विश्व गुरु बनना है तो
(भाग - 1)
लेखक :
अ० प्रोफेसर निशान्त कुमार सक्सेना
(M.B.A, M.A, NTA UGC NET)
प्रकाशक: स्वामी विवेकानंद संस्कृति समिति
पंजीकरण संख्या: SHA/08291/2020-2021
कॉपीराइट © धारक : अ० प्रो० निशान्त कुमार सक्सेना
भूमिका
आजादी के 75 वर्षों के बाद आज भी यदि हम अपने देश की तुलना दूसरे विकसित देशों से करते हैं तो कहीं ना कहीं हमें यह अनुभव होता है कि हमें अपनी व्यवस्थाओं को और सशक्त करने तथा उन्हें सुधारने की आवश्यकता है।
किसी भी देश का विकास उस देश की नीति तथा व्यवस्था में निहित है। यदि देश की व्यवस्था लचर होती है तो देश प्रगति के पथ पर उस गति से आगे नहीं बढ़ सकता जिस गति से उसे बढ़ना चाहिए। इस पुस्तक को बनाने का उद्देश्य भारत को विश्व गुरु बनाने से जुड़ा हुआ है। इस पुस्तक में कुछ ऐसे कानून, कानून संशोधन, मांग, सुझाव, विचार, मुद्दों को शामिल किया गया है जो भारत को विश्व का सर्वश्रेष्ठ देश बनाने में मदद कर सकते हैं। कृपया इस पुस्तक में दिए सभी बिंदुओं को पढ़ें और यदि आप इनसे सहमत हैं तो इस पुस्तक को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं जिससे हम व्यवस्था परिवर्तन हेतु एक मजबूत जनमत संग्रह तैयार कर सकें।
नोट: पुस्तक में व्याकरण, एडिटिंग, भूल चूक, गलती या अन्य त्रुटियों को नकारने का कष्ट करें। कृपया पुस्तक के पावन उद्देश्य को हृदय में ग्रहण करें।
लेखक का परिचय
प्रो० निशान्त कुमार सक्सेना (पार्थ), यूजीसी नेट परीक्षा उत्तीर्ण, एम० ए०, एम०बी०ए एवं ग्यारह विविध शैक्षिक डिग्री, डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट प्राप्त लेखक तथा रिसर्चर हैं।
माननीय प्रधानमंत्री जी के सानिध्य में, रक्षा मंत्रालय द्वारा आपकी रचना "नेता सुभाष बलिदानी" हेतु सम्मानित, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्यिक
कृति "भारत महान", संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा देशभक्ति गीत "यह नवीन भारत है" तथा एन०आई०ए, आयुष मंत्रालय द्वारा आहार विज्ञान पर लिखे काव्य के लिए अवार्ड , समेत आपको शिक्षा तथा साहित्य में पंद्रह पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
आपके दो साझा काव्य संग्रह, तथा एक एकल काव्य संग्रह "पार्थ के बाण" प्रकाशित हो चुके हैं। 10 वर्षों से आप शिक्षा, साहित्य, समाज एवं राष्ट्र सेवा में समर्पित हैं तथा स्वामी विवेकानन्द संस्कृति समिति ( भारतीय विवेक सेना) के अध्यक्ष हैं।
निशान्त जी को समाजसेवा, जनहित, राष्ट्र, विश्व और प्रकृति कल्याण के लिए अपने अनमोल सुझाव तथा परामर्श कृपया मेल करें।
E-mail: nishantdasparth777@gamil.com
आपके भाई, बेटे, मित्र, शिक्षक, निशान्त द्वारा शिक्षा, सेवा, संस्कृति, साहित्य, विश्व, प्रकृति कल्याण तथा देशभक्ति का एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। आप हमारी पंजीकृत संस्था “स्वामी विवेकानंद संस्कृति समिति” द्वारा चलाए जा रहे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से भी अवश्य जुडें।
यूट्यूब चैनल:- Bhartiya Vivek Sena S.V.S.S
फेसबुक पेज:- “भारतीय विवेक सेना”
ईमेल:- bhartiyaviveksena@gmail.com
धन्यवाद।
महत्वपूर्ण कानून, कानून संशोधन, नियम, मांगें तथा सुझाव
जिन कानूनों/प्रावधानों की मांग की गई है उससे संबंधित कुछ कानून/प्रावधान पहले से भी चलन में हैं। यह देखते हुए उनमें संशोधन किया जाए तथा जहां नए कानून बनाने की आवश्यकता है, नए कानून बनाए जाएं। बिंदुओं की सूची इस प्रकार है-
1.सोशल ऑडिट कानून
2.शिक्षा से रोजगार कानून
3.शिक्षा नीति में परिवर्तन हेतु प्रस्ताव
4.संस्कार शालाओं की स्थापना
5.शिक्षा में कोर्स अपडेट तथा अपग्रेड कानून
6.प्राइवेट स्कूलों हेतु नए नियम
7.स्कूलों में दंड पर नीति में संशोधन
8.शिक्षा के भाषा मीडियमों की व्यवस्था में सुधार
9.हर लोकसभा क्षेत्र हेतु कुछ अनिवार्य सुविधाएं
10.रोजगार मंत्रालय तथा रोजगार विभाग की स्थापना
11.बेरोजगारी नियंत्रण कानून
12.चोर व भिखारी परंपरा निवारण कानून
13.किन्नरों की समस्या निवारण कानून
14.जनप्रतिनिधियों की न्यूनतम योग्यता का निर्धारण
15.अश्लीलता नियंत्रण कानून
16.गंदगी व प्रदूषण पर कानून
17.संतति से पूर्व तथा उपरांत मां-बाप के प्रशिक्षण का कानून
18.संपत्ति नाम करके पुनः वापस लेने का अधिकार
19.खाद्य पदार्थों में जीरो परसेंट केमिकल मिलावट का प्रावधान
20.सीएफसी उत्सर्जन वाले उत्पाद पूर्ण प्रतिबंधित हों
21.नागरिक स्वास्थ्य पत्रिका वितरण का प्रावधान
22.बाल अधिकार संरक्षण कानून
23.बालकों को सभ्य समाज प्राप्ति का अधिकार
24.विवाह पूर्व तथा विवाह उपरांत अवैध संबंध वर्जित
25.पीपल सरंक्षण कानून
26.जन मांग मंत्रालय तथा विभाग की स्थापना
27.शिकायत निवारण की अधिकतम समय सीमा का निर्धारण
28.अंतर जातीय विवाह संरक्षण एवं प्रोत्साहन कानून
29.जातिवाचक नाम अथवा शब्द छिपाने का अधिकार
30.नो कास्ट सर्टिफिकेट
31.जनप्रतिनिधियों की पेंशन समाप्ति का कानून
32.प्राइवेट कंपनियों संस्थाओं में लेबर कानून में संशोधन
33.सरकारी नौकरी के वेतन विभाजन का प्रावधान
34.नशा एवं धूम्रपान मुक्ति कानून
35.जल संरक्षण कानून
36.जनसंख्या नियंत्रण कानून
37.संतान भरण पोषण कानून
38.सभी प्राइवेट सेवाओं तथा उत्पादों के अधिकतम विक्रय मूल्य का प्रावधान
39.मीडिया, सोशल मीडिया पर प्रमाणिक जानकारी का कानून
40.प्लास्टिक उत्पादों पर नीति
41.देह व्यापार में फंसी लड़कियों महिलाओं के समाज में पुनर्स्थापना का कानून
42.एक कार्ड तथा विभिन्न प्रमाण पत्र योजना
43.अपराधियों के समर्पण का विशेष कानून
44.किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य संशोधन कानून
45.एक परिवार के लिए अधिकतम मकान अथवा आवासों की सीमा
46.संतान द्वारा मां बाप की सेवा का कानून
47.ओबीसी एस सी, एस टी आरक्षण में गरीबों की सब कैटेगरी के आंतरिक आरक्षण का प्रावधान
48.स्वर्गीय राजीव दीक्षित को मरणोपरांत भारत रत्न व उनके नाम से राष्ट्रीय रिसर्च सेंटर की स्थापना
49.सभी विभागों में भर्ती से पूर्व नैतिकता के प्रशिक्षण का कानून
50.कृषि सेंटरों की स्थापना की नीति
51.राष्ट्रीय तथा राजकीय प्रकाशन केंद्रों की अवधारणा
52.सभी सरकारी व गैर सरकारी आवेदन, व्यापार, सुझाव, फॉर्म आदि ग्राहक की भाषा में
53.बीमा, ऋण, एफ डी, लोंग टर्म डिपॉजिट स्कीम पर विशेष कानून
54.उत्पाद या सेवा की बिक्री के समय के नियम निर्धारण
55.नेटवर्क, मार्केटिंग कंपनियों पर कानून
56.उत्पाद व सेवाओं के ब्रांड एंबेसडर पर कानून
57.शिकायत पेटिका की अवधारणा पर कानून
58.नागरिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम
59.नागरिक सेना प्रशिक्षण कार्यक्रम
60.अंधविश्वास निवारण कानून
61.न्यायालय में सुनवाईयों की अधिकतम संख्या का कानून
62.संपत्ति खरीद से पूर्व आय के स्त्रोत की जानकारी का नियम
63.नॉन कोलेटरल, गिरवी मुक्त ऋण तथा शेयर पर ऋण बंदी के नियम
64.हर रेलवे स्टेशन पर न्यूनतम ट्रेन रोकने का प्रावधान
65.चुनावी घोषणा पत्र के अतिरिक्त वक्तव्य, प्रचार पर सजा का कानून
66.शिशु स्वास्थ्य बीमा का अनिवार्य कानून
67.दल बदल पर नया कानूनी प्रावधान
68.व्यापार में एक से सवा करने का प्रावधान
69.दादा की संपत्ति में पौत्र का अनिवार्य अधिकार
70.धर्मों, पंथों, संप्रदायों में मतभेद के समाधान हेतु ज्ञान चर्चा का कानून
71.सार्वजनिक स्थानों/खुले, गली मोहल्लों आदि में डी०जे बजाना बंद हो
72.निर्वस्त्र साधु-संतों पर कानून
73.प्रति 100 वर्ग गज आवास पर एक वृक्ष तथा प्रति 1000 वर्ग गज पर एक विशाल वृक्ष अनिवार्य
74.एंटीबायोटिक तथा आयुर्वेदिक दवाइयों हेतु डॉक्टर पर कानून
75.झोलाछाप डॉक्टर / नीम हकीम/ वैद्यों हेतु सामान्य उपचार हेतु सरकारी मेडिकल प्रशिक्षण का प्रावधान
76.अधिकार संरक्षण प्रशिक्षण कानून
77.सड़क पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजन पर पूर्ण प्रतिबंध
78.उपहास पर कानून
79.चुगली असत्य निंदा तथा मिसगाइड करने पर कानून
80.संयुक्त परिवार के सामूहिक खर्च का कानून
81.नशेड़ी के खिलाफ परिजनों के अधिकार
82.गृहस्थी प्रशिक्षण कानून
83.मकानों/दुकानों द्वारा अतिक्रमण पर कानून
84.गौ पोषण कानून तथा पशु शेल्टर कानून
85.ऑनलाइन साइबर ठगी में पकड़े जाने पर कानून
86.एक स्त्री एक पुरुष विवाह का समान कानून
87.बेहूदा प्रकार के डे तथा उन दिनों पर बेहूदगी पर प्रतिबंध
88.प्लास्टिक, कागज तथा गैर खादी राष्ट्रीय झंडा छापने पर कानून
89.विवाह में वर तथा वधू पक्ष को बराबर सम्मान का कानून
90.पारदर्शी जनमत संग्रह कानून
91.तलाक के सेटलमेंट हेतु अवधि निश्चित करना
92.सरकारी खाली जमीन पर पेड़ लगाने का प्रावधान
93.एनसीसी, एनएसएस की सभी को अनिवार्यता
94.सरकारी या प्राइवेट संस्था में लाइन लगवाने पर कानून
95.दवा, वस्त्र, मंजन आदि के नाम पर पशु हत्या बैन
96.बैंक केबिन में सामान्य व्यक्ति का घुसना दंडनीय
97.बैंक या सरकारी दफ्तरों की मशीनें खराब होने पर कानून
98.सभी विभागों के बाहर संबंधित कार्यों के कागज नियम और शर्त के बोर्ड
99.विभाग या ब्रांच पर कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या ना होने पर कानून
100.सड़क तथा सरकारी जमीन के कुछ महत्वपूर्ण कानून
101.नौकरी के आवेदन में एप्लीकेशन चार्ज पर नियंत्रण
102.ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में आवेदन शुल्क तथा शिक्षण शुल्क में छूट का प्रावधान
103.स्वदेशी अभियान हेतु कानून
104.तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने पर कानून
105.राष्ट्रीय मुद्रा नोट व सिक्कों पर कानून
106.दफ्तरों, विभागों और संस्थाओं में अशिक्षित लोगों के लिए अलग काउंटर का प्रावधान
107.स्टंट तथा खतरनाक हरकत / एक्शन पर कानून
108.अनिवार्य घरेलू सोलर प्लांट योजना
109. सिविल सेवा में लेटरल एंट्री पर पूरी तरह बैन
110. भ्रष्टाचार में दोष सिद्ध होने पर गबन की गई रकम वसूली का प्रावधान।
111. पीड़ादायक पीरियड/ मासिक के समय महिलाओं को नौकरी तथा शिक्षा में उपस्थिति में छूट।
वर्णन
1.सोशल ऑडिट कानून
यह एक ऐसा कानून बने जिसमें विधायक, सांसद, पंचायतों, निकायों आदि सभी चुने हुए जनप्रतिनिधियों के कार्यों का मूल्यांकन तथा उनके कार्यों के प्रति जनता के रुझान जानने के लिए एक सर्वे या ऑडिट कराना अनिवार्य हो। जिसमें -
अ. प्रति नागरिक प्रतिवर्ष एक ऑडिट/सर्वे में शामिल किया जाए जिसमें केंद्र सरकार व राज्य सरकार की योजनाओं के लाभ, क्षेत्र की मूलभूत सुविधाओं, बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, यातायात आदि बिंदुओं तथा नागरिक की व्यक्तिगत आवश्यकताएं जैसे: राशन कार्ड, सरकारी प्रमाण पत्र, वृद्धावस्था / विकलांगता पेंशन, विधवा पेंशन, छात्रवृत्ति आदि लाभों के संबंध में कार्य हुआ या नहीं, ऐसा प्रपत्र भरवाया जाए तथा कार्य से संबंधित प्रतिपुष्टि/फीडबैक भरने का कॉलम दिया जाए।
ब. प्रतिशत मापदंड तैयार किया जाए यदि संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधि सोशल ऑडिट में जनहित के कार्यों को कराने के उस प्रतिशत से कम कार्य करा पाता है तब प्रतिवर्ष के ऑडिट के बाद उसे अयोग्य ठहराकर पद से हटाने तथा वहां दोबारा चुनाव कराने का प्रावधान हो।
स. इस ऑडिट को प्रतिवर्ष कराने तथा प्रत्येक नागरिक को इसमें ऑनलाइन या ऑफलाइन भाग लेना अनिवार्य शर्त हो।
द. यह ऑडिट लोकपाल अथवा ऐसे पदाधिकारी या संस्था के अधीन होना चाहिए जिसमें पक्षपात, गड़बड़ी या फर्जीवाड़े की संभावना ना हो। चाहे इसके लिए किसी नई संस्था, उसके अध्यक्ष पद का सृजन किया जाए जिसका गठन व चयन गैर राजनीतिक पदाधिकारियों द्वारा किया जाए जैसे मुख्य न्यायाधीश आदि।
2. शिक्षा से रोजगार कानून
कक्षा 9 से 12 तक 4 वर्ष प्रत्येक विद्यार्थी को कम से कम 2 रोजगार परक कोर्स अनिवार्य रूप से कराए जाएं जिसमें कौशल (स्किल), स्वरोजगार तथा मार्केटिंग का ज्ञान भी कराया जाए।
अपने रोजगार कोर्सेज में प्रत्येक विद्यार्थी को कम से कम दो रिसर्च (प्रत्येक विषय में एक) पूरा करना अनिवार्य हो जिसका उल्लेख उनके अंतिम शैक्षणिक प्रमाण पत्र में अनिवार्य रूप से हो।
इन रोजगार कोर्सेज में प्रैक्टिकल और थ्योरी को 50-50 प्रतिशत किया जाए।
कक्षा 12 पास होने के बाद हर विद्यार्थी को उसके संबंधित रोजगार कोर्स में 1 वर्ष का अपरेंटिस सरकारी, अर्द्ध सरकारी अथवा निजी संस्थान में सरकार की देखरेख में कराया जाए।
अप्रेंटिस के बाद निजी व्यापार स्थापित करने तथा सामूहिक व्यापार स्थापित करने हेतु बैंक ऋण/ आर्थिक मदद बिना ब्याज दिया जाए। यह एक मुश्त या किस्तों में हर विद्यार्थी को देना अनिवार्य हो इसकी धनराशि सरकार द्वारा निर्धारित की जाए। यह 2 तरह से दिया जाए एक वह ऋण जिसे चुकाना अनिवार्य हो और जो कॉलेटरल(गिरवी ऋण) हो।
तथा दूसरी आर्थिक मदद जो बाद में चुकाना आवश्यक ना हो। इसकी धनराशि सरकार द्वारा तय हो।
इसके बजट की व्यवस्था केंद्र व राज्य दोनों सरकारों को सामूहिक प्रयास से करना अनिवार्य हो।
रोजगार परक कोर्स पूरा होने के बाद उन अभ्यर्थियों को केंद्र, राज्य की सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी नौकरियों में चयन का मार्ग दिया जाए।
इन कोर्सेज को प्राइवेट सेक्टर में जॉब को ध्यान में रखते हुए भी डिजाइन किया जाए।
इन कोर्सेज में जो नया समय-समय पर बदलाव हो उसकी शिक्षक को ब्रीफिंग पीडीएफ या हार्ड कॉपी के माध्यम से उपलब्ध हो तथा समय-समय पर वह नई जानकारी विद्यार्थियों तक पहुंचे तथा उसके विद्यार्थियों को असाइनमेंट दिए जाएं।
रोजगार परक कोर्स में नई जानकारी अथवा जनरल अवेयरनेस के 10 नंबर निर्धारित किए जाएं। ये नंबर उस फील्ड में क्या अपडेट हुआ है और इससे विद्यार्थी कितना परिचित है इसके लिए हों।
मार्केट, व्यापार, सरकार आदि की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इन कोर्सेज को बड़ी संख्या में डिजाइन किया जाना आवश्यक हो। जिनका उद्देश्य छात्र को रोजगार की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना हो।
इसके अतिरिक्त एक विषय जीवनोपयोगी शिक्षा का भी बनाया जाए जिसमें जीवन में काम आने वाले घरेलू या सामाजिक तौर तरीके, सामान्य उपचार, व्यायाम, रखरखाव, देखरेख, आयुर्वेद, गृह विज्ञान, बैंक संबंधी कार्य, विभिन्न सामान्य कार्य, कला कौशल आदि को संयुक्त रूप से सम्मिलित किया जाए जो रोजमर्रा के जीवन से जुड़े हुए पहलुओं पर निर्धारित हों।
विद्यालयों में रोजगार परक शिक्षा के लिए लैब, रिसर्च सामग्री, यंत्र, टूल्स, शिक्षक प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था सरकार द्वारा योजना लागू करके की जाए।
इस पूरे अभियान के लिए एक कमेटी गठित करके छः माह में जन सामान्य तथा विशेषज्ञ वर्ग दोनों से सुझाव लिए जाएं और फिर इसे पूर्णकर क्रियान्वित किया जाए।
3. शिक्षा नीति में परिवर्तन हेतु प्रस्ताव
प्रति दस हजार से बीस हजार की आबादी पर 1 सरकारी इंटर कॉलेज आवश्यक हो जो आवश्यकतानुसार कक्षा 6 से 12 तक या कक्षा 9 से 12 तक खोला जा सकता है।
सरकारी इंटर कॉलेज में सीटों की संख्या विद्यार्थी संख्या के अनुसार घटाई बढ़ाया जा सके अथवा सेक्शन की संख्या घटाई बढ़ाई जा सके।
कक्षा 9 से 12 में मौजूद वर्तमान अनिवार्य विषयों के एंप्लॉयमेंट एस्पेक्ट्स(रोजगार पहलुओं) को सामने लाना होगा। उसे कोर्स रूप में ढालकर 50% थ्योरी तथा 50% प्रैक्टिकल पर काम करना होगा। यहां एंप्लॉयमेंट एस्पेक्ट से मतलब, जैसे: हिंदी और अंग्रेजी भाषा से जुड़े रोजगार परक कोर्स को उसके विषय की जगह स्थान देना होगा जिसमें उनके साहित्य को 50% थ्योरी के अंतर्गत रखकर 50% प्रैक्टिकल पर काम करना होगा जिससे उस विषय को पढ़ने का रोजगार की दृष्टि से भविष्य में लाभ हो सके।
वर्तमान अनिवार्य विषयों का रोजगार परक कोर्सेज में रूपांतरण करने के बाद अन्य रोजगार संबंधी कोर्सेज को भी विद्यार्थी को विकल्प रूप में दिया जाना चाहिए जिसमें से उसे दो विषय चुनना आवश्यक हो।
स्नातक की डिग्री को 2 वर्ष तथा प्रतिवर्ष एक परीक्षा अर्थात कुल मिलाकर दो परीक्षा का किया जाना अनिवार्य हो। जिससे विद्यार्थियों के समय व धन की बचत हो। ध्यान रहे शिक्षा नीति में क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस करना है। समय की बर्बादी और धन की लूट पर नहीं।
परास्नातक की डिग्री 1 वर्ष की होनी चाहिए।
स्नातक तथा परास्नातक के कोर्स को इस प्रकार डिजाइन किए जाने की आवश्यकता है जिससे कम समय, कम पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी को बेहतर बनाया जा सके।
पीएचडी की डिग्री को 2 वर्ष का किया जाना अनिवार्य है।
स्नातक, परास्नातक तथा पीएचडी की डिग्री का उपयोग निम्न कार्यों के लिए हो।
समूह क तथा समूह ख की सरकारी या प्राइवेट नौकरी हेतु।
समूह ग तथा समूह घ की सरकारी या प्राइवेट नौकरी हेतु।
कक्षा 12 तक के विद्यालयी विषयों के शिक्षक बनने हेतु।
रोजगार परक कोर्सेज के शिक्षक बनने हेतु,
जीवनोपयोगी शिक्षा के शिक्षक बनने हेतु,
संस्कार शालाओं के शिक्षक बनने हेतु,
कौशल केंद्रों में शिक्षक बनने हेतु,
संतति से पूर्व तथा बाद माता पिता के प्रशिक्षण में शिक्षक बनने हेतु,
नागरिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा अन्य कार्यक्रमों में शिक्षक बनने हेतु
स्नातक में B.A,B.SC,B.COM आदि के अंतर्गत रोजगार परक विषयों को डिजाइन किया जाए तथा इनमें जोड़ा जाए अथवा वर्तमान में मौजूद विषयों का रूपांतरण रोजगार परक दृष्टि से किया जाए।
इसमें कक्षा 9 से 12 तथा ऊपर दिए उद्देशों में शिक्षक बनने की तो शिक्षा दी ही जाए साथ ही विषय वेत्ता बनने के लिए भी शिक्षा दी जाए।
स्नातक, परास्नातक डिग्री में भी कम से कम एक विषय पर रिसर्च अनिवार्य हो।
स्नातक में अधिकतम 2 विषय तथा परास्नातक व PhD में 1 विषय यथावत रखा जाए।
प्रत्येक विधानसभा में 1 डिग्री कॉलेज अनिवार्य रूप से हो। B.ED और D.El.ED की डिग्री को 1 वर्ष, M.ED की डिग्री को 1 वर्ष का तथा पीएचडी को 2 वर्ष का किया जाए। साथ ही उनमें 6 माह का सरकारी अथवा अर्द्ध सरकारी विद्यालय में शिक्षण का अनुभव सर्टिफिकेट सम्मिलित किया जाए।
4. संस्कार शालाओं की स्थापना
प्रत्येक ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम इत्यादि में कम से कम 1 अथवा विद्यार्थियों के अनुपात में एक से अधिक संस्कार शालाओं की स्थापना की जाए। इस संस्कारशाला में प्रत्येक व्यक्ति/विद्यार्थी को 5 साल संस्कार शिक्षा दी जाना अनिवार्य हो जिसमें सुसंस्कार, नैतिकता, मानवीय मूल्य, भारत के महापुरुष, आदर्श जीवन का तरीका, आचरण व चरित्र की उत्तमता, अनुशासन, देशभक्ति, संस्कृति आदि का अनिवार्य ज्ञान दिया जाए।
संस्कारशाला में 2 शिक्षकों की नियुक्ति हो एक जो सेना या अर्ध सैन्य बल आदि से रिटायर्ड अथवा मिलिट्री साइंस से ग्रेजुएट या ग्रेजुएट प्लस एनसीसी योग्यता वाला शिक्षक हो तथा एक समाजशास्त्र से ग्रेजुएट युवा को शिक्षा हेतु नियुक्त किया जाए। इन्हें 6 माह का प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाए जो इन्हें विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देने में लाभदायक हो।
जीवन अनुशासन में सैन्य अध्ययन या सेना के शिक्षक राष्ट्रप्रेम, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, सेवा, देश पर समर्पण, त्याग, शौर्य, पराक्रम वीरता आदि सिखाएं तथा समाजशास्त्र के शिक्षक रहन-सहन,खान-पान, वेशभूषा,मूल्य शिक्षा, संस्कृति, भाषा, आदर्श आदि सिखाएं।
संस्कारशाला में विद्यार्थी का दाखिला तब हो जब वह शैक्षिक दृष्टि से कक्षा 3 में प्रवेश करे। उसे कक्षा 3 से कक्षा 8 तक अर्थात 5 वर्ष तक विद्यालय के साथ संस्कारशाला जाना अनिवार्य हो।
संस्कारशाला का कुल समय 1:30 घंटे का हो, 45 मिनट जीवन अनुशासन का, 45 मिनट मूल्य व संस्कृति शिक्षा के लिए निर्धारित हों। विद्यालय शिक्षा की तरह ही संस्कारशाला के भीतर मासिक, अर्धवार्षिक, वार्षिक व यूनिट टेस्ट तथा इससे प्रमाण पत्र प्राप्त हो जिसके नंबर विद्यालय की शिक्षा के मूल अंकपत्र में पूर्णांक व प्राप्तांक में जोड़ा जाए जो फाइनल परसेंटेज का हिस्सा बने।
हर विद्यालय के विद्यार्थी को संस्कारशाला में न्यूनतम उपस्थिति आवश्यक हो। उपस्थित ना होने पर वह अपनी विद्यालयी कक्षा में भी आगे नहीं बढ़ सकेगा अथवा उत्तीर्ण/पास नहीं हो सकेगा, ऐसा प्रावधान हो।
इनके बजट की व्यवस्था केंद्र व राज्य के संयुक्त बजट से हो तथा इन्हें किराए की बिल्डिंग में संचालित ना किया जाए बल्कि इनके लिए स्थाई आवास बनवाए जाएं अथवा सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग में ही संचालित कराए जाएं।
