मैं एक टुच्चे से थाने का इंचार्ज तथा पुलिस निरीक्षक था. मेरे सामने बैठा आदमी एक बड़ा उद्योगपति तथा स्विमिंग एकेडमी का अध्यक्ष था. उसका मोटा (बड़ा) भाई शहर का जाना माना नेता और मंत्री था. इतनी बड़ी हस्ती मुझ अदने से सरकारी अफसर के सामने बैठकर अपनी शिकायत दर्ज कर रही थी. मुझे अजीब लगा. पता चला कमिश्नर ने शिकायत की खानापूर्ति करने हेतु उसे यहां भेजा है. उसकी पहले ही फोन पर पुलिस कमिश्नर से बात हो चुकी थी. हमें खानापूर्ति ही करनी थी. कोई और होता तो वह लिपिक हवालदार के सामने बैठकर अपनी शिकायत दर्ज करा रहा होता. पर इसे स्पेशल ट्रीटमेंट देते हुये मेरे केबिन में बिठाया गया था. चाय, नाश्ता मंगाकर उसकी आवभगत हो रही थी.
खैर छोड़ो, अपना मुद्दा यह नहीं है. मुख्य बात यह कि, उसने अपनी भाभी की गुमशुदगी या अपहरण की शिकायत कराते हुए अपने बयान में बताया की उसका नाम ‘भूषण’ है. उसका मोटा भाई विदेश दौरे पर है. वह, उसकी पत्नी तथा भाभी तीनों ही घर पर थे. दो दिन पहले दोनों ‘देवरानी और जेठानी’ बाजार में शॉपिंग करने गये थे. लेकिन वहां से अचानक भाभी गुम हो गई और पत्नी को पता नहीं चला कि वह कहां है और कैसे गुम हो गई.
उससे उसकी भाभी का वर्णन पूछने पर पता चला की उसने अपनी भाभी के केवल चरण ही देखे है. आज तक उसने अपनी भाभी का चेहरा नहीं देखा, चेहरा तो काफी दूर की बात है, चरणों के उपर का कोई भी अंग उसने आज तक देखा नहीं है.
उसकी बात बड़े अचरज की थी. आज के युग में ऐसे भी ‘लक्ष्मण’ पाये जाते है जो भाभी के चरणों के अलावा कुछ और देखते ही नहीं. हमने स्टेशन डायरी में उसके बताये अनुसार भाभी के चरणों का ही वर्णन लिख दिया साथ ही पाव में पहनी हुई पायल का चित्रण भी कर दिया.
इतना बयान भाभी को ढूंढ़ने के लिए काफी नहीं था. मेरा पुलिसिया दिमाग तेजी से काम पर लग गया और ‘बाल की खाल’ निकालने वाले अंदाज में मेरे जेहन में एक के बाद एक सवाल आने आरंभ हुए. भले ही वह रसूख वाला था. मै अदना. पर तफ्तीश के लिए पूछताछ तो जरूरी थी. अत: मैंने सवाल दागने प्रारंभ किये, “आपकी पत्नी ने तो भाभी का चेहरा देखा होगा ?” मेरे इस सवाल पर वह मुझे घूरने लगा मानों मेरे मुख से दुर्वचन प्रस्फुटित हुए हो.
“अबे हो इन्सपेक्टर ..! कैसी बात करता है…. ?? जब मैंने ही भाभी के चरणों के अलावा कुछ देखा नहीं तो मेरी पत्नी कैसे देख सकती है.”
“क्यों… क्यों .. देख नहीं सकती.. आपकी आँखे आपके देह पर, पत्नी की आँखे पत्नी के देह पर. वह अपनी आँखों से देख सकती है.” मैंने तर्क दिया.
“हमारे कुल में ऐसा नहीं है, हम कभी अपनी भाभी के चरणों के अलावा उसके शरीर का कोई अंग नहीं देखते. यह हमारी सनातन परंपरा है. हमारे घर में कोई भी भाभी के चरणों के अलावा भाभी को नहीं देखता. यह उनके मान का प्रश्न है.”
मन में सोचा अजीब परंपरा है, भाभी को मां का दर्जा दिया जाता है, और मां का चेहरा सभी बच्चे देखते है. उसकी गोद में सिर रखकर सोते है. भाभी को मां मानने वाले भाभी का चेहरा क्यों नहीं देख सकते. चेहरा न देखने के दो ही कारण हो सकते है. पहला या तो वह गुलाम है या फिर उसे अपने आप पर विश्वास नहीं है. मैंने अपने मन में आने वाले विचारो को विराम देते हुए अलगा सवाल किया, “आपके भैया ने तो देखा है ना… ?”
