Prem Gali ati Sankari - 52 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 52

Featured Books
  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 50

    अब आगे रुद्र तुम यह क्या कर रही हो क्या तुम पागल हो गई हों छ...

  • जंगल - भाग 7

          कुछ जंगली पन साथ पुख्ता होता है, जो कर्म किये जाते है।...

  • डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 69

    अब आगे,अर्जुन, अराध्या को कमरे से बाहर लाकर अब उसको जबरदस्ती...

Categories
Share

प्रेम गली अति साँकरी - 52

==============

जय के निकम्मे चाचा ने अपने बड़े भाई की मानसिकता का लाभ उठाकर उनसे घर के कागज़ात पर हस्ताक्षर करवा लिए| इस प्रकार की घटनाएं न नई होती हैं, न ही आश्चर्य में डालने वाली ! इतिहास से पता चलता है कि मनुष्य गरीब है या अमीर सदा एक-दूसरे का दुश्मन रहा है| हमेशा से ही इस प्रकार की चालाकियाँ चलती आ रही हैं| यह बड़ी आम सी बात है लेकिन जिसके ऊपर बीतती है, उसे पता चलती है न जीवन की सच्चाई !कितना भी मजबूत इंसान क्यों न हो जब मन की दीवारें चटखने लगती हैं तब शरीर कहाँ टिक पाता है और वह मन के साथ कमज़ोर पड़ जाता है, बहकने ही लगता है| 

जय उस समय छोटा था, इस स्थिति में नहीं था कि कुछ समझ पाता, उसे तो जिधर बुला लो वह उधर की ओर मुड़ने लगता| दो-चार माह किसी तरह जय की माँ ने काम संभालने की कोशिश की, कुछ सफ़ल भी हुईं लेकिन जय के पिता असहज ही बने रहे | ऊपर से चाचा ने परिस्थियाँ कुछ ऐसी बना दीं कि उन्हें वहाँ रहना दूभर हो गया| पहले सब कुछ कम था लेकिन सबको खाना-पीना समय पर मिलता, सबके मन आनंदित रहते थे| घर में बच्चों की चहल-पहल से रौनक बनी रहती| पिता अपने कंधे पर बच्चों को चढ़ा लेते। कभी उनका घोड़ा बन जाते| सब एक लगाव व रेशम की स्नेहिल डोर से बँधे हुए थे | जय के चाचा भी ऊपर से अपने लगते, उनके पास सब कुछ था, लेकिन शांति नहीं थी | कोई भी काम करते बरकत न होती इसीलिए घर में हमेशा असंतोष बना रहता| ईर्ष्या, द्वेष, चालाकियों से किए गए काम कहाँ फलीभूत हो सकते हैं ?

यह ईर्ष्या बहुत कठोर मित्र है, जिसके मन में इसका प्रवेश हो गया, उसने अपना और जिसके लिए ईर्ष्या भरकर बैठा है सबका सत्यनास कर दिया| जय के चाचा ने भाई का मकान तो अपने नाम करवा ही लिया था, यह जय के पिता की कमज़ोर मानसिक स्थिति के कारण हुआ था| वैसे भी बच्चों के जाने के बाद उनका घर नहीं मकान ही तो रह गया था| घर की सुगंध उसमें से गायब हो चुकी थी | अब यह था, ईंट-मिट्टी-गारे से बना मकान, जिसमें सभी उदास घूमते रहते| कुछ दिनों बाद जय की माँ भी मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार रहने लगीं | जय उस समय 4/5 साल का बच्चा था| कुछ भी समझने के लिए वह अभी बहुत छोटा था| परिवार की स्थिति दिनों दिन बिगड़ती गई| उन्हीं दिनों ब्यावर में ईसाई धर्म के कुछ लोग आकर बसे | उन्होंने कई ऐसे कमज़ोर परिवार तलाश किए और उनके लिए सहायता जुटाने लगे | ऐसे ही परिवारों में जय का भी परिवार था| 