सप्ताह में 6 दिन संस्कारशाला लगे।
यह सुनिश्चित हो कि प्रतिदिन समय को मैनेज करने के लिए सरकार विद्यालयी घंटों की संख्या को घटाने पर भी विचार कर सकती है। यह ध्यान रखना होगा कि अब हमें संस्कार परक और रोजगार परक शिक्षा पर विशेष तौर पर बल देना है व्यर्थ व अनुपयोगी शिक्षा को नहीं। शिक्षा व्यवस्था में व्यापक परिवर्तन भी आवश्यक है।
5. शिक्षा में कोर्स अपडेट तथा अपग्रेड कानून
कक्षा एन०सी से कक्षा 12 तक का पाठ्यक्रम या कोर्स न्यूनतम 5 वर्ष में बदला जाए तथा अधिकतम 10 वर्ष में। इससे छात्रों को पुरानी किताबों से सीखने का मौका मिले तथा अभिभावक को हर वर्ष नई किताबें खरीदने के मोटे खर्च से मुक्ति मिल सके। सरकार की ओर से पुरानी किताबें खरीदने व बेचने के लिए प्रति विधानसभा एक विक्रय सेंटर बनाया जाए जहां पुरानी किताबों के कोर्स खरीद-बेच के मूल्य निर्धारित हों। यदि कोई ऑनलाइन पुरानी किताबें ऑर्डर हासिल करता है तो इसके लिए अलग पोर्टल/एप्लीकेशन डिजाइन किए जाएं जो क्रय-विक्रय आर्डर के अनुसार कर सकें। इससे क्रय विक्रय केंद्र पर भीड़ से बचा जा सके। हर साल जो नए अपडेट विद्यार्थियों को जानने जरूरी हों उन्हें टीचर्स को ब्रीफिंग के माध्यम से सेंड किया जाए तथा छात्रों तक पीडीएफ फॉरमैट, हार्ड कॉपी अथवा सीधे शिक्षक के मुख से पहुंचाया जाए जिन पर उन्हें असाइनमेंट दिए जाएं। इसे जनरल अवेयरनेस कहा जाए तथा 10 अंक इसके लिए अलग से छात्र के रिजल्ट में दर्ज हों। दो रोजगार परक कोर्स में इस प्रकार का जी • ए • अपडेट तथा टेक्निकल अपडेट अनिवार्य हो।
6. प्राइवेट स्कूलों हेतु नए नियम
सभी बोर्ड्स के प्राइवेट स्कूलों में सरकार द्वारा कानून के तहत फीस तय की जाए। उससे ऊपर फीस जिसमें एडमिशन, मासिक फीस, यूनिट टेस्ट फीस आदि सभी प्रकार के त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक डायरी आदि वसूलने वालों पर सजा का प्रावधान हो।
यह कानून बने कि ड्रेस और कॉपी किताबें स्कूल में अथवा स्कूल द्वारा निर्धारित की गई दुकान से लेना अनिवार्य नहीं होगा।
छात्र यदि चाहे तो अपने भाई बहनों अथवा अपने से सीनियर विद्यार्थियों की पुरानी किताबें लेकर भी पढ़ सकेगा। किसी त्योहार पर कोई फीस या चंदा विद्यालय या शिक्षक द्वारा नहीं लिया जा सकेगा।
एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम के अलावा अन्य पाठ्यक्रम चलाने अथवा अन्य किताबें रखने वाले विद्यालयों तथा शिक्षकों पर कठोर कार्यवाही का प्रावधान हो।
बोर्ड की परीक्षा हेतु निर्धारित एनसीईआरटी पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न रखने पर संबंधित बोर्ड पर दंडनीय कार्यवाही की जाएगी।
प्राइवेट शिक्षकों प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक तथा एनसी से कक्षा 12 तक के शिक्षकों का वर्ग अनुसार न्यूनतम वेतन तय हो। उससे कम वेतन देने वाली शैक्षिक संस्थाओं पर दंडनीय कार्यवाही का प्रावधान हो।
एनसीईआरटी पर आधारित कई किताबें बाजार में प्रचलित हैं जो विद्यालयों के लिए धंधा हो गई हैं ऐसी सभी किताबों को विद्यालय शिक्षक द्वारा छात्र या अभिभावक को खरीदने पर बाध्य करने के लिए दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।
सरकार द्वारा एनसीईआरटी कोर्स ही देशभर में चलाया जाए। N.C से कक्षा 12 तक एनसीईआरटी कोर्स छापने के लिए कुछ पब्लिशिंग संस्थाओं को हायर किया जाए। यह ध्यान रहे कि छात्रों के अनुपात में किताबों की छपाई हो। बाजार में किताबें कम नहीं होनी चाहिए। बाजार में एनसीईआरटी कोर्स की अनुपलब्धता होने पर उत्तरदाई संस्थाओं पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।
प्राइवेट शिक्षक की विद्यालय में जॉइनिंग के समय जॉइनिंग लेटर देना आवश्यक हो जिस पर शिक्षक का वेतन, उसके वर्किंग आवर (कार्य के घंटे) सभी कार्यों का विवरण, नियम व शर्तें आदि जो कार्य शिक्षकों से सत्र में कराए जायेंगे, जो सरकार द्वारा मान्य हों जो शिक्षक की मांगी गई भाषा में हों दर्ज होना आवश्यक होगा।
सरकार द्वारा अमान्य कार्यों को प्राइवेट शिक्षक से कराने पर विद्यालय पर दंडनीय कार्यवाही हो। प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक व छात्रों की समस्या सुनने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल, एप्लीकेशन तथा हेल्पलाइन नंबर बनाया जाए जो उनकी हर संभव मदद करें। मदद ना करने पर ऑनलाइन शिकायत प्रोसेस चला रहे अधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।
7. स्कूलों में दंड पर नीति में संशोधन
हालांकि नई शिक्षा नीति विद्यार्थी केंद्रित है जिसमें किसी भी प्रकार के दंड को कोई स्थान नहीं है किंतु फिर भी कुछ कानून अनिवार्य हैं। स्कूलों में अनुशासनात्मक रूप से विद्यार्थी द्वारा अमर्यादित आचरण पर अध्यापक, विद्यालय स्टाफ को विद्यार्थी को कुछ दिन के लिए कक्षा या विद्यालय से निष्कासित करने अथवा माता-पिता को बुलाकर शिकायत करने तथा विद्यार्थी द्वारा विद्यालय में गाली गलौज व मारपीट करने पर पूर्ण निष्कासन तथा बाल सुधार गृह में भेजने की अपील का अधिकार विद्यालय को दिया जाए।
अलग-अलग अनुशासनहीनता पर अलग-अलग कार्यवाही का कानूनी खाका तैयार किया जाए। जो विद्यार्थी बार-बार समझाने के बाद भी विद्यालय में नहीं पढ़ना चाहता हो उसे जबरन पढ़ाने, मारपीट करने, शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का विद्यालय या शिक्षक को अधिकार ना हो।
ऐसे छात्रों को चिन्हित कर मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग हेतु भेजा जाए तथा उन्हें विशेष शिक्षण विधियों जैसे खेल विधि आदि के द्वारा शिक्षा के प्रति आकर्षित करने का प्रयास किया जाए।
विद्यालय शिक्षकों द्वारा विद्यार्थी के अभिभावकों को विद्यार्थी के कक्षा में प्रदर्शन के चलते किसी भी प्रकार से जलील करना, उनका उपहास करना, अभद्रता करना पूरी तरह से दंडनीय अपराध माना जाए। उद्दंडता, पढ़ाई में रुचि ना रखने वाले, स्वभाव से अनुशासन हीन बच्चों की देखरेख के लिए एक साइकोलॉजिकल काउंसलर भी रखा जाना अनिवार्य हो।
8. शिक्षा के भाषा मीडियमों की व्यवस्था में सुधार
अंग्रेजी देश के कुछ प्रतिशत लोगों द्वारा ही बोली जा रही है। इसलिए इसे राष्ट्रभाषा के समतुल्य मानना अथवा पूरे देश पर थोपना पूरी तरह से अतार्किक है। फिर भी जब तक देश के सभी राज्य एक राष्ट्रीय भाषा पर आम सहमति की स्थिति में ना हो तब तक कुछ प्रावधान आवश्यक हैं।
एनसीईआरटी किताबों, सीबीएसई बोर्ड, आईसीएसई बोर्ड में सभी विषयों के इंग्लिश भाषा में चैप्टर्स का हिंदी क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद साथ में दिया जाना अनिवार्य हो।
भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा में मात्र पासिंग मार्क्स लाना पड़ें। उसकी मेरिट फाइनल मेरिट में नहीं जुड़ेगी, ऐसा प्रावधान हो।
सभी नियुक्त अध्यापकों को अंग्रेजी भाषा के साथ हिंदी अथवा उस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषा का ज्ञान हो तथा विद्यार्थी को कक्षा में दोनों भाषाओं में समझाना आवश्यक हो। छात्र के पूछने पर भी अनुवाद ना करने पर शिक्षक अथवा विद्यालय पर सजा का प्रावधान हो।
केवल अंग्रेजी में बात करने के लिए विद्यालय यदि किसी विद्यार्थी को बाध्य करता है, उस पर दंड अथवा फाइन चार्ज लगाता है तो ऐसे सभी शिक्षक और विद्यालयों पर कठोर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान हो।
हिंदी व क्षेत्रीय भाषा के क्लास पढ़ाते समय उन भाषाओं को अंग्रेजी में नहीं पढ़ाया जाएगा। जैसे हिंदी को हिंदी में, संस्कृत को संस्कृत में, मराठी को मराठी में, पंजाबी को पंजाबी में ही पढ़ाया जाएगा। मराठी को अंग्रेजी, पंजाबी को अंग्रेजी या हिंदी को अंग्रेजी में अनुवाद करके नहीं पढ़ाया जाएगा। ऐसा कठोर कानूनी प्रावधान हो।
9. हर लोकसभा क्षेत्र हेतु कुछ अनिवार्य सुविधाएं
यह कानून बने कि प्रत्येक लोकसभा में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज अनिवार्य होगा।
हर लोकसभा में एक रिसर्च सेंटर भी अनिवार्य होगा जिसमें कला, विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों पर रिसर्च की सुविधा दी जाएगी।
रिसर्च के लिए न्यूनतम योग्यता आठवीं पास होनी चाहिए। रिसर्च के संबंध में जानकारी हेतु ऑनलाइन तथा ऑफलाइन सुविधा प्राप्त होगी जिसमें रिसर्च मैनुअल आदि शामिल होंगे।
रिसर्च पेपर पब्लिश कराने, हर वर्ष एक रिसर्च पत्रिका निकालने (जिसमें साल भर के अंतर्गत रिसर्च पूर्ण करने वालों के नाम तथा रिसर्च के विषय अंकित हों) की सुविधा हर रिसर्च सेंटर पर दी जाएगी।
रिसर्च सेंटर पर कम से कम एक रिसर्च एक्सपर्ट तथा सहायक स्टाफ का होना अनिवार्य होगा। रिसर्च का मूल्यांकन करने के लिए राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक लेवल पर एक्सपर्ट पैनल गठित हो। रिसर्च पेपर या रिसर्च सबमिट करने के 30 दिन के भीतर उसका मूल्यांकन अनिवार्य हो।
ऐसा न करने पर पैनल के सदस्यों पर दंडात्मक कार्यवाही हो। पैनल के सदस्यों की पर्याप्त संख्या रिसर्च सेंटर के अनुपात में निर्धारित की जाए।
रिसर्च पूर्ण करने वालों को सर्टिफिकेट अवश्य प्राप्त कराया जाए तथा एक वेबसाइट एप्लीकेशन पर उनका नाम तथा रिसर्च का विषय दर्ज हो।
साथ ही सेंटर में ऑफलाइन माध्यम में भी उनका नाम और रिसर्च विषय दर्ज हो जिससे वे गुमनाम ना हो जाएं।
प्रतिवर्ष सर्वश्रेष्ठ कार्य के लिए/कार्यों के लिए लोकसभा सेंटर, प्रदेश सरकार तथा केंद्र सरकारों द्वारा रिसर्चरों को सम्मानित किया जाए।
सेंटर के द्वारा रिसर्च के दौरान रिसर्चर को यदि आर्थिक सहायता चाहिए तो वह उसे प्रदान की जाए। यह बजट केंद्र व राज्य के सामूहिक प्रयास से दिया जाए।
प्रत्येक लोकसभा में प्रत्येक ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम तथा बड़े शहरों में खंड बनाकर एक से अधिक / एक स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना हो जिसमें रोजगार परक कोर्स, टेक्निकल कोर्स, मेडिकल, कृषि, प्रौद्योगिकी आदि के डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्स, शॉर्ट टर्म कोर्स के लिए कुछ सामान्य फीस भी रखी जाए जो सेंटर में उपस्थित यंत्रों, कर्मचारियों की सैलरी आदि के लिए प्रयोग की जाए। यह योजना स्वरोजगार को बढ़ावा दे। साथ ही विभिन्न प्राइवेट संस्थाओं में भी इनकी नियुक्ति हो सके।
यहां ऐसे लोगों को मौका मिले जो कक्षा 9 से कक्षा 12 के 2 रोजगार परक कोर्स स्कीम का लाभ ना ले सके हों अथवा जिन्होंने कक्षा आठ के बाद पढ़ाई छोड़ दी हो अथवा बुजुर्ग, ग्रहणी आदि को इनमें प्रशिक्षण दिया जाए।
यह भी ध्यान रखा जाए कि यह सेंटर किराए की बिल्डिंगों में ना खोले जाएं बल्कि इनके लिए स्थाई आवास तैयार किए जाएं।
प्रत्येक लोकसभा में एक अथवा प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में एक स्पोर्ट्स एंड आर्ट सेंटर खोला जाए जिसमें खेल सामग्री, ग्राउंड, साहित्य, कला के यंत्र आयोजन, प्रतियोगिताएं, प्रमाण पत्र खिलाड़ियों का रिकॉर्ड, सभागार, हॉल आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रत्येक लोकसभा में पंचायत, पालिका व निगम स्तर पर छात्र छात्राओं को स्कूल, कॉलेज तक ले जाने हेतु ई रिक्शा या ऑटो की व्यवस्था अनिवार्य हो। जिसका बजट पंचायत व निकाय अध्यक्ष तथा केंद्र व राज्य के साझा सहयोग से जारी हो ।
इनमें ऐसे छात्र लिए जाएं जिनके पास कोई परिवहन व्यवस्था न हो। इसमें छात्र छात्राओं के लिए अलग अलग व्यवस्था भी दी जा सकती है। इनमें ayu में बड़े निर्धन, छात्र छात्राओं को साइकिल दी जाए ताकि उनका कीमती समय सफर में या पैदल बर्बाद न हो।
क्षेत्र बार प्रति निश्चित छात्राओं की संख्या के अनुपात में बालिका इंटर कॉलेज तथा बालिका महाविधालय भी खोले जाना अनिवार्य हों। ऐसा कानून बने।
इन कानूनों का पालन न होने पर संबंधित सरकारों पर दंडात्मक कार्यवाही हो तथा संबंधित जनप्रतिनिधियों व मंत्रियों को पदच्युत करने का प्रावधान हो ( बजट के अभाव की स्थिति तथा विशेष आपदा या आपातिक परिस्थितियों को छोड़कर)
10. रोजगार मंत्रालय तथा रोजगार विभाग की स्थापना
केंद्र व राज्य सरकारों को रोजगार मंत्रालय की स्थापना करना तथा उससे संबंधित रोजगार विभाग बनाने का प्रावधान बनाया जाए जिसके अंतर्गत युवाओं को रोजगार देने के लिए कौशल प्रशिक्षण कराना, बेरोजगारों का डाटा रखना, बेरोजगारी दर पर कार्य, रोजगारों के सृजन हेतु कार्य एवं योजनाएं बनाना शामिल हों। प्रतिवर्ष बजट में से एक उचित हिस्सा भी इसे दिया जाए। साथ-साथ, समय-समय पर इस मंत्रालय व विभाग की सख्त ऑडिट भी हो।
11. बेरोजगारी नियंत्रण कानून
इस कानून के अंतर्गत प्रत्येक बेरोजगार परिवार, मां-बाप व (अविवाहित बच्चों अधिकतम दो) में से एक व्यक्ति को ₹15000 प्रति माह अधिकतम आवागमन खर्च जोड़कर परमानेंट नौकरी दे दी जाए।
यह नौकरी उन्हें ब्लॉक क्षेत्र के अंतर्गत दी जाए किंतु वह सेवा उनके निजी गांव व नगर या कस्बा में ना हो जिससे आम नागरिक को कर्मचारी से क्षेत्र के प्रभुत्ववाद का सामना ना करना पड़े। यह सुनिश्चित हो कि उन्हें हर महीने सैलरी दी जाएगी। सैलरी को पेंडिंग में नहीं लटकाया जाएगा। परिवार के सदस्यों की संख्या 4 से अधिक होने पर भी ₹15000 से अधिक सैलरी की व्यवस्था नहीं होगी।
इस नौकरी योजना में ग्राम पंचायत, नगर पंचायत तथा नगर पालिका के परिवार के सदस्य को ₹10,000 प्रति माह, नगर निगम के परिवार के सदस्यों को ₹12,500 प्रति माह तथा बड़े शहरों अथवा मेट्रो सिटी में 15,000 प्रतिमाह की सैलरी प्रदान की जाए।
नौकरी पाने वाले कर्मचारी को कानून के तहत पूरे परिवार का भरण पोषण, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा आदि की व्यवस्था करना होगा यदि उसके परिवार के सदस्य के माध्यम से भरण-पोषण ना किए जाने की शिकायत आती है तो उसके विरुद्ध जांच के बाद दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सके किंतु तब की स्थिति में जब शिकायत अन्य खर्चों पिकनिक, पार्टी, फंक्शन, डीजे, डिस्को, फैशन मनोरंजन, शौक, अनावश्यक खर्चो पर हो तब शिकायत को अनुचित माना जाए।
आवश्यक अनावश्यक खर्चों की अलग सूची सरकार द्वारा जारी की जाए।
ग्रुप C व D के पदों पर रिक्तियों को इस व्यवस्था से भरा जाए। ग्रुप A तथा B के पदों में यदि संभव हो तो पद विभाजन एक से दो में हो किंतु उनके कार्य भी आधे आधे हों। इसमें कार्य शक्ति भी बड़े और एक की जगह दो बेरोजगारों को रोजगार भी मिले। इसमें एक पद पर लगे दो लोगों को सैलरी विभाजित करके दी जाए। इस योजना में नौकरी पाने की आयु सीमा 18 से 45 वर्ष हो। इस कानून को दो बच्चों का जनसंख्या नियंत्रण कानून लगाने के बाद ही लागू किया जाए तभी यह पूर्ण रूप से प्रभावी हो सकती है। टू चाइल्ड प्लान लगाए बिना इस व्यवस्था को लागू करने के लिए सबसे बेहतर नियम यह रहेगा कि इस नौकरी योजना का लाभ एक बार सभी को देकर आगे उन्हीं को दिया जाए जो आगे की पीढ़ी में दो बच्चों के कानून का पालन करें।
एक माता-पिता यदि दो से अधिक संतान (जुड़वा के मामले को छोड़कर) पैदा करते हैं तो वे स्वतः ही इस कानून द्वारा नौकरी पाने की योग्यता से वंचित कर दिया जाएंगे तथा उन्हें इस योजना के लिए अपात्र कर दिया जाएगा। योजना में केंद्र व राज्यों के बीच समझौते के अंतर्गत केंद्र व राज्य के सभी समूह ग, समूह घ, निगम, पालिका व पंचायत के सभी पदों पर तथा अर्ध सरकारी पदों पर इस योजना से भर्ती होना चाहिए। इस योजना से जनसंख्या वृद्धि पर संतुलन हेतु भी मदद मिलेगी। ऐसा पूर्ण विश्वास है।
इसमें वर्तमान संविदा पदों को समाप्त कर उनका समायोजन इस योजना में किया जाए। केंद्र व राज्य सरकार इन पदों पर साझा रूप से बजट की व्यवस्था बनाएं।
इस योजना में ऐसे परिवारों को एक नौकरी दी जाए जिनके पास पूरे परिवार में किसी भी व्यक्ति के पास कोई सरकारी नौकरी ना हो। उनके परिवार में किसी सदस्य के पास क्षेत्रवार 10,000, 12,500 तथा 15,000 से अधिक की प्राइवेट नौकरी ना हो। इनके पास की दुकान जिससे 10,000, 12,500 तथा 15,000 से अधिक की आय ना हो। कोई भी व्यक्ति आयकर के दायरे में ना हो।
जो सरकारी सेक्टर निजी हाथों में जा चुके हैं उनमें भी नियुक्ति का अधिकार सरकार अपने हाथों में ही रखे अथवा नियुक्ति का अधिकार स्वयं ले ले अथवा प्राइवेट संस्थाओं को भी अंडरटेक करे। उनमें परमानेंट भर्ती अथवा हटाने का अधिकार सरकार के पास होना चाहिए।
इन पदों ग्रुप A ग्रुप B , ग्रुप C पर आवश्यक योग्यता / पात्रता परीक्षा के मानक पूर्ववत रहें अथवा ज्वाइनिंग के बाद प्रोविजन की अवधि दी जाए। लेकिन ग्रुप D के पद भरने हेतु केवल शैक्षिक योग्यता तथा जॉइनिंग के बाद प्रोविजन की अवधि पर नियुक्ति करनी होगी किंतु ग्रुप C व D में एक परिवार से एक नौकरी स्कीम का पालन करना होगा।
12. चोर व भिखारी परंपरा निवारण कानून
भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में हमारा प्रयास चोर व भिखारी परंपरा से मुक्ति का है। जनप्रतिनिधियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों जैसे डीएम, एसडीएम आदि द्वारा भिखारी परंपरा की समाप्ति हेतु एक सशक्त कानून बनाया जाए। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार से अलग से बजट तय होना चाहिए। भीख मांगने वालों का एरिया के हिसाब से डाटा इकट्ठा करके प्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों को समय दिया जाए। उस समय के अंदर यदि अधिकारियों से सहायता, पुनर्वास या मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करके संपूर्ण विवरण प्राप्त नहीं हुआ तो जनप्रतिनिधियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए। इसके लिए क्षेत्रवार अधिकारियों की समय सीमा तथा चोर व भिखारी संख्या के डाटा कलेक्शन के आधार पर कितना बजट चाहिए यह प्रस्तावित हो तथा बजट जारी होने के बाद उसका उपयोग प्रभावी रूप से हुआ या नहीं, उसका ऑडिट कराया जाए।
यह योजना ऑनलाइन व ऑफलाइन भी हो। इसमें मांगकर्ता मदद ना मिलने की स्थिति में अपनी शिकायत या प्रतिपुष्टि दर्ज करा सके। इसी प्रकार चोरी करने वाले ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाए जिन्होंने चोरी, भुखमरी या बच्चों के भरण-पोषण में असमर्थता, परिवार के मुखिया की अस्वस्थता, असमर्थता अथवा परिवार में कोई कमाने योग्य ना होने पर की हो। उनके लिए विशेष कार्यक्रम चलाया जाए जिसमें उन्हें राशन, कपड़े, बच्चों की मुफ्त शिक्षा तथा आवास की व्यवस्था दी जाए और दोबारा चोरी ना करने की हिदायत दी जाए। यदि परिवार में विकलांग, विधवा स्त्री हो तो उन्हें विभिन्न रोजगार स्कीम के तहत रोजगार की व्यवस्था भी दी जाए।
13. किन्नरों की समस्या निवारण कानून
सड़कों/सार्वजनिक स्थानों तथा बसों ट्रेनों आदि में रुपए मांगते किन्नरों की समस्या भी गंभीर है। इसके समाधान के लिए उन्हें सरकारी सेवा में विशेष आरक्षण, आर्थिक सहायता, पेंशन तथा भरण-पोषण की सुविधा दी जाए लेकिन रोजगार योजनाओं में उन्हें रोजगार, स्वरोजगार एवं विभिन्न प्रशिक्षण तथा उद्योग ज्ञान की व्यवस्था हो। यह सुनिश्चित किया जाए कि इस योजना के लाभ के बाद कोई भी किन्नर इधर-उधर रुपए मांगता ना घूमे। किन्नरों के लिए एक एप्लीकेशन/पोर्टल भी लॉन्च किया जाए जिसमें किन्नर सहायता ना मिलने की स्थिति में अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। इनकी समस्याओं के समाधान के लिए अलग से बजट की व्यवस्था हो। यदि बजट जारी होने के बाद भी संबंधित अधिकारियों द्वारा उनकी समस्याओं का समाधान न किया जाए तो अधिकारियों पर कठोर दंडात्मक कानूनी कार्यवाही का भी प्रावधान हो। समय-समय पर इनके बजट योजना के लाभ तथा किन्नरों की उभरती जीवनचर्या पर सोशल ऑडिट का आयोजन भी किया जाए।
14. जनप्रतिनिधियों की न्यूनतम योग्यता का निर्धारण
केंद्र व राज्यों के मंत्री, विधायक, सांसद, निकायों, पंचायतों के सभी जनप्रतिनिधियों की न्यूनतम योग्यता का निर्धारण किया जाए हालांकि कुछ जगह ग्राम प्रधानों के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित है किंतु बड़े पदों पर यह पूर्ण रूप से होना बाकी है। मंत्रालय संभालने से पहले प्रत्येक मंत्री को न्यूनतम 2 माह में 200 घंटे की सरकारी ट्रेनिंग अपने मंत्रालय से संबंधित आवश्यक हो जिनके कोर्सेज को सिविल अधिकारियों द्वारा डिजाइन कराया जाए। उस 2 महीने में उनके मंत्रालय की स्थिति वैसी ही यथावत रहे जैसी चुनाव आचार संहिता में रही थी।
15. अश्लीलता नियंत्रण कानून
पोर्न साइट्स को पूरी तरह से बैन किया जाए। फिल्मों में अश्लीलता के मानकों पर फिल्म सेंसर बोर्ड के प्रमाण, नियमों को और सख्त बनाया जाए। सोशल मीडिया, इंटरनेट, साहित्य, पुस्तकों, पत्रिकाओं, टीवी चैनलों, रेडियो प्रसारण, फिल्मी व गैर फिल्मी गीतों, आइटम सोंग्स, अश्लील कहानियों आदि पर पूरी तरह प्रतिबंध का कानून लाया जाए।
