Part - 31 Bridge memories
अवनी और पवन उसी पुल पर वापस जाते है | ठंडी ठंडी हवाएं चल रही होती है, अवनी और पवन चलते चलते उसी वजीराबाद के पुल पर पहुँच जाते हैं, जहाँ वो पहली बार मिले होते हैं | दोनों एक दुसरे की तरफ देखके मुस्कुराते हैं | दोनों की यादें ताज़ा हो जाती हैं |
अवनी – यकीन नही होता ना की एक साल बीत गया हमे एकसाथ | ( हस्ते हुए ) हम दोनों कितने पागल से थे ना |
पवन – हम दोनों नही, सिर्फ तुम | पागल लड़की ! महारानी चली थी अपनी जान देने | अगर मैं नही बचाता तुम्हे, तो अबतक तो चुड़ैल बन गयी होती | ( हस्ते हुए ) और रोज़ मुझे पापी गुडिया की तरह डराती |
अवनी – what nonsence ! सबसे जादा तो तुम ही डरे हुए थे | डर के मारे मेरे पैर देख रहे थे कि कहीं मैं चुड़ैल तो नही हूँ, हा हा हा ! डरपोक |
पवन – अब इसमें मेरी क्या गलती इतनी रात को तो सिर्फ भूत प्रेत ही निकलते है ब्रिज पे | और मेरी जगह और कोई होता न मैडम तो डर के भाग जाता | मेने तो बात की थी तुमसे | बहुत हिम्मती हूँ मैं, समझी मैडम |
अवनी – हाँ हाँ सब पता है मुझे तुम कितने हिम्मती हो | उस दिन गोदाम में रुपेश को भी भूत समझ के मारने वाले थे | हा हा हा, और कहते हो की डर नहीं लगता | तुमसे बड़ा डरपोक कोई नही है|
पवन – तुम दोनों भाई बहन के पास कोई काम वाम नही है क्या | रात को भूत प्रेत कि तरह घूमते हो | और दोनों को ही धोकेबाज़ लवर्स ही मिलते हैं | दोनों पागल हो |
अवनी पवन को मारने के लिए भागती है, पवन आगे आगे भागता है और अवनी पीछे पीछे ! फिर दोनों थक जाते है
अवनी – अच्छा रुको रुको ! बहुत हो गया अब | में थक गयी हूँ | वेसे thank you so much पवन | तुमने अगर उस दिन मेरी लाइफ में एंट्री नही मारी होती तो आज मेरी इस दुनिया से एग्जिट हो चुकी होती | और फिर मुझे उस आलोक की सच्चाई के बारे में भी कभी पता नही चल पाता | तुम मेरे कुछ भी नही थे फिर भी तुमने मेरी इतनी हेल्प की | पहले मुझे ब्रिज से कूदने से बचाया, फिर मुझे घर ले गये, मेरे माँ पापा को मनाया | बाद में कैलिफ़ोर्निया में भी तुम नही आते तो मैं तो उस आलोक के चक्कर में ही फसी रह जाती | तुम्हारी ही वजह से मैं अपनी फॅमिली से वापस से मिल पायी |
thank you, thank you, thank you !!
पवन – अरे ! अरे! बस भी करो बाबा ! कितनी बार thank you बोलोगी |
अवनी – मैं तुम्हारे किसी भी काम आ सकू तो बताना |
पवन – हाँ फिलहाल तो तुम मेरे एक काम आ सकती हो |
अवनी – क्या ?
पवन – मुझे बहुत तेज़ की भूक लगी है, चलो किसी अछे से होटल में खाना खा के आते है ! चलोगी मेरे साथ ?
अवनी – बस इतनी सी बात ! नेकी और पूछ पूछ | भूख तो मुझे भी लगी है | चलो चलते है लेकिन होटल मेरी पसंद का ही होगा, मैं एक बहुत अच्छा सा होटल जानती हूँ, वहीँ चलेंगे |
पवन – ओके ! मैडम, जैसी आपकी मर्ज़ी | पर वहां खाना तो मिलता हैं ना ?
दोनों हस्ते हैं |
अवनी और पवन एक ग्रैंड होटल में खाना खाने जाते है और जैसे ही पवन होटल के सामने गाडी से उतरता है, उसके पसीने छूटने लगते हैं |
अवनी – अरे पवन तुम्हे इतने पसीने क्यों छुट रहे है ?
पवन ( हिचकिचाते हुए ) – कुछ नही वो गर्मी जादा है ना शायद इसलिए |
होटल में सुन्दर सुन्दर लाइट्स लगी थी, बैकग्राउंड में रोमांटिक गाना चल रहा था पवन अवनी को चेयर ऑफर करता है, फिर दोनों बैठ जाते है |
अवनी – wow ! यहाँ का अम्बिएंस कितना सुंदर है ना | how beautiful !!
वेटर – अरे सर आप यहाँ ?
