भाग 36
जब नाज़ पुरवा से गले मिल रही थी तभी उसकी निगाह दरवाजे की ओर पड़ी। उसने देखा कि अमन दरवाजे पर खड़ा हुआ है। उसे देख कर नाज़ को शरारत सूझी। पुरवा को छेड़ने की नियत से वो उसके कान में फुसफुसाई,
"इतना मुझ पर क्यों बिगड़ रही है..? अमन पीछे ही खड़े हुए हैं। और तुझ पर लट्टू भी नजर आ रहे है मुझे। कह तो उसने ही बोल दूं घोड़े पर बिठा कर तुझे घर पहुंचा दें। बन्नो के पांव भी नही दुखेंगे। और झटपट पहुंच भी जायेगी।"
एक तो देर हो गई थी, दूसरे नाज़ उसे छेड़ कर तंग कर रही थी। पुरवा नाज़ के इस तरह छेड़ने से चिढ़ गई। और उसी अंदाज में मद्धिम स्वर में जवाब दिया जिससे अमन को कुछ सुनाई ना दे।
"हां..! तू बिलकुल ठीक कह रही है। मुझे तो नही पर मेरी जूती को जरूर छोड़ आएं। उसी के काबिल हैं तेरे ये अमन।"
नाज़ ने फिर नहले पर दहला मारा और बोली,
"अब जूती तो तेरे पांव में ही रहेगी। साथ तू भी पहुंच ही जायेगी। क्या फर्क है..? तुझे छोड़ें या जूती को रहेंगी तो दोनो साथ ही।"
अपनी बात खुद पर ही पड़ते देख अब पुरवा और भी नाराज हो गई। उससे अलग होते हुए बोली,
"जा.. मैं तुझसे बात नही करती। अब नही आयेंगे मिलने। बड़ा मज़ा आता है ना तुमको मुझे तंग करने में।"
अमन जिस लिए आया था उसे भूल कर खामोशी के साथ इन दोनो सहेलियों के बीच मद्धिम आवाज में होने वाली बात चीत को समझने की कोशिश कर रहा था।
अमन को ऐसे बुत बन कर खड़े देख कर नाज़ ने पहल की और पूछा,
"अमन..जी..! किसी काम से आए थे क्या..?"
अमन नाज़ के सवाल पर झेंप गया और सिर खुजाते हुए मुस्कुरा कर बोला,
"वो… वो.. आया तो मैं काम से ही था पर आपको और पुरवा जी को इस तरह मशगूल देख कर भूल गया।"
नाज़ बोली,
"वो.. हम दोनो बचपन से ही ऐसी हैं। जब भी मिलती है तो कुछ न कुछ बात हो ही जाती है। अब ये मुझ पर बिगड़ रही है कि मैंने इस समय की याद नही दिलाई। इसे जाने में देर हो गई है। अब घर पर डांट पड़ेगी। अब मुझे भी ख्याल नही रहा तो मैं क्या करूं..? भला…अब आप ही बताओ मेरी क्या गलती है इसमें..?"
अमन बोला,
"हां..देर तो हो गई है वाकई। आप दोनो को इसका ध्यान रखना चाहिए था।"
नाज ने अमन से पूछा,
"वैसे किस काम से आए थे..?"