इसके लिए अश्लीलता व शीलता के मापदंड तय किए जाएं।
अंतः वस्त्र, चुम्बन, उत्तेजक दृश्य, चित्र, वीडियोस, एमपी3, स्टोरी टेलिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध हो। अखबार, इंटरनेट, टीवी चैनल, रेडियो प्रसारण पर शक्तिवर्धक, गर्भनिरोधक साधनों की अश्लीलता परोसने वाले विज्ञापन पूरी तरह से बैन हों।
सार्वजनिक स्थानों, सड़कों, गली मोहल्लों आदि में अंतः वस्त्र पहनकर, निकलना या घूमना पुरुष और स्त्री दोनों के लिए निषिद्ध हो।
सार्वजनिक स्थलों, रियलिटी शो, खुले में कार्यक्रम, गली मोहल्लों में, बसों, ट्रेनों, सवारियों में चुंबन अंतः अंग प्रदर्शन, अंतः अंगों को स्पर्श करना तथा अश्लील हरकतें करना कठोर दंडनीय अपराध हो।
डांस पार्टी, बार पार्टी, आर्केस्ट्रा का अश्लील नाच, गंदे बेहूदगी पूर्ण कृत्य पूरी तरह से प्रतिबंधित हों तथा प्रतिबंध ना मानने वाले और प्रतिबंध के बावजूद इन सबका आयोजन करने वालों को जेल की सजा का प्रावधान है।
धर्म स्थलों, रामलीला, राम बारात में, कृष्ण लीला और धार्मिक मेलों के आयोजन के नाम पर उनके मैदानों में डांस पार्टी लगाना, बार बालाओं का नृत्य, नौटंकी में अश्लील नृत्य आदि पूरी तरह से बैन किया जाए।
सामाजिक रुप से गली मोहल्ले, चौराहे, सार्वजनिक स्थान पर बार बालाओं का डांस पूरी तरह से बैन हो। धार्मिक सीरियलों, कथाओं में देवी देवताओं का छोटे वस्त्रों में प्रदर्शन तथा अश्लील हरकतें निर्देशित करना पूरी तरह से बैन हो तथा इन पर कठोर सजा या जुर्माने का प्रावधान हो। उपरोक्त सभी कानूनों को तोड़ने वालों पर जुर्माना अथवा सजा का प्रावधान न्यायालय द्वारा लगाया जाए। ऐसा कानून बने।
16. गंदगी व प्रदूषण पर कानून
सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाने वालों और खुले या खेतों में शौच करने वालों पर कठोर दंड या जुर्माना लगाया जाए। नाबालिग की स्थिति में उसे एक वार्निंग दी जाए और दोबारा वही हरकत करने पर उसके अभिभावकों को तलब किया जाए। यदि वह अभिभावकों की बात ना मानते हुए भी बार बार गलती करे तो उसे बाल सुधार गृह भेजा जाए।
सभी नागरिकों द्वारा गंदगी या प्रदूषण फैलाने पर उनके आधार नंबर के द्वारा प्रदूषण रोकथाम एप्लीकेशन या पोर्टल पर उनके नाम से कंप्लेंट दर्ज हो जिसमें वार्निंग हो कि कितनी बार उन पर जुर्माना हुआ तथा कितनी बार उन्होंने उस नियम को तोड़ा यह दर्ज हो।
इस एप्लीकेशन में सभी गंदगी व प्रदूषण फैलाने वाले लोगों के वार्निंग और सजाओं के साथ उनके नाम दर्ज होना चाहिए।
बार-बार गंदगी फैलाते पाए जाने पर नागरिक पर जुर्माना 4 गुना तक बढ़ाया जाए तथा एक सीमा के बाद उसे कारावास की सजा का प्रावधान हो।
खुले में तथा खेतों में शौच करने बाले लोगों के घर की जांच हो। घर में शौचालय ना होने पर बाहर शौच करते पाए जाने पर उन्हें चिन्हित करके उनके घर शौचालय की आर्थिक सहायता केंद्र एवं राज्य के सरकारों द्वारा प्रदान की जानी अनिवार्य हो अन्यथा की दृष्टि में उन्हें सजा दी जाए। हालांकि अभी स्वच्छता पर कुछ नियम कानून बनाए गए हैं लेकिन उन्हें और सख्त करने की जरूरत है। सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण जनप्रतिनिधियों व संबंधित अधिकारियों के माध्यम से किया जाना सुनिश्चित हो जिसमें व्यक्ति संख्या प्रतिशत पर दायरा तय हो जिसमें एक सार्वजनिक शौचालय बनाना अनिवार्य हो ऐसा ना करने पर संबंधित जनप्रतिनिधि अथवा अधिकारी पर धन अथवा जुर्माने का प्रावधान हो। सार्वजनिक स्थानों पर शौचालयों का अभाव होने पर संबंधित अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों पर जुर्माना लगाया जाए।
17. संतति से पूर्व तथा उपरांत मां-बाप के प्रशिक्षण का कानून
इस प्रावधान के अंतर्गत ऐसे दंपत्ति जो माता-पिता बनना चाहते हैं उन्हें ऑनलाइन या ऑफलाइन या किसी कार्यकर्ता अथवा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा संतान के जन्म से पहले कुछ माह का प्रशिक्षण देना अनिवार्य हो जिसमें संतान के जन्म के समय, गर्भावस्था में, जन्म के 6 माह बाद तक शिशु तथा माता-पिता को किस प्रकार रहना है। उनकी दिनचर्या, देखरेख, आहार चर्या, पति का उनके (मां व शिशु) के प्रति कर्तव्य इत्यादि बिंदु इसमें समाहित हों।
जिसमें दूसरा प्रशिक्षण शिशु की शैशवावस्था 6 वर्ष तक शिशु के व्यवहार, देखभाल, परवरिश तथा संस्कार का प्रशिक्षण दिया जाए।
इसी प्रकार बाल्यावस्था में तीसरा प्रशिक्षण कुछ माह का हो जो बालक की आयु 6 से 12 वर्ष हेतु तथा चौथा प्रशिक्षण किशोरावस्था में आयु 12 से 18 वर्ष तक होने पर माता-पिता को दिया जाना अनिवार्य हो।
बाल्यावस्था, किशोरावस्था के प्रशिक्षण में परवरिश में नैतिकता को जोड़ा जाए।
तथा पांचवा और अंतिम प्रशिक्षण संतान की आयु 18 वर्ष पूर्ण होने के बाद दिया जाए जिसमें संतान के युवावस्था से गृहस्थ आश्रम में प्रवेश तक उनके साथ मां बाप को कैसा व्यवहार रखना है शामिल हो।
इसके साथ ही एक विशेष प्रशिक्षण संतान को भी तब दिया जाए जब उसके माता-पिता 55 से 60 वर्ष की आयु के हों। संतान को इस प्रशिक्षण के द्वारा यह ज्ञान कराया जाए कि वृद्ध माता-पिता की मानसिक स्थिति क्या होती है? उनके साथ कैसा व्यवहार करना है ? उनके प्रति कर्तव्य, नैतिकता तथा सामंजस्य के भाव का प्रशिक्षण इस कोर्स में दिया जाए।
इन सभी प्रशिक्षणों में संतान के विभिन्न आयु वर्गों में मनोवैज्ञानिक स्थिति, आवश्यकता तथा उन्हें परिवार समाज तथा राष्ट्र हेतु उपयोगी बनाने की सीख शामिल हो।
याद रहे मानव का जन्म एक दिव्य घटना है यह कोई मजाक नहीं है। दंपत्ति के मां बाप बनने के साथ सरकारों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मां बाप बनने के योग्य हैं भी या नहीं! उनकी परवरिश समाज व राष्ट्र के लिए घातक भी हो सकती है और लाभदायक भी। इसलिए इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम का होना आवश्यक है।
18. संपत्ति नाम करके पुनः वापस लेने का अधिकार
इस कानून के अनुसार एक बार किसी के नाम अपनी संपत्ति करने के बाद उस व्यक्ति से दुर्व्यवहार प्रताड़ना या सेवा ना मिलने की दशा में संपत्ति वापस लेने का अधिकार भी होना चाहिए। ऐसा अधिकतर बुजुर्गों के मामले में देखने को मिलता है कि उनकी संपत्ति लेने वाले बाद में उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
इससे संबंधित दूसरे कानून में जिसके नाम संपत्ति खरीदी जाए तथा जिसके धन से खरीदी जाए दोनों का नाम दस्तावेज में दर्ज हो तथा आवश्यकता पड़ने पर जिसके धन से संपत्ति खरीदी गई हो उसे संपत्ति का मालिकाना हक स्थानांतरित किया जा सके।
कई बार पति या पत्नी अपने धन से जीवनसाथी के नाम संपत्ति खरीदते हैं तथा बाद में उनका जीवनसाथी उन्हीं को संपत्ति से बेदखल कर देता है। ऐसी स्थिति का समाधान हो।
19. खाद्य पदार्थों में जीरो परसेंट केमिकल मिलावट का प्रावधान
किसी भी खाद्य पदार्थ में जो देश में निर्मित हो अथवा विदेश में किंतु भारत में बिक्री के लिए सरकारों द्वारा उन खाद्य पदार्थों में 0% केमिकल मिलावट का सख्त कानून बने तथा इसे तोड़ने वालों पर दंड व जुर्माने का कठोर प्रावधान हो।
20. सीएफसी उत्सर्जन वाले उत्पाद पूर्ण प्रतिबंधित हों
जो यंत्र तंत्र अथवा सिस्टम क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उत्सर्जन करते हैं। उन पर पूरी तरह से बैन का कानून बने। यह प्रकृति रक्षा के लिए बहुत आवश्यक है। इनके उत्पादन पर तत्काल रोक लगाकर इन्हें बिना सीएफसी उत्सर्जन के बनाने/निर्माण करने की तकनीक पर कार्य होना चाहिए।
21. नागरिक स्वास्थ्य पत्रिका वितरण का प्रावधान
प्रति ढाई वर्ष में एक बार तथा 5 साल में दो बार हर परिवार के लिए एक ऐसी पत्रिका निशुल्क प्रदान की जाए जो खानपान, ऋतु चर्या, दिनचर्या, व्यायाम, योग, प्राणायाम, आयुर्वेद, घरेलू उपचार तथा बीमारियों से बचाव हेतु नागरिकों को प्रेरित करती हो। इसके साथ ही नागरिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण कोर्स भी लॉन्च किया जाए जो ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों माध्यम से प्रदान हो जिसमें नागरिक स्वास्थ्य रक्षा संबंधी संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें। अशिक्षित लोगों को कुछ माह ऑफलाइन विशेष प्रशिक्षण की सुविधा मिले तथा सभी को भागीदारी का प्रमाण पत्र आवश्यक हो। इन कार्यक्रमों का बजट केंद्र व राज्य के मिले-जुले खर्च से जुटाया जा सकता है।
22. बाल अधिकार संरक्षण कानून
12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सामने परिवार (संयुक्त या एकल) में गाली गलौज, मारपीट, हिंसा भूतिया, अश्लील, डरावनी, हिंसात्मक संवाद आदि करने वाले दोषी परिजनों पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान हो क्योंकि इससे उसकी परवरिश खराब होती है।
बाल अधिकार व समस्या की सुनवाई समाधान हेतु ऐसा पोर्टल/एप्लीकेशन अथवा टोल फ्री नंबर या ईमेल/व्हाट्सएप आदि संपर्क बने जिसमें त्वरित कार्रवाई हो।
समाधान की समय सीमा निश्चित हो। शिकायत का जवाब ना देने, नंबर ना लगने, समाधान ना होने पर दोषी अधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाही का कानून हो। बालक की उद्दंडता को समाप्त करने हेतु संस्कार शालाओं का विवरण पूर्व में दे दिया गया है। इसके साथ ही सुधार गृह की स्थापना भी हो जिन्हें बाल सुधार गृह कहा जाए। जहां उद्दंडता की अति करने पर कुछ घंटों या दिनों के लिए बालकों को बाहर रखकर मनोवैज्ञानिक तथा सुधार विधियों से सुधारा जाए। सुधार गृह में काउंसलर तथा अनुशासन सिखाने वाले लोग हों। उद्दंडता की सूची तैयार हो जिसके उल्लंघन पर बालक को सुधार गृह भेजा जाए।
एक कानून बने कि विवाह करते ही बेटों को पिता, दादा, परदादा की पैतृक संपत्ति में स्वतः हिस्सेदारी मिल जाएगी अर्थात कागजी कार्यवाही उसके विवाह के समय ही पूर्ण होकर उसे हिस्सेदारी कानूनी तौर पर मिल जाएगी। वह स्वेच्छा से अपना हिस्सा उपयोग कर सकता है। एक से अधिक पुत्र होने पर उसी अनुपात में संपत्ति का विभाजन होगा। जैसे दादा के 6 बीघा खेत में पिता के दो पुत्र तथा पिता अर्थात 3 हिस्से होंगे। सभी को 2-2 बीघा, खेती मिलेगी। पिता को एक यूनिट माना जाएगा किंतु विवाह उपरांत उसकी पत्नी उसके पैतृक संपत्ति में आधी स्वामिनी होगी। लेकिन पत्नी तलाक लेने की स्थिति में उस पैतृक संपत्ति से अपनी हिस्सेदारी खो देगी।
उस संपत्ति का उपयोग, विक्रय करने में पति और पत्नी दोनों की लिखित सामूहिक सहमति अनिवार्य होगी। अन्यथा की स्थिति में कोई एक उस संपत्ति का उपयोग अथवा बेंच नहीं सकेगा। ऐसा कानून बने।
बेटा यदि विवाह ना करने का फैसला ले चुका है तो वह 21 वर्ष में संपत्ति में हिस्सा ले सकता है।
बेटी यदि वह हिस्सा लेती है तो उसे मां बाप की सेवा बेटे के बराबर से करनी होगी। ऐसा कानून हो।
बेटियां भी आजीवन विवाह ना करने अथवा मां-बाप के साथ रहने अथवा विवाह करके पति संग मायके में रहने को आश्वस्त हों तो वे हिस्सा ले सकती हैं। लेकिन उसे इस शर्त को लिखित रूप में पूरा करना होगा और वह कानूनी रूप से मायके में रहने व माता-पिता की सेवा करने के लिए बाध्य होगी।
विचारणीय हो कि बेटी जिस पुरुष के साथ विवाह करेगी वह पुरुष इस कानून के अंतर्गत अपने पिता तथा दादा की संपत्ति का हिस्सेदार होगा और बेटी अर्थात उस पुरुष की पत्नी को उस संपत्ति में आधी हिस्सेदार होगी।
परिवार, माता पिता का दायित्व पुत्र को 21 वर्ष तक तथा बेटी को विवाह तक अथवा विवाह ना करने के फैसले पर 21 वर्ष तक रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा चिकित्सा, सुसंस्कार, सुरक्षा देने का हो। मां-बाप ऐसा करने से मना या आनाकानी नहीं कर सकते। ऐसा कानून हो।
शिशु, किशोर अथवा बालक जो बालिग ना हुआ हो उसके अंग छेदन करना, काटना, संस्कृति के नाम पर उसके शरीर को किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुंचाना कानूनी रूप से प्रतिबंधित हो।
23. बालकों को सभ्य समाज प्राप्ति का अधिकार
सरकारों केंद्र एवं प्रदेश द्वारा बालकों को सभ्य समाज प्राप्त हो यह व्यवस्था सुनिश्चित हो।
समाज में बच्चों के आसपास गली मोहल्लों, ग्राम, नगर आदि में सार्वजनिक स्थानों, सफर करने पर, विद्यालय आदि में गाली गलौज करने वाले, धूम्रपान, मद्यपान, जुआ, अश्लीलता, नग्नता, अंधविश्वास, हिंसा की बात करने वाले, अंग प्रदर्शन करने वाले लोगों, पत्रिकाओं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वेबसाइटों, किताबों, साहित्य सामग्री के जिम्मेदार तत्वों पर कठोरतम दंड व जुर्माने का प्रावधान हो। ऐसा कानून बने। हालांकि इन समस्याओं पर अलग-अलग पूर्णतः बैन का प्रावधान अन्य बिंदुओं में भी वर्णित है।
24. विवाह पूर्व तथा विवाह उपरांत अवैध संबंध वर्जित
खून के रिश्तो में संबंध, एक पिता की संतानों के बच्चों, चचेरे, मौसेरे, फुफेरे आदि भाई बहनों में विवाह संबंध तथा विवाह पूर्व व बिना विवाह अवैध संबंध पूरी तरह से वर्जित व दंडनीय अपराध के दायरे में लाए जाएं।
विवाहित स्त्री पुरुष यदि अपने जीवन साथी को धोखा देते हुए परपुरुष या परस्त्री के साथ संबंध रखते हैं तो उन पर सजा का प्रावधान हो।
25. पीपल सरंक्षण कानून
पीपल प्रकृति का वरदान है। इसे काटना तथा क्षति पहुंचाना दंडनीय अपराध घोषित हो। पीपल के वृक्ष के पोषण तथा संरक्षण की जिम्मेदारी सरकारों तथा संबंधित विभाग की हो। अनिवार्य आवश्यकताओं, मार्ग निर्माण, भवन निर्माण आदि में काटने को लेकर जिलाधिकारी अथवा उप जिलाधिकारी से स्वीकृति आवश्यक हो। इसके अतिरिक्त अन्य पर्यावरण हितैषी वृक्षों के भी संरक्षण पर विचार किया जाए।
26. जन मांग मंत्रालय तथा विभाग की स्थापना
केंद्र तथा राज्य स्तर पर एक जन मांग मंत्रालय तथा विभाग की स्थापना की जाए जिसमें जनता की मांग आमंत्रित की जाए। जो विभिन्न विभागों, मंत्रालयों, जनप्रतिनिधियों से संबंधित हो उन पर विचार किया जाए तथा उनकी प्रतिपूर्ति की जाए। इसमें मांग का उत्तर देना आवश्यक हो तथा मांग के निपटान की समय सीमा निर्धारित की जाए। इस विभाग द्वारा एकत्र किए लोकहित के मुद्दों पर जनहित संग्रह भी करवाया जाए यदि उस मुद्दे को जनता का अच्छा समर्थन मिलता है तो नियम कानूनों, प्रावधानों, सुधारों को विभाग, संसद या मंत्रालयों द्वारा लागू कराया जाए। संसद तथा विधानसभा के मुद्दे उनमें बिल बनाकर प्रस्तुत किए जाएं। जहां कानून बनने के बाद उन्हें लागू किया जाए लेकिन सारी प्रक्रिया की एक समय सीमा निश्चित हो कि इतनी समय सीमा में उन मांगों की पूर्ति कर दी जाएगी।
27. शिकायत निवारण की अधिकतम समय सीमा का निर्धारण
वर्तमान में केंद्र व राज्य द्वारा जन शिकायत निवारण के पोर्टल बनाए गए लेकिन उनमें शिकायती मुद्दे कई बार महीनों लटके रहते हैं। इसके निवारण हेतु एक समय सीमा निश्चित की जाए जिसमें विशेष परिस्थितियों, चुनाव आचार संहिता, बजट के अभाव अथवा संगत शिकायत ना होने को छोड़कर विभाग, मंत्रालय या जनप्रतिनिधि द्वारा समस्या का समाधान ना करने पर सभी उत्तरदाई संस्थाओं अथवा व्यक्तियों पर जुर्माना लगे तथा दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सके।
28. अंतर जातीय विवाह संरक्षण एवं प्रोत्साहन कानून
जो भी नाबालिग युगल विवाह करना चाहें और वे अलग-अलग जातियों के हैं तो उन्हें अक्सर जान का खतरा समाज में देखा जाता है। ऐसे में उनके लिए गुप्त रूप से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने का प्रावधान हो तथा बिना किसी फीस के कोर्ट में विवाह का प्रावधान हो। उनके लिए टोल फ्री नंबर तथा एप्लीकेशन पोर्टल आदि लांच हों जिसमें जान का खतरा होने पर वे उस नंबर या ईमेल आईडी या एप्लीकेशन के द्वारा पुलिस से सहायता प्राप्त कर सकें। कोर्ट मैरिज से पहले मां-बाप की स्वीकृति अनिवार्य होती है। यदि मां-बाप स्वीकृति ना दें तो कारणों का विश्लेषण हो। केवल जीवनसाथी के बुरे चरित्र, आचरण और कामचोर/निठल्ले होने के अतिरिक्त विवाह विरोधी सारे कारण खारिज किए जाने का प्रावधान हो। ऐसे विवाह करने वाले युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहायता अनिवार्य हो। यह सुनिश्चित हो कि ऐसा करने पर उन्हें चल अचल संपत्ति से इसी कारण की वजह से बेदखल नहीं किया जाएगा।
नोट: हालांकि पूर्व बिंदु में यह प्रावधान है कि 21 वर्ष का होते ही युवा पैतृक संपत्ति में स्वतः ही हकदार हो जाएगा। उनसे दुर्व्यवहार करने, बेइज्जत करने, गाली गलौज करने, धमकी देने, मारपीट, हत्या का प्रयास करने वालों पर कठोरतम सजा का प्रावधान किया जाए। उन्हें शारीरिक या मानसिक क्षति पहुंचने की स्थिति में संबंधित थाना/पुलिस चौकी को जिम्मेदार माना जाए। सुरक्षा की दृष्टि से पुनर्वास/दूसरे घर में शिफ्ट करने हेतु उन्हें आवासीय सुविधा, लोन पर अथवा उनकी पैतृक संपत्ति को सरकार द्वारा विक्रय कराने के बाद दी जाए जो उनके हिस्से में आ रही हो। उन्हें नए आवास अथवा भूमि के लिए सब्सिडी भी दी जाए। अखंड भारत के लिए इससे बेहतर अभियान और कानून दूसरा नहीं हो सकता।
29. जातिवाचक नाम अथवा शब्द छिपाने का अधिकार
इंटरव्यू/नौकरी में, घर, नगर या गांव से बाहर किराए पर दुकान या कमरा लेते समय अपना अंतिम नाम शब्द या जाति का जातिवाचक नाम जैसे: गुप्ता, मौर्य, सागर आदि छुपाने का अधिकार व्यक्ति को दिया जाए जिससे उसके साथ पक्षपात या भेदभाव ना हो सके। सरकारी और अर्द्ध सरकारी या प्राइवेट संस्थाओं में कार्मिक चयन के समय इंटरव्यू पैनल को जाति सूचक शब्द हटाकर केवल मूल नाम जैसे रोहित, दीपक आदि की लिस्ट दी जाए जिससे कोई इंटरव्यू में जातिगत भेदभाव ना कर सके।
30. नो कास्ट सर्टिफिकेट
इस स्कीम द्वारा एक ऐसा प्रावधान किया जाए जिसमें यदि कोई नागरिक चाहे तो नो कास्ट सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई कर सके। ऐसे नागरिक को बिना जाति का मानते हुए प्रमाण पत्र प्रदान किया जाए। इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन कार्यक्रम भी चलाया जाए।
31. जनप्रतिनिधियों की पेंशन समाप्ति का कानून
इस कानून के अंतर्गत केंद्र व राज्यों में पंचायत, पालिका, संसद, विधानमंडल आदि के समस्त जन प्रतिनिधियों की पेंशन बंद की जाए। जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बेतहाशा बोझ बढ़ता है। जो जनप्रतिनिधि 60 साल के हो चुके हैं उन्हें वृद्धावस्था पेंशन प्रदान की जाए। जो जनप्रतिनिधि 60 वर्ष से कम आयु के हैं वे लिखित रूप में घोषणा पत्र दें कि वे आगे चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्हें पार्ट टाइम या संविदा पर नौकरी दी जाए जिसमें 4 से 6 घंटे का काम लेकर उन्हें अधिकतम ₹8000 सैलरी प्रदान की जाए जो उनके भरण पोषण हेतु हो। इसके अतिरिक्त उन्हें प्राइवेट संस्थाओं में नौकरी का द्वार खुला ही रहेगा। उन्हें काम लेकर सोशल सिक्योरिटी के लिए काम की गारंटी भी प्रदान की जाए। जैसे: नरेगा जैसी योजनाओं में उन्हें रोजगार की व्यवस्था की जाए। ऐसा प्रावधान शामिल हो।
32. प्राइवेट कंपनियों संस्थाओं में लेबर कानून में संशोधन
व्यक्ति का शरीर खराब वातावरण, मिलावट युक्त भोजन, दूषित हवा तथा जल के सेवन से कमजोर हो रहा है तथा मानव की औसत आयु भी घट रही है। ऐसे में एक कर्मचारी या मजदूर से 12 घंटे का कार्य दिवस लेकर एक ड्यूटी दर्ज करना किसी शोषण से कम नहीं। ऐसे में एक ड्यूटी का कार्य दिवस 8 घंटे का किया जाए।
पार्ट टाइम, ओवरटाइम हेतु प्रति घंटे के हिसाब से अलग कार्य किया जा सकता है। ऐसा प्रावधान हो कि एक कर्मचारी को हफ्ते में एक फुल डे तथा एक हाफ डे की छुट्टी अनिवार्य हो।
यदि कर्मचारी चाहे तो छुट्टी काल में स्वैच्छिक कार्य कर सकता हो।
ऐसा प्रावधान हो कि कंपनी/संस्था में ज्वाइनिंग लेते समय सभी कर्मचारी मजदूरों को ज्वाइनिंग लेटर अनिवार्य हो। जो कर्मचारी/मजदूर की मांगी गई भाषा में हो जिस पर कार्य की सभी जायज शर्तें, नियम, वेतन आदि संवैधानिक रूप से दर्ज हों। ज्वाइनिंग लेटर का बाद में उल्लंघन करने पर, जॉइनिंग लेटर से अलग या विपरीत कार्य लेने पर संस्था पर दंडात्मक कार्यवाही हो।
किसी भी कर्मचारी को सेवा से निकालने से 1 माह पूर्व उसे लिखित सूचित करना आवश्यक हो तथा सेवा से हटाते समय लिखित हटाने का कारण देना होगा तथा उसके जाते समय संस्था पर कर्मचारी का कोई भी रुपया,धन, मजदूरी शेष नहीं हो। ऐसा नियम बने।
