भाग- 13
अब तक आपने पढ़ा कि सूर्या अपने कमरे से तकिया और मोबाइल लेने जाता है, तब उसे वहाँ कुछ अजीब महसूस होता है। उसका पैर किसी ठंडी वस्तु से टकराता है जिसे वह लाश समझता है।
लाश के ख्याल ने ही सूर्या के दिलो दिमाग को बेजान बना दिया। वह किसी मूर्तिकार द्वारा बनाई सजीव मूर्ति की तरह जस का तस खड़ा हुआ था। उसे अपना लोवर भीगा हुआ सा महसूस हुआ। वह कुछ समझता तभी लाइट जल गई। लाइट के जलते ही पूरा कमरा रोशन हो गया।
रोशनी में सूर्या को फ़र्श गीला दिखा। जहाँ वह खड़ा था वहाँ से एक सर्पिलाकार पानी की धार बहती हुई पलंग के नीचे की ओर जाती दिखी जो पलंग के पास पड़े तकिए में समाहित हो रही थी। तकिया गच होकर भीग गया था। साइड टेबल के पास मोबाइल पड़ा हुआ था। सूर्या ने एक बार फ़िर दाहिने पैर से टटोलते हुए तकिए पर पैर रखा। उसे ठीक वैसी ही छुअन महसूस हुई जो अंधेरे में हुई थीं।
सूर्या झेंप गया और शर्म से उसके गाल हल्के लाल हो गए। वह खुद से बुदबुदाते हुए कहने लगा- " जल्दी से लोअर बदल लूँ। आदि आ गया और उसने देख लिया तो सबसे कहकर मेरा मज़ाक उड़ाएगा।"
सूर्या ने अपने बैग से शॉर्ट्स निकाला और सोचने लगा- "मुझें सच में भ्रम हुआ था...और वह बूंदों का शोर..
वह तो वास्तविक ही था। मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है ? आदि से ही पूछता हूँ। परेशान और डरा हुआ तो वह भी लग रहा था।"
लोअर बदलने के बाद सूर्या ने अपना मोबाइल लिया औऱ वह आदि के कमरे की ओर चल दिया। वह जब कॉरिडोर से गुज़र रहा था तो किसी की तेज़ चीख़ से वह हक्काबक्का रह गया। चीखने की आवाज़ लड़की की थी औऱ रिनी के रूम से आई थीं।
एक के बाद एक कमरों के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आई औऱ दरवाजों से झाँकते चेहरों की नजर जब सूर्या पर पड़ी तो सभी ने उसे सवालिया निगाहों से देखा। रौनक़ ने इशारे से पूछा- "क्या हुआ..?
सूर्या ने भी कंधे उचकाकर पता नहीं की मुद्रा में मुँह को सिकोड़ते हुए इशारा किया।
सभी बारी-बारी से अपने कमरे से बाहर निकलकर आए। सभी लोग रिनी के कमरे की तरफ़ कदम बढ़ा देते हैं।
रौनक़ दरवाज़ा खटखटाने लगता है तो दरवाज़ा अंदर की तरफ धंस जाता है।
सभी लोग ताबड़तोड़ अंदर जाते हैं, तो देखते है कि रिनी अपने घुटनों के बीच सिर को छुपाए हुए बैठी हुई थीं।
रश्मि ने जब उसके सिर पर हाथ फिराया तो वह डरी सहमी हुई एक ही बात को दोहराने लगीं।
"मैं यहाँ कैसे आई..? तुम कौन हो..?"
"रिनी, रिलैक्स ! हम सब तुम्हारे दोस्त हैं और तुम हमारे साथ ही यहाँ आई हो"- रश्मि ने चिंतित स्वर में दिलासा देते हुए कहा।
रिनी एक-एक करके सबके चेहरे देखती है और उन्हें पहचानने की कोशिश करती है। उसकी दशा ऐसी थी मानों वह इनमें से किसी को भी नहीं जानती और यहाँ अपहरण करके लाई गई हो।
आदि रिनी से प्रश्न पूछता है- "रिनी, तुम भी अजीब हो। भूल गई क्या, तुम्हें ही तो यह होटल दिखाई दी थी और तुम तो हम सबसे पहले ही चल पड़ी थी यहाँ आने के लिए। वह सब नाटक था या अब जो कर रहीं हो वह नाटक है ?"
आर्यन, आदि को पीछे खींचते हुए उसके कान में फुसफुसाते हुए- "यार ! तुम्हें सच में लगता है कि वह अभी नाटक कर रही है। लुक एट हर फेस... कितनी ज्यादा डरी हुई लग रहीं है वह ! उसे होश ही नहीं है कि वह क्या कह रही है ?"
सूर्या जो कि कुछ देर पहले ही अजीबोगरीब हादसे से गुजरा था, अब उसे पक्का यकीन हो गया था कि हो न हो इस जगह कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है।
रिनी के साथ क्या हुआ था ? वह किसे कह रहीं थी कौन हो तुम ?
जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहे।