भाग- 9
अब तक आपने पढ़ा कि आदि की तलाश में निकला सूर्या जब कुछ दूर आ जाता है तब उसके साथ कुछ अजीबोगरीब घटना घटित होती है।
सूर्या का चेहरा डर से पीला पड़ गया था। पसीने से तरबतर उसके शरीर में मानों कोई ऊर्जा ही नहीं बचीं। धकधक करता उसका दिल ज़ोर -ज़ोर से धड़क रहा था जैसे उसे चीख़ चीखकर डांट रहा हो कि किसके भरोसे यूँ मुँह उठाएं जंगल में चले आए..?
पीछे से आता हुआ हाथ जब सूर्या के कंधे पर पड़ा तो वह चीख़ पड़ा था।
"सूर्या.." रिलैक्स! मैं हूँ आर्यन...
सूर्या ने जब सहमते हुए अपनी गर्दन उस ओर घुमाई तो वाकई उसके सामने आर्यन ही खड़ा था।
सूर्या ने चारों तरफ़ नज़र घुमाई। उसे वहां कुछ भी ऐसा दिखाई नहीं दिया जिससे डर लगे। सब कुछ सामान्य लग रहा था।
आर्यन ने जब सूर्या की दशा देखी तो वह चिंतित होकर पूछता है- "क्या हुआ सूर्या ? तेरे चेहरे पर बारह क्यों बजे हुए हैं ? भूत देख लिया क्या ?"
सूर्या- "हाँ, देखा तो नहीं पर सुन लिया ।"
आर्यन खिलखिलाकर हँसते हुए कहता है- "सुन लेंगे तेरी भूतिया दास्तान भी। अभी तो यहाँ से चलते हैं। बहुत जोरों की भूख लगी है। सभी लोग तेरा इंतज़ार कर रहे हैं।"
सूर्या- "आदि भी तो बाहर ही है।"
आर्यन- "वो तो होटल में ही है।"
आश्चर्य से सूर्या ने आर्यन को देखा और कहा- " ये कैसे हुआ? वह हम सबके सामने ही तो बाहर निकला था।"
आर्यन - "हाँ, पर वो तुम्हारे जाने के बाद ही गाड़ी लेकर लौट आया था।"
सूर्या- "ओह ! ये आदि भी अजीब है, कहता कुछ है और करता कुछ है।"
आर्यन- " हम्म, बात तो सही कही।" कहकर आर्यन चलने लगा। सूर्या भी परछाई की माफ़िक आर्यन के पीछे हो लिया। दोनों बतियाते हुए अपनी ही धुन में चले जा रहे थे इस बात से अनजान की दोनों की परछाई के साथ ज़मीन पर तीसरी परछाई भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही थी।
दोनों दोस्त जब होटल के मुख्य द्वार तक पहुँचे तो उनके साथ चला आ रहा वह साया गायब हो गया।
लॉबी के लेफ्ट साइड में ही डाइनिंग हॉल था। डाइनिंग हॉल की सभी टेबल ख़ाली पड़ी हुई थी। रौनक़ सहित सभी दोस्त हॉल में मौजूद थे। सूर्या और आर्यन भी उस तरफ़ चले गए।
बुढ़े बाबा और वह लड़की किचन में थे। रौनक़ अब भी चोरी छुपे लाली को ही निहार रहा था। रिनी शरारती निगाहों से रौनक़ को हो देख रही थी।
जब रौनक़ की नजरें रिनी से मिली तो वह झेंप गया। मुँह नीचे किये हुए वह अपनी भावनाओं को छुपाने में खुद को सफल मान रहा था।
रिनी भी ग्रुप की ड्रामेबाज एक्ट्रेस कही जाती है। वह भी कम पड़ने वाली न थी। रौनक़ को छेड़ते हुए वह बोली- "रौनक़, मनाली ट्रिप केंसिल करते हैं। यहाँ जितनी खूबसूरती वहाँ हो न हो..?"
आर्यन- " वैसे हम अभी जहाँ पर है, वह कौन सी जगह है ?"
"प्रीणी"- सलाद को डायनिंग टेबल पर रखते हुए बूढ़े बाबा ने आर्यन के प्रश्न का जवाब दिया।
रौनक़- बाबा, मनाली यहाँ से कितना दूर है ?
बाबा ने अनुमान लगाकर कहा- "यही कोई चार-पाँच किलोमीटर..."
आदि सलाद की प्लेट से गाजर उठाते हुए- "फिर तो ज़्यादा दूर नहीं है।"
तभी हाथ में टोकरी लिए लाली वहाँ आती है और अपनी सुरीली सी आवाज़ में कहती है- "साहब, हमारा प्रीणी गांव भी मनाली से कमतर नहीं है। आपको यहाँ भी वही हरे-भरे जंगल, बर्फ़ से ढ़की हुई पर्वत चोटियां और निर्झर बहते सुंदर झरने देखने को मिलेंगे।"
रौनक़ तपाक से बोला- " वन्डरफुल ! हम पहले इसी गाँव का भ्रमण करेंगे फिर मनाली जाएंगे।"
रश्मि मज़ाकिया अंदाज़ में- "हाँ भई, अब तो मनाली विजिट की चाह भी न रही। लगता है हमारी मंजिल यही थी।"
अब तक चुपचाप नीचे मुँह करके गाजर को खा रहे आदि ने जैसे ही बोलने के लिए अपना सिर ऊपर उठाया तो सामने का मंजर देखकर उसके होश उड़ गए। उसके मुँह से गाजर का टुकड़ा गिर गया और उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया।
आख़िर आदि ने ऐसा क्या देख लिया था..? जानने के लिए कहानी के साथ बने रहें।