भाग- 12
अब तक आपने पढ़ा कि आदि उस अनजान लड़कीं के पीछे चलता हुआ बन्द दरवाज़े के करीब पहुँच जाता है।
आँख मूंदे हुए आदि मिन्नते करता रहा। उसके बाएं कंधे पर रखा हुआ हाथ कंधे से हट चुका था। थोड़ी देर बाद ही उसे अपने दोनो कंधों पर भारीपन महसूस हुआ। उसके कानों में चिरपरिचित आवाज़ गूँज रहीं थीं। उसे महसूस हुआ जैसे वह गहरी नींद में सो रहा है और कोई उसे जगाने की कोशिश कर रहा है।
आदि ने जब अपनी आँखे खोली तो अपने सामने सूर्या को देखकर चौंक गया। उसने गर्दन घुमाकर चारों ओर देखा तो खुद को कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया।
आदि हैरान होकर पूछता है, "मैं यहाँ कैसे और कब आया ? 'वो बन्द दरवाज़ा' खुल गया था क्या ?"
सूर्या, आदि को यक़ीन दिलाते हुए, "तुम यहीं पर थे। कही कोई बन्द दरवाज़ा नहीं है। शायद तुम कोई सपना देख रहे थे.."
"सपना..."- क्या वह वाकई सपना था। आदि ने हैरतभरी निगाहों से सूर्या को देखकर पूछा।
सूर्या- " और नहीं तो क्या था..सपना न होता तो तुम यहाँ होते क्या ? खामख्वाह मेरी नींद खराब कर दी।"
सूर्या अपने रूम की ओर जाने लगा, तो आदि ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"प्लीज़ सूर्या मेरे कमरे में ही सो जाओ"- मनुहार करते हुए आदि ने कहा।
"ठीक है" - आदि का डरा हुआ चेहरा देखकर सूर्या ने हामी भरते हुए कहा।
आदि ने राहत की सांस ली। वह उठकर खड़ा हुआ औऱ अलमारी से बिस्तर निकालने लगा।
"अरे यार ! तकिया तो है ही नहीं"- हौले से आदि बुदबुदाया।
"कोई न.. तकिया और मोबाइल लेकर आता हूँ । तब तक तू बिस्तर लगा दे"- कहकर सूर्या कमरे से बाहर चला गया।
आदि ने भी फर्श पर बिछौना बिछाकर उस पर बिस्तर लगा दिया। उसके बाद वह वॉशरूम चला गया।
सूर्या अपने कमरे में पहुंचा। उसने पलंग से तकिया लिया और साइड टेबल से मोबाइल लेने के लिए झुका तो उसे लगा पलंग के नीचे से कोई उसे घूर रहा है। सूर्या के रोंगटे खड़े हो गए। कनपटी से रिसती हुई पसीने की बूंद जब नीचे गिरीं तो टपक की आवाज़ आई। सूर्या सोच में पड़ गया कि पसीने की बूंद से ऐसी आवाज़ सम्भव ही नहीं है। वह उधेड़बुन में ही था कि फिर से पानी की बूंदों के टपकने की आवाज़ आई।
"टपाटप..टपाटप..." बूंदों की आवाज़ सूर्या के मन को विचलित कर रहीं थीं।
अपने कानों पर हाथ रखकर सूर्या ने हाथों से कानों को कसकर दबाया। पानी की बूंदों की आवाज़ आना बन्द हो गई। सूर्या कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहा। डर के कारण उसकी स्थिति ऐसी हो गई कि वह चाहकर भी वहाँ से भाग नहीं पा रहा था। राहत की बजाय एक और आफ़त आन पड़ी। अचानक ही कमरें की सभी लाइट झपझप करती हुई एकदम से बन्द हो गई। कमरें में अंधेरा औऱ सन्नाटा पसर गया।
सन्नाटे को चीरती हुई पानी की बूंदों की आवाज़ ने एक बार फिर से सूर्या के पूरे शरीर को कम्पायमान कर दिया। डर के कारण उसके हाथ से मोबाइल छूट गया।
सूर्या ने अपने दाहिने पैर से जब मोबाईल को टटोलना शुरू किया तो उसका पैर किसी ठंडी वस्तु से छू गया। उसने झट से पैर पीछे कर लिया। अब भी पैर पर वह छुअन महसूस हो रहीं थीं। जब उसने अपने बाएँ पैर को दाहिने पैर पर रखा तो उसे वह गीला महसूस हुआ।
सूर्या अनुमान लगाने लगा। क्या होगा यह ? कहीं कोई गीला कपड़ा...? या फ़िर लाश...?
"लाश...." इस एक शब्द के जहन में आते ही सूर्या की जान हलक में आ गई। डर के मारे उसका हलक सुख गया। अनायास ही उसे सारे देवी- देवता याद आने लगे। उसके मन में आज किसी गीत की सरगम के बजाय भजन, स्तुति व मंत्र बजने लगें।
क्या सच में सूर्या के कमरे में लाश थी ? या उसे कोई भ्रम हुआ था..जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें।