Kataasraj.. The Silent Witness - 25 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 25

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 25

भाग 25

सलमा आते हुए रास्ते में जो भी पहले से अलग दिखी थी उनके बारे में उर्मिला से बात करने लगी। बोली,

"उर्मिला…..! अपना गांव अपना इलाका बहुत बदल गया है ना पहले से।"

उर्मिला बोली,

"अब आप लंबे अरसे बाद आई हैं ना इस लिए आपको लगता होगा। हम तो यही रहते है इस लिए हमें फर्क महसूस ही नही होता। पर हां ..! कुछ तो बदला ही है।"

फिर उर्मिला ने सलमा से इधर उधर देखते हुए पूछा,

"अमन नही दिख रहा। वो नही आया क्या ..?"

सलमा बोली,

"बस…! आता ही होगा। हमारे साथ नही आया। बोला, तुम लोग जाओ पैदल जा रहे हो। मैं नही जाऊंगा। मैं अभी थोड़ा देर में अकेला ही आ जाऊंगा।"

फिर थोड़ा रुक कर बोली,

"अब तुम तो जानती हो आज कल के लड़कों को। नई उमर में नया नया शौख पाल लेते हैं। जब से यहां आया है आरिफ के साथ ही है। उसने अमन को भी घुड़ सवारी सिखा दी है थोड़ी थोड़ी। आस पास ले कर खुद भी चल देता है। आज भी वही शौख पूरा करना चाहता है। बस अभी आ जायेगा थोड़ी देर में। मैंने हिदायद दी थी उसे कि जल्दी आ जाना।"

तभी अशोक बोला,

"अरे..! भाई…! तुम तो बातों में ही लग गई। दिख नही रहा ये इतनी दूर पैदल चल कर आ रहे हैं। वो भी बिना आदत के। प्यास लगी होगी। जाओ कुछ पानी वाणी ले कर आओ।"

उर्मिला को पुरवा की साड़ी पहनने की शर्त भूल गई थी। उसने उसे आवाज लगाई,

"पुरवा…! देख तेरी मौसी आई हैं। जल्दी से पानी ले कर आ।"

मां की पुकार सुनते ही पुरवा झल्ला उठी। खुद से ही कहने लगी,

’ये मां भी ना…! इन्हे जो बात हम मना करेंगे वही मुझे करने को कहेंगी। बोली थी इनसे कि ये साड़ी वाडी पहन कर मुझे मत बुलाना सब के सामने..। पर ना…इनसे खुद तो उठा कर पानी लिया नही जायेगा। बस… पुरवा ये कर दो…! पुरवा वो कर दो। अब पुरवा ये साड़ी लपेट कर अटक कर मरे.?"

देर होते देख उर्मिला ने फिर पुरवा के नाम की गुहार लगाई। अब पुरवा ने साड़ी को थोड़ा सा ऊपर कर लिया और पल्लू को खूब लपेट कर कमर में खोसा और पल्ला संभालने के झंझट से आजाद हो गई। दो कदम चल कर देखा तो अब उसे चलने में कोई परेशानी नही थी। अब उसे चलने में कोई परेशानी नही थी। अपनी इस जुगत पर वो मुस्कुरा उठी।

फिर उसने प्लेट में मां की बनाई हुई मिठाई निकाली और एक लोटा और चार गिलास में पानी ले कर संभाल कर कदम रखती हुई बाहर आ गई। वो मेहमान के सामने गिर कर अपना मजाक नही बनवाना चाहती थी।

प्लेट सलमा के सामने रख दिया। फिर साजिद और सलमा को नमस्ते कर के अंदर आ गई।

सलमा और उर्मिला बातों में लग गई। इन बातों का दायरा घर परिवार, रिशेदरों से होते हुए अपनी निजी समस्यायों तक पहुंच गया। अपनी अपनी घरेलू परेशानियों की चर्चा वो करने लगीं। उर्मिला की परेशानियां जहां आर्थिक थी, वहीं सलमा की समस्या व्यस्तता और अमन के भविष्य को ले कर थी। अमन अपने भाई की तरह, अब्बू के बिजनेस में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था। उसे तो बस पढ़ना था और गरीबों की सेवा के लिए, उनका दुख दर्द दूर करने के लिए एक नेक और कामयाब डॉक्टर बनना था। पर सलमा और साजिद को अमन का ये सब करने के बारे में सोचना बिलकुल भी पसंद नही था। वो उसे गाहे बगाहे मौका देख कर समझाने की कोशिश करते थे। पर अमन जो अपने अम्मी अब्बू की सारी छोटी बड़ी बातें मानता था। बिजनेस संभालने की बात पर सदा ही उनके विरोध में खड़ा हो जाता। उसे अपने मन का काम करना था। इस मुआमले में उसे किसी की बातों पर कान नही देना था, फिर चाहे वो अम्मी अब्बू हो या फिर कोई और। सलमा चाहती थी कि उर्मिला और अशोक भी अपनी ओर से समझाने की एक कोशिश कर के देख लें। वो कहते है ना कि कब किसकी और कहां वजह से काम बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। उर्मिला ने हामीं भरी और कहा,

"आप चिंता मत करो सलमा बहन..! ऊपर वाला सब अपने हिसाब से करता है। मैं समझाऊंगी अमन बेटा को। पर आप तो नाहक ही राई को पहाड़ बना कर दुखी हो रही हो। वो तो अच्छी राह पर ही जा रहा है। नेकी और सबाब का काम है बीमारों का इलाज करना, दुखियों का दर्द दूर करना। आप रोक क्यों रही हैं, ये मेरी समझ में नहीं आ रहा है। अब बड़े ने तो कारोबार संभाला हुआ है ना, तो फिर छोटे को करने दो अपने मर्जी का काम।"

सलमा बोली,

"नही बहन …! तुम बात नही समझ रही हो…! मानती हूं मैं कि अमन जो करना चाहता है वो नेकी का काम है। पर मैं अपने बच्चों को अपनी नजरों के सामने ही रखना चाहती हूं। अपने घर में रहें अपना कारोबार संभाले भाई और अब्बा के साथ। कहीं परदेस में धक्के खाने की क्या जरूरत है…?"

उर्मिला भी अब सलमा की बात से सहमत थी कि हां..! ये तो सच है, अपनी औलाद अपने आंखों के सामने रहे यही सबसे अच्छी बात है।

अशोक और साजिद भी शुरुआत में तो कुछ संकोच कर रहे थे बात करने में। पर जब एक बार बात चीत का सिलसिला शुरू हुई तो फिर ये एहसास खत्म होता चला गया कि उनकी आपस में कोई खास पहचान नहीं है अभी तक। सरल हृदय का मालिक अशोक और मिलनसार साजिद आपस में घुल मिल गए।

बात बात में अशोक भगवान शंकर की सौं जरूर लेता। उससे साजिद को ये पता लग गया कि वो एक सच्चा शिव भक्त है।

अभी कुछ देर ही बीता था बात करते कि अमन के घोड़े की टाप सुनाई दी। फिर तो क्षण भर बीतते बीतते वो आकर दरवाजे पर खड़ा हो गया। घोड़े से उतर कर उसकी पीठ सहलाई और लगाम से नीम के पेड़ में बांध दिया। फिर मुंह पर प्यार से थपकी दे कर वरांडे में बैठे अम्मी अब्बू और उर्मिला अशोक की ओर आ गया। अशोक ने बड़े प्यार से उसे कालीन बिछी खटिया पर बिठाया। सफलता पूर्वक घुड़सवारी करने की खुशी उसके चेहरे से छलकी पड़ रही थी।