Kataasraj.. The Silent Witness - 11 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 11

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 11

भाग 11

आरिफ को देख कर पुरवा ने सोचा कि उसका अनुमान सही साबित हो गया।

उसने चैन की सांस ली। सुबह से की गई मेहनत सफल हो गई। उसे अंदेशा हो गया था कि वो आयेंगे। फिर उनकी किताब वापस करनी पड़ेगी। अब अधूरी पढ़ी किताब भला वो कैसे वापस कर सकती थी…! इसी को पूरा पढ़ने के चक्कर में तो सुबह से जुटी हुई थी। घर का एक भी काम हाथ नही लगाया था। काम करना तो दूर नहाई भी नही थी। जिसके कारण अम्मा इतनी ज्यादा भड़की हुई थी।

पर कोई बात नही। अम्मा तो मान ही जाएंगी। जहां उनके बालों में तेल लगा कर मालिश कर दिया यही मुंह असीसते नही थकेगा।

पुरवा तुरंत अंदर गई और किताब ले कर बाहर आरिफ के पास भागते हुए आई।

जब किताब पकड़ाने को सर ऊपर किया और उसे आरिफ भाई के हाथों में थमाया। उसी उसकी निगाह आरिफ के पीछे बैठे हुए अमन पर पड़ी।

"न….मस्ते … आरिफ भाई….!"

कहते हुए उसकी जुबान एक अजनबी को देख कर लड़खड़ाई।

उसे अपनी इस हालत पर लज्जा आ रही थी। गमछे में लिपटे गीले बाल जो ठीक से नहीं लपेटे होने की वजह से इधर उधर बिखरे हुए थे। बालों से चू रहा पानी उसके कपड़े को गीला कर रहा था।

पुरवा वापस जाने लगी।

आरिफ उसे वापस जाते देख घबरा कर बोला,

"पुरवा ….! सुनो तो…. मैं ये एक नई किताब ले आया था। खुद पढ़ लिया तो सोचा तुम्हें भी दे दूं। तुम भी पढ़ लो। बहुत अच्छी है।"

किताब का नाम सुन वो वापस लौटी।

आरिफ उसे किताब पकड़ाते हुए बेहद धीरे से बोला,

"आज नाज़ को ले कर आ जाओ चार बजे।"

आंखों में इसरार का भाव साफ दिख रहा था।

पुरवा को तो रिश्वत मिल चुकी थी। अब तो बस एक घंटे का काम था। नाज़ के साथ जाना था और कुछ देर बाद वापस आ जाना था।

पुरवा ने भी पलकें झपका कर नाज़ को ले कर आने के लिए हामी भर दी।

आरिफ अब निश्चिंत हो गया। पुरवा ने हर बार अपना वादा पूरा किया था।

घोड़े की लगाम खींची और वापस मोड़ लिया। जाते हुए

उर्मिला और अशोक को सलाम करता गया। आरिफ भाई की देखा देखी अमन ने भी अशोक और उर्मिला को सलाम किया।

लगाम खींचते ही घोड़ा सरपट दौड़ने लगा। आरिफ साथ में अमन को अच्छा घुड़सवार बनने का नुस्खा भी बताता जा रहा था।

कुछ देर तक इधर उधर अमन को घुमा कर आरिफ ने अपनी हवेली का रुख किया। अमन उनका मेहमान था और खाने का वक्त हो चुका था। इस लिए वापस लौटना ही था।

घर वापस आने पर आरिफ ने देखा खाने के लिए सब उन्हीं का इंतजार कर रहे थे। फटाफट हाथ मुंह धो कर आरिफ और अमन भी दस्तरखान पर आ कर खाने बैठ गए।

खाना खा कर दोनों ने कुछ देर आराम किया। आरिफ ने घड़ी देखी साढ़े तीन बज रहे थे। वो बोला,

"उठो… अमन …. साढ़े तीन बज गया है। चलो तुम्हारी भाभी जान से मिला लाऊं। देर हो जायेगी तो वो दोनो बिचारी परेशान होंगी।"

अमन भी उठा और अपना नया वाला पठानी सूट पहन कर तैयार हो गया।

इस बार हल्ला कर के नही जाना था। चुपके चुपके जाना था। इस लिए अपना प्यारा घोड़ा आरिफ ने रहने दिया।

बाहर के बारांडे में बैठे शमशाद मियां से कुछ लोग मिलने आए थे वो उन्हीं से बात करने में मशगूल थे। बाहर निकलते आरिफ पर उनकी निगाह पड़ी। वो बोले,

"आरिफ… अमन को कहीं घुमाने ले जा रहे हो….?"

