Revenge of the Webs Woman in Hindi Adventure Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | वेबस नारी का प्रतिशोध

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वेबस नारी का प्रतिशोध



जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन निशा सुहाग की सेज पर बैठी नव विवाहिता पत्नी अपने बचपन से सुहाग सेज तक कि जीवन यात्रा के सुंदर सपनो कि कल्पना कि वास्तविकता को प्रत्यक्ष देखने के लिए आतुर विचारों में खोई सिर्फ उस सुंदर पल को बेचैनी से निहारती पल भी वर्षो कि जीवन यात्रा सा लगता।

माँ बाप भाई बहनों अपनो को छोड़कर आयी निहारिका सुंदर सपनो में खोई ही थी तभी सपनो का सौदागर जीवन का सत्य पति प्रेमी जिबेश कमरे में प्रवेश करता है और सेज पर बैठते हुये कीमती तोहफा देते हुए कहता है निहारिका आज मुझे सबसे बड़ा पुरस्कार मेरे सद्कर्मो का ईश्वर ने दिया है वो तुम हो जी चाहता है तुम्हे ही निहारता रहूं इतना कहते हुए घूंघट में छिपे निहारिका के चेहरे से घुघट हटाता है और स्तब्ध रह जाता है ।

बेहद सुंदर संगमरमर कि तारासी किसी मूर्ति कि तरह निहारिका जीवन के सपनो से भी सुंदर साक्षात समक्ष एकाएक आलिंगन बद्ध करते हुए बरबस बोल उठता है ईश्वर आपका बहुत आभार जो अपने निहारिका को मुझे सौंपा।


निहारिका और जीवेश पूरी रात ढ़ेर सारी बाते करते है भविष्य कि सुंदर योजनाए बनाते कब सुबह हो गयी पता ही नही चला ।

जीवेश लगभग पंद्रह दिन बाद अपने कार्यलय अपने कार्य पर वापस गया तो सहकर्मियों ने उससे निहारिका कि आने कि खुशी में पार्टी कि मांग कि जिबेश ने खुशी खुशी अपने जीवन कि सबसे बड़ी खुशी निहारिका के लिए पार्टी का आयोजन कर ही डाला कार्यकाल के सभी सहकर्मी अधिकारियों को निमंत्रित किया भोज रात्रि आठ नौ बजे शुरू हुई और देर रात तक चलती रही।

सर्वदमन जीवेश का उच्चाधिकारी था वह निहारिका के इर्द गिर्द ही रहता और अवसर का लाभ उठाकर उससे बाते करता ।

सर्वदमन ने निहारिका से कहा निहारिका तुम्हारा विवाह मैंने जीवेश से इसलिये नही कराया कि तुम मुझे याद ही न रखो बल्कि मैने इसलिए कराया कि हमारी तुम्हारी मुलाकात और सम्बन्ध निर्वाध चलते रहे लेकिन तुम तो सब भूल कर धर्मपत्नी ही बन गयी हो जीवेश कि जो मुझे विल्कुल नही पसंद है ।

निहारिका ने कहा यदि इतना ही मुझसे प्यार करते हो तो क्यो मुझसे विवाह करने से इंकार कर दिया सर्वदमन ने कहा निहारिका तुम जो चाहे समझो लेकिन तुम्हे जीना पड़ेगा मेरे ही लिए न कि जीवेश कि धर्मपत्नी बनकर निहारिका को बहुत अच्छी तरह मालूम था कि सर्वदमन क्रूर एव स्वार्थी व्यक्ति है वह पिता जी को दिए लाखो रुपये उधार कि भरपाई के ब्याज में उसके यौवन का पिपासा है और कुछ नही।

पार्टी समाप्त हई लेकिन निहारिका के लिए बहुत बड़ी समस्या के साथ जीवेश इन सब बातों से बेखबर सिर्फ निहारिका का सच्चा प्रेमी पति इधर सर्वदमन ने जुगत लगाई वह जीवेश को कार्यालय कार्यो से बाहर दौरे पर भेजने लगा और निहारिका को बुलाता निहारिका के इनकार करने पर उसके पिता पर कर्ज वसूली के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाता।

निहारिका कब तक दृढ़ता से अपने पति के प्यार में खड़ी रहती वह पिता कि मजबूरियों के सामने टूट गयी और सर्वदमन कि कठपुतली बन गयी ।

सर्वदमन अक्सर जीवेश को बेवजह बहाना खोजकर कार्यालय कार्यो से हप्तों के लिए बाहर भेजता और निहारिका को बुलाता अब तो निहारिका और भी मजबूर हो चुकी थी ।