नोट: नियम 25 प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं व शिक्षकों पर भी लागू हो। कुछ प्राइवेट संस्थाओं जैसे बीपीओ, कॉल सेंटर, मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में कार्य स्पीड गति में कराया जाता है। जहां उनका शोषण होता है। कर्मचारी मजदूर की ज्वाइनिंग के समय ही ज्वाइनिंग लेटर पर उसके कार्य की गति कितने मिनट कितने घंटे में कितना प्रोडक्शन या सेवा देनी है, दर्ज हो। प्राइवेट सेक्टर में पद के हिसाब से सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन निर्धारित हो जो कंपनी, संस्था उस वेतन व्यवस्था का पालन ना करे उस पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान हो अथवा सभी प्राइवेट सेक्टर में सैलरी बांटने का कार्य गवर्नमेंट अपने अंडरटेक में ले ले। मालिक का कार्य काम कराने का तथा क्वालिटी चेक का होगा लेकिन सैलरी देने का कार्य सरकार का हो, ऐसा प्रावधान भी किया जा सकता है। संस्था में किसी भी कर्मचारी मजदूर से गाली गलौज, मारपीट अभद्रता आदि करने वाले सुपरवाइजर, उच्च अधिकारी, मालिक पर कठोर से कठोर तथा पहले से दोहरी दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।
33. सरकारी नौकरी के वेतन विभाजन का प्रावधान
समस्त सरकारी केंद्रीय अथवा प्रादेशिक अधिकारियों व कर्मचारियों के कुल वेतन का 10% उसकी माता, 10% उसके पिता, 10% उसकी पत्नी तथा 10% उसके बच्चों तथा 10% उसके भाई बहनों के बैंक खाते में सीधे भेजने का प्रावधान हो। वर्तमान समय में सरकारी कर्मी धन के मद में चूर होकर अपने परिवार के दायित्वों से मुंह मोड़ लेते हैं तथा खर्च में कंजूसी करते हैं अथवा परिवार के अन्य सदस्यों को पीटने/उपहास का पात्र बनाकर उनका शोषण करते हैं। ऐसे में उनकी संतान अथवा पत्नी या परिजन ना तो किसी छात्रवृत्ति अथवा ना किसी सरकारी योजना का लाभ ले सकते हैं और ना ही पिता की ओर से अथवा पति की ओर से कोई आर्थिक मदद।
50% वेतन पाने वाले कर्मचारी को वेतन विभाजन के बाद भी अपने परिजनों के प्रति दायित्व निभाने पड़ेंगे और उनके आवश्यक खर्चों का वहन करना पड़ेगा ऐसा प्रावधान हो।
10% वेतन अंश विभाजन पाने वाले बच्चे जब तक 18 वर्ष के नहीं हो जाते तब तक उनका 10% भाग उनकी मां या मां ना होने पर 21 वर्ष से ऊपर के भाई-बहन अथवा किसी अन्य संरक्षक परिजन या गैर परिजन को दिया जाए। बशर्ते उन्हें समय-समय पर उस धन को बच्चों के भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा जैसी आवश्यक मदों पर खर्च करना होगा तथा सरकार को वार्षिक हिसाब देना होगा संरक्षक यातायात एवं बच्चों के साथ हुआ आवश्यक अपना व्यक्तिगत खर्च ले सकते हैं किंतु एक निश्चित सीमा 1 या 2% से अधिक नहीं।
18 वर्ष से कम आयु के भाई बहनों का खर्च उनके माता-पिता अथवा कर्मचारी के माता-पिता के खाते में जाएगा। उनके ना होने की दशा में किसी संरक्षक को दिया जाएगा। संरक्षक की जिम्मेदारी पूर्व बिंदु प्रकार होगी।
18 वर्ष से अधिक के भाई-बहन या बच्चों को वेतन अंश सीधा उनके बैंक खाते में दिया जाए और वह अविवाहित रहने तक उस धन का उपयोग कर सकेंगे। यहां विचारणीय है कि जब तक विवाह नहीं हो जाता तब तक सरकारी कर्मी की संतान को छात्रवृत्ति, आर्थिक आरक्षण, सस्ते राशन व सरकारी सुविधाओं व छूटों से वंचित किया जाता है किंतु सरकारी कर्मी अपने वेतन का लाभ संतान या परिजनों को दे भी रहा है या नहीं यह कैसे सुनिश्चित किया जाए? इसे सुनिश्चित करने का प्रयास ही यह प्रावधान है।
मां पिता को वेतन अंश उनकी मृत्यु तक देना होगा। इससे संबंधित अन्य सुझाव लेकर इस प्रावधान को कानून बनाकर पारित किया जाए। इसकी समाज में अत्यंत आवश्यकता है। यह कानून उस सरकारी कर्मचारी व अधिकारी की सेवा पर लागू हो जो समूह क तथा ख तथा सेना व पुलिस अथवा विभिन्न रक्षा बलों के रूप में नियुक्त होंगे।
15,000 रुपए प्रतिमाह वेतन पाने वाले परमानेंट कर्मचारियों को परिवार की जिम्मेदारी उठाना आवश्यक होगा तथा जिम्मेदारी ना उठाने पर उन पर दंडात्मक कार्यवाही होगी किंतु वे वेतन वितरण के नियम से बाहर होंगे।
34. नशा एवं धूम्रपान मुक्ति कानून
भारत से हर प्रकार के नशे, धूम्रपान, मद्यपान, निकोटिन, अल्कोहल के नशे वाले सभी पदार्थ, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू, हर प्रकार की शराब, ड्रग्स, चरस, गांजा, अफीम, सुल्फा, हुलास आदि जितने भी सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले सभी नशीले पदार्थ पूर्ण रुप से बंद किए जाएं। यह भारत की धरती पर होने वाला सबसे बड़ा पाप है। इन्हें बेचने, बनाने तथा ले जाने/ट्रांसपोर्ट करने वाले लोगों पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए।
सेना के जो सैनिक ठंडे स्थानों पर कार्य करते हैं उनके लिए एक तर्क दिया जाता है कि उनके शरीर को गर्म रखने के लिए उन्हें शराब दी जाती है। इसके लिए हम शरीर में उष्णता या गर्मी पैदा करने, ठंड से सुरक्षा देने वाले टॉनिक या दबा का इंजमाम भी कर सकते हैं। इस पर विचार किया जाए किंतु सेना को भी अल्कोहल के सेवन से दूर रखा जाए।
35. जल संरक्षण कानून
पानी के भयानक दुरुपयोग तथा भावी जल संकट से बचने के लिए सभी परिवारों के लिए पानी के उपयोग की मात्रा निश्चित हो।
जल के दुरुपयोग करते पाए जाने पर दंड / जुर्माना तय हो।
जल दुरुपयोग की व्याख्या पेश की जाए।
जल कनेक्शन, कमर्शियल व घरेलू अलग-अलग दिया जाए तथा घरेलू जल कनेक्शन से कमर्शियल काम करने वालों पर भी कठोर कार्यवाही हो।
मोटर, समर, नलों, हैंडपंपों में जल मीटर लगाए जाएं जिनके द्वारा एक परिवार में कितना पानी उपयोग हुआ है का पता चल सके।
घरों में किराए पर रहने वालों के लिए जल के उपयोग की अलग सीमा तय हो। इस संबंध में अन्य बुद्धिजीवी तथा सामान्य नागरिकों के अन्य उपयोगी प्रस्तावों को लेकर एक सुंदर और व्यापक जल संरक्षण कानून बनाया जाए।
36. जनसंख्या नियंत्रण कानून
बढ़ती जनसंख्या से देश के प्राकृतिक संसाधनों के भयानक दोहन को रोकने के लिए तथा राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान हेतु यह कानून आवश्यक है इसके अंतर्गत एक दंपत्ति को अधिकतम दो जीवित संतानों के जनन का अधिकार होगा (जुड़वा संतानों से अलग)
जुड़वा संतानों की स्थिति में यह संख्या बढ़ सकती है। यदि कोई भी युगल इस कानून की अवहेलना करता है तो उस पर कठोर दंड जुर्माने तथा युगल को सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का प्रावधान हो यदि संभव हो तो उसे उसके मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया जाए। व्यापक प्रस्तावों/सुझावों को इसमें जोड़ कर इस कानून को शीघ्र अति शीघ्र पारित कराया जाए।
37. संतान भरण पोषण कानून
प्रत्येक परिवार में उत्पन्न बच्चों का सर्वे कराया जाए कि उनके अभिभावकों की आय क्या है? क्या वह संतान को भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार दिलाने हेतु उपयुक्त आय रखते हैं। इसके लिए एक संतान को दिए जाने वाले भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार के मापदंड तैयार किए जाएं यदि मां बाप भरण-पोषण के उन मापदंडों पर खरे नहीं उतरते तो सरकार को उनके बालकों को चिन्हित कर खर्च वहन करना हो किंतु सिर्फ दो ही संतानों तक। इसमें उन्हें पोषण संबंधी प्रोटीन, बसा, कार्बोहाइड्रेट आदि की मात्रा तथा सर्दी गर्मी के लिए वस्त्र, दवा तथा उपचार की व्यवस्था शामिल हो। जिससे वे कुपोषण से ग्रस्त ना हों।
38. सभी प्राइवेट सेवाओं तथा उत्पादों के अधिकतम विक्रय मूल्य का प्रावधान
प्राइवेट सेक्टर कंपनी उत्पादों, दबा, टूल्स, मशीनरी आदि तथा सेवाओं के अधिकतम मूल्य निर्धारण हर 3 महीने में किया जाना अनिवार्य हो।
महंगाई, खरीदार की क्षमता, उद्यमी के लाभ, होलसेल, रिटेलर, क्वालिटी के मानकों को ध्यान में रखते हुए यह मूल्य निर्धारण हो।
किसानों की फसल पर एमएसपी से नीचे खरीद ना करने तथा उसे खरीदने के बाद बाजार में अधिकतम मूल्य से ऊपर ना बेचने का प्रावधान हो।
मेडिकल सेक्टर में दबा व जांच में डॉक्टर की फीस उसकी डिग्री के हिसाब से सरकार द्वारा तय की जाए। उससे ज्यादा फीस लेने वालों पर कठोर जुर्माने व दंड का प्रावधान हो। सभी मेडिकल, जांच सेंटरों को गुणवत्ता की जांच के बाद सरकार द्वारा लिस्टेड तथा वेरीफाइड किया जाए जिनकी जांच पूरे भारत में वैद्य हो।
इसके अतिरिक्त सरकारी, जिला सरकारी आदि अस्पतालों से प्राप्त जांचों को पूरे भारत में वैद्य(वैलिड) माना जाए।
जो डॉक्टर इन वेरीफाइड सेंटर्स की तथा सरकारी जांच को ना मानकर अपने लोकल सेंटर पर दोबारा जांच कराएं उन पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान हो। तथा उसकी प्रैक्टिस की वैधता समाप्त कर दी जाए।
दवाओं पर पैसे प्रिंट करने पर दंडात्मक कार्यवाही हो यदि कोई दवा 12.53 रुपए की है तो फिर या तो वह 12 रुपए की हो या फिर 13 रुपए मूल्य की प्रिंट होना चाहिए। पैसा अब चलन में नहीं है। यह सिर्फ कमाई का जरिया है। अधिकतम मूल्य सीमा से ऊपर जो भी ग्राहक से मूल्य की मांग करे। उस पर दंडात्मक कार्यवाही हो।
हमें अब फिक्स मैक्सिमम सेलिंग प्राइस की ओर जाना होगा।
39. मीडिया, सोशल मीडिया पर प्रमाणिक जानकारी का कानून
प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा खबर,चित्र,वीडियो आदि सुनाते, दिखाते हुए अथवा छापते हुए यह सुनिश्चित हो कि खबर, वीडियो, चित्र सौ प्रतिशत सच्ची तथा वास्तविक हो।
झूठी खबरें, चित्र, वीडियो दिखाने वाले चैनल, अखबार, पत्रिका आदि पर दंडात्मक कार्यवाही अथवा जुर्माना किया जाए।
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़, वीडियो, चित्र प्रसारित करने वाले लोगों, जहां से पहली बार यह प्रकाशित हुए उन पर दंडात्मक कार्यवाही हो तथा उनके चैनल डीएक्टीवेशन, जांच, चेतावनी, जुर्माना या उन पर सजा तय की जाए।
यदि जांच में पाया जाए कि सामग्री किसी और के द्वारा निर्मित है तथा प्रचारक ने भूलवश अज्ञानता से, गलत जानकारी प्रसारित की तो चेतावनी देकर उस सामग्री को डिलीट करके प्रसारक को छोड़ दिया जाए।
इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया, खबर के प्रसारण में यह बताना कि यह खबर सूत्रों से पता चली गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी मानी जाएगी। उन्हें उन सूत्रों का नाम, पता बताना चाहिए ऐसा सुनिश्चित हो।
40. प्लास्टिक उत्पादों पर नीति
प्लास्टिक के उत्पाद जो प्रकृति के लिए नुकसानदेह हैं उन्हें पूरी तरह से बैन किया जाए। किंतु बंद करने से पहले उनका इको फ्रेंडली विकल्प ढूंढा जाए।
41. देह व्यापार में फंसी लड़कियों महिलाओं के समाज में पुनर्स्थापना का कानून
रेड लाइट एरिया तथा व्यापार में गुप्त रूप से फंसी लड़कियों, स्त्रियों को समाज में पुनः स्थापन का कार्यक्रम चलाया जाए जिसमें उन्हें सरेंडर करने पर बिना किसी सजा के समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास हो।
उन्हें समर्पण के लिए टोल फ्री नंबर, पोर्टल तथा एप्लीकेशन की सुविधा हो जिसमें उनकी जानकारी को पूरी तरह गुप्त रखा जाए यदि उनकी जानकारी लीक होती है तो संबंधित विभाग पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो। उन्हें समर्पण के बाद पुनर्वास हेतु आर्थिक सहायता तथा जीवन यापन हेतु नौकरी जिसमें जीविका योग्य वेतन दिया जाए दी जाए।
उनमें ऐसी लड़कियां, स्त्रियां जिनका कोई ना हो सरकार द्वारा उनके अतीत को गुप्त रखते हुए सामूहिक विवाह कार्यक्रम में उनके विवाह की व्यवस्था हो किंतु उनके भावी जीवनसाथी को उनके अतीत की जानकारी देना आवश्यक हो। उनके समर्पण के पश्चात यदि उनमें कोई भी युवती असाध्य गुप्त रोगों से पीड़ित हो तो उसे इलाज या विशेष आर्थिक पैकेज के साथ पुनर्वास व नौकरी की व्यवस्था हो। समर्पण के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी द्वारा उन्हें ब्लैकमेल या शोषण के लिए उकसाने अभद्रता करने पर उन शोषण कर्ताओं के खिलाफ कठोरतम दंडात्मक कार्रवाई हो। ऐसा सख्त कानून बने कि वेश्यावृत्ति करने वाले, करवाने वाले तथा वेश्याओं के साथ गमन करने वाले सभी लोगों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई हो। यदि कोई युवती/लड़की धनाभाव में देह व्यापार में उतरने को विवश है तो उससे पूर्व ही उसे टोल फ्री नंबर, पोर्टल, एप्लीकेशन पर अपनी समस्या सरकार के सामने रखने का प्रावधान हो जिसमें उसकी आजीविका व रहन सहन संबंधी आदि आर्थिक समस्याओं का समाधान करना सरकार का कर्तव्य सुनिश्चित हो।
यदि किसी युवती/स्त्री को किसी षड्यंत्र के द्वारा फंसा कर देह व्यापार में आने के लिए बाध्य किया जा रहा है। ऐसी कंप्लेंट भी टोल फ्री नंबर, पोर्टल, एप्लीकेशन के द्वारा तत्काल दर्ज की जाए तथा उनके निस्तारण की अधिकतम सीमा तय की जाए तथा पर्याप्त निस्तारण ना होने पर निस्तारण कर्ताओं पर दंडात्मक कार्यवाही हो।
देह व्यापार को संरक्षण देने वाले, जानकारी में होते हुए भी कार्यवाही ना करने वाले और देह व्यापार केंद्रों से महीने दर महीने धन लेकर छूट देने वाले पुलिसकर्मियों, अधिकारियों, कर्मचारियों को पूर्ण रूप से सेवा से हटाकर उम्र कैद का प्रावधान हो। आम नागरिकों के लिए भी एक टोल फ्री नंबर दिया जाए जिनके घरों, होटलों के पास के गली मोहल्ले में यदि देह व्यापार हो तो वे उस पर कंप्लेंट कर सकें। सभी देह व्यापार में लगी स्त्रियों, औरतों को सरकार द्वारा विज्ञापन, अखबारों, मीडिया चैनल, मोबाइल, सोशल मीडिया आदि के द्वारा प्रशासन के माध्यम से समर्पण का अवसर तथा समय अवधि दी जाए। उस अवधि में समर्पण करने वाली स्त्रियों को सजा मुक्त माना जाए। उसके बाद सर्च ऑपरेशन चलाया जाए और दंडात्मक कार्यवाही हो।
42. एक कार्ड तथा विभिन्न प्रमाण पत्र योजना
इसके अंतर्गत केंद्र सरकार की ओर से जारी होने वाले सभी केंद्रीय प्रमाण पत्र एक ही कार्ड में डिटेल रूप में दर्ज हों जिसमें आवश्यकतानुसार ऑनलाइन संशोधन की सुविधा हो। राज्य स्तरीय सभी प्रमाणपत्रों को एक कार्ड पर दर्ज किया जाए जिसमें आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र शामिल हो। अंतराष्ट्रीय सेवा जैसे वीजा पासपोर्ट बनवाने की अलग व्यवस्था जारी हो।
मूल निवास प्रमाण पत्र को हर 3 साल में पुनः बनवाने की आवश्यकता खत्म की जाए। जब व्यक्ति निवास बदले उसे तभी स्वेच्छानुसार इसे बदलबाना अनिवार्य हो।
जाति प्रमाण पत्र पुरुषों का जीवन में एक ही बार बनवाना काफी हो यदि कोई स्त्री दूसरी जाति में विवाह करती है तभी उसको जाति बदलवाने हेतु आवेदन करवाया जाए अन्यथा इसे भी 3 साल में बनवाना आवश्यक ना हो।
आय प्रमाण पत्र प्रति 3 वर्ष में बनवाया जाए किंतु जो बेरोजगार हैं उनका आय प्रमाण पत्र शून्य आय से दर्शाया जाए किंतु यह देखने को नहीं मिलता जो दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि कोई आवेदक नो कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है तो उसे जाति प्रमाण पत्र बनवाने से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाए।
43. अपराधियों के समर्पण का विशेष कानून
इस कानून के तहत जो भी अपराधी, आतंकवादी आत्मसमर्पण करना चाहे उनके लिए एक सरकारी टोल फ्री नंबर, पोर्टल तथा एप्लीकेशन बनाई जाए जो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तथा राज्य के मुख्य न्यायाधीश को सीधे समर्पण का प्रस्ताव भेजते हों।
उस प्रस्ताव की एक रिपोर्ट की कॉपी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, राज्य के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय में सीधे व तुरंत पहुंचे।
उसके बाद न्यायालय के द्वारा एक विशेष न्यायिक अधिकारी भेजकर उन अपराधियों को आत्मसमर्पण का स्थान तय करके सूचना दी जाए।
जहां न्यायिक अधिकारी की मौजूदगी में पुलिस प्रशासन के सामने उनका आत्मसमर्पण हो।
यह सुनिश्चित हो कि आत्मसमर्पण के समय उनके साथ किसी पुलिस अधिकारी/कर्मचारी द्वारा छल अथवा उनका फर्जी एनकाउंटर ना हो जिससे अन्य अपराधियों में आत्मसमर्पण के प्रति संदेह उत्पन्न ना हो।
आत्मसमर्पण के समय अपराधी के साथ किसी भी प्रशासनिक / पुलिस अधिकारी द्वारा छल,दुर्व्यवहार, शारीरिक, मानसिक यातना दी जाने पर संबंधित अधिकारी या कर्मचारी का सेवा से पूर्ण निष्कासन तथा सजा का प्रावधान हो। आत्मसमर्पण के बाद पुलिस कस्टडी में उनके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार या यातना ना दी जाए। सामान्य पूछताछ की अनुमति हो। कोर्ट के द्वारा जो भी सजा सुनाई जाए उन्हें दी जाए। सजा समाप्ति के बाद उनके समाज में पुनर्वास की योजना चलाई जाए।
44.किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य संशोधन कानून
किसानों की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर कानून बने कि एमएसपी से नीचे की किसी के द्वारा सरकारी या निजी खरीद नहीं होगी। एमएसपी से ऊपर कीमत पर किसान फसल बेचने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होगा। प्रति सीजन महंगाई, फसल की लागत, मौसम की मार, प्राकृतिक हानि तथा किसानों की आर्थिक बेहतरी को ध्यान में रखते हुए एमएसपी को परिवर्तित अथवा बढ़ाया जाए। ऐसा प्रावधान हो।
45. एक परिवार के लिए अधिकतम मकान अथवा आवासों की सीमा
कृषि क्षेत्रों के घटते क्षेत्रफल तथा व्यक्ति की भोग एवं संग्रह बाद की आकांक्षा को नियंत्रित करने के लिए यह कानून आवश्यक है। इसमें एक परिवार, पति पत्नी एवं अविवाहित बच्चों के नाम कुल 2 आवासीय प्लॉट तथा एक फॉर्म हाउस कुल 3 से अधिक आवासीय घर नहीं होंगे।
जो इस कानून का उल्लंघन करे उस पर तथा चौथे घर की रजिस्ट्री करने वाले अधिकारी पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान हो।
जो पहले तीन से अधिक घर रखते हैं उन्हें इस कानून से मुक्त रखा जाएगा। पहले के संयुक्त परिवार के पैतृक मकानों में संयुक्त हिस्सेदारी के घरों को भी इस कानून से मुक्त रखा जाएगा।
किंतु नए संयुक्त प्रॉपर्टी की खरीद पर यह कानून लागू हो और एक संयुक्त प्रॉपर्टी को भी एक आवास माना जाए।
जबकि पैतृक हिस्सेदारी वाले मकान हमेशा इस कानून से मुक्त रहेंगे।
46.संतान द्वारा मां बाप की सेवा का कानून
इस कानून के अंतर्गत 7 साल से ऊपर के माता-पिता, अस्वस्थ्य, विकलांग, शारीरिक रूप से अक्षम की शारीरिक सेवा करना संतान की जिम्मेदारी होगा। इसके साथ आत्मनिर्भर होने, रोजगार युक्त होने पर संतान, मां-बाप की आर्थिक पोषण, रहन-सहन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी कानूनी रूप से बाध्य होगा किंतु यदि संतान आर्थिक रूप से अक्षम, बेरोजगार है उस स्थिति में वह उनकी आर्थिक जिम्मेदारी से मुक्त होगा। संतान के बेरोजगार होने की दशा में वृद्धों की पोषण, रहन-सहन, वस्त्र आदि जरूरतें सरकार (केंद्र व राज्य) पूरा करेंगे।
ऐसा कानून बने कि बेटी यदि मां बाप की संपत्ति में हिस्सेदारी लेती है तो उसे बेटे के समान ही मां-बाप की सेवा के कानून में बाध्य होना पड़ेगा किंतु संपत्ति में हिस्सा न लेने की दशा में वह सेवा के लिए नैतिक रूप से उत्तरदाई तो हो सकती है किंतु कानूनी रूप से नहीं।
47. ओबीसी एस सी, एस टी आरक्षण में गरीबों की सब कैटेगरी के आंतरिक आरक्षण का प्रावधान
ओबीसी, एससी, एसटी में दो कैटेगरी एक गरीब ओबीसी, एससी एसटी तथा संपन्न ओबीसी, एससी एसटी बने।
गरीब ओबीसी एससी एसटी को अपनी अपनी कैटेगरी में आंतरिक आरक्षण भी प्राप्त हो। जैसे ओबीसी के 27% में गरीबों की 13% सीटें रिजर्व अथवा एससी के 15% आरक्षण में 7% सीटें रिजर्व हों। गरीब वर्गों में लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरे। आर्थिक सुधार, सामाजिक स्थिति में सुधार हेतु बहुत आवश्यक है। अतः यह नीति केंद्र सरकार, राज्य सरकार द्वारा अलग-अलग दोनों की सहमति से भी बनाई जा सकती है
48. स्वर्गीय राजीव दीक्षित को मरणोपरांत भारत रत्न व उनके नाम से राष्ट्रीय रिसर्च सेंटर की स्थापना
आदरणीय राजीव दीक्षित जी को उनके स्वदेशी अभियान, समाज सेवा, संस्कृति तथा आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए मरणोपरांत भारत रत्न प्रदान किया जाए। राजीव दीक्षित जी पर केंद्रीय रिसर्च सेंटर की स्थापना हो तथा उनके प्रामाणिक विचारों को लेकर सरकारी किताबें तथा पत्रिकाएं प्रकाशित की जाएं।
49. सभी विभागों में भर्ती से पूर्व नैतिकता के प्रशिक्षण का कानून
कानून बने कि सभी केंद्रीय एवं राज्य की सरकारी, अर्द्ध सरकारी सेवाओं में भर्ती के बाद अभ्यर्थियों को कम से कम तीन माह नैतिकता का कोर्स करवाया जाए जिसमें उन्हें सेवा, जनता से बातचीत की तमीज, जनता हेतु सेवक भाव, त्याग, समर्पण, सभ्यता, शिष्टता, सदाचार, कर्तव्य परायणता की सीख दी जाए। विशेषकर पुलिस विभाग को यह कोर्स 6 माह का कराया जाए जिसमें उन्हें यह भी सिखाया जाए कि भले/इज्जतदार लोगों से कैसे बर्ताव करना है और अपराधियों से कैसे?