आरिफ बोला,

"जी भाई जान …!"

शमशाद बोले,

"अच्छा है। अपना पूरा इलाका अमन मियां को भी दिखा दो। घोड़ा लेते जाना।"

आरिफ बोला,

"भाई जान…! यही पास ही जा रहे है। इतनी सी दूर के लिए क्या घोड़ा ले जाऊं…?"

इतना कह कर वो अमन के साथ चला गया।

शमशाद मियां का माथा ठनक गया। यहीं पास में…? और पैदल…? जरूर आज पुरानी हरकत दुहराने जाता होगा। क्या कहूं …? आज कल के लड़के। चंद रोज बाकी है निकाह में। पर सब्र नहीं है। पर क्या करते मजबूर थे। फिर भी दिल में एक उम्मीद थी की अमन को साथ ले कर नाज़ से मिलने नही जायेगा। दिल को बहला लिया यही सोच कर।

इधर पुरवा इस जुगत में थी कि एक तो अम्मी नाराज है। ऊपर से अगर नाज़ के घर जाने की बात करेगी तो पक्का ही मार खा जायेगी।

उसने अपने बालों की झटक कर सुखाया। एक तरफ चूल्हे में गोइठा डाल दिया रसेदार सब्जी के लिए मसाला निकाल कर सिल पर पीसने बैठ गई। सिल लोढ़े पर पीसने की आवाज सुन कर उर्मिला ने अंदाजा लगाते हुए अशोक से कहा कि जरूर ही पुरवा चटनी पीसती होगी। चटोरी जो है। बिना चटपटे के खाना खाने में मजा नही आता होगा।

पर उर्मिला का सारा अनुमान गलत साबित ही गया। जब थोड़ी देर बाद वो अम्मा के पास जा कर उनके हाथों से मटर की टोकरी लेने लगी और बोली,

"दो अम्मा….! मैं आज सब्जी बना दूं। आप थक गई होगी। मसाला पीस लिया है और आग भी सुलगा दिया है। आज सब कुछ अकेले जो करना पड़ा आपको।"

उर्मिला हैरत से देखने लगी और बोली,

"तू मसाला पीस रही थी…! हमको तो लगा कि चटनी पीस रही है। तूने खाना अभी तक नही खाया…?"

"नही अम्मा…! दीजिए पहले बना लें । तब ही खायेंगे।"

आधा दिन बीत चुका था और बेटी ने अभी तक खाना नही खाया था। मां की ममता तड़प उठी। वो बोली,

"नही बेटी…! जा तू पहले खा ले फिर बनाना।"

पर पुरवा अम्मा की बात को अनसुना कर मटर की डलिया ले कर अंदर चौके में चली गई। फटाफट सब्जी बनाने को आंच तेज कर दिया।

पुरवा के पीछे पीछे उर्मिला भी आ गई। उसे बार बार हटने को बोलती कि रहने दे बेटी पहले खा ले।

पर पुरवा नही मानी।

सब्जी में पकने को पानी डाल दिया। तब तक उर्मिला उसके लिए थाली परोस चुकी थी।

पुरवा ने खाना खाया और चावल भी चढ़ा दिया पकने को।

अब सब्जी चावल तैयार था।

उर्मिला को बुरा लगता जब पुरवा कुछ काम घर का नही करती। फिर दूसरे ही पल जब वो करती तो उसे लगता कि मेरी बच्ची थक जायेगी। मां की ममता ऐसी ही होती है कि धूप छांव दोनो ही एक साथ ही देना चाहती है।

क्या पुरवा ने अम्मा से पूछा नाज़ के घर जाने को…? क्या उर्मिला ने उसे इजाजत दी नाज़ से मिलने जाने की। जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।