जीवेश जब दौरे से लौटता निहारिका के लिए तरह तरह के उपहार लाता लेकिन वह निहारिका के अंतर्मन व्यथा को नही समझ पाता निहारिका भी उंसे कुछ नही बता पाती और घुटती रहती ।

निहारिका ने मन ही मन सर्वदमन को जीवन से हटाने का कठिन निर्णय ले लिया जब भी पति जीवेश को सर्वदमन कार्यालय कार्यो से बाहर भेजता और उंसे बुलाता वह जाती और कुछ न कुछ सर्वदमन के लिए खाने
ले जाती सर्वदमन को बहुत अच्छी तरह मालूम था कि निहारिका पाक शास्त्र में बहुत ही निपुण है ।

अतः बिना कोई प्रश्न किये वह बड़े चाव से निहारिका के हर व्यंजन को खाता प्रसंशा करता यह क्रम लगभग एक वर्ष तक चलता रहा ।

जीवेश लौट कर आता एक दिन बाद ही किसी न किसी बहाने सर्वदमन उसे बेवजह के कार्यो के लिए बाहर का दौरा दे देता ।

जीवेश इस बार दौरे से लौट कर आया तो पंद्रह दिनों तक बाहर नही गया न ही सर्वदमन का कोई फोन ही आया ऐसे ही पति को प्रसन्न देखकर पूछा क्यो जी अब दौरा खत्म हो गया क्या ?

जीवेश ने बताया कि सर्वदमन साहब कि तबियत बहुत खराब है और अस्पताल में भर्ती है डॉक्टरों ने बहुत प्रयास किया पता लगाने कि सर्वदमन को बीमारी क्या है?

लेकिन किसी भी जांच में कोई भी तथ्य नही मील जिससे बीमारी एव कारण का पता लग सके निहारिका ने कहा तब तो तुम्हारे साहब को अस्पताल देखने चलना चाहिये पता नही कब दुनियां छोड़ दे जीवेश ने कहा शुभ शुभ बोल भग्यवान ।

दोनों तैयार हुए और सर्वदमन को देखने अस्पताल चल पड़े अस्पताल पहुंचते ही लगभग मरनासन्न सर्वदमन ने निहारिका से कहा आओ निहारिका देखो मेरे कर्मों का हिसाब भगवान ने कर दिया साथ जीवेश को कुछ भी समझ मे नही आया वह बहुत भाऊक होकर अपने अधिकारी सर्वदमन का चेहरा एक टक देखता रहा और ड्यूटी कर रही नर्स से अपने साहब के स्वास्थ कि जानकारी लेने ज्यो ही गया सर्वदमन बोला देख रही हो निहारिका मेरे कर्मो का परिणाम डॉक्टर पता नही कर पा रहे है की मुझे बीमारी क्या है?

मैं किसी अनजाने विष के प्रभाव में तिल तिल मर रहा हूँ इतना सुनते ही निहारिका जहिरिली प्रतिशोध कि आग में जलती नागिन कि तरह बोली सर्वदमन तुम पुरुषों कि बेहद कमजोरी यह है कि तुम लोग किसी की विवशता लाचारी का भरपूर लाभ उठाने में शक्तिवान होने का दम्भ भरते हो नारी को तो खिलौना ही समझते हो सुनो मेरी लाचारी बेवसी को हथियार बनाकर तुम जब भी मुझे बुलाते मैं आती और तुम्हारे लिए स्वादिष्ट व्यंजन बना कर लाती और उस व्यंजन में अपने नाखून के टुकड़ों को जला कर उसका राख मिलाती जिसका पता तुम क्या किसी को नही हो सकता वही विष तुम्हारी रगों में धीरे धीरे दौड़ने लगा और जब विष तुम्हारे ऊपर ज्यादा प्रभावी हुया तो तुम इस अवस्था मे हो तुम्हे स्वंय परमात्मा भी नही बचा सकता यही तुम्हारी सही सजा है।

तुमने मेरे भोले भाले पति को मुझसे दूर भेजकर मुझे मजबूर किया देखो वह देवता आज भी तुम्हारे सलामत के लिए कितना व्यथित परेशान है चलती हूँ बाय बाय अब अगले जन्म का इंतज़ार करना इतना कहते हुए निहारिका पति जीवेश के साथ अस्पताल से बाहर निकली सर्वदमन उंसे एकटक देखता रहा कब उसके प्राण पखेरू उड़ गए पता नही।

दूसरे दिन कार्यालय में शोक सभा हुई लेकिन दबी जुबान पर यही चर्चा थी कि जीवेश कि सच्चाई कि सजा सर्वदमन कि मौत है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।