“भैया क्यों नही देखेंगे उनकी पत्नी है, बिना देखें वे वंश को आगे कैसे बढ़ा सकते है. तुम भी बड़े बुड़बक हो इन्सपेक्टर. जानते नहीं मै कौन हूं. मुझसे ऐसे सवाल मत पूछों जो हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुंचाये”
मै सहम गया. कही इन सवालों के फेर में अभी यहीं के यहीं मेरा तबादला या मै सीधे सस्पेंड न हो जाऊं. मैंने अपने आवाज को संयत किया और डरते डरते ही बोला, “महोदय ! क्या है ना… आपकी भाभी को ढूंढना है तो मुझे सारी बात पता होनी चाहिये. आप…. आप ना बताना चाहो तो ठीक है. अब सभी औरतों के सिर्फ चरण देखकर तो भाभी जी को ढूंढ़ा नहीं जा सकता ना. आप उनकी कोई तस्वीर हो तो भिजवा दीजिए. हम सभी थानों में तथा शहर में पोस्टर लगवाकर उन्हें ढूंढ लेंगे”
“ऐ इन्स्पेक्टर…!” जोर से चिखते हुए वह एकदम उठ खड़ा हुआ. आग उगलती आंखों से देखते हुए बोला, “तुम हमारी सनातन परंपरा को धूल में मिलाना चाहते हो. अरे…! हम वे लोग है जो अपने प्राणों की आहूती दे दे पर अपनी आन और शान पर धब्बा तक नहीं लगने देते. जहां हम अपनी भाभी के चरण के अलावा कुछ देखें नहीं तो तुम उनके पोस्टर गली मोहल्लो में लगाओगे. हरामखोर…!” उसने मेरा गिरेबान पकड़ मुझे झकझोर दिया. थाने में उपस्थित अन्य कर्मचारी भी डर के मारे थरथर कांपने लगे.
मै तो उनके पैरों पर ही गिर पड़ा, “मुझे माफ कर दो… मुझे माफ कर दो…. आप आप जा सकते है. हमने आपकी शिकायत दर्ज कर ली है. जल्द ही भाभी जी घर पर होंगी. हम उनकी पहचान चरणों से ही करेंगे.”
वह निकल लिया. हमारी भी जान में जान आई. चलो बच गये. महाशय ने कोई फोन नहीं किया हमारी शिकायत हमारे वरिष्ठों से न की.
पर मुख्य समस्या थी भाभी को ढूंढ़ने की. केवल चरणों और पायल के चित्रण के आधार पर भाभी को कैसे ढूंढा जाये. तभी एक कॉल आया. कॉल करने वाले ने बताया कि, उनके स्विमिंग एकेडमी की इमारत के एक कमरे में एक महिला बेहोश पड़ी हुई है. मै अपनी टीम के साथ वहाँ पहुंचा. एक बला की खुबसूरत महिला मूर्च्छित पड़ी हुई थी. उसका तन चादर से ढँका हुआ था. वहाँ पूछताछ करने पर पता चला की यह महिला यहाँ शायद दो दिनों से इसी कमरे में बंद है और दरवाजा खोलकर देखा गया तो उसकी देह वस्त्र विहीन थी. उसे नग्नावस्था में देखकर उस पर किसी ने चादर डाली थी. वह स्विमिंग एकेडमी थी अत: वहां पर लोग अपने साथ कपडे़ भी लाते थे. उन्हीं में से किसी से कपड़े मांग कर उसे पहनाये गये.
मेरा ध्यान उस औरत के चरणों पर गया. इस औरत के पैरों में भी पायल थी. चरणों वाली बात ताजा ताजा थी. हमने पुलिस डायरी में वर्णित भूषण जी के बताये पायल वर्णन से औरत के पायल का मेल कराया. मेल एकदम सटीक था. याने यही भाभी जी थी.
भाभी जी को होश आया तो उसने बताया, “मै मॉल में खरीदारी करके नीचे अपनी गाड़ी की ओर जा रही थी मेरी देवरानी सामने सामने चल रही थी. तभी पीछे ने किसी ने मेरा मुंह दबोचकर मुझे उठा लिया. मै सुध खो बैठी. जब होश आया तो एक कमरे में बंद थी और जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था. एक हटाकट्टा आदमी अपने चेहरे पर मास्क लगाकर दो दिनों तक रोज सुबह शाम आता और मेरे साथ जबरदस्ती करके चला जाता था.”
उसकी सच्चाई जानने के बाद यह तो समझ आ गया था की औरत का अपहरण उसकी अस्मत लूटने के लिये किया गया था. लेकिन अब बारी थी दोषी को ढूँढ़ने की, उसे उसके किये की सजा दिलाने की. केस एकदम हाईप्रोफाइल था. सारे निर्णय मै अकेले नहीं ले सकता था. इसकी सूचना मैंने कमिश्नर को दी. कमिश्नर ने भूषण को अपने कार्यालय में बुलाया. उस कमरे में मै, कमिश्नर और भूषण हम तीनों के अलावा कोई न था. मैंने भूषण को बताया की भाभी जी हमे कैसे मिली. भूषण बेचैन हो गया. वह कमिश्नर से बोला, “कमिश्नर साहब ! इस केस को यही पर खत्म कर दो. ना ही मेरी भाभी लापता हुई थी, ना ही उसका कोई अपहरण हुआ था”
मैं बोला, “कमिश्नर साहब ! यह कैसे मुमकिन है, एफ.आय.आर. दर्ज हो चुकी है, और जब वह एकेडमी के इमारत में मिली तो कई प्रेस वाले वहां पर मौजूद थे. उन्होंने फोटो के साथ अखबारों और टी.वी. में एक महिला के अपहरण और उसके बलात्कार की न्यूज प्रसारीत की है.”
