Wo Band Darwaza - 15 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | वो बंद दरवाजा - 15

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वो बंद दरवाजा - 15

भाग- 15

अब तक आपने पढ़ा कि रिनी का व्यवहार असामान्य हो जाता है। रौनक़ द्वारा समझा देने पर सभी उसकी बात पर यकीन करके अपने-अपने कमरे में लौट जाते हैं।

आदि और सूर्या एकसाथ कमरे में प्रवेश करते हैं और सामने का नज़ारा देखकर चौंक जाते हैं। कमरे की लाइट बन्द थीं और फर्श पर सफ़ेद झक सी आकृति लहरा रही थी। लग रहा था जैसे कोई सफ़ेद लबादा पहने हुए लेटा हुआ है और हवा से उसका लबादा उड़ रहा है।

आदि को जब बात समझ में आई तो उसने बत्ती जला दी। रोशनी में अब भी सफ़ेद चादर हवा से फड़फड़ा रहा था। सूर्या अब भी सदमे में वही खड़ा हुआ उस आकृति को आँखे फाड़े देख रहा था। आदि ने उसे झकझोर कर कहा- "सूर्या, बिस्तर है। मैंने ही अपने लिए बिछाया था।"

सूर्या जेब से रूमाल निकालकर अपना मुँह पोछते हुए- " शायद ! रौनक सही कह रहा था। भूत इस होटल में नहीं हमारे दिमाग के अंदर ही है। हम हर कही, हर वस्तु, हर इंसान में भूत को ही देख रहे हैं।"

आदि- "हम्म ! सही कह रहे हों। चलो अब सो जाओ !"

दोनों दोस्त के दिमाग से भूत का फितूर उतर गया था। वह चादर तानकर सो गए।

रात के करीब तीन बज रहे थे। अंधकार अपनी चरम सीमा पर था। चारों औऱ शांति छाई हुई थीं। जंगल से झींगुर व अन्य कीट-पतंगों की आवाज़ आ रहीं थीं। ठंडी हवा के झोंको के साथ जंगली फूलों की खुशबू वातावरण को मादक बना रही थीं। सिगरेट के कश खींचता हुआ रौनक़ टहलते हुए एक जगह आकर रुक गया। सामने दीवार खींची हुई थी जो ईटों की जगह पत्थर की बनी हुई थी। दीवार के बीचों-बीच एक लकड़ी का दरवाज़ा बना हुआ था। जिस पर ताला लगा हुआ था। ताले पर लाल-पीले रंग के धागे बंधे हुए थे। जिनका रंग अब फीका हो चला था। दीवार को देखकर साफ़ तौर पर समझ आ रहा था कि उसे बाद में बनाया गया है। उसे बनाने की वजह जरूर किसी बात को छुपाना था या फ़िर उस बन्द दरवाज़े के पीछे कुछ ऐसा था जिसे रोकने के लिए ही दीवार खींची गई थी। रौनक़ उस बन्द दरवाज़े के पास जाकर खड़ा हो गया। उसे लगा जैसे इस जगह से उसका पुराना नाता है। कुछ तो है इस जगह पर जिससे उसका गहरा रिश्ता था। जैसे ही रौनक़ ने दरवाज़े पर लगे ताले पर अपना हाथ रखा। ताला थरथराने लगा। उसी के साथ वह बन्द दरवाज़ा भी खड़-खड़ की आवाज़ करता हुआ ऐसे हिलने लगा जैसे उस तरफ़ से कोई उसे खींच रहा हो खोलने की उम्मीद से।

रौनक़ यह दृश्य देखकर घबरा गया। उसके हाथ से सिगरेट छूटकर नीचे गिर गई।

हर घटना में विज्ञान को खोजने वाले रौनक़ का सिर चक्र सा घूम गया। वहाँ से जाना ही उसे ठीक मालूम हुआ। जैसे ही वह चलने को हुआ तो अपने सामने सिगरेट के टुकड़े को हवा में देखकर उसके होश उड़ गए। सिगरेट का टुकड़ा न सिर्फ़ हवा में था बल्कि उससे ऐसा धुँआ भी निकल रहा था जैसे कोई कश खींचकर सिगरेट के छल्ले बना रहा हो। सिगरेट के टुकड़े का सुलगता नारंगी रंग आगे बढ़ता हुआ टुकड़े के अंतिम छोर तक आ गया और सिगरेट समाप्त हो गई।

बादल छाए हुए थे। बादलों की गर्जना बड़ी भयंकर लग रही थीं। अचानक बिजली कड़की और उसकी रोशनी में रौनक को वहीं काला लबादा पहनें हुए अजीबोगरीब आदमी ठीक अपने सामने खड़ा दिखाई दिया। इस दिल दहला देने वाले मंजर को देखने के बाद रौनक़ ज़ोर से चीख़ पड़ा। उसकी चीख़ चारों दिशा में गूंज उठी। डर से रौनक़ के चेहरे का रंग उड़ गया। अब तो ज्ञान-विज्ञान सब शून्य हो गए। खुली आँखों से देखे दृश्य को झुठलाना मुमकिन नहीं था।

आख़िर कौन है वह आदमी..और क्या है उस बन्द दरवाज़े के पीछे..? जानने के लिए कहानी के साथ बने रहे।