बाबर को हिंदोस्तान का ताज पानीपत जितने से नही मिला बल्कि जब खानवा में उसकी तोपों के सामने सांगा के राजपूत पीछे हटे और फिर कुछ समय बाद सांगा को किसी अपने ने ही विष देकर मार दिया तो बाबर " हिंदोस्तां" का शासक बन बैठा।
इतिहासकार मेवाड़ में गुहिलोत राजपूतों के शासक बनने का वर्ष 734 ईस्वी को मानते हैं जब नागदा " मेवाड़" के गुहिलोतो की राजधानी बनी ।फिर 948 ईस्वी में राजधानी बनी " अहर" ।1213 ईस्वी में चित्तौड़ " मेवाड़" के गुहिलोतो की राजधानी हुई।
इनके शासन को पहली बड़ी पराजय 1303 ईस्वी में मिली जब अलाउद्दीन खिलजी के हाथों रावल रतन सिंह को पराजय मिली ।
पर यह हार क्षणिक ही थी और वहां गुहिलोतो ने संघर्ष जारी रखा और 1326 ईस्वी में सिसोदा गांव के गुहिलोत वंशी राणा हम्मीर ने तुर्को को पराजित कर मेवाड़ पुनः गुहिलोतो के लिए जीत लिया । राणा हम्मीर से गुहिलोतो की यह शाखा सिसोदिया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
इसके बाद मेवाड़ निरंतर मजबूत होता रहा । तीन तरफ से दिल्ली ,मालवा और गुजरात सल्तनत से घिरे होने के बावजूद इन्होंने ना सिर्फ अपना वजूद बनाए रखा अपितु निरंतर वो इन सल्तनत को हराते रहे।
राणा सांगा के मेवाड़ के शासक बनने पर मेवाड़ अत्यंत ही मजबूत हो चुका था और सांगा निरंतर ही दिल्ली ,मालवा और गुजराती सुलतानों को पराजित कर रहे थे ।
उनकी सेना एक तरफ झुंझनू तो दूसरी तरफ आगरा के आस पास पहुंचने लगी थी ।वो मालवा और गुजरात में जाकर शत्रु को नुकसान पहुंचा रहे थे ।
जब हिंदुस्तान में बाबर का आगमन हुआ तो सिर्फ तीन ताकते थी जो उसे चुनौती दे सकती थी ।एक थे मेवाड़ के राजपूत ,दूसरे अफगान और तीसरे विजयनगर कर्नाटक के हिंदू शासक ।
बाबर ने पानीपत की लड़ाई में अफगान ताकत को बुरी तरह हराया और दिल्ली एवम आगरा पर काबिज हो गया ।उसने अफगानों को पूरब तक सीमित कर दिया ।
अब बाबर के लिए उत्तर भारत में एक ही चुनौती बची और वो थे राणा सांगा।
बाबर को सूचना मिली की सांगा अपनी सेना के साथ आगे बढ़ रहे हैं । बाबर और उसकी उज़्बेक फौज को राणा की ताकत का पूरा अंदाजा था ।
दोनो में सबसे पहला टकराव बयाना में हुआ जब उज़्बेक सेना को सांगा की फौज के सामने से भागना पड़ा ।बयाना में मिली हार ने बाबर की फौज में भय उत्पन्न कर दिया था लेकिन बाबर किसी कीमत पर हारना नही चाहता था ।उसने मजहब का वास्ता देकर अपने लड़ाकों को पीछे हटने से रोक दिया।
खनवा के मैदान में राणा और बाबर का आमना सामना हुआ ।यहां मध्य एशिया से लाई गई cannons ( तोपे) सांगा की फौज पर भारी साबित हो गई।
राजपूत घुड़सवार बाबर की फौज के पास भी नही पहुंच पा रहे थे तोपो के हमले से ।
अंततः राणा को पीछे हटना पड़ा पर राणा की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है और वो पुनः अपनी सेना को एकत्र करने लगते हैं बाबर के खिलाफ लेकिन कोई अपना ही उन्हें धोखा दे जाता है और उन्हे विष देकर मार देता है।
यदि सांगा के साथ धोखा नही होता तो हिंदोस्ता की कहानी शायद कुछ और ही होती।