Kataasraj.. The Silent Witness - 14 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 14

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 14

भाग 14

बाहर जाती हुई पुरवा तेज आवाज में बोली,

"चाची ….! हम जा रहे हैं।"

नईमा ने इस हिदायत के साथ जाने दिया कि समय से दोनो वापस घर आ जाएं।

तेजी तेजी कदम बढ़ाती नाज़ और पुरवा अपने हमेशा वाले पोखरा के किनारे वाले जगह की ओर बढ़ चली।

नाज तो कायदे से सामान्य कदमों से चल रही थी। पर पुरवा का एक भी कदम उछले बिना नहीं पड़ रहा था।

बौरे आमों पर कोयल बैठी कूक कूक कर सब का मन बसंती रंग में रंग दे रही थी। एके तो मौसम सुहाना दूसरे कोयल की आवाज पूरे बाग को मनो हारी बना रही थी। पुरवा कोयल की आवाज सुन कब उसके साथ तान में तान मिलाने लगी उसे भी पता नही चला। जितना पुरवा उसकी नकल उतरती कोयल उतनी ही तत्परता से चिढ़ती हुई जवाब देती।

आरिफ समय से आ गया था आज। कुछ देर तक तो खड़े हो कर समय बिताया आरिफ और अमन ने। पर जब खड़े होने से उनके पैरों में थोड़ी सी तकलीफ होने लगी तो वो दोनों वही वो एक पेड़ की डाल जो झुकी हुई थी तथा जमीन से थोड़ी ही ऊंची थी। उस लचकती डाल पर बड़े ही आराम से बैठ कर झूला झुला जा सकता था। आरिफ और अमन उस पर बैठ गए और धीरे धीरे झूलते हुए नाज़ और पुरवा के आने की राह देखने लगे।

तभी उन्हें कोयल के साथ साथ एक लड़की के भी कूकने की आवाज आने लगी। आरिफ… अमन से बोला,

"पक्का ये पुरवा ही है। ऐसा पागल पन बस वही कर सकती है। चलो इंतजार खत्म हुआ तुम्हें अब अपनी भाभी जान का दीदार हो जायेगा।"

नाज़ पुरवा से कुछ कदम पीछे थी। और पुरवा अपने लंबे खुले बालों में ऊपर देखती हुई चली आ रही थी। उसकी निगाह पेड़ पर बैठी कोयल को ढूंढने में व्यस्त थी। पर कोयल की जगह सिर्फ उसकी आवाज ही सुनाई दे रही थी।

नीचे देख कर नही चलने के कारण वो एक जमीन से उभरे पत्थर से टकराई और लगभग चार कदम तक लड़खड़ाती हुई आगे बढ़ गई। आरिफ और अमन ये सब देख रहे थे। आरिफ पीछे बैठा था, अमन आगे।

अमन उसे लड़खड़ाते देख फुर्ती से डाल से उठा कर खड़ा हुआ और पुरवा को गिरने से पहले ही थाम लिया। पुरवा इस तरह अनजान को खुद को गिरने से बचाते देख अपनी गलती पर शर्मिंदा हो गई। फिर जब चेहरा देखा तो उसे अंदाजा हो गया कि ये वही है जो सुबह आरिफ भाई के साथ घर आया था।

इधर अमन ने सुबह पहली बार जब से पुरवा को देखा था। उसकी कही एक एक बात कानों में मिसरी घोल रही थी। नहा कर बिलकुल ताजे खिले कमल जैसा कोमल चेहरा अमन के दिमाग से उतर ही नही रहा था। कैसी है ये लड़की बिलकुल बिंदास। सुबह अपनी अम्मा से टकराई थी। और अभी शाम को अमन से। टकराने से खुले बाल सामने आ गए। उन्हें पीछे करते हुए पुरवा ने खुद को अमन से अलग होने लगी।

पर अमन…..! वो तो पुरवा के आकर्षण में ऐसा बंधा था कि कुछ पल के लिए वो अपना सुध बुध खो बैठा। उसे पुरवा का गिरने से बचाने के लिए पकड़ा हाथ छोड़ना याद ही नहीं रहा।