50. कृषि सेंटरों की स्थापना की नीति
कृषि सेंटर, कृषि उत्पादन केंद्र तथा कृषि उत्पाद विक्रय सेंटर की साझा अवधारणा इस कानून के अंतर्गत ली जाए। इसमें प्रत्येक ग्राम पंचायत, नगर पंचायत तथा नगर पालिका, नगर निगम जिनमें कृषि उत्पादन हो में कम से कम 1 कृषि सेंटर स्थापित किया जाए जहां किसान अपने खेत से खाद्य पदार्थ, सब्जियां, मसाले, हल्दी, धनिया, मिर्च, गृह उत्पाद, दूध, सलाद की सामग्री, शहद, गन्ना, साग, दालें, तिल, विभिन्न तेल, औषधियां देने वाले पेड़, सत्तू, दलिया, मुरब्बा, अचार आदि के लिए सीमित मात्रा में अनाज, फल तथा सब्जियां आदि कच्चे माल की गुणवत्ता जांच के बाद खरीद हो।
प्रत्येक विधानसभा में कम से कम एक सरकारी कृषि उत्पादन केंद्र स्थापित हो जो कृषि सेंटर से खरीदे गए कच्चे माल को विभिन्न खाद्य सामग्री जैसे दही, मक्खन, पनीर, दलिया, सत्तू, अचार, मुरब्बा आदि बनाकर सरकारी लाइसेंस द्वारा बाजार में लांच किया जाए। यहां भंडारण की उचित व्यवस्था भी हो।
इनकी बिक्री के लिए सरकार द्वारा कृषि उत्पाद विक्रय केंद्र खोले जाएं। जो सरकारी बिल्डिंगों, सरकारी जगहों पर स्थाई या अस्थाई आवासों में बना दिए जाएं। इन उत्पादों में 100% शुद्धता तथा मिलावट हीनता की गारंटी हो तथा मार्केट में वैसे उत्पादों से कम कीमत पर बेचने का प्रयास हो। इनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण लोगों को लाभ पहुंचाना। साथ ही जनसामान्य तक सस्ती व मिलावटी सामग्री पहुंचाना हो। सेंटर खरीद से पहले मांग डिमांड को ज्ञात किया जाए उसी अनुपात में खरीद हो। इसके लिए एक एप्लीकेशन तथा पोर्टल भी लॉन्च किया जाए। जहां से फुटकर घरेलू उपभोक्ताओं के आर्डर पर उनका प्रोडक्ट घर भेजने की सुविधा हो। जैसे आजकल विभिन्न एप्लीकेशन, अमेज़न तथा फ्लिपकार्ड आदि द्वारा किया जा रहा है।
फलों, अनाज व सब्जियों को सीधे मंडियों तथा घर-घर पहुंचाने के लिए सरकारी गाड़ी को चलाया जाए। सरकार योजना में सब्सिडी की व्यवस्था भी कर सकती है जिससे उपभोक्ता या ग्राहक तक सामग्री कम दाम में पहुंचे तथा किसान/उत्पादक को ऑनलाइन बिक्री में डिस्काउंट, डिलीवरी चार्ज, मात्रा के हिसाब से मूल्य के कमी/बढ़ोतरी पर एक योजना बनाकर काम किया जाए। छोटे बड़े शहरों में ऐसे कृषि प्रोडक्ट बेचने के लिए शॉपिंग मॉल तथा शॉपिंग सेंटर भी खोले जा सकते हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारें इसमें अपना बजट दें।
मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री,जनप्रतिनिधियों तथा सेलिब्रिटीज के द्वारा किसानों को समर्पित योजना, एप्लीकेशन पोर्टल आदि का प्रचार-प्रसार कराया जाए।
सभी ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम के अध्यक्षों, विधायकों, सांसदों, एसडीएम, जिला कलेक्टर, कृषि अधिकारी को इसके प्रचार-प्रसार तथा संवर्धन का जिम्मा दिया जाए। इस योजना में ऑर्गेनिक फसल उगा रहे तथा उगाना चाह रहे किसानों को भी ऑर्गेनिक कृषि उत्पादन प्रशिक्षण, समय-समय पर खेत का निरीक्षण, फसल के संपूर्ण उत्पादन, कटाई तथा कलेक्शन तक पूरी योजना सरकार द्वारा बनाकर लागू की जाए।
ऑर्गेनिक कच्चे माल की खरीद तथा उससे उत्पन्न सामग्री की बिक्री की भी रूपरेखा बनाई जाए। आज ऑर्गेनिक सब्जियों, फलों, अनाजों आदि की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। इस योजना का हर वर्ष ऑडिट तथा समय-समय पर मूल्यांकन हो तथा योजना में अप्रत्यक्ष रूप से फायदा उठाने भ्रष्टाचार, मिलावट करने तथा मिलावट करने में मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति को कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान हो।
51. राष्ट्रीय तथा राजकीय प्रकाशन केंद्रों की अवधारणा
राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर सरकार के द्वारा प्रकाशन केंद्र शुरू करके देशभक्तों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, महापुरुषों, लोकनायकों, कलाकारों के जीवन व कृतित्व, कार्यों, सपनों, गौरवगाथा, लक्ष्यों आदि को उजागर करने हेतु ऑथेंटिक प्रमाणिक साहित्य का प्रकाशन हो।
स्मरण रहे कि इसमें ऐसे महापुरुषों को भी लिया जाए जिन्हें इतिहास में भुला दिया गया या जो स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान होकर भी प्रकाश में ना आ सके। इसमें अधिकांश जननायक, राष्ट्र नायकों के जीवन की विशाल श्रंखला तैयार की जाए। यह कार्य हिंदी साहित्य संस्थानों को भी सौंपा जा सकता है। इस राष्ट्रभक्ति के साहित्य की बिक्री के लिए भी एप्लीकेशन पोर्टल तैयार किया जाए। इसमें ऑनलाइन पुस्तकों, पत्रिकाओं की आर्डर तथा उन्हें ग्राहक तक पहुंचाने की व्यवस्था हो। इसे एक योजना का रूप देकर देश के बड़े नेताओं तथा सेलिब्रिटीज से प्रमोट कराया जाए।
52. सभी सरकारी व गैर सरकारी आवेदन, व्यापार, सुझाव, फॉर्म आदि ग्राहक की भाषा में
एक कानून बने कि हर विभाग या प्राइवेट संस्था को प्रार्थना, सुझाव, प्रस्ताव, व्यापार योजना आदि के फार्म ग्राहक की क्षेत्रीय भाषा अथवा उसके द्वारा समझी जाने वाली भाषा में देना आवश्यक हो। कई जगह अनपढ़ लोगों को अंग्रेजी का फार्म थमा दिया जाता है। इसके साथ ही बाइक या कार खरीदते समय ग्राहक से जिन पेपर पर साइन लिए जाते हैं। अधिकतर उनमें अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग होता है यहां तक कि कंपनी के गारंटी कार्ड भी अंग्रेजी में ग्राहक समझ नहीं पाता। ऐसी घटनाओं पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगे तथा ग्राहक/प्रार्थनाकर्ता को उसके क्षेत्रीय अथवा समझे जाने वाली भाषा में आवेदन पत्र, शिकायत पत्र, प्रार्थना पत्र मांगने पर विभाग द्वारा अथवा संस्था द्वारा देना आवश्यक हो। ग्राहकों के बड़े उत्पाद, सेवा, योजना को खरीदने से पहले 48 घंटे का न्यूनतम समय दिया जाए जो उसे उस उत्पाद, सेवा, योजना को समझने हेतु मिले। सभी सरकारी योजनाओं के विवरण पत्र को ग्राहक की मनचाही भाषा में देना जरूरी हो अन्यथा की स्थिति में विभाग तथा संबंधित अधिकारी पर दंडात्मक कार्यवाही का कानून हो। सभी वारंटी कार्ड या उत्पाद के विक्रय पत्र भी ग्राहक की मांगी हुई भाषा में देना अनिवार्य हो।
53. बीमा, ऋण, एफ डी, लोंग टर्म डिपॉजिट स्कीम पर विशेष कानून
सभी एलआईसी, ऋण, एफडी आदि जो सरकारी या प्राइवेट संस्थाओं के द्वारा ग्राहक को दी जाती हैं। उनकी सभी शर्तें एक ऑफिशियल शपथ पत्र (जो संस्था का प्रमाणिक दस्तावेज हो) समझने के लिए ग्राहक को उसके द्वारा मांगी गई भाषा में पढ़ने व समझने के लिए दिया जाए तथा उसे योजना को समझने के लिए कम से कम 48 घंटे का समय दिया जाए। प्रामाणिक शर्त पत्र के अतिरिक्त संस्था के एजेंट के द्वारा झूठी गलत जानकारी तथा शपथ पत्र से हटकर जानकारी पर एजेंट पर दंडनीय जुर्माना अथवा सजा का प्रावधान हो। किसी संस्था के उत्पाद, सेवा, बीमा, धन जमा योजना आदि के प्रमाणिक शर्त पत्र से अलग अप्रमाणित पत्र छापकर या छपवाकर ग्राहक को देना या समझाना कठोर दंडात्मक कृत्य हो।
54. उत्पाद या सेवा की बिक्री के समय के नियम निर्धारण
किसी व्यापारी, उत्पादक, विक्रेता द्वारा बेचे जाने वाले उत्पाद या सेवा की गारंटी, वारंटी, किस किस चीज की गारंटी, जैसे: पूरी मशीन की गारंटी, वारंटी या सिर्फ अंदर के पार्ट्स की गारंटी, वारंटी है। यह सब स्लिप के साथ प्रामाणिक शर्त पत्र पर छाप कर अटैच होना चाहिए तथा ग्राहक को उसकी भाषा में दी जानी चाहिए। साथ ही विक्रेता को मौखिक रूप से भी ग्राहक को ये शर्तें स्पष्ट रूप से समझाई जानी चाहिए। एक शर्त पत्र विक्रेता के द्वारा व्यक्तिगत तौर पर भी उत्पाद या सेवा के बारे में खरीददार को दिया जाना चाहिए। जिस पर उत्पाद या सेवा संबंधी सभी शर्तें लिखी हों जिसे ग्राहक पढ़कर, समझकर, देखकर संतुष्ट हो और उस पर अपने हस्ताक्षर करे। यह अनिवार्य हो। ऐसा ना करने की स्थिति में कंपनी तथा विक्रेता दोनों को जिम्मेदार मानते हुए उन पर दंड या जुर्माना लगाया जाए। जैसे: फ्रिज खरीदते समय कहा जाता है कि फ्रिज की 5 साल वारंटी है। लेकिन खरीदने के बाद पता चलता है कि गारंटी अंदर के कुछ खास हिस्सों की ही थी। पूरे फ्रिज की नहीं। यह एक तरह से ग्राहक को मूर्ख बनाना है। इस पर रोक लगे।
55. नेटवर्क, मार्केटिंग कंपनियों पर कानून
आजकल बाजार में कई मार्केटिंग कंपनियां चल रही हैं जो सस्ते उत्पाद बनाकर अथवा बनवाकर उन्हें युवाओं से मार्केट रेट से महंगे दाम पर बिकवाती हैं तथा उसी एक्स्ट्रा कमाई से युवाओं को दिए गए टारगेट की पूर्ति पर बाइक, कार, बंगला आदि देती हैं। इसमें उन्हें एक चेन सिस्टम दिया जाता है। अपने नीचे इतने व्यक्ति जोड़ने पर और उनसे इतनी सेल का टारगेट अचीव कराने पर आपको इतनी धनराशि का चेक मिलेगा अथवा एक बड़ी कार मिलेगी आदि आदि वादे किए जाते हैं।
कुछ कंपनियां भविष्य के लिए निवेश करा रही हैं कि एक निश्चित समय के बाद निवेशकर्ता को कितने गुना धन बढ़ाकर मिलेगा। इसमें बड़ी धोखाधड़ी जारी है तथा देश में हजारों समस्याएं देखने को मिल रही हैं। कभी-कभी ये कंपनियां या संस्थाएं रातों-रात बंद हो जाती हैं। कभी इनके मालिक सारा धन लेकर भाग जाते हैं।
ऐसी सभी मार्केटिंग कंपनियों व नेटवर्किंग कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए इनकी संस्था द्वारा प्रामाणिक शर्त पत्र अंग्रेजी, हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं या जुड़ने बाले की मांगी हुई भाषा में दिया जाए। जिसे पढ़ने, समझने, दूसरों से राय लेने के लिए 48 घंटे का समय दिया जाए। इस प्रमाणिक शर्त पत्र का एक-एक बिंदु बिक्री से संबंधित, प्रमोशन से संबंधित, टारगेट अचीव करने से संबंधित, लोगों को जोड़ने पर क्या क्या शर्तें हैं से जुड़ा हो।
जुड़ने वालों को संस्था की जानकारी शर्त पत्र पर हस्ताक्षर के साथ दी जाए।
यदि ऐसा ना हो तो कार्यवाही करते हुए कंपनी पर और जांच में दोष सिद्ध हो जाए तो विशेष धाराओं के तहत कंपनी पर जुर्माना लगे अथवा कंपनी के द्वारा किसी प्रकार की ठगी सिद्ध होते ही कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया जाए तथा उसके मालिक को कठोर दंड तथा कारावास की सजा दी जाए।
ये कंपनियां कई बार जुड़ने वाले व्यक्तियों को मूर्ख बनाकर उनसे नकद रुपया भी जमा कराती हैं। इसके लिए कानून हो कि इस प्रकार की नेटवर्क, मार्केटिंग कंपनी नकद लेन-देन नहीं कर सकेगी। वह सिर्फ कस्टमर से चेक, ऑनलाइन पेमेंट ही ले सकेगी जिसमें कस्टमर का विवरण दर्ज हो। इन कंपनियों की प्रतिवर्ष सख्त ऑडिट हो। इसमें गलत तरीके से अर्जित धन को जब्त करके कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया जाए। इन कंपनियों द्वारा अर्जित ग्राहकों, निवेश कर्ताओं की धनराशि सरकार की देखरेख में तथा नियंत्रण में हो जिससे कंपनी मालिकों के देश छोड़कर भागने पर ग्राहकों का धन उन्हें वापस मिल सके।
ऐसे किसी भी कंपनी के रजिस्ट्रेशन के समय उसे एकमुश्त राशि सरकारी कोष में निवेशकर्ता सुरक्षा कोष के रूप में जमा कराई जाए। जो कंपनी द्वारा किसी भी फर्जीवाड़े पर निवेशकर्ताओं को दी जा सके। कंपनी से रजिस्ट्रेशन के समय उनका शर्त पत्र तथा पूरी योजना के क्रियान्वयन का विवरण सरकार द्वारा मांगा जाए और मूल्यांकन हो कि उनके पास ऐसा कोई व्यापारिक प्लान है भी अथवा वे ग्राहक या निवेश कर्ता को सिर्फ मूर्ख बना रहे हैं।
योजना के स्पष्ट ना होने पर उनका रजिस्ट्रेशन ही ना किया जाए। कानून बने कि किसी भी राज्य में यदि कोई निवेश, नेटवर्क, मार्केटिंग कंपनी ग्राहकों तथा निवेशकर्ताओं को आर्थिक हानि पहुंचा कर भागती है अथवा निवेश वापसी नहीं करती है तो उसकी जिम्मेदारी उस राज्य की सरकार की होगी। सरकार पर राज्य के हाई कोर्ट से दंडात्मक कार्यवाही करके ग्राहकों और निवेशकर्ताओं की धनराशि वापस दिलाई जाएगी। ऐसा कानून बने तथा यदि अस्पष्ट योजना पर रजिस्ट्री की जाती है तो उस कंपनी की रजिस्ट्री करने वाले संबंधित रजिस्ट्री अधिकारी को सेवा से बर्खास्त किया जाए तथा रजिस्ट्री में शामिल विभागीय अधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाही हो।
निवेश, नेटवर्क, मार्केटिंग कंपनी की शर्तों नियमों व कार्य योजनाओं को बिना जाने ऐसी संस्थाओं के ब्रांड एंबेसडर जिन्होंने संस्था की ब्रांडिंग की, संस्था के घोटाले में संलिप्त पाए जाने पर उन पर भी कठोर दंड जुर्माने का प्रावधान हो।
ग्राहक को लिखित प्रमाण पत्र में बताई गई शर्तों का पालन ना करने पर कंपनी पर दंडात्मक कार्यवाही हो अथवा उसे बैन किया जाए।
56. उत्पाद व सेवाओं के ब्रांड एंबेसडर पर कानून
किसी कंपनी के उत्पाद या सेवा को बिना उपयोग किए बिना उसके फायदे नुकसान जाने उसका झूठा भ्रामक प्रचार टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया, इंटरनेट, अखबार या पत्रिका आदि में करने वाले सभी ब्रांड अंबेसडर पर कठोर दंड व जुर्माने का कानून बने।
क्योंकि यह सेलिब्रिटीज द्वारा जनता को मूर्ख बनाने में भागीदार होना है। जैसे: कोई अभिनेत्री बिना किसी शैंपू का इस्तेमाल किए बताती है कि वह उसे 10 साल से लगा रही है। उससे उसके बाल काले लंबे व घने हो गए हैं। ऐसे प्रचार करने वाले ब्रांड एंबेसडर को कानून बनाकर सूचित करें कि आगे ऐसे झूठे विज्ञापनों को ना करें। यदि सरकार की सार्वजनिक सूचना के बाद भी कोई प्रचार करते पाया जाए तो उसकी जांच हो यदि प्रचार बिना उत्पाद उपयोग किया गया तो उन पर करोड़ों के हिसाब से धनराशि में जुर्माना ठोका जाए क्योंकि यह लोग करोड़ों रुपया लेकर आम जनता को मूर्ख बनाते हैं। एक जांच कमेटी गठित हो जो उत्पादों की गुणवत्ता की जांच करे कि उत्पाद का प्रचार जो कहता है क्या उत्पाद उस पर खरा उतरता है? जैसे काले रंग को 3 महीने में गोरा करें, यह दवा खाकर लंबाई बढ़ाएं, वजन बढ़ाएं अथवा पेट के रोगों से पूरी तरह निजात पाएं। शुद्ध मसाले, जीरो परसेंट मिलावट की गारंटी आदि के साथ ही कई लोगों पर रिसर्च/ट्रायल करके देखा जाए यदि उत्पाद गुणवत्ता ऐसी सिद्ध नहीं कर पाए जैसी प्रचार में बताई जा रही है तो कंपनी का लाइसेंस रद्द करके इन पर भारी जुर्माना लगाकर उत्पाद के ब्रांड एंबेस्डर पर बड़ा जुर्माना अथवा कारावास की सजा दी जाए।
यह मामला जनता को मूर्ख बनाने से तथा उनकी जिंदगी से खिलवाड़ से जुड़ा है। ऐसे किसी भी प्रोडक्ट को लैब टेस्टिंग/परीक्षण, इनकी गुणवत्ता की विशेष जांच तथा अप्रूवल के बाद यह घोषणा पत्र निर्माता से लिया जाए कि उसने यह प्रोडक्ट किस उद्देश्य से बनाया है? ट्रायल के बाद प्रोडक्ट में बताई गई गुणवत्ता मानकों में गिरावट अथवा उद्देश्यों के गलत प्रदर्शन का पाया जाना भी दंडात्मक कार्यवाही के केस में लिया जाए।
पहले से चले आ रहे अप्रमाणिक ब्रांड एंबेसडर विज्ञापन का प्रसारण पूरी तरह बंद हों यदि प्रोडक्ट की लैब टेस्टिंग या अप्रूवल गलत तरीके से दिया जाए तो अप्रूवल देने वाले, लैब टेस्टिंग करने वाले स्टाफ को जांच के बाद दोषी पाए जाने पर सेवा से निलंबन तथा कठोर कारावास की सजा दी जाए। यह पहले से चले आ रहे प्रोडक्ट्स पर भी लागू हो तथा सेवाओं पर भी।
57. शिकायत पेटिका की अवधारणा पर कानून
इस प्रावधान के तहत जैसे डाकखानों की पेटिकाओं में पत्र डाले जाते हैं। ठीक उसी प्रकार मोहल्ला, गली नगर क्षेत्र के पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों की स्वास्थ्य, चिकित्सा, शिक्षा आदि किसी भी प्रकार की समस्या किसी भी बड़ी अथॉरिटी तक पहुंचाने के लिए प्रति न्यूनतम 1,000 लोगों की आबादी पर एक तथा अधिकतम 10,000 लोगों की आबादी पर एक शिकायत पेटी अवश्य रखी जाए। जिनमें लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जिला अधिकारी, अन्य मंत्री प्रशासनिक अधिकारी, किसी भी अथॉरिटी को पत्र लिखकर अपने शिकायत, सुझाव, परामर्श आदि डाल सकें। इन शिकायत पत्रों में शिकायतकर्ता अपनी पहचान गुप्त रख सके।
इन पेटिकाओं को किसी सुरक्षित स्थान अथवा पोस्ट ऑफिस पर ही कहीं अटैच कराया जा सकता है। सभी शिकायतों को कलेक्ट करने तथा उन्हें उनके गंतव्य तक ऑफलाइन या ऑनलाइन स्कैन, फोटो प्रति, मेल आदि करके किसी माध्यम से पहुंचाने की जिम्मेदारी हेतु सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति हो या किसी विभाग को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए।
शिकायत पेटी के आसपास किसी भी प्रकार का सीसीटीवी कैमरा ना लगे जिससे शिकायतकर्ता के बारे में पता करके दुष्ट लोग उन्हें प्रताड़ित ना कर सकें। शिकायतों पर त्वरित कार्यवाही की समय अवधि की अधिकतम सीमा तथा कार्यवाही में ढील डाल या लापरवाही बरतने पर संबंधित अधिकारी जनप्रतिनिधियों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
व्यक्तिगत शिकायत में शिकायत पत्र पर यदि ज़रूरी हो तो नाम अनिवार्य हो सामूहिक, सामाजिक, क्षेत्रीय शिकायत पर नहीं।
शिकायत पेटी के पत्रों को बंद लिफाफे में ही स्वीकार किया जाए तथा वह शिकायत किसको लिखी गई है उस पर यह अवश्य दर्ज होना चाहिए। शिकायत पेटी को खोलने, बंद करने तथा उसके पत्रों को उनके संबंधित अधिकारी, विभाग, मंत्रालय आदि तक पहुंचाने वाले कर्मचारी, अधिकारी तथा उससे संबंधित विभाग पर पत्रों की गोपनीयता का भार रखा जाए। यदि किसी पत्र की गोपनीयता भंग होती है, भेजने में गड़बड़ पाई जाती है तो संबंधित कर्मचारी, अधिकारी, विभाग पर दंडात्मक कार्यवाही हो। पूरी योजना को एक नाम देकर कार्यक्रमों द्वारा इसकी जानकारी जन-जन तक पहुंचाने का लक्ष्य जिलाधिकारी को सौंपा जाए।
58. नागरिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम
शिक्षित, अशिक्षित एवं किसी भी उम्र के नागरिकों को नागरिक संहिता के ज्ञान लोकतंत्र में उनके अधिकार, कर्तव्य, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की समझ, सरकारों की समझ, समस्याओं के निवारण, मांग उठाने की सीख आदि सभी बिंदुओं को प्रशिक्षण कार्यक्रम में सहयोग कर प्रशिक्षण कराया जाना अनिवार्य हो।
हर नागरिक ऑनलाइन, ऑफलाइन अपनी चुनी भाषा में यह कोर्स करे। 18 वर्ष में मताधिकारी/वोटर के रूप में चयनित होने से पहले 6 माह का यह कोर्स प्रत्येक किशोर को अवश्य कराया जाए। निरक्षर लोगों को सरकार तथा सरकारी विभागों द्वारा पूर्ण कैंप/चौपाल लगाकर प्रतिदिन 1 घंटा, 6 माह या 180 दिन का कोर्स अवश्य कराया जाए। सभी को पूर्णता का प्रमाण पत्र जारी हो इस कोर्स को कराने की जिम्मेदारी जिला अधिकारी, डीएम द्वारा नियुक्त अधिकारी, कर्मचारियों तथा सभी प्रतिनिधियों पंचायत, पालिका, निगम आदि की हो।
