ने चाय रख दी है। बस हो जाए तो पी कर चले जाना, बैठो जाओ बेटा।"
देर होने के बावजूद भी अमन से उर्मिला का अनुरोध अस्वीकार करते नही बना। संकोच वश वो बैठ गया।
उर्मिला ने बताशे और पानी का गिलास उसे थमा दिया।
थोड़ी ही देर में चाय बन गई। पुरवा ले कर आई और वही पास में रख दिया।
तभी अशोक भी खेत से वापस लौट आए। हाथ पैर मिट्टी से सने हुए थे। अमन को देख कर बोले,
"अरे… अमन बेटा…तुम..! बैठो हम हाथ मुंह धो कर आते हैं। पुरवा ..! बिटिया जरा पानी डाल दे तो।"
पुरवा ने कुएं पर रक्खी भरी हुई बाल्टी से लोटे से पानी निकला और अशोक का हाथ मुंह धुलवाया।
"अशोक ने पूछा,
"सब बढ़िया है ना घर में…।"
अमन ने जवाब दिया,
"सब ठीक है। वो देर हो गई थी ना तो नाज़ भाभी जान ने छोड़ कर आने को बोला। मुझे फिर एक किताब भी लेनी थी पुरवा से। इस लिए दोनो काम हो गया। पांच दिन बाद जाने का तय हुआ है। अम्मी ने बताया है। आप सब वहीं आ जाना।"
जल्दी जल्दी चाय खत्म कर अमन ने उर्मिला से विदा लिया। फिर पांच दिन बाद वही शमशाद भाई के घर पर मुलाकात होने की बात कर जाने को खड़ा हो गया और बोला,
"अच्छा..अब चलता हूं। आप सब को परेशान किया। काफी देर हो गई है।
इतना कह कर अमन ने दोनो हाथ जोड़ कर उर्मिला और अशोक का अभिवादन किया और वापस हो लिया। चलते चलते एक निगाह दरवाजे पर खड़ी पुरवा पर भी डाली। दोनो की नजरें मिली और फिर पुरवा दूसरी ओर देखने लगी।
अशोक कुछ दूर तक उसे छोड़ने साथ में आए।
डेहरी पकड़ कर खड़ी पुरवा उसे देखती रही। लंबा ऊंचा कद जैसे जैसे दूर होता गया धुंधला होता गया और फिर खो गया।