पुरवा ने बल पूर्वक अपना हाथ छुड़ाया और अमन से कतराते हुए। आरिफ के पास आ गई। बोली,

"आरिफ भाई …! कैसे कैसे करके मैं नाज़ को ले कर आ पाई हूं। पहले अपनी अम्मा को मनाया, फिर नईमा चाची को मनाया। इन सब में मुझे कितना झेलना पड़ा .. आपको क्या पता…? अब आप सब्र करिए निकाह तक। मुझको रोज रोज चाची से बहाने बनाते अच्छा नही लगता।"

पुरवा ऐसा जताते हुए बोल रही थी जैसे कि बहुत बड़ा एहसान किया हो आरिफ पर।

आरिफ भी कहां कम था….! उसे भी अब तक अच्छे से अंदाजा हो गया था कि पुरवा को पढ़ने का जबरदस्त शौख है। वो अच्छी किताबों के लिए कुछ भी कर सकती है। इसलिए बोला,

"हां….! वो तो है। तुम मेरे लिए बहुत ही तकलीफ उठा कर नाज़ को ले कर आ पाती हो। पर मैं भी कितनी मेहनत करता हूं अच्छी किताबो के लिए तुम्हें इसका अंदाजा है…! जो किताब सुबह तुम्हें दी है। उसके बारे में अखबार में पढ़ा था कि वो बेस्ट सेलर है। उसे कहां कहां से ढूंढ कर मंगवाया तुम क्या जानो..? पहली बार तो किसी भी दुकान पर मिली नही। फिर एक ने कहा कि आप पैसे जमा कर दो तो मैं पंद्रह दिन में मंगवा दूंगा। फिर पैसा जमा कर दिया तो पंद्रह दिन बात किताब मिल पाई। पर तुम्हें थोड़ी ना पता चलेगा कुछ। तुमको को घर पर ही बैठे बैठे मिल गई पढ़ने को।"

पुरवा निरूरत्तर हो गई आरिफ की बात सुन कर।

फिर आरिफ बोला,

"अब अगर इजाजत दो तो थोड़ी सी बात नाज़ से भी कर लूं। जिस लिए आया हूं और तुम्हारी धौंस सुन रहा हूं।"

पुरवा आरिफ की बातों का कुछ बुरा मान कर पीछे हट गई।

नाज़ खामोश खड़ी आरिफ और पुरवा की बातें सुन रही थी।

आरिफ थोड़ा पास आया नाज़ के और अमन से बोला,

"अमन आओ अपनी बस होने ही वाली भाभी जान से मिल लो। अमन ये हैं तुम्हारी भाभी नाज़…. और नाज़…! ये हमारी चकवाल वाली खाला सलमा का बेटा अमन है। आज तो इसी ने जिद्द की कि इसे तुमको देखना है .. तुमसे मिलना है।"

अमन जो नाज़ की ओर ही देख रहा था। बोला,

"सलाम भाभी जान।"

थोड़ी सी शरमाई हुई नाज़ ने भी सलाम किया मुस्कुराते हुए।

वो तीनो आपस में बातें करने लगे। कब आए…? घर में सब की खैरियत आदि के बारे में।

पुरवा को तो जैसे सब भूल ही गए थे। वो चुप चाप पीछे खड़ी एक डाल पकड़ कर उसकी छाल को कुरेदने में लगी हुई थी।

अमन भले ही नाज़ से बातें कर रहा था। पर उसकी एक आंख पुरवा की ओर ही लगी हुई थी। उसे लगा कि पुरवा खुद को उपेक्षित महसूस करती होगी। इसलिए शरारती अंदाज में बोला,

"भाभी जान …! शायद आपकी सहेली को लोगो से दूर रहना लगता है बहुत पसंद है। और दूसरी पसंद रास्ता देख कर नही चलना और सामने वाले से टकराना।"

पुरवा ने सुना जो अमन उसके बारे में कह रहा था। पर अमन की आंखों में कुछ ऐसा था की पलट कर जवाब नहीं दे पाई।

बस हल्का सा मुस्कुरा कर रह गई। फिर उनके पास आ कर बातें सुनने लगी।