ऑनलाइन कोर्स करने वालों के लिए पोर्टल एप्लीकेशन लॉन्च हो तथा उन्हें अपनी आईडी के द्वारा लॉग इन करना हो तथा बाद में उनका एक ऑनलाइन टेस्ट भी हो। निरक्षर लोगों का कोर्स में उपस्थिति का बायोमेट्रिक हो। निरक्षरों को टेस्ट की छूट हो। इस पूरी योजना का सभी मंत्रियों अधिकारियों, सेलिब्रिटीज से प्रचार-प्रसार कराया जाए। योजना में गड़बड़, असफल क्रियान्वयन, किसी भी नागरिक से बदतमीजी अथवा नागरिक को प्रशिक्षण में सहयोग ना देने की स्थिति में जिलाधिकारी, अन्य अधिकारी, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम आदि के प्रतिनिधि प्रथम दृष्टया दोषी करार दिए जाएं। पूरे कार्यक्रम के बाद होने वाली ऑडिट में योजना की सफलता पर संबंधित अधिकारी जनप्रतिनिधियों पर जुर्माना लगाया जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि निरक्षर महिलाओं को महिला प्रशिक्षण दाता उपलब्ध हो तथा पुरुषों को पुरुष प्रशिक्षण दाता। ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तो नितांत आवश्यक हो। यदि प्रशिक्षण के दौरान किसी भी अधिकारी जनप्रतिनिधि प्रशिक्षण दाता के द्वारा जन सामान्य के प्रति अभद्रता तथा अमर्यादित आचरण किया जाए तो उस पर दंडात्मक कार्यवाही अवश्य हो। प्रशिक्षण के दौरान अधिकारी, जनप्रतिनिधि, प्रशिक्षण दाताओं की सुरक्षा का भी इंतजाम प्रशासन की जिम्मेदारी हो। जैसे सभी नागरिकों का आधार जरूरी है उसी प्रकार नागरिकता प्रशिक्षण प्रमाण पत्र भी जरूरी हो। इसके बिना स्वस्थ लोकतंत्र की परिकल्पना अधूरी है। यह कानून नितांत आवश्यक है। इसे व्यापक रूप से लागू किया जाए।
59. नागरिक सेना प्रशिक्षण कार्यक्रम
नागरिक सेना प्रशिक्षण कार्यक्रम अथवा नागरिक आर्मी ट्रेनिंग अभियान में जो युवा 18 से 35 वर्ष की आयु के हैं और नागरिक आर्मी ट्रेनिंग में जाना चाहते हैं तो वे स्वैच्छिक रूप से अधिकतम 2 वर्ष की ट्रेनिंग कर सकें किंतु उन्हें ट्रेनिंग के दौरान अपना सामान्य खर्च खाना-पीना, रहन-सहन, वस्त्र आदि स्वयं वहन करना होगा। ऐसा नियम बने। 2 वर्ष की ट्रेनिंग के बाद लौटे नागरिक को सरकारी, अर्द्ध सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों में नौकरी व्यापार आदि के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान की जाएं।
60. अंधविश्वास निवारण कानून
इसके तहत समाज में भूत प्रेत चढ़ाने वाले, टोना टोटका, काला जादू, डरावना, भूतिया साहित्य, टीवी सीरियल, अखबार, पत्रिका, यूट्यूब वीडियो, ऑनलाइन, इंटरनेट सामग्री जो भी अंधविश्वास फैलाने की सामग्री हो उसे पूरी तरह बैन किया जाए।
तांत्रिक जो प्रचार करते हैं मुठकरनी, वशीकरण, काला जादू, उन्हें अरेस्ट करके कारावास दिया जाए। आध्यात्म, धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने वाले गलत रीति रिवाज, गलत संस्कृति तथा ऐसे कृत्य करने कराने वाले जो अमानवीय, अप्राकृतिक, असभ्य, अशिष्ट तत्व हैं उन्हें कठोर कारावास की सजा हो। कार्यक्रम के तहत इस अभियान का पूर्ण प्रचार-प्रसार करके समाज को अंधविश्वास से मुक्ति की ओर ले जाने का व्यापक प्रयास हो।
इस सबके साथ यह ध्यान रहे कि धर्म ग्रंथों में आत्मा का जिक्र आता है। इसलिए किसी भी प्रकार इस कानून के तहत किसी भी धर्म को आत्मा शब्द, आत्मा की शांति, मुक्ति, आत्म उद्धार आदि शब्दों के लिए अपमानित ना किया जाए।
61. न्यायालय में सुनवाईयों की अधिकतम संख्या का कानून
प्रत्येक जिला, प्रादेशिक हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट आदि में केसों की तारीख डालने की अधिकतम सीमा तय की जाए तथा दिनों के अनुसार कितने दिन में फैसला आएगा। यह अपराधवार सूचीबद्ध करके कानूनी रूप से अमल में लाया जाए। यह कानून बताए कि किस अपराध, आरोप के लिए अधिकतम कितनी तारीखें होंगी तथा कितने दिन में फैसला सुनाना अनिवार्य होगा जिससे जनता का न्याय से विश्वास ना मरे। तय सीमा के अंदर केस निपटाने के लिए आवश्यक जजों की नियुक्ति का कानून भी बने। इसमें न्यायालय में पर्याप्त संख्या में जजों की नियुक्ति हो। एक निश्चित समय में नियुक्ति न करने वाले तत्वों पर भी दंडात्मक कार्यवाही हो।
62. संपत्ति खरीद से पूर्व आय के स्त्रोत की जानकारी का नियम
कई लोग काले धन या ब्लैक मनी को संपत्ति के रूप में खपाते हैं। उन पर नियंत्रण के लिए हर संपत्ति की रजिस्ट्री से पहले जिस धन से वह संपत्ति खरीदी जा रही है, उसकी आय का स्त्रोत क्या है? यह लिखित रूप में देना आवश्यक हो।
63. नॉन कोलेटरल, गिरवी मुक्त ऋण तथा शेयर पर ऋण बंदी के नियम
सरकारी बैंकों से बड़े कर्ज लेकर कई उद्योगपति विदेश भाग जाते हैं। तमाम ऋण लेनदार जानबूझकर रिटर्न नहीं चुकाते एवं स्वयं को दिवालिया घोषित कर देते हैं। सरकारी बैंकों का प्रतिवर्ष देय लोन का रुपया बड़ी मात्रा में वापस नहीं आता। ऐसी व्यवस्था को कानूनी तौर पर बनाया जाए जिसमें शत प्रतिशत ऋण धनराशि की वापसी की जा सके। बैंकों का बजट भी अप्राप्त अदायगी के कारण घाटे में नहीं जाना चाहिए। गिरवी मुक्त ऋण को पूरी तरह बंद करके इसके विकल्प की तलाश हो। केवल शिक्षा हेतु ऋण देने के लिए शिक्षा ऋण गिरवी मुक्त मिलना चाहिए किंतु केवल उन कोर्सेज के लिए जिनके पूर्ण होने के बाद नौकरी प्राप्त होना निश्चित हो। इसके लिए सरकारों को निश्चित नौकरी वाले शिक्षा कोर्स चलाने चाहिए अथवा प्राइवेट कंपनियां अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थान खोलकर उन्हें निश्चित नौकरी वाले कोर्स कराएं अथवा ऐसे शैक्षणिक संस्थानों को चिन्हित किया जाए जो हंड्रेड परसेंट प्लेसमेंट की गारंटी दें। उनमें पढ़ने वाले छात्रों को भी गिरवी मुक्त लोन मिलना चाहिए। इन कोर्सेज में एडमिशन के लिए टेस्ट में प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए किंतु डिग्री लेकर रोजगार हेतु भटकने की परेशानी नहीं होना चाहिए। इसे सरल शब्दों में हम शिक्षा से रोजगार गारंटी कानून भी कह सकते हैं। केवल इसी के अंतर्गत गिरवी मुक्त ऋण मिले।
स्वरोजगार के लिए कराए जाने वाले कोर्सेज में गरीब वर्ग तथा मध्यम वर्ग को सब्सिडी की छूट सरकार से मिले। बाकी लोग अपने धन से कोर्स करें अथवा गिरवी ऋण पर कोर्स कर सकते हैं। एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग) हेतु गिरवी मुक्त ऋण में भी बैंकों का धन डूबने की संभावना बनी रहती है। इनका बेहतर विकल्प यह हो कि सरकार जनता से विचार, लेबर तथा स्किल लेकर कैपिटल, इन्वेस्टमेंट, प्रोडक्शन, डिमांड फोरकास्टिंग तथा मार्केटिंग की जिम्मेदारी स्वयं लेकर स्वयं एमएसएमई खोल कर दे।
एमएसएमई के स्किल कोर्स स्किल डेवलपमेंट सेंटर में कराए जाएं। एमएसएमई इंडस्ट्री डेवलपमेंट गांव में या गांव के समूह में किया जाए जिसमें ग्राम स्वरोजगार के रास्ते खुलें। एमएसएमई की वर्तमान गिरवी मुक्त ऋण व्यवस्था समाप्त हो जिसमें बैंकों का धन डूबने की आशंका रहती है क्योंकि इंडस्ट्री चलाने वालों को डिमांड, मार्केट आदि का ज्ञान नहीं होता जबकि सरकार के द्वारा वित्त, वाणिज्य तथा अर्थशास्त्र के जानकार अधिकारी पर्याप्त मात्रा में चयनित किए जाते हैं जो यह कार्य अच्छे से कर सकते हैं।
किसी भी स्थिति में कंपनी/उद्योगपतियों को शेयर पर अथवा गिरवी मुक्त ऋण ना दिया जाए क्योंकि शेयर डूब सकते हैं जिससे बैंक द्वारा दी गई ऋण धनराशि डूबने का खतरा भी हो सकता है।
विचारणीय है कि यदि एक उद्योगपति या कंपनी बैंकों से ऋण लेकर नहीं चुकाता अथवा देश छोड़कर भाग जाता है। ऐसे में 3 लोगों या संस्थाओं को प्रथम दृष्टया दोषी तथा सजा का हकदार माना जाए। पहले वे जिन्होंने ऐसी लचर नीति बनाई जिससे उनका धन डूब गया। दूसरा वह बैंक या बैंक का स्टाफ जिसने ऋण संबंधी नियमों की अनदेखी करते हुए नियमों के विपरीत ऋण दिया।
तीसरा बैंक के साथ वे प्रभुत्व शाली लोग जिनके दबाव में आकर बैंक या बैंक स्टाफ ने गलत तरीके से लोन अप्रूव किया।
ऐसे में कानून हो कि जब कंपनी उद्योगपति बिना लोन चुकाए देश छोड़कर भाग जाए अथवा लोन की धनराशि डूब जाए तब एक जांच कमेटी गठित करके उपर्युक्त 3 में से जो भी दोषी हो उन पर दंडात्मक कार्यवाही की जाए। यदि नीति लचर रही तो नीति निर्माताओं से, यदि बैंक स्टाफ का दोष था तो बैंक स्टाफ से अथवा गलत तरीके से लोन देने हेतु दबाव डालने वाले व्यक्ति आदि की निजी संपत्ति से इसकी वसूली हो तथा इन सभी लोगों को पद से निष्कासित करके कठोर कारावास का कानून बनाया जाए। ज्ञात रहे ऋण के रूप में बैंकों द्वारा दिया जाने वाला धन भारत की आम जनता की मेहनत का धन है। धूर्त उद्योगपतियों और भ्रष्ट कंपनियों पर लुटाने वाला उपहार नहीं। इसलिए देश को कठोर ऋण नीति की आवश्यकता है जो आम जन के धन की पूर्ण रक्षा कर सके।
64. हर रेलवे स्टेशन पर न्यूनतम ट्रेन रोकने का प्रावधान
इस नियम के तहत हर रेलवे स्टेशन पर (जंक्शन को छोड़कर) कम से कम छह पैसेंजर ट्रेन, हर हाल्ट पर कम से कम चार ट्रेन रोकने का प्रावधान हो जिसमें स्टेशन पर 2 अप, 2 डाउन में सुबह, दोपहर व शाम दो-दो ट्रेनें रुकना चाहिए तथा हाल्ट पर सुबह-शाम दो-दो अप डाउन ट्रेन रुकना चाहिए। रेलवे को पैसेंजर ट्रेनों से घाटा होता है, ऐसा तर्क दिया जाता है अर्थात हमें ऐसी व्यवस्था विकसित करना है जिसमें हम रेलवे को घाटे से बचाते हुए लोकल यात्रियों की सुविधाओं का भी ध्यान रख सकें। इसके लिए ऐसी पैसेंजर गाड़ियां चलें जिनकी ऑनलाइन सीट बुकिंग हो। यह बुकिंग एक्सप्रेस ट्रेनों की तरह महीनों पहले से शुरू हो। इनमें 50% सीट पहले से ही बुक की जाने की सुविधा हो जिसका शुल्क सामान्य पैसेंजर गाड़ी के शुल्क जैसा हो तथा शेष 50% तक सीटें (एमएसटी की 25%, तत्काल तथा स्टेशन काउंटर बुकिंग 25 % के लिए) रिजर्व रखी जाएं। इन ट्रेनों में बिना टिकट यात्रा पर पहले से कठोरतम जुर्माना लगाया जाए। इन पैसेंजर ट्रेनों में एमएसटी बनवाने बालों के लिए ऑनलाइन/ऑफलाइन बुकिंग की सुविधा महीनों पहले से शुरू हो इसमें केवल कॉलेज स्टूडेंट, कर्मचारी तथा प्रतिदिन व्यापार आदि को जाने वाले लोगों के चलने का प्रावधान हो। केवल विद्यार्थियों को मासिक, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक एमएसटी पर छूट हो किंतु उन्हें कॉलेज इंस्टिट्यूट का प्रमाण पत्र देना होगा। बाकी सभी को एमएसटी का चार्ज उसी रेट पर देना हो जितना 30 दिन, 31 दिन या 28 दिन का रोजाना आने-जाने का खर्च हो।
जैसे: दो स्टेशनों के बीच का किराया ₹30 है। तो गैर विद्यार्थी एमएसटी पर 30 दिन के माह में आने-जाने अर्थात 30 30=60*30=1800 एमएसटी का चार्ज हो। एमएसटी सिर्फ इसलिए बनाई जाए ताकि रोज चलने बालों को रोजाना टिकट बनाने की दिक्कत से बचाया जा सके। रोज चलने बालों के लिए कम से कम 1 पुरुष तथा 1 स्त्री एमएसटी डिब्बा अलग से हो तथा एक यात्री महिला डिब्बा अलग होना चाहिए। इनमें एमएसटी धारकों की सीट का निर्धारण भी पहले से हो। उन्हें पता हो कि उन्हें कौन सी सीट एलॉट है और रोज उन्हें उसी पर यात्रा करनी है। जिससे उनकी सामान्य यात्रियों से भिड़ंत होने की समस्या पैदा ना हो। ट्रेन में डिब्बों की संख्या दो स्टेशनों के बीच की कुल सीट मांग को लेकर निर्धारित हो। इन ट्रेनों में वेटिंग टिकट की भी सुविधा हो तथा प्रमाणिक एप्लीकेशन/पोर्टल, ऑनलाइन /ऑफलाइन वेटिंग टिकट को भी इसमें मान्य किया जाए किंतु अधिकतम वेटिंग की सीमा भी निर्धारित हो। इन ट्रेनों में एक्सप्रेस ट्रेनों की तरह एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में जाने की सुविधा हो। ट्रेन में कम से कम एक टीटी तथा दो सुरक्षाकर्मी अनिवार्य हों। छोटे रेलवे स्टेशन, हाल्ट पर ₹15000 मासिक रोजगार योजना वाले कर्मचारी सेवा में नियुक्त हों । साथ ही सुरक्षाकर्मी भी उसी योजना के अंतर्गत लगें। जीआरपी तथा रेलवे समूह ग तथा घ के पद इसी रोजगार योजना से भरे जाएं।
65. चुनावी घोषणा पत्र के अतिरिक्त वक्तव्य, प्रचार पर सजा का कानून
कानून बने कि प्रत्येक पार्टी अपने चुनावी घोषणा पत्र में दिए गए मुद्दों को यदि पूरा नहीं करती है तो उसकी मान्यता समाप्त कर दी जाएगी। नेता या पार्टी को अपने लिखित घोषणापत्र को चुनाव आयोग को देना होगा तथा आयोग से प्रमाणित कराकर उसकी प्रति जनता में देना होगी। कोई भी नेता या पार्टी प्रमाणिक लिखित घोषणापत्र के अतिरिक्त कोई भी झूठ, जुमला, वादा यदि किसी मंच, रैली, जनसभा, पत्रिका, अखबार, टीवी चैनल, सोशल मीडिया या अन्य किसी इंटरनेट माध्यम से करता पाया जाए तो उस पर प्रथम बार दोषी पाए जाने पर सार्वजनिक माफी, दूसरी बार दोषी पाए जाने पर दंडात्मक कार्यवाही या जुर्माना, तीसरी बार दोषी पाए जाने पर एक बार आगामी चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध, चौथी बार दोषी पाए जाने पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए।
66. शिशु स्वास्थ्य बीमा का अनिवार्य कानून
यह कानून बने कि देश के प्रत्येक शिशु को स्वास्थ्य बीमा देने की जिम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकार की होगी। बीमा की स्कीम 3 तरह से लागू हो।
पहले बच्चे के जन्म के समय केंद्र व राज्य सरकार के सामूहिक सहयोग से एक निश्चित धनराशि शिशु के नाम फिक्स कर दी जाए जो 50 वर्ष के बाद वृद्धि उपरांत उसे इलाज के लिए मिल सके। इस धनराशि को फिक्स डिपाजिट की तरह वृद्धि के बाद नागरिक को 50 वर्ष से मृत्यु तक उसे धनराशि के अंतर्गत ही इलाज के लिए मिले, कुल वृद्धि के बाद बनी धनराशि के ऊपर नहीं।
दूसरी योजना इस प्रकार हो कि शिशु के अभिभावक सरकार द्वारा जमा निश्चित राशि के साथ अपनी ओर से कुछ धनराशि मिलाकर फिक्स डिपाजिट करा दें जिससे 50 वर्ष के बाद धन वृद्धि के उपरांत उसे इलाज के लिए अधिक धन मिल सके।
तीसरी योजना में जन्म के पहले वर्ष से 30 वर्ष तक किसी भी समय व्यक्ति को प्रवेश के लिए एक जीवन बीमा स्कीम दी जाए। जो 20 से 30 वर्षों की हो सकती है जिसमें प्रतिमाह तिमाही, छमाही या साल में एक बार एक निश्चित पॉलिसी रकम जमा करनी हो और इस तरह अवधि परिपक्व होने के बाद 50 वर्ष उपरांत नागरिक को उसकी परिपक्वता राशि प्राप्त हो तथा बीच के समय में बीमार होने पर रिस्क कवर दिया जाए।
पहली स्कीम अनिवार्य रूप से कानून बनाकर लागू हो। दूसरी व तीसरी स्कीम शिशु पर ऑप्शनल हो। इस स्कीम की खासियत यह हो कि यह देश के हर नागरिक को स्वास्थ्य लाभ दे सके, केवल चुने हुए लोगों को नहीं।
67. दल बदल पर नया कानूनी प्रावधान
विधायकों तथा सांसदों का दलबदल लोकतंत्र की घातक समस्या है। कई बार यह दल बदल भय से तथा कई बार स्वार्थ से किया जाता है। कानून बने कि अपने ही राजनीतिक दल के विधायक तथा सांसद असंतुष्ट होने पर सरकार गिरा कर दोबारा चुनाव करवा सकते हैं। खुद दल से अलग होकर समूह बनाकर अपनी भी सरकार बना सकते हैं किंतु दूसरे दल या विपक्षी दल में घुसकर या उन्हें समर्थन देकर उनकी सरकार नहीं बना सकते अथवा यदि वे दूसरे दल या विपक्षी दल की सरकार बनाना चाहते हैं तो उसके लिए चुनाव आयोग को जनमत संग्रह कराना अनिवार्य होगा यदि जनमत संग्रह में परिणाम गठबंधन के पक्ष में ना आए तो वहां पर दोबारा चुनाव आवश्यक होगा। जनमत संग्रह का तरीका पारदर्शी वैद्य तथा अधिकतम जनभागीदारी का होना चाहिए। ऐसा करने से जनमत का अपमान होने तथा जनमत को स्वार्थ की भेंट चढ़ने से बचाया जा सकेगा।
यह कानून बने कि अपने ही राजनीतिक दल के एमपी तथा एमएलए समूह को अपनी सरकार से अलग नया दल बनाने के लिए 50% से अधिक एमपी या एमएलए का साथ आवश्यक होगा
लेकिन इस दशा में भी उन्हें जनमत संग्रह से गुजरना होगा यदि जनमत संग्रह में जनता द्वारा उन 50% से अधिक विधायकों और सांसदों को नए दल के रूप में अस्वीकार कर दिया जाए तो फिर उन 50% से अधिक विधायकों और सांसदों की आजीवन चुनाव लड़ने की योग्यता पर प्रतिबंध लगा दिया जाए।
सरकार से असंतुष्ट होने पर विधायक तथा सांसद सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा सकेंगे अथवा अपना इस्तीफा भी दे सकेंगे। यह विकल्प उनके पास खुला रहेगा।
68. व्यापार में एक से सवा करने का प्रावधान
प्राचीन काल में अर्थ नीति के अंतर्गत एक ऐसी योजना भी प्रकाश में आई थी जिसके अंतर्गत व्यापारी को अपने उत्पाद या सेवा की कुल लागत पर 25% लाभ लेने का अधिकार था अर्थात यदि उसका उत्पाद सारे खर्चे मिलाकर ₹100 में बनकर तैयार होता था तो वह उसे बाजार में ₹125 बेंच सकता था जिसमें वह ₹25 का शुद्ध लाभ कमा सकता था। किसी योजना को वर्तमान समय में अमल में लाने का प्रयास किया जा सकता है जिस पर व्यापक क्रियान्वयन की योजना तथा कमेटी बनाकर कार्य किया जाए।
69. दादा की संपत्ति में पौत्र का अनिवार्य अधिकार
एक कानून बने कि दादा की संपत्ति में 21 वर्ष का होते ही पुत्र को स्वतः ही अधिकार प्राप्त हो जाए। 21 वर्ष का होने पर पुत्र दादा द्वारा मिली संपत्ति को अपनी मर्जी से बेच सके अथवा उसका उपयोग कर सके लेकिन यह हिस्सा वही होगा जो दादा की संपत्ति में उनके पुत्र को अर्थात पौत्र के पिता को मिला होगा। उसी हिस्से में से पौत्र की हिस्सेदारी सुनिश्चित होगी।
70. धर्मों, पंथों, संप्रदायों में मतभेद के समाधान हेतु ज्ञान चर्चा का कानून
एक कानून बने कि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी भी धर्म, पंथ, फिरके, संप्रदाय, धर्म ग्रंथ, आध्यात्मिक पुस्तक, धार्मिक तथ्य, धार्मिक चमत्कार, सिद्धि या शक्ति को सार्वजनिक रूप से ज्ञान चर्चा के लिए आमंत्रित कर सके तथा चुनौती दे सके। इस ज्ञान चर्चा को सार्वजनिक रूप से लाइव टेलीकास्ट कराने तथा पुलिस के संरक्षण की जिम्मेदारी राज्य व केंद्र की सरकार की होगी जिसमें प्रमाणिक साक्ष्यों तर्कों पर डिबेट हो किसका कथन, तर्क, ज्ञान वैद्य है और किसका अवैध है। जीतने पर मत, पुस्तक के सिद्धांत को प्रमाणिक माना जाएगा। यह वैद्यता तथा प्रामाणिकता हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाए अथवा नियुक्त किए विशेष पदाधिकारियों द्वारा दी जाएगी जिनकी नियुक्ति का अधिकार हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के पास होगा। किसी विशेष व्यक्ति या संस्था अथवा कई व्यक्ति या संस्थाएं इस ज्ञान चर्चा में भाग ले सकेंगे। केवल द्वंद की स्थिति में या आमंत्रण पर आमंत्रण दाता को आमंत्रण देने का कानूनी अधिकार होगा और जिसे आमंत्रण दिया जाएगा उस व्यक्ति, संस्था, गुरु, पीठाधीश्वर, पदाधिकारी या धर्म प्रमुख को उस ज्ञान चर्चा में प्रस्तुत होने के लिए बाध्य होना होगा। अन्यथा लिखित में आमंत्रण पत्र पर अपनी बात, सिद्धांत या ज्ञान को मिथ्या घोषित करना होगा।