पवन ( खांसने लगता है ) उहु उहु उहु ! – अवनी में अभी आता हूँ तुम आर्डर लिखवा दो |
बिना कुछ सुने ही वो वेटर को इगनोर करके वहां से चला जाता है | असल में ये होटल पवन का ही होता है | पवन अलग से मेनेजर के पास जाता है और वहां जा के उसी सब समझाता है कि सबको बोल दो कि कोई भी रियेक्ट ना करे | उस लड़की को पता नही लगना चाहिए कि यह होटल मेरा है और फिर पवन वापस अवनी के पास जाता है |
पवन ( अवनि से ) – sorry वो मुझे खासी सी आ गयी थी इसलिए जाना पड़ा | तुमने कर दिया आर्डर ?
अवनी – हाँ मंगा लिया मैंने | तुम्हारे लिए वेज थाली, गुलाब जामुन के साथ और मेरे लिए चाइनीज़ प्लेटर |
पवन – तुम्हे याद था कि मुझे गुलाब जामुन पसंद है ?
अवनी – बिलकुल !! याद क्यों नही होगा | ( शर्माते हुए ) तुम्हारी पसंद याद नही रहेगी तो और किसकी रहेगी |
पवन – हम्म, वैसे इस होटल के बारे में कैसे पता चला तुम्हे ?
अवनी – अरे ये तो काफी फेमस होटल है यहां का, यहां का खाना बहुत टेस्टी है | तुम खुद खा के देख लेना अभी |
अवनी- तो कैसी लगी मेरी चॉइस ?
पवन ( जोर से हस्ते हुए ) – हा हा हा !! पहली बार तुम्हारी कोई चॉइस अछि निकली है |
अवनी – अच्छा बेटा ! हसलो ! उड़ा लो मेरा मज़ाक ! एक तो इतनी अछि जगह लायी, इतना अच्छा खाना खिलाया और तुम मेरा ही मज्जाक उड़ा रहे हो |
अवनी – वैसे बात तो तुमने सही कही है | और जोर से हस्ती है |
( दोनों जोर से हस्ते है | )
फिर दोनों वहां से खाना खा के निकलते है | पवन टैक्सी करता है |
अवनी – मैं अकेले चली जाऊँगी | तुम जाओ |
पवन – अरे नही नही, मैं कोई रिस्क नही ले सकता इस बार | तुम वैसे भी सीधा आउट ऑफ़ इंडिया ही जाती हो | मेरे बहुत पैसे खर्च करवा दिए है तुमने, विदेश जाने के चक्कर में | चलो मैं तुम्हे घर तक छोड़ कर आउगा |
अवनी – अरे में हर बार थोड़ी भाग जाऊँगी यार ! तुम्म तो मेरी टांग खीचते रहते हो | अच्छा चलो फिर ! अब मैं कुछ नही बोलूगी |
पवन टैक्सी करता है और दोनों अवनी के घर जाते हैं |
पवन और अवनी देखते हैं की घर पे सबके चेहरे लटके हुए होते है | सब एकदम चुप चाप खड़े होते है | अवनी के पापा अपने सर पे हाथ रख के बैठे होते है |
अवनी की मम्मी – अरे तुस्सी चिंता ना करो ! सब ठीक हो जायेगा | आप इतनी टेंशन लोगे तो आपकी तबियत भी ख़राब हो जाएगी | आपने दवाई भी नही ली है |
सुरेश जी – ओये भाड़ में जाए दवाई ! नही खानी कोई दवाई मुझे | आज बोहोत बेज्ज़ती हो गयी मेरी | पता नही किसकी मनहूस शकल देखी थी मैंने आज सुबह | मेरी फूटी किस्मत !
अवनी – क्या हुआ पापा ? मम्मी ? सब इतना उदास क्यों हैं ? सब ठीक तो है ?
अवनी – अरे कोई कुछ बता क्यों नही रहा मुझे ? बोलो भी !
अवनी की माँ – बेटा, आज का दिन ही ख़राब है | तू तो जानती है कि तेरे पापा ने शुरू से कितनी मेहनत की है अपने काम में | दिन रात एक करदिये, तब जा कर आज इन्होने अपना इतना नाम बनाया है, समाज में इतनी इज्ज़त है इनकी |
अवनी – हाँ मम्मी, पर हुआ क्या ?
अवनी की माँ – तेरे पापा को उनकी पार्टी से निकाल दिया है | इसलिए वो बहुत परेशान हैं | तू तो जानती है कि इन्होने हमेशा इमानदारी से काम किया है | इनकी पार्टी ही इनके लिए सबकुछ थी | और आज इनकी को इनकी पार्टी वालों ने निकाल दिया |
पवन चुपचाप सुनता रेहता है फिर ढेरे से अवनी के कान मे जा कर बोलता है -
पवन ( अवनी से ) – ये तो ठीक नही हुआ, वैसे तुम्हारे पापा कोनसी पार्टी के नेता थे ?
अवनी – मेरे पापा इंडियन जनता पार्टी के सांसद थे | उनके दिल पे बहोत ठेस पोहंची है | पता नही हमारे तो दिन ही ख़राब चल रहे हैं, कुछ ना कुछ होता ही रहता है |
पवन को पता चलता है कि अवनी के पिता जी उसी पार्टी के सांसद है जिसके पवन के पिता जी गृहमंत्री हैं | इसलिए अब पवन अवनी के पिताजी कि मदद करने कि सोचता है |
क्या पवन अवनी के पिता की मदद कर पायेगा ?