मेरी बात सुन कर कमिश्नर भी सोच में पड़ गये. भूषण बोला, “अब सोचिए मत कमिश्नर साहब, देखों भाभी जी को किसी ने देखा नहीं था जो औरत एकेडमी में मिली है वह भाभी है ही नहीं. मै किसी और औरत को भाभी बनाकर सबके सामने पेश कर दूंगा. उसके पैरों में हम वह पायल पहना देंगे. जिसका वर्णन मैने अपनी रिपोर्ट में किया है.” कमिश्नर ने हां में गर्दन हिलाई. भूषण उठकर जा चुका था. मै सकते में खड़ा था कि ये क्या हो रहा है..? मैने कमिश्नर से सवाल किया, “कमिश्नर साहब यह कैसे संभव है ?”
“सब संभव है, भले ही टेक्नोलॉजी कितनी भी आगे बढ़ जाये. सनातनी परंपरा का पालन करना कभी छोड़ नहीं सकते. हमारे देश में औरत मात्र एक उपभोग्य वस्तू है. हमारे शास्त्र गवाह है, ‘लूटती वहीं है, शिला भी वहीं बनती है’ हर साल हम सिता को हरणे वाले रावण को तो जलाते है, लेकिन भेस बदलकर अहिल्या को लूटने वाले आज भी राजा कहलाते है.”
कमिश्नर की बात मेरी समझ में आ गई थी. मैंने फाईल क्लोज कर दी. भाभी की पायल दूसरी औरत के पैरों की शोभा बन गई थी.
मुझे लगा केस बंद हो गया है. पर शायद इस ‘अहिल्या’ (भाभी) को संविधान के चरणों का स्पर्श हुआ. उसने दावा ठोक दिया की वह असली भाभी है, और भूषण ने दूसरी औरत को भाभी बनाकर उसका हक छिना है तथा दो दिनों तक स्वयं मेरा लैंगिक शोषण करता रहा है.
भाभी के उदघोष से अन्य पीड़ितों में जान आ गई और स्विमिंग एकेडमी के कुछ अन्य युवा तथा अल्पवयस्क लड़कियों ने भी भूषण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उनका भी कहना था कि, भूषण है तो एकेडमी के अध्यक्ष पर वे हमेशा कोच की भूमिका में रहते है और केवल चड्डी पहनकर स्विमिंग पूल में उतरकर लड़कियों को तैरना सिखाते हैं तथा उन्हें सिखाने के बहाने ऐसी ऐसी जगह छूते है कि वे बता नहीं सकती.
एकेडमी के बाहर धरना आंदोलन शुरू हो चुका था. मोटा भाई के विरोधी सभी दलों ने भाभी और उसके साथ खड़ी स्विमर लड़कियों को समर्थन दिया. उनकी एक ही मांग थी. भूषण को एकेडमी के अध्यक्ष पद से हटाकर, बलात्कार और यौन शोषण का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाला जाये.
विदेश से मोटा भाई वापस आ गये. कई दिनों तक तो वे मौनी बाबा बनकर रहे. पर अंदरुनी तौर पर अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल करते हुए एफ.आय.आर. तक नहीं होने दी. सबसे बड़ी बात तो यह थी की आंदोलन करने वाली भाभी को मोटा भाई ने पहचानने से ही इंकार कर दिया और बोले यह मेरी पत्नी नहीं है. यह भूषण की भाभी नहीं है. मेरे घर में जो औरत है वही भूषण की भाभी है. कानून इस दलील के सामने बौना हो गया. सारे सबूत सामने होते हुए भी एक भी सबूत पुलिस जुटा नहीं सकती थी. सत्ता में बैठे राजनीतिक दल का पूरा दबाव पुलिस विभाग पर था. हम लाचार थे. लोग हमें दोषी मान रहे थे की हम भूषण के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं ले रहे.
आखिरकार मोटा भाई प्रेस के सामने आये और बयान दिया, उन्होंने कहा, “आंदोलनकर्ता औरत मेरी पत्नी नहीं है. यह विपक्षी दलों की सोची समझी साजिश है मुझे तथा मेरे भाई को बदनाम करने की. लेकिन हम सनातनी परंपरा का निर्वाह करने वाले कभी झूठ नहीं बोलते, जिस देश में, जिस कुल में ‘लक्ष्मण’ की तरह ‘भूषण’ जैसा भाई अपने भाभी के चरणों के अलावा और कुछ देखता ही नहीं वह स्विमिंग करती लड़कियों से अभद्र व्यवहार कैसे कर सकता है. किसी महिला से दुर्व्यवहार कैसे कर सकता है. वह झूठी और मक्कार महिला है. पुलिस ने मेरी पत्नी को उसके चरणों की पहचान कर खोज निकाला है. वही मेरी पत्नी है.”
सारे प्रेस वालें भाभी के चरणों की फोटो खिंचने लगे.
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