अमन बोला,
"आरिफ भाई जान ने बोला मुझे कि पुरवा के पास उनकी एक किताब है अश्क जी का ’जुदाई की शाम का गीत’ वो मुझे चाहिए तो मैं पुरवा जी से मांग लूं। उनके पास है।"
अमन ने सवालिया नजरों से पुरवा की ओर देखा।
पुरवा अपना उखड़ा हुआ मिजाज सम्हालते हुए बोली,
"हां ..! आरिफ भाई ने दिया तो था हमको। हमने पढ़ भी लिया है। पर वो घर पर ही रक्खी है। हम साथ ले के थोड़ी ना घूम रहे हैं।"
पुरवा के कहने के अंदाज पर अमन को हंसी आ गई।
वो हंसते हुए बोला,
"मैं कब कह रहा हूं कि आप साथ ले कर घूम रही हैं…? मैं तो बस पूछ भर रहा था।"
किताब की बात सुनते ही नाज़ को पुरवा को डांट से बचाने का उपाय सूझ गया। जिससे अमन को किताब भी मिल जायेगी और पुरवा देरी की वजह से पड़ने वाली डांट से भी बच जाएगी। वो चुटकी बजाते हुए बोली,
"बस… हो गया दोनो की समस्या का समाधान। ऐसा करो आप अमन जी..! पुरवा के साथ चले जाओ उसे छोड़ भी आओ और अपनी वो कौन सी किबाब कह रहे थे, कौन सी शाम का गीत..? उसे भी लेते आइएगा।"
फिर पुरवा की ओर देख कर बोली,
"क्यों पुरवा..! ठीक कह रही हूं ना। अब तो तू नाराज नहीं है मुझसे। मैने देर करवाया तो उसका समाधान भी कर दिया। अब तो नही डांट पड़ेगी तुझे।"
"पुरवा सकुचाते हुए बोली,
"रहने दे ना..क्यों भला इन्हे परेशान कर रही है तू नाज़। हम चले जायेंगे और अम्मा बाऊ जी को समझा भी देगें।"
अमन बोला,
"इसमें परेशानी की क्या बात है..? घर में बैठे बैठे ऊब ही जाता हूं। चलिए और देर मत करिए मैं आपको छोड़ आता हूं।"
इसके बाद नाज़ ने पुरवा का हाथ पकड़ कर थपकी दी और बोली,
"जा पुरवा..! देर मत कर अब। अपना ख्याल रखना। जा..।"
पुरवा नाज़ से अपना हाथ छुड़ा कर दरवाजे की ओर बड़ी। उसकी नज़रे नाज़ पर ही टिकी हुई थी। घड़ी पर पहले जो चेहरा हंस रहा था, अब उदास हो गया था। पीड़ा इस बात की थी कि अब जाने कान मिलना होगा।
नाज़ उसे दिलासा देते हुए बोली,
"क्यों रोनी सूरत बना रही है..? अभी जो जिस दिन जायेगी, उस दिन यही से जाना होगा। मिलेंगे ना चार दिन बाद फिर।"
नाज़ से निगाहें हटा कर एक झटके से पुरवा बाहर निकल गई।
"अच्छा भाभी जान ..! चलता हूं। वापस आता हूं इन्हे इनके घर पहुंचा कर।"
उसके पीछे पीछे अमन भी चला।
बाहर बगीचे में शमशाद अम्मी और खाला के साथ बैठा बतिया रहा था। आरिफ वहीं बगीचे में खड़ा हो कर माली से पौधों की गुड़ाई करवा रहा था।
पुरवा आई और सलमा से बोली,
"अच्छा मौसी..! अब घर जा रही हूं। और उन तीनों को नमस्ते कर तेजी से निकलने लगी। तभी शमशाद बोला,
"अकेली चली जायेगी बिटिया…! डरेगी तो नही। किसी से छुड़वा दूं तुम्हें।"
पुरवा उनकी बात को अनसुना करती हुई आगे बढ़ गई। अब उसे और देर नहीं करनी थी।
तभी उसके पीछे पीछे आता अमन शमशाद की बात सुन कर बोला,
"वो.. नाज़ भाभी जान ने मुझे पुरवा को घर छोड़ कर आने को बोला है।"
सलमा बोली,
"हां..! ठीक ही तो बोली है वो। जा बेटा..!पहुंचा आ। देर हो गई है। अब बिटिया हमारे घर आई है तो हमारी भी तो जिम्मेदारी है, उसे सही सलामत घर पहुंचाने की।"
"जी..अम्मी.. ।"
कहता हुआ अमन तेजी से लंबे लंबे डग रखता हुआ जाना लगा। क्योंकि पुरवा उससे काफी आगे निकल गई थी।
आरिफ तेज आवाज में चिल्ला कर बोला,
"वो.. किताब भी ले लेना जो तुम कह रहे थे।"
"जी ..भाई जान..।"
कह कर लंबे लंबे डग रखते हुए अमन ने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी।