Prem Gali ati Sankari - 51 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 51

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प्रेम गली अति साँकरी - 51

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शीला दीदी के साथ एक अजनबी को देखकर हम सबकी समझ में कुछ आ तो रहा था लेकिन जब तक परिचय न हो जाए कैसे स्पष्टता हो ?“ पापा-अम्मा ने उनको सिटिंग-रूम में बड़ी इज़्ज़त और आदर से बैठाया और महाराज को नाश्ता बनाने का इशारा कर दिया | कोई स्पेशल तो था, अब शीला दीदी बताएं तब न!सबके मन में उत्सुकता के घोड़े दौड़ने लगे | खैर, उस समय हम तीनों ही तो थे और शीला दीदी जो उन मेहमान को लेकर आईं थीं, वो थे| 

“सर ! इनको मिलाना था आपसे ---” उन्होंने बड़ी झिझक से कहा जैसे उनके मुख से आवाज़ निकलने में संकोच कर रही थी | 

“हाँ, परिचय तो करवाओ ---” पापा ने मुस्कुराते हुए शीला दीदी से कहा | 

“सर ! मैं जेम्स हूँ---” उन्होंने अपना परिचय स्वयं ही देने के लिए पहले अपना नाम बता दिया| 

एक मिनट को हम तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा---- ईसाई बंदा? सबके मन में एक ही बात, एक ही साथ आई और फिर सब चुप होकर शीला दीदी की तरफ़ देखने लगे| 

“सर! ये क्रिश्चियन हैं और इनका दिल्ली में ही बिज़नेस है---”शीला दीदी ने कहा | 

“देखो शीला, तुम्हें पता है हम सब तुम्हारे साथ हैं | इतने दिनों तक तुम्हारी वेट की, यह तो इनका बड़प्पन है| ”

“मेरी वेट ? नहीं सर, आप समझे नहीं ----”शीला दीदी ने झेंपकर पापा से कहा | 

“अरे ! तो ये कौन हैं फिर ----?” अम्मा को भी जिज्ञासा होनी तो स्वाभाविक ही थी | 

“सर---ये बरसों से रतनी से प्रेम करते हैं | पहले इनके पेरेंट्स रतनी के गाँव में ही रहते थे | रतनी का और इनका प्रेम गाँव से ही था | इनके माता-पिता ने गरीबी के कारण धर्म बदलकर ईसाई धर्म अपना लिया था | इसके भी बहुत से कारण थे | कभी खुलकर बताऊँगी आपको | ये और रतनी शादी करना चाहते थे लेकिन रतनी के भाइयों ने ठोक पीटकर इसकी शादी जगन से करवा दी| तब तक मुझे यह सब पता नहीं था, मैंने सोचा इतनी अच्छी लड़की के आने से जगन सुधर जाएगा लेकिन आपने देखा ही है रतनी बेचारी ने कितनी तकलीफ़ का जीवन बिताया है | खुशी देने वाले चाहे अपने न हों पर पीड़ा देने वाले तो अधिकतर अपने ही होते हैं| 

रतनी से प्यार करने के बाद जेम्स ने शादी ही नहीं की | इसके पेरेंट्स को भी काफ़ी साल हो गए ऊपर गए | अब यह अकेला है | मैंने तो बहुत बार कोशिश की कि रतनी को जगन से छुटकारा दिलवाकर जेम्स से उसकी शादी करवा दूँ पर ऐसा हो ही नहीं पाया ---”शीला दीदी चुप हो गईं | हम सब जेम्स को अपलक देख रहे थे| बहुत डीसेन्ट व्यक्ति !जिसने हम सबको एक बार में ही प्रभावित किया था | 

“तुम्हें कैसे पता है यह सब ?” पापा ने पूछा | आखिर लड़की के भविष्य का सवाल था जबकि आधी उम्र तो बीत ही चुकी थी| पापा भी न----

“मैं तो जेम्स से कितनी बार मिलती रही हूँ, यहाँ दिल्ली में जबसे यह दिल्ली में शिफ्ट हुए हैं | ”

शीला दीदी ने ही जेम्स को अम्मा-पापा से मिलने बुलवाया था| जेम्स को रतनी की सारी कहानी मालूम थी | उसने रतनी की शादी के बाद किसी भी बारे में उससे कोई बात ही नहीं की थी| एक बात जो इस सबमें बहुत सकारात्मक थी वह यह थी कि इस घर में आने के बाद रतनी ने शीला दीदी से कोई बात नहीं छिपाई थी | इस कारण उन दोनों में एक समझ विकसित हो गई थी | शीला दीदी को पहले से ही अपने ऊपर बहुत नाराजगी थी| उनका बस चलता वो जगन से तलाक दिलवाकर कब से उन दोनों की शादी करवा देतीं| 

“क्या चाहती हो शीला ?”पापा ने पूछा | 

“मैं तो चाहती हूँ रतनी और जेम्स की शादी हो जाए---| ”शीला दीदी ने स्पष्टता और दृढ़ता से कहा| 

“बहुत अच्छी बात है शीला, तुम्हारा इस प्रकार सोचना तुम्हारा बड़प्पन, रतनी के प्रति प्यार और चिंता दिखाता है लेकिन बच्चों से पूछना जरूरी है| वे दोनों ही अब छोटे तो रहे नहीं हैं | ”बिलकुल ठीक कहा था पापा ने, उनकी आँखों में प्रशंसा, चिंता और उत्सुकता सब भरे हुए थे| 