71. सार्वजनिक स्थानों/खुले, गली मोहल्लों आदि में डी०जे बजाना बंद हो
इस पर प्रतिबंध लगे इससे पढ़ने वाले बच्चों, मरीजों और जन सामान्य को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। डी जे का प्रयोग घर की चारदीवारी में सीमित होना चाहिए उससे पड़ोसी की शांति भी भंग ना हो। यदि डीजे पड़ोसी की शांति भंग करता है तब भी डीजे बजाने वाले पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।
72. निर्वस्त्र साधु-संतों पर कानून
किसी भी धर्म के साधु जो निर्वस्त्र रहते हैं वह अपने व्यक्तिगत जीवन तथा आवास से जब भी बाहर सामाजिक या सार्वजनिक जीवन या स्थान में जाएंगे तो इंद्रियों और गुप्तांगों को वस्त्र पहनकर ढकना अनिवार्य होगा क्योंकि समाज में बहन बेटियों के सामने नग्न अवस्था में पेश आना सभ्य समाज के लिए उचित नहीं माना जाएगा। इसलिए यह कानून बनना आवश्यक है।
73. प्रति 100 वर्ग गज आवास पर एक वृक्ष तथा प्रति 1000 वर्ग गज पर एक विशाल वृक्ष अनिवार्य
कानून बने कि प्रति 100 वर्ग गज मकान बनाने वाले व्यक्ति को कम से कम एक घरेलू वृक्ष लगाना अनिवार्य होगा। इन घरेलू वृक्षों की सूची सरकार द्वारा तैयार की जाए जो अधिक जगह ना घेरते हों तथा उपयुक्त मात्रा में ऑक्सीजन प्रदान करते हों। साथ ही नई कॉलोनी के मॉडल में प्रति 1000 वर्ग गज की प्लॉटिंग में कॉलोनाइजर को कम से कम एक विशाल वृक्ष के लिए भूमि छोड़नी होगी तथा उस वृक्ष का वृक्षारोपण करना पड़ेगा। ऐसा कानून बने।
74. एंटीबायोटिक तथा आयुर्वेदिक दवाइयों हेतु डॉक्टर पर कानून
आजकल डॉक्टर छोटे-मोटे रोगों के लिए तुरंत एंटीबायोटिक दबाएं लिख देते हैं इस पर पूर्णतः प्रतिबंध लगे। सरकार के द्वारा ऐसी बीमारियों को चिन्हित करके सूचीबद्ध किया जाए जिनके असाध्य ना होने की स्थिति में डॉक्टर बेवजह एंटीबायोटिक दवा मरीज को नहीं लिख सकेगा और ना ही दे सकेगा। इसके साथ ही डॉक्टर को रोगी को अंग्रेजी दवाओं के विकल्प रुप में जहां तक संभव हो आयुर्वेदिक दवाओं को लिखना होगा जिसमें सिरप, टेबलेट आदि शामिल होंगी।
सरकार को सामान्य और असाध्य रोगों की अलग-अलग सूची जारी करनी होगी। सामान्य रोगों के लिए गैर एंटीबायोटिक तथा आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग कराया जा सके तथा असाध्य रोगों में भी जहां तक संभव हो ऐसा ही किया जाए। उसके लिए एक बड़े जागरूकता कार्यक्रम की रूपरेखा भी तैयार की जाए।
75. झोलाछाप डॉक्टर / नीम हकीम/ वैद्यों हेतु सामान्य उपचार हेतु सरकारी मेडिकल प्रशिक्षण का प्रावधान
हमारे चारों ओर समाज में कई बिना डिग्री प्राप्त किए ऐसे डॉक्टर पाए जाते हैं जो झोलाछाप होते हैं अथवा नीम हकीम या वैद्य आदि होते हैं। इन लोगों को सरकार की ओर से चिकित्सकीय प्रशिक्षण कोर्स कराए जाएं। जिसमें इनसे सामान्य फीस पर इन्हें प्रशिक्षण के बाद सर्टिफिकेट प्रदान किए जाएं तथा इन्हें सर्टिफाइड किया जाए। इनके कोर्स में वे सभी प्रशिक्षण सामग्रियां, ज्ञान तथा शिक्षाएं जोड़ी जाएं जो एक सामान्य उपचारक के लिए आवश्यक होती हैं। ये हेल्थ वर्कर, सामान्य उपचारक, फर्स्ट एड चिकित्सक या डाइटिशन आदि के रूप में कार्य करें किंतु इन्हें डिग्री प्राप्त डॉक्टर के जैसे प्रैक्टिस की अनुमति नहीं होगी।
76. अधिकार संरक्षण प्रशिक्षण कानून
इस कानून के अंतर्गत एक ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा कोर्स सरकार द्वारा लांच किया जाए जिसमें हर व्यक्ति को अथवा देश के हर नागरिक को अपने मानवाधिकार, मूल अधिकार, संविधान से प्राप्त अधिकार, उपभोक्ता अधिकार, बाल अधिकार, स्त्री अधिकार, वृद्धावस्था के अधिकार आदि समस्त प्रकार के अधिकारों की जानकारी प्रदान की जाए। इस प्रशिक्षण को जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी के साथ में पंचायत, निकाय के अध्यक्षों के द्वारा सफलतापूर्वक संचालित किया जाए तथा कोर्स की समाप्ति पर नागरिक को सर्टिफिकेट प्रदान हो। साथ ही पूरे कार्यक्रम में लचर प्रदर्शन करने, सहयोग ना करने, अवरोध उत्पन्न करने की स्थिति में संबंधित अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों पर दंडात्मक कार्यवाही का कानून भी बने।
77. सड़क पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजन पर पूर्ण प्रतिबंध
इस कानून के अंतर्गत सड़क पर किसी भी प्रकार का किसी भी धर्म का कोई भी धार्मिक आयोजन करना पूरी तरह से वर्जित होगा तथा ऐसा करने वालों पर कठोर दंड तथा कारावास की सजा दी जाएगी। ऐसा कानून बने।
78. उपहास पर कानून
इस कानून के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति या समूह का उपहास करना, मजाक उड़ाना, खिल्ली उड़ाना इत्यादि पूरी तरह प्रतिबंधित हो किसी के आकार, रूप, रंग, गांव, शहरी संस्कृति, कपड़ों इत्यादि पर उपहास जनक कमेंट करना, फब्तियां कसना और उन पर बेवजह हंसना दंडात्मक श्रेणी के अंतर्गत लाए जाएं। ऐसा करने वाले लोगों पर कठोर कार्यवाही तथा जुर्माना लगे।
79. चुगली असत्य निंदा तथा मिसगाइड करने पर कानून
किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति या समूह की किसी तीसरे व्यक्ति या समूह से व्यर्थ चुगली, झूठी निंदा करने का दोषी पाए जाने पर दंडात्मक कार्यवाही हो किंतु दंड से पूर्व इसका पुख्ता सबूत, जैसे कॉल रिकॉर्डिंग, रिकॉर्डिंग या वीडियो आदि होना चाहिए सिर्फ गवाहों के आधार पर फैसला ना हो।
उसी प्रकार किसी व्यक्ति या समूह को किसी दूसरे व्यक्ति या समूह को मार्ग से विचलित करने, बुराई के मार्ग पर लगाने, बुरी लतों का आदि बनाने, अपने परिवार, समाज या राष्ट्र के प्रति गलत मकसद से बहकाने अथवा किसी प्रकार से मिसगाइड करने वालों पर भी जुर्माना तथा कारावास की सजा का प्रावधान हो।
किसी की स्त्री पति, संतान, मां बाप को उन्हीं की संतान, मां बाप या पति पत्नी के खिलाफ भड़काना, मिस गाइड करना, झूठी चुगली करना, असत्य निंदा आदि के दोषी पाए जाने पर दंड व जुर्माना लगाया जाए।
80. संयुक्त परिवार के सामूहिक खर्च का कानून
संयुक्त परिवार में सामूहिक खर्चों जैसे मेन गेट, बिजली बिल, निकास, टॉयलेट, बाथरूम आदि आवश्यक खर्चों में मरम्मत तथा निर्माण में सभी का अंशदान हो किंतु यह सभी के बजट में हो, देना अनिवार्य हो किंतु बेरोजगारी की स्थिति में नहीं। परिवार के किसी सदस्य द्वारा इस तरह के अपने कर्तव्य से भागने पर अन्य परिजन शिकायत कर सकते हैं। ऐसा उन्हें अधिकार हो। जिसका निपटारा या अंशदान की प्रक्रिया को न्यायालय द्वारा सुलझा जाएगा। ऐसा कानून बने।
81. नशेड़ी के खिलाफ परिजनों के अधिकार
ऐसा कानून बने कि घर के किसी भी नशेड़ी के घर में किसी भी प्रकार का नशा करके आते ही पत्नियों, बच्चों को अधिकार हो कि वे यदि चाहे तो उसे नशे की हालत में घर में सोने, रहने, प्रवेश करने से मना कर सकते हैं अथवा शांति भंग की आशंका के चलते नशे की हालत में उसे घर में दाखिल होने से मना कर सकते हैं। घर के बाहर उत्पात करने की स्थिति में परिजन उसे पुलिस के हवाले भी कर सकते हैं तथा नशेड़ी के अभिभावक या माता-पिता उसे बार-बार नशा करने के चलते अपनी चल अचल संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में 21 वर्ष का होते हुए भी उसे पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी नहीं दी जाएगी किंतु उसके खराब चाल चलन का पक्का सबूत माता-पिता को न्यायालय में प्रस्तुत करना होगा।
82. गृहस्थी प्रशिक्षण कानून
यह एक ऐसा कानून बने जिसके अंतर्गत नवविवाहित दंपत्ति को गृहस्थी प्रशिक्षण सरकार द्वारा दिलाना अनिवार्य हो। जो 3 से 6 माह का हो सकता है तथा ऑफलाइन और ऑनलाइन हो सकता है। इसे पूरा करना प्रत्येक दंपत्ति को आवश्यक हो। वह भी विवाह के 6 माह के अंदर इसकी पूरी रूपरेखा तथा क्रियान्वयन नागरिकता प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत होगा और उसी के अंतर्गत इसके नियम निर्धारित किए जाएं। इसमें तलाक को रोकने, टेंशन, डिप्रेशन से बचने हेतु, संतोष, फिजूल खर्च रोक, देखा देखी रोक, घर का मैनेजमेंट, बजट मेंटेनेंस, बड़े, बुजुर्ग, बच्चों, पारिवारिक सदस्यों से व्यवहार, जिम्मेदारी का प्रशिक्षण आदि संपूर्ण गृहस्थी के आवश्यक तत्वों का प्रशिक्षण शामिल हो।
83. मकानों/दुकानों द्वारा अतिक्रमण पर कानून
इस कानून के अंतर्गत सभी मकान मालिकों को जिनके मकान नवनिर्मित होंगे। उन्हें मकान निर्माण के समय 2 से 4 फीट की जगह छोड़कर मकान बनाना होगा जिसमें सीढ़ियां तथा बाइक या कार चढ़ाने की व्यवस्था बनाने की जगह मिल सके तथा किसी भी स्थिति में मकान के आगे की नालियां ब्लॉक ना हों। यदि उन्हें नाली पर कोई निर्माण करना हो तो निर्माण अस्थाई रूप से हो सकता हो। ऐसा नियम नए बन रहे मकानों पर लागू हो। इससे सड़क की अनावश्यक जगह घिरने से बचाया जा सकता है।
84. गौ पोषण कानून तथा पशु शेल्टर कानून
इस कानून के अंतर्गत जो भी गाय या गोवंश को पालने के बाद छोड़ेगा और उन्हें भटकने के लिए मजबूर करेगा उन सभी लोगों पर दंड व जुर्माने का प्रावधान होगा। गाय और गोवंश को पालने से पहले मानक तय किए जाएंगे जिसमें एक व्यक्ति के पास कितना खेत, मैदान, बांधने की जगह, खिलाने के लिए चारे की व्यवस्था इत्यादि को देखा जाएगा। गोवंश के जीवन की जिम्मेदारी पालने वाले की होगी। साथ ही वर्तमान में जो गाय और गोवंश समाज में छूटे हुए हैं। उन्हें गौशाला में एकत्रित करने और समाज में ना भटकने देने की जिम्मेदारी जिला अधिकारी, उप जिला अधिकारी, पंचायत, पालिका तथा निगम के अध्यक्षों की होगी। अपनी जिम्मेदारियों का पालन ना करते पाए जाने पर इन सभी पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाही अथवा कारावास होगा। इस तरह एक भी गाय को भटकते ना देने की योजना पर कार्य किया जाना चाहिए
इसके साथ ही समाज में कुत्तों और बंदरों का भी आतंक है। जो आवारा होकर गलियों में घूमते हैं। लोगों को काटते हैं अथवा लोगों का कीमती सामान उठाकर ले जाते हैं कई बार बंदरों के द्वारा छोटे बच्चों को ऊंचाई से फेंकने के केस भी सामने आए हैं। ऐसी स्थिति में सरकारी पशु शेल्टर हाउस बनाकर उनमें आवारा जानवरों को बंद करना सरकार की जिम्मेदारी होगी तथा कुत्तों और बंदरों पर नसबंदी कराने के बाद इन्हें सरकारी संरक्षण देने का कार्य सरकार का होगा। यदि कोई पालतू कुत्ता गली में किसी को काट लेता है ऐसी स्थिति में उस कुत्ते के मालिक को पूर्ण रूप से जिम्मेदार माना जाएगा। मालिक काटने वाले व्यक्ति के पूर्ण इलाज करवाने के लिए बाध्य तो होगा ही साथ ही उस पर जुर्माना भी किया जाएगा। साथ ही उस क्षेत्र का जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी दंडित किया जाएगा जिसने आवारा पशुओं के लिए शेल्टर हाउस नहीं बनाया होगा। ऐसा कानून बने।
85. ऑनलाइन साइबर ठगी में पकड़े जाने पर कानून
यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऑनलाइन या साइबर ठगी में पकड़ी जाती है तथा दोषी सिद्ध होती है तो उस पर कम से कम 10 साल का कठोर कारावास किया जाएगा। उस व्यक्ति या संस्था की व्यक्तिगत संपत्ति से ठगी के शिकार लोगों के धन की भरपाई की जानी चाहिए। ऐसा कानून बने। इसके साथ ही साइबर ठगी की शिकायत के लिए एक टोल फ्री नंबर, एप्लीकेशन, पोर्टल भी लांच हो जिस पर त्वरित कार्यवाही के दिशा निर्देश जारी हों। उन पर जो पदाधिकारी कार्यरत हों यदि वे एक निश्चित समय सीमा के अंदर ऑनलाइन या साइबर ठगी के मामलों का निस्तारण करने में असफल पाए जाएं अथवा लेटलतीफी करते दिखें तो उन पर भी दंडात्मक सजा या जुर्माने का प्रावधान हो।
86. एक स्त्री एक पुरुष विवाह का समान कानून
स्त्रियों की सामाजिक दशा सुधारने हेतु एक पुरुष के साथ एक स्त्री का विवाह कुछ धर्मों में पहले से ही कानूनी रूप से लागू है। किंतु कुछ धर्म, जातियों जनजातियों में यह कानून लागू नहीं है। ऐसे में इस कानून के अंतर्गत सभी धर्म, जाति और जनजातियों को लाना चाहिए जिसमें एक स्त्री और एक पुरुष का विवाह एक समय में मान्य होगा। तलाक देने अथवा दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर वे दूसरा विवाह कर सकेंगे। ऐसा कठोरतम कानून बने। यह कानून स्त्रियों की सामाजिक दशा सुधारने के लिए बहुत ही आवश्यक है।
87. बेहूदा प्रकार के डे तथा उन दिनों पर बेहूदगी पर प्रतिबंध
समाज में अनेक प्रकार के डे मनाए जा रहे हैं। वैलेंटाइन डे, किस डे, हग डे, रोज डे इत्यादि। इनमें कई मामले ऐसे सामने आ रहे हैं जिसमें छेड़छाड़ बदतमीजी या अश्लील हरकतें समाज में देखने को मिल रही हैं। सामाजिक गरिमा को देखते हुए इन डे पर बेहूदा हरकत करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। इन दिनों की आड़ में जो लोग समाज में अश्लीलता और बेहूदगी की हरकतें करते हैं। ऐसी हरकतें करने वालों के लिए सख्त कानून बने और एडवाइजरी जारी हो। यदि किसी डे की आड़ लेकर कोई व्यक्ति छेड़छाड़, बदतमीजी अश्लील हरकतें करता पाया जाए तो उसे सामान्य कानून से 4 गुना अधिक सजा का प्रावधान हो। ऐसा कानून बने।
88. प्लास्टिक, कागज तथा गैर खादी राष्ट्रीय झंडा छापने पर कानून
यदि कोई व्यक्ति या संस्था या कारखाना प्लास्टिक, कागज या खादी से अलग किसी अन्य सामग्री से तैयार राष्ट्रीय झंडे छापता है तो उस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगे। क्योंकि ऐसे झंडे प्रयोग के बाद अक्सर सड़कों, नालियों और कूड़ेदान में देखने को मिलते हैं। जो बहुत ही शर्मनाक है। छोटे बच्चों को देशभक्ति के लिए प्रेरित करने हेतु झंडे के तीन रंग केवल बैज, पट्टिका, बैंड इत्यादि पर अंकित किए जा सकेंगे किंतु उन्हें भी सम्मान सहित उपयोग के बाद संभालकर रखना अनिवार्य होगा। ऐसा कानून बने।
89. विवाह में वर तथा वधू पक्ष को बराबर सम्मान का कानून
इस कानून के अंतर्गत वर पक्ष द्वारा रीति-रिवाजों को लेकर वधू पक्ष के बड़े बुजुर्गों को वधू पक्ष के रिश्तेदारों, उम्र में छोटे लोगों, दामाद, उसके मां-बाप और अन्य रिश्तेदारों का जबरन तिलक करवाना, उनके पैर छूने को विवश करना, पैर धोने को विवश करना आदि कृत्य दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएंगे। ऐसा करने वाले वर पक्ष के लोगों पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान होगा। ऐसा कानून बने।
यदि कहीं परंपरा इसके उलट हो तो यही कानून वधू पक्ष पर भी लागू हो सकता है।
90. पारदर्शी जनमत संग्रह कानून
इस कानून के अंतर्गत जनता यदि सरकार से जनहित से जुड़ी कोई मांग उठाती है। तब वह केंद्र या राज्य सरकार से अपनी मांग को लेकर जनमत संग्रह का अधिकार रखेगी। सरकार को इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराना होगा। यदि 51 परसेंट संग्रह द्वारा वह मांग की जाती है तो उस मांग को पूरा करना होगा किंतु इस जनमत संग्रह की व्यवस्था पारदर्शी तथा इसमें शामिल होने वालों की संख्या अधिकतम होना चाहिए। कम से कम 70% और अधिक से अधिक 100% तक लोगों का इसमें भाग लेना अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त कुछ जनकल्याणकारी नीतियों की मांगें जोकि भले ही कम प्रतिशत लोगों द्वारा उठाई जाएं किंतु आवश्यक होने पर उन पर जनमत संग्रह कराया जाना अनिवार्य हो। ऐसी अनिवार्य मांगो की सूची सरकार द्वारा जारी की जाए।
91. तलाक के सेटलमेंट हेतु अवधि निश्चित करना
इस कानून के अंतर्गत जब पति पत्नी तलाक लेने या साथ रहने को लेकर दुविधा की स्थिति में हों अथवा ना तलाक ले रहे हों और ना साथ रह रहे हों किंतु उनका केस न्यायालय में चल रहा हो। ऐसी स्थिति में न्यायालय द्वारा उन्हें अधिकतम 1 वर्ष का समय दिया जाना चाहिए जिसमें उन्हें यह तय करना होगा कि या तो वे तलाक लेंगे अथवा साथ रहेंगे अन्यथा की स्थिति में न्यायालय को तलाक की पुष्टि करने का अधिकार होगा। क्योंकि ऐसे मामलों से न्यायालय का समय व्यर्थ होता है और कई बार इस बीच की अवधि का दुरुपयोग भी पति या पत्नी द्वारा होते हुए देखा गया है। इसमें यह आवश्यक है कि यदि पति या पत्नी अपने जीवनसाथी के साथ रहने को तैयार होते है और उसके बाद उन दोनों में से किसी के साथ भी शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार किया जाता है तो दोषी पति या पत्नी पर सामान्य सजा से दोहरी कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसके साथ ही यदि पति या पत्नी में से कोई एक नौकरी पेशा, व्यापारी अथवा आत्मनिर्भर है तो तलाक की स्थिति में उसे दूसरे का खर्च उठाना होगा लेकिन यह खर्च केवल तब ही तक उठाया जाएगा जब तक तलाक लेने वाला गैर आत्मनिर्भर साथी दूसरी शादी नहीं करता अथवा आत्मनिर्भर नहीं हो जाता यदि तलाकशुदा साथी दूसरी शादी कर लेता है अथवा लिव इन रिलेशनशिप या अवैध संबंधों में लिप्त पाया जाता है तो भी उसे किसी भी प्रकार का कोई भी खर्च आत्मनिर्भर साथी की ओर से नहीं दिया जाएगा।
92. सरकारी खाली जमीन पर पेड़ लगाने का प्रावधान
इस कानून के अंतर्गत सरकार की खाली जमीनों पर पेड़ लगाने हेतु नागरिकों को अधिकार दिया जाए। इसके लिए नागरिकों को सरकार से एप्लीकेशन दायर कर अनुमति लेनी होगी। जिसके बाद जांच और सर्वे इत्यादि कराया जाएगा। तत्पश्चात सरकार द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता या लेबर, सामग्री और पौधे के सुरक्षा उपकरण इत्यादि मुहैया कराए जाएंगे। इसके लिए एक अलग कोष रखना होगा। इससे तमाम खाली सरकारी जमीनों का तब तक सदुपयोग हो सकेगा जब तक उन पर कोई निर्माण नहीं हो रहा। इनमें सड़कों, नहरों, रेल पटरियों आदि के किनारे की जमीन भी शामिल होगी।
93. एनसीसी, एनएसएस की सभी को अनिवार्यता
इस कानून के अंतर्गत एनसीसी तथा एनएसएस प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए। इन दोनों में से किसी एक संस्था से जुड़ कर कम से कम 2 वर्ष का प्रशिक्षण हर विद्यार्थी को अनिवार्य होगा। जिन्हें सेना, पुलिस इत्यादि में जाना हो उन्हें शारीरिक मानकों में पूर्व के नियमानुसार छूट मिलेगी लेकिन यह प्रशिक्षण करना सभी को अनिवार्य होगा।
94. सरकारी या प्राइवेट संस्था में लाइन लगवाने पर कानून
इस कानून के अंतर्गत किसी भी सरकारी या प्राइवेट संस्था, दफ्तर, कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि के बाहर ग्राहकों, याचकों, विद्यार्थियों या अपने किसी कार्य के लिए आए लोगों को लाइन में खड़ा करना दंडनीय अपराध होगा यदि उन्हें धूप में खड़ा किया जाता है तो दोषी पर और संगीन धाराएं लागू की जाएंगी। उन्हें बिठाने की सुलभ व्यवस्था तथा छायादार व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसा सुनिश्चित किया जाए। अथवा एक ऐसी व्यवस्था तैयार की जाए जिसमें उन्हें उनके दिए हुए समय पर बुलाया जाए ताकि वे अपने दैनिक जीवन के अन्य आवश्यक कार्य निपटा सकें। अधिक से अधिक कार्य ऑनलाइन, पत्राचार के माध्यम से हों। इस कानून का पालन ना करने वाली सरकारी संस्थाओं, संस्थानों या प्राइवेट संस्थान या संस्थानों पर कठोरतम सजा का प्रावधान होना चाहिए।
95. दवा, वस्त्र, मंजन आदि के नाम पर पशु हत्या बैन
कई दवाओं को बनाने के लिए बेजुबान जानवरों को मारा जाता है। कई झोलाछाप, नीम हकीम जानवरों को मारकर उनके द्वारा बीमारियों के समाधान का इलाज बताते हैं। जैसे कबूतर से फालिस का इलाज बताया जाता है। इसी प्रकार अंग्रेजी दवाइयों के टॉनिक इत्यादि बनाने में भी तथा दंत मंजन बनाने में भी पशुओं की हड्डियों और पशुओं की देह के अन्य तत्वों का उपयोग किया जा रहा है।
जूते बनाने, पोशाकें बनाने में भी जानवरों की चमड़ी का उपयोग हो रहा है।
इस पर ठोस कानून बने कि किसी भी दवा, घरेलू उपयोग, पहनने, ओढ़ने के वस्त्र आदि के लिए किसी भी जीवित पशु को मारने पर कम से कम 10 साल की कैद तथा कठोर जुर्माने का प्रावधान हो।
96. बैंक केबिन में सामान्य व्यक्ति का घुसना दंडनीय
आमतौर पर देखा जाता है कि बैंकों में जहां जनसामान्य लाइनों में लगकर अपने कार्य के लिए घंटो बर्बाद करता है। वहीं कुछ खास और वीआईपी लोग अथवा धनी वर्ग के लोग या व्यापारी लोग सीधे केबिन में घुसकर काउंटर से अपना काम पहले करा लेते हैं और आम आदमी लाइन में खड़ा मूर्ख बनता है।
ऐसे कृत्य सामने आने पर बैंक स्टाफ पर कठोर जुर्माने और सजा का प्रावधान हो। साथ ही किसी भी खास व्यक्ति का कार्य करते हुए कर्मचारी के पास / केबिन में सीधे प्रवेश वर्जित हो। इसमें एक व्यवस्था की जा सकती है कि जिन लोगों को एक लाख से अधिक जमा या निकासी करनी हो। ऐसे लोगों के लिए एक अलग काउंटर या केबिन की व्यवस्था की जा सकती है जिसमें वे सुरक्षा की दृष्टि से अपना लेनदेन कर सकें किंतु सामान्य काउंटरों पर कार्य को बाधित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा कानून बने। बैंक मैनेजर का केबिन इस कानून के दायरे से बाहर रहेगा।
97. बैंक या सरकारी दफ्तरों की मशीनें खराब होने पर कानून
इस कानून के अंतर्गत किसी भी सरकारी दफ्तर या बैंक के अंदर कोई उपकरण या मशीन खराब होने की जिम्मेदारी संबंधित दफ्तर के स्टाफ की होगी। उन्हें तत्काल अपने सीनियर अधिकारियों को सूचित करना होगा। यदि सीनियर अधिकारियों के द्वारा उन मशीनों की मरम्मत कराने या उन्हें दोबारा व्यवस्थित करने में लेटलतीफी दिखाई जाती है अथवा इस मांग को टाला जाता है या फंड नहीं दिया जाता है तो ऊपरी अधिकारियों पर भी दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो। यदि ऊपरी अधिकारियों को मंत्रालय या विभाग के द्वारा फंड नहीं दिया जा रहा है तब ऐसी स्थिति में मंत्रालय और विभाग को भी दंडात्मक कार्यवाही की श्रेणी में लाया जाए।
पूरे सिस्टम में सुधार के लिए मशीनों की मरम्मत और उनके पुनः स्थापन का एक टाइम पीरियड या समय अवधि निर्धारित की जाए। यदि उस समय अवधि में व्यवस्था ना की जाए तो जो भी दोषी हो उस उस अधिकारी या कर्मचारी को तत्काल दंड व सजा से मुखातिब कराया जाए। ऐसा कानून बने।
यदि मंत्रालय या विभाग में बजट का अभाव है उस स्थिति में सजा का प्रावधान लागू नहीं होना चाहिए। किंतु इसकी सूचना सार्वजनिक विज्ञापन के द्वारा जनता को देना आवश्यक हो कि मंत्रालय अथवा विभाग के पास मशीन को संभलवाने अथवा लगवाने का धन नहीं है जिससे दफ्तर के कर्मचारियों को जनता की गालियां ना खानी पड़ें और असली कसूरवार सामने आएं।
98. सभी विभागों के बाहर संबंधित कार्यों के कागज नियम और शर्त के बोर्ड
सभी सरकारी व अर्ध सरकारी विभागों, दफ्तरों आदि के बाहर प्रायः लोग आते हैं जिन्हें अपना कोई आवश्यक कार्य कराना होता है किंतु उन्हें यह नहीं पता होता कि उन्हें कौन से डॉक्यूमेंट सबमिट करने हैं अथवा किस व्यक्ति को लेकर आना है, कितने फोटो लगाने हैं आदि आदि।
इस असुविधा से बचने के लिए एक कानून बने कि सभी सरकारी व गैर सरकारी विभागों और दफ्तरों के बाहर अथवा अंदर सार्वजनिक एरिया में बड़े बोर्ड लगाकर किस कार्य को कराने के क्या नियम शर्ते कागजात आवश्यक हैं सब लिखा रहना चाहिए और लिखे जाने की भाषा क्षेत्रीय भाषा भी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। जिससे व्यक्ति उसे पढ़कर या पढ़वाकर बार-बार के चक्कर से बच सके और सभी दस्तावेजों को इकट्ठा कर सके।
99. विभाग या ब्रांच पर कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या ना होने पर कानून
इस कानून के अंतर्गत यदि किसी विभाग या ब्रांच में कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या नहीं है तथा नई कर्मचारी भर्ती की मांग भी की जा रही है किंतु इस मांग पर सुनवाई नहीं हो रही है तो ऐसी स्थिति में एक समय, अवधि निश्चित की जाए यदि उस समय अवधि में पदों को नहीं भरा गया और नए कर्मचारी उपलब्ध नहीं कराए गए तो चयन विभाग, मंत्रालय तथा दोषी सभी सरकारी तत्वों को सजा का प्रावधान किया जाए और यह सजा लोकपाल अथवा राज्य, केंद्रीय न्यायाधीश के द्वारा दी जाए। इस प्रावधान में बजट के अभाव को छोड़कर यह सजा लागू होनी चाहिए। किंतु यदि बजट का अभाव है तो सरकार को अथवा संबंधित मंत्री को जनता को लिखित तथा मौखिक रूप में अथवा समाचार पत्रों के माध्यम से या मीडिया लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से तथा सोशल मीडिया के माध्यम से जन-जन तक यह बात पहुंचानी होगी कि उनके पास बजट का अभाव है इसलिए भर्ती करने में वे सक्षम नहीं हैं। यदि वे अपनी बात जन जन तक नहीं पहुंचा पाते तो उन पर दोहरी कार्यवाही हो।
100. सड़क तथा सरकारी जमीन के कुछ महत्वपूर्ण कानून
यदि राष्ट्रीय/राजकीय, अन्य मार्ग या सड़क बनाई जा रही है और उनके बीच डिवाइडर दिए जा रहे हैं उस स्थिति में तिराहे, चौराहे तथा जिस स्थान पर दाएं बाएं दोनों तरफ से अभी तक जनता के निकलने का मार्ग था वह बाधित ना हो इसलिए फुट ओवर ब्रिज तथा ओवरब्रिज बनाना अनिवार्य हो जिससे सड़क के बाएं और दाएं ओर का मार्ग बाधित ना हो। यह ओवर ब्रिज भीड़ के अनुपात को लेकर जगह-जगह पर बनाना अनिवार्य होगा क्योंकि इन बड़े डिवाइडर का सबसे ज्यादा नुकसान स्कूल जाने वाले बच्चों, मेहनत मजदूरी करने वालों, रिक्शा ठेला आदि लगाने वाले लोगों को होता है। इसलिए उनके लिए ओवरब्रिज की व्यवस्था अनिवार्य होगी। ओवरब्रिज व्यवस्था ना होने की दृष्टि में सभी दोषी पदाधिकारियों, मंत्रियों आदि पर दंड एवं जुर्माने का प्रावधान हो।
दूसरे कानून में यदि सड़क के किनारे की जमीन जो सरकार की नाप में आ रही हो उस पर कोई व्यक्ति रजिस्ट्री कराता है अथवा किसी दूसरे ग्राहक को बेचते समय रजिस्ट्री कराता है। ऐसी स्थिति में रजिस्ट्री अधिकारी को यह जानना आवश्यक है कि वह जमीन सरकारी जमीन तो नहीं है। यदि सरकारी जमीन पर रजिस्ट्री होती है और उस पर आवास बनकर तैयार होता है तथा बाद में उस अतिक्रमण को हटाने के नाम पर आवास पर बुलडोजर चलाया जाता है ऐसे में आवास के स्वामी का जितना भी धन मकान टूटने में खर्च होगा। वह रजिस्ट्री अधिकारी की व्यक्तिगत संपत्ति से तथा उस रजिस्ट्री में दोषी सभी तत्वों की संपत्ति से वसूला जाएगा। साथ ही उन्हें सेवा से पद मुक्त कर दिया जाएगा।
किसी भी प्रकार की सरकारी जमीन पर रजिस्ट्री होने की दशा में दोषी रजिस्ट्री अधिकारी तथा अन्य कर्मचारी, अधिकारी पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो। ऐसा कानून बने।
101. नौकरी के आवेदन में एप्लीकेशन चार्ज पर नियंत्रण
केन्द्र, राज्य, निगम या पंचायत, यूनिवर्सिटी, कॉलेज, प्राइवेट संस्थाओं की भर्ती प्रक्रिया पर जो एप्लीकेशन चार्ज अभ्यर्थियों से वसूला जाता है वह एक प्रकार का व्यापार बन गया है क्योंकि एप्लीकेशन चार्ज वसूलने की कोई अधिकतम सीमा नहीं है। इसलिए सभी संस्थाएं मनमानी पर उतारू हैं। ऐसे में यह कानून बने कि सभी सरकारी या प्राइवेट संस्थाओं में पदों के हिसाब से अधिकतम एप्लीकेशन शुल्क सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा और उस शुल्क से अधिक यदि कोई भी संस्था या संस्थान अभ्यर्थियों से एप्लीकेशन चार्ज वसूल करेगा तो उस पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान होगा अथवा उसकी मान्यता सदा के लिए समाप्त की जाएगी। ऐसा कानून बने।
केंद्र व राज्य सरकार की ओर से आवेदन शुल्क पर सब्सिडी भी दी जा सकती है।
102. ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में आवेदन शुल्क तथा शिक्षण शुल्क में छूट का प्रावधान
ईडब्ल्यूएस कैटेगरी गरीब सवर्ण योजना है जिसके अंतर्गत ऐसे अभ्यर्थियों को आवेदन शुल्क में छूट तथा अपनी पढ़ाई के दौरान शिक्षण शुल्क/कोर्स फीस में भी छूट प्रदान की जानी चाहिए। ऐसा कानून बनना चाहिए और इसके दायरे में सभी सरकारी संस्थाएं व संस्थान लाए जाने चाहिए। इस नियम का पालन ना करने वालों पर कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए।
103. स्वदेशी अभियान हेतु कानून
(अ) इस कानून के अंतर्गत जिस क्वालिटी का प्रोडक्ट हमारे देश में बन रहा है यदि उतनी ही क्वालिटी का विदेशी प्रोडक्ट विदेशी कंपनियां हमारे देश में बेचने की कोशिश करें तो उस पर पूर्ण रूप से बैन लगे।
(ब) जिस प्रोडक्ट या सेवा का उत्पादन भारत में प्रचुर मात्रा में है उसका विदेश से आयात या विदेशी कंपनियों को उसका भारत में व्यापार करना पूरी तरह प्रतिबंधित हो। जैसे हम अपने यहां जूते, कैप, साबुन, तेल, शैंपू आदि बना सकते हैं। ये चीजें बनाने तथा बेचने अथवा आयात करने के लिए हम विदेशियों पर निर्भर क्यों रहें। हमें पहले अपने राष्ट्र के व्यापारियों को तथा स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए ऐसा कानून बने।
(स) विदेशी ब्रांड के स्टीकर पर कानून लगे। आजकल देखा जा रहा है कि विदेशी कंपनियां उत्पादों पर अपने ब्रांड का स्टीकर लगाकर भारत में 2 से 4 गुना अथवा कई गुना महंगे दामों पर बेच रही हैं जबकि उसी क्वालिटी का प्रोडक्ट लोकल मार्केट में उससे बहुत ही कम कीमत पर मौजूद है। ऐसी विदेशी कंपनियों और उनके ब्रांड स्टीकर की जांच होना चाहिए। वे जितना मूल्य भारत में वसूल रही हैं क्या उनका प्रोडक्ट उतनी गुणवत्ता योग्य है या नहीं? जांच में अपनी क्वालिटी के अनुरूप अत्यधिक कीमत वसूलने वाले सभी ठग विदेशी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को पूरी तरह भारत में बैन किया जाए। सभी विदेशी कंपनियों को भारत में अपने प्रोडक्ट बेचने से पहले सरकार की अधिकतम मूल्य निर्धारण नीति से गुजरना पड़े। सरकार विदेशी प्रोडक्ट्स की बिक्री पर अधिकतम मूल्य निर्धारण की नीति बनाए तथा प्रोडक्ट वाइज अधिकतम मूल्य निर्धारण करे। ऐसा कानून बने।
104. तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने पर कानून
धर्म ग्रंथों के तथ्यों, इतिहास के तथ्यों, किसी व्यक्ति या संस्था के प्रति तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना, किताब छापने, अपने मन से अतार्किक व्याख्या करने या टीवी सीरियल, फिल्म, वीडियो या अन्य सामग्री बनाने पर बनाने वाले व्यक्ति या संस्था से उस धर्म के विद्वान गणों से सार्वजनिक लाइव शास्त्रार्थ कराया जाए अथवा स्पष्टीकरण मांगा जाए यदि वह जानकारी जो दोषी के द्वारा दी गई है वह गलत साबित हो, अप्रमाणित हो और साबित हो कि तथ्य को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है तो ऐसे दोषी व्यक्ति, संस्था, चैनल, प्रकाशक आदि पर कठोरतम दंड व जुर्माने का प्रावधान हो क्योंकि ऐसे लोग अधिकतर किसी व्यक्ति या संस्था का एजेंडा चलाते हैं या किसी धर्म, जाति, संप्रदाय, व्यक्ति या संस्था के खिलाफ बेवजह जहर उगलते हैं अथवा उनको झूठा बदनाम करने की कोशिश करते हैं। इन पर यह कानून लागू होना अनिवार्य है।
105. राष्ट्रीय मुद्रा नोट व सिक्कों पर कानून
यदि राष्ट्रीय मुद्रा नोट और सिक्कों को शादी समारोह, खुशी के उत्सव आदि में उछाला, फेंका लुटाया आदि जाए तो यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। ऐसा करने वाले और कराने वाले दोषी तत्वों पर जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए। क्योंकि यह हमारे देश की राष्ट्रीय मुद्रा है।
106. दफ्तरों, विभागों और संस्थाओं में अशिक्षित लोगों के लिए अलग काउंटर का प्रावधान
सभी सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों, संस्थानों, संस्थाओं, विभागों, कार्यालयों इत्यादि में अशिक्षित या अनपढ़ लोगों हेतु एक अलग काउंटर की व्यवस्था होनी चाहिए जिस पर एक सहायक कर्मचारी बैठा होना चाहिए जिसे नैतिकता का भली-भांति ज्ञान होना चाहिए। यदि कोई अशिक्षित व्यक्ति उस काउंटर पर जाता है तो उसे वहां आवश्यक जानकारी, अपने कार्य कराने हेतु फार्म भरने में मदद, किसी भी समस्या का समाधान, जरूरी कागजात संबंधित समस्या का समाधान आदि उपलब्ध होना आवश्यक हो। यह काउंटर जिस दफ्तर, विभाग या संस्था में नहीं पाया जाएगा उनके उच्चाधिकारियों अथवा दोषी अधिकारियों पर दंड तथा जुर्माने का प्रावधान होगा। भर्ती के अभाव में अथवा कर्मचारी अभाव में चयन विभाग व संबंधित मंत्रालय को दंडित किया जाएगा और बजट के अभाव में पूर्ववत मंत्रियों तथा सरकार को बताना होगा कि उनके पास बजट का पैसा नहीं है, वह भी सार्वजनिक रूप से। ऐसा कानून बने।
107. स्टंट तथा खतरनाक हरकत / एक्शन पर कानून
सभी प्रकार के खतरनाक स्टंट करना, जानलेवा हरकतें करना, पहाड़ों से कूदना, बीच सड़क पर दौड़ना, गहरी नदियों में कूदना, ट्रेन के पास खड़े होकर फोटो शूट करना, ट्रेन से बाहर लटकना इत्यादि हर प्रकार की ऐसी हरकत जिसमें किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह की जान जाने का खतरा अथवा व्यक्ति की स्वयं की जान जाने का खतरा हो ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित कर उन पर कठोर दंड व जुर्माने का प्रावधान हो। क्योंकि ऐसे लोग ऐसी बेहूदा हरकतों के द्वारा दूसरे लोगों को भी खतरनाक हरकत और स्टंट करने के लिए प्रेरित करते हैं जो कि जानलेवा होती हैं।
108. अनिवार्य घरेलू सोलर प्लांट योजना
इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक गृहस्थी को सरकार की ओर से सब्सिडी पर 500 वाट, 1 किलो वाट अथवा 2 किलो वाट की सोलर सेटअप योजना से जोड़ा जाए। जिसमें सौर ऊर्जा द्वारा बिजली बनाने का विकल्प नागरिकों को दिया जाए। इसके लिए उनसे आसान किस्तों में एकमुश्त धनराशि सब्सिडी के साथ जमा कराइ जाए। योजना बिजली की बचत तो कराएगी ही साथ ही पर्यावरण प्रदूषण के खतरे से बचाते हुए सौर ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार के विकल्प भी खोलेगी किंतु यह योजना प्रत्येक घर के लिए आवश्यक हो जो बिजली बिल मीटर धारक हैं। जिस प्रकार उपभोक्ता वर्षों से बिजली का बिल चुकाते आ रहे हैं। उसके स्थान पर वे सौर ऊर्जा प्लांट की किस्तें भी चुका सकते हैं। इससे सरकार पर बिजली उत्पादन का अतिरिक्त बोझ भी बचेगा। जिन लोगों के पास पहले से ही सोलर प्लांट हैं तथा वे मीटर धारक नहीं हैं और भीषण गरीबी का सामना कर रहे हैं ऐसे लोगों को चिन्हित करके उनको निशुल्क सोलर पैनल योजना के द्वारा जोड़ा जा सकता है।
109. सिविल सेवा में लेटरल एंट्री पर पूरी तरह बैन
सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री को पूरी तरह बैन किया जाए। इससे सिविल परीक्षाओं की तैयारी हेतु मेहनत करने वाले युवाओं के सपने तो टूटते ही हैं साथ ही रोजगार की दृष्टि से भी यह उचित नहीं है तथा चाटुकारिता, सुनियोजित योजना के अंतर्गत प्रमोशन लेने का यक्ष प्रश्न भी सदैव उठता है।
110. भ्रष्टाचार में दोष सिद्ध होने पर गबन की गई रकम वसूली का प्रावधान
हम अक्सर देखते हैं कि जब अधिकारी राजनेता अथवा जिम्मेदार अथॉरिटी को किसी भ्रष्टाचार के मामले में दोषी सिद्ध किया जाता है तो उसे सजा, कारावास या जुर्माना लगाकर जेल भेज दिया जाता है किंतु उसने जिस धनराशि का गबन किया उसकी रिकवरी कैसे हो? उस गबन में कौन-कौन से तत्व शामिल थे? गबन की गई धनराशि किस किस के पास पहुंच चुकी है? सभी जिम्मेदार तत्वों से धनराशि कैसे वसूल की जाए इस पर एक ठोस कानून पारित होना आवश्यक है। इस कानून में भ्रष्टाचार में दोष सिद्ध होने पर व्यक्ति तथा जिम्मेदार व्यक्तियों, तत्वों से 100% गबन की रकम वसूली का प्रावधान हो।
111. पीड़ादायक पीरियड/ मासिक के समय महिलाओं को नौकरी तथा शिक्षा में उपस्थिति में छूट
महिलाओं को मासिक अथवा पीरियड के समय कभी-कभी गंभीर शारीरिक समस्यायों से गुजरना होता है तथा उनका मानसिक संतुलन भी उन दिनों अच्छा नहीं होता। ऐसी स्थिति में उन्हें सरकारी या गैर सरकारी नौकरी में अवकाश मांगने पर अवकाश देने तथा उस अवकाश के वेतन को ना काटने की सुविधा हो। इसी प्रकार किशोर तथा युवा बच्चियों को स्कूल, कॉलेज आदि में शिक्षा के दौरान ऐसी शारीरिक समस्या होने पर उपस्थिति में छूट का प्रावधान हो। उन्हें ऐसी स्थिति में स्कूल बुलाए जाने पर बाध्य नहीं किया जा सकेगा। यदि स्वैच्छिक रूप से वे आना चाहें तो आ सकती हैं।
इस प्रकार मेरे (लेखक) के द्वारा 111 कानूनों अथवा कानून संशोधनों की एक पुस्तक तैयार की गई है। यह भारत के विकास से संबंधित पुस्तक का पहला भाग है। इसका दूसरा भाग आगे जारी किया जाएगा।
यदि आपको इस पुस्तक में दिए गए सुझाव तथा विचार पसंद आए हैं तो आप सभी से आशा है कि आप अपने जनप्रतिनिधियों / नेताओं तक इन मांगों को पहुंचाएंगे तथा भविष्य में जन हित की इन मांगों को लागू करवाने के लिए किसी क्रांति या आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।