“देखिए, आपके पास यहाँ कुछ नहीं रहा है, दिल्ली से थोड़ी दूरी पर एक गाँव में चर्च बन रहा है| हम आपको वहाँ ले चलते हैं, वहाँ आपको काम भी मिलेगा और खाना-पीना और रहने की जगह भी मिल जाएगी| ” उन लोगों ने जय के माता-पिता के सामने यह प्रस्ताव रखा| उनके पास उस समय उनका प्रस्ताव मान लेने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं था | उनके जैसे कई परिवारों को वहाँ ले जाया गया जहाँ चर्च बन रहा था| उन्हें वहाँ काम मिला, खाने-पीने की व्यवस्था हुई, छोटा सा लेकिन अच्छे वातावरण में घर मिला---वैसे भी वे सब किसी शानदार हवेली में तो रहते नहीं थे | हाँ, वो उनका अपना था, जय के दादा जी का था जिसको उन्होंने अपने जीवित रहते हुए ही अपने दोनों बेटों यानि जय के पिता व चाचा के बीच में एक से भागों में बाँटा हुआ था लेकिन चाचा ने अपनी नीचता दिखा ही दी थी| 

इस परिवार व इसके जैसे सभी और परिवार भी यहाँ आए थे उन्हें सब कुछ मिला----हाँ, उन्हें अपना धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाना पड़ा | जय को भी चर्च के स्कूल में प्रवेश मिल गया| अपने गाँव से आने के बाद धीरे-धीरे जय के पिता की मानसिक स्थिति सुधरने लगी थी | सबको उनकी हैसियत के अनुसार काम मिल गया लेकिन यहाँ भी नाम सबके बदले गए और जय का नाम हो गया जेम्स!

जेम्स ने अपने आप ही अपने जीवन की सारी कहानी सबको सुना दी | 

“तुम और रतनी कैसे मिले ?”अम्मा ने अचानक पूछा | 

“मैम, रतनी गाँव में स्कूल जाती थी, रास्ते में चर्च पड़ता था| हम दोनों ही लगभग 14 /15 साल के होंगे| रतनी गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के लिए जाती थी| जब वह आती थी तब चर्च की ओर अजीब सी नज़र से देखती हुई आती थी| लेकिन उसे जल्दी-जल्दी भागकर घर जाना पड़ता था क्योंकि उसे अपने घर में सबकी सेवा करनी पड़ती थी| मैं उसको हर रोज़ देखता था| एक दिन वह चर्च की ओर देखती जा रही थी लेकिन दौड़ लगा रही थी | अचानक सामने का बड़ा पत्थर उसके सामने आया और वह बुरी तरह गिर पड़ी| हमारा घर चर्च से सटा हुआ ही तो था, वहाँ सब प्रकार की सुविधा थी | मैं भागकर फर्स्ट एड बॉक्स ले आया, उसके घुटनों से निकलने वाला खून पोंछ दिया और दवाई लगा दी | उसकी सलवार घुटनों से फट गई थी और उसे अपनी चोट से ज़्यादा इस बात का डर लग रहा था कि उसे घर पर मार पड़ेगी | ”कहकर वह कुछ देर चुप हो गया| साफ़ पता चल रहा था कि उसके मन में बहुत उथल-पुथल चल रही थी | 

सब समझ गए थे कि उसके बाद क्या हुआ होगा इसलिए कुछ अधिक पूछताछ नहीं की गई| ज़ाहिर था कि रतनी को घर पर जाकर घरवालों की गालियाँ और मार-पीट सहन करनी पड़ी होगी| 

“ओह ! बहुत दुख की बात है लेकिन----” पापा ने कहा| 

“सर ! हम छिप-छिपकर मिलने लगे थे| कभी–कभी रतनी स्कूल से अपनी क्लास छोड़कर जल्दी भाग आती, हम लोग वहाँ बहती हुई नदी में पाँव लटकाकर बैठ जाते, कभी पेड़ पर चढ़कर रखवाले से छिपकर आम तोड़ते, कभी किसी जंगली फूलों भरी झाड़ी को हिलाकर एक-दूसरे को फूलों से नहला देता| ज़िंदगी में जैसे रंग भरने लगे थे| एक बार रतनी के भाइयों ने हमें एक साथ देख लिया---–बस, उसके बाद उसकी पढ़ाई बंद, घर से बाहर निकलना बंद !फिर भी हम कभी न कभी छिपकर मिल लेते| वो बेचारी भाई-भाभियों की सेवा करती और मार खाती| मैंने उसे चर्च तो दिखा ही दिया था, अपने मम्मी-पापा से भी मिलवा दिया था| कई साल तक हम एक-दूसरे के साथ मिलने की कोशिश करते रहे, कभी-कभी मिलते भी रहे| लेकिन उसके भाइयों ने उसकी शादी फटाफट कर डाली| मेरा उसके बाद कुछ बोलने का तो कोई मतलब भी नहीं रह गया था| ”

“फिर दिल्ली कैसे आ गए ?”

माता-पिता दोनों की मृत्यु के बाद जेम्स को फ़ादर ने दिल्ली भेज दिया| जब शीला को एहसास हुआ कि उस प्यारी, मासूम लड़की की अपने भाई से शादी करवाकर उसने कितना बड़ा गुनाह किया था, वह सदा रतनी को बचाने के लिए उसके ऊपर अपने स्नेह की छतरी लिए हुए उसे पीड़ा की धूप से बचाने की कोशिश करती रही| रतनी शीला दीदी के बहुत करीब आ गई थी और उसने जेम्स के बारे में शीला से सब कुछ खुलकर बता दिया था| जेम्स ने रतनी को ढूँढने की पूरी कोशिश की थी और वह उस कोशिश में कामयाब भी हो गया था | अपने प्रेम रतनी को इस प्रकार बिखरते हुए देख वह बहुत पीड़ित था लेकिन कुछ भी कर नहीं सकता था| वह शीला दीदी के स्कूल में पहुँच गया था, उसने शीला से बात भी की कि उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि रतनी दो बच्चों की माँ है, वह उनकी ज़िम्मेदारी संभालने के लिए तैयार था इसीलिए शीला के मन में कई बार यह विचार भी आया कि यदि जगन रतनी को छोड़ दे तब वह उसको तलाक दिलवाकर उसकी शादी जेम्स से करवा देगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और इस सबमें, रतनी का दिलोदिमाग टूटता-फूटता ही रहा | 

शीला अपने कसाई भाई से रतनी को छुड़वाने के विचार को लेकर जेम्स से कभी-कभी मिलती रहीं| उन्होंने देखा था कि जेम्स के घर में पूजा के लिए एक अलमारी में मूर्तियाँ रखी हुई थीं| अलमारी के बाहर जीज़स की एक बड़ी सी तस्वीर थी| 

शीला दीदी के पूछने पर जेम्स यानि जय ने बताया था कि धर्म परिवर्तन के बाद भी वह उन चीज़ों, उन संस्कारों से अलग नहीं हो पाया था जो उसकी माँ ने उसे घुट्टी में दिए थे| इस प्रकार वह जीवन यापन के लिए बहुत कुछ बदल गया था लेकिन माँ की यादों को उसने इस प्रकार अपने दिलोदिमाग में सँजोकर रखा था | इतना कुछ जानने के बाद अम्मा-पापा ने एक दूसरे की ओर देखा, दोनों की आँखों में नमी थी उन्होंने एक लंबी साँस भरी जैसे बहुत कष्ट में आ गए हों| 

“कैसी सँकरी गलियों में घूमता है आदमी का जीवन भी !अच्छा, रतनी को मेरे पास भेजना तो सही --- “ पापा ने अम्मा की ओर देखा फिर शीला दीदी से कहा|