“मैं बच्चों से बात कर चुकी हूँ सर---उनको कोई प्रॉब्लम नहीं है बल्कि बहुत खुश हैं दोनों | आखिर उन्होंने अपनी माँ को हर दिन मरते देखा है, उसकी तकलीफ़ को महसूस किया है| ” शीला दीदी की आँखों में आँसू भरे हुए थे| हम सब जानते थे कि वे रतनी के लिए सदा ही परेशान रही हैं| 

“फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है----”अम्मा के चेहरे पर प्रसन्नता भरी तसल्ली दिखाई देने लगी| 

“हाँ---ये तो बहुत अच्छा है | ”पापा भी अम्मा की तरह ही सोच रहे थे| 

“प्रॉब्लम तो हमारी रतनी ही है---” शीला दीदी उदास सी थीं | 

“क्यों?रतनी को क्या प्रॉब्लम है?”

“उम्र हो गई है, अब बच्चों के बारे में सोचे या अपने बारे में ?यही सब ---”

“मि.जेम्स ! आप क्या चाहते हैं?”

जेम्स बहुत धीमे से मुस्कुराकर चुप बैठे रहे| 

“यह बहुत बड़ी बात है कि आप आज भी अपने प्रेम का इंतज़ार कर रहे हैं| आजकल इतनी गहराई से कौन प्रेम समझता है ?” पापा ने अम्मा की ओर देखा| 

“सर---” जेम्स ने अपने जीवन की कहानी बतानी शुरू की जिसका सार कुछ यूँ था कि वह मूल रूप से राजस्थानी था और उसका नाम जय था | उसका जन्म राजस्थान के ब्यावर में निम्न मध्यम वर्ग में हुआ था| परिवार में बहुत पैसे नहीं थे लेकिन सब खुश थे | सबमें उसके माता, पिता और वे तीन भाई बहन थे| समय के चक्र के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता| उसकी छोटी बहन और भाई को सीतला माता (चिकनपॉक्स) निकलीं और रातों रात जेम्स के भाई-बहन दोनों की मृत्यु हो गई| 

वैसे तो जय के पिता के भाई का परिवार भी पास ही में रहता था लेकिन जब बच्चों के न रहने से माता-पिता उदासी में घिरे रहने लगे तब उनके छोटे से धंधे जो एक लारी पर लगता था और जिसमें तरह तरह के पकौड़े बनाकर गर्म गर्म खिलाने का काम किया जाता था, उस पर भी बहुत असर पड़ने लगा| ब्यावर में उनके पकौड़े और एक खास चटनी बहुत मशहूर थे | लोग उन्हें खाने के लिए लाइन में लगते थे | सबमें मशहूर था कि न जाने वे पकौड़ों पर कौनसा मसाला डालकर सर्व करते हैं कि वैसे पकौड़े और किसी की दुकान पर नहीं मिलते | बच्चों के अचानक खो देने के बाद जय के पिता मानसिक रूप से बीमार रहने लगे और उन्होंने अपनी दुकान पर बैठना बंद कर दिया और जैसे अपने लालची भाई को खुला निमंत्रण दे दिया | जय की माता में तो फिर भी साहस था, वे बच्चों की ऐसी हृदय विदारक दुर्घटना से शुरू-शुरू में तो अधिक परेशान रहती थीं लेकिन बाद में उन्होंने धीरे-धीरे खुद को भी संभालना शुरू कर दिया और जेम्स जिसका नाम उन दिनों जय था उसे और उस के पापा को भी संभालना शुरू कर दिया | उन्होंने सोचा कि वे खुद अपने पकौड़े बनाने के काम को संभाल लेंगी और अपने परिवार का पालन-पोषण कर लेंगी | 

स्त्री कभी से भी कमज़ोर नहीं रही, वह बात अलग है कि उसके लिए माप-दंड तय कर लिए गए| उसे समाज में दूसरे स्थान पर इसलिए रखा गया क्योंकि वह आर्थिक रूप से निर्भर नहीं थी लेकिन पृष्ठ पलटकर देखने से पता चलता है कि समय कोई भी रहा हो, समाज कोई भी रहा हो स्त्री ने आवश्यकता पड़ने पर दृढ़ता से खड़े रहकर अपने परिवार को संभाला है, अपने परिवार व उससे जुड़े हुओं की आवशकताओं को पूरा करने का भरसक प्रयत्न किया है | अब वह बात अलग है कि लोगों ने उसकी बात को गंभीरता से लिया हो अथवा नहीं| 

जय की माँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं लेकिन वास्तव में वे शिक्षित थीं | उन्हें अपने बचे-खुचे परिवार को संभालने के लिए जो भी कदम उठाने थे, उन्होंने उठाए| उन्होंने अपने पति के गहरे सदमे को दूर करने का भरसक प्रयास किया लेकिन अंत में वही कि हर चीज़ प्रारब्ध पर है| उनके साथ भी यही हुआ| 

जब घर के लोगों की ही विघ्न डालने की नीयत हो तो कोई भी टूट सकता है | वे माँ थीं, उन्होंने अपने परिवार के लिए जो कुछ भी प्रयास किया, किया लेकिन उनसे बैर निकालने वाला भी तो उनका अपना ही तो था|