भाग- 5
अब तक आपने पढ़ा कि मनाली के लिए निकले कॉलेज स्टूडेंट्स की गाड़ी जंगल में भटक जाती है। बिना ड्राइवर के भी गाड़ी स्वतः ही चलती हुई अचानक एक जगह ठहर जाती है।
सायं -सायं करती हवा जब ज़मीन पर बिखरे पड़े हुए सूखे पत्तों से होकर गुजरती तो औऱ अधिक डरावना माहौल बना देती। हवा से सरकते सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट सुनकर ऐसा महसूस होता जैसे कोई चला आ रहा है। रात भी खरपतवार की तरह तेज़ी से बढ़ती जा रही थी। रोशनी का नामोनिशान तक नहीं था। सभी लड़के और लड़कियां एक-दूसरे का हाथ थामे हुए डरे सहमे से चुपचाप खड़े हुए मिन्नतें कर रहें थे। सभी अपने-अपने इष्टदेव को याद करके इस बियाबान जंगल से बाहर निकलने की प्रार्थना कर रहे थे। जंगल के बीचों बीच खड़े सभी दोस्तों के लिए एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। मन इस भय से आशंकित था कि हर आती हुई सांस कही आख़िरी सांस न हो।
सूर्या - ए आदि ! कहीं वो आदमी ही तो इन सब का जिम्मेदार नहीं..?
आदि कपकपाती हुई आवाज़ में- "क..क..क..कौन सा आदमी ..?
आर्यन- "वहीं जिसके ऊपर हमारी गाड़ी चढ़कर आगे निकल गई थी।"
रौनक - हां, उसी के बाद हमारी गाड़ी जंगल की तरफ़ उतर गई और ब्रेक फैल हो गए थे।
रश्मि- यह सब देख सुनकर मेरा तो हार्ट फैल हो रहा है।
रिनी- मेरे तो दिमाग का दही बन गया। सोचने-समझने की शक्ति भी नहीं बची। अब तो बस भगवान हम सबको बचा ले।
कहते हुए जैसे ही रिनी ने प्रार्थना में हाथ ऊपर उठाएं तो उसके हाथ ऊपर की ओर ही रह गए और वह बूत बनी हुई वैसे ही खड़ी रह गई।
अचानक मौसम बदल गया। आकाश में बिजली की गड़गड़ाहट हुई और एकदम से बिजली कौंधी। बिजली की चमक में जब सबने रिनी को बूत बना देखा तो सबके शरीर डर से सिहर उठे।
सूर्या ने रिनी को झकझोरते हुए कहा- " अरे रिनी ! क्या हुआ तुझे..?"
रिनी मानो नींद से जागी। हड़बड़ाकर उसने सूर्या से कहा- कुछ भी तो नहीं हुआ। चलो यहाँ से.. हम सब यहाँ क्यों खड़े हुए हैं..?
कहकर रिनी इस तरह आगे बढ़ चली जैसे जंगल नहीं उसकी अपनी परिचित जगह हो, जहां वह बरसों से रह रही हो।
सभी ने एक-दूसरे के हाथों को कसकर पकड़ लिया और कोई भी रिनी के पीछे नहीं गया।
रिनी कुछ कदम चली ही थी कि उसे सामने रोशनी का एक बिंदू टिमटिमाता हुआ दिखा। उसने अपने दोस्तों को पुकारते हुए कहा- कहाँ रह गए तुम लोग..? देखो तो ज़रा दूर कहीं कोई घर है शायद....
दूरी पर होने के बावजूद रिनी की आवाज़ सुनसान जंगल में साफ सुनाई पड़ रहीं थी। उसकी कही बातें सुनकर सबके मन को थोड़ी राहत महसूस हुई कि चलो यहाँ कोई तो इंसान बसता है। शायद वहीं हमारी मदद कर दे, इस जंगल से निकलने में। इसी सोच से सबमें ऊर्जा का संचार हुआ और वह फुर्ती से उस तरफ अपने कदम बढ़ा देते हैं जिस तरफ़ रिनी गई थी।
रिनी अब भी उसी दिशा की ओर निहार रही थी, जहाँ रोशनी दिखाई दे रही थी। सभी लोग रिनी के नजदीक चले गए और उसी दिशा में देखने लगे जिस ओर रिनी की नजरें टिकी हुई थी।
दूर एक सुनहरी सी रोशनी का बिंदु दिखाई दे रहा था। जिसे देखकर सबके चेहरे खिल उठे सिवाय आदि के।
आदि चिंतित स्वर में- यार ! हम जिसे उम्मीद की एक किरण समझ रहे हैं वह मुसीबतों का निमंत्रण न हो..
हमें फाँसने का एक जाल भी हो सकता है।
रौनक- होने को तो कुछ भी हो सकता है। शायद, तुम जो अनुमान लगा रहे हो वह सही भी हो। लेकिन सिर्फ़ अनुमान से डरकर यहाँ रात को जंगल में खुलेआम रहना भी सही निर्णय नहीं है। जंगली जानवरों का शिकार बनने से अच्छा है हमें वहाँ जाना चाहिए।
आर्यन- मुझे तो आदि और रौनक दोनों की ही बात सही लग रही है। समझ नहीं पा रहा कि क्या करना ज़्यादा सही है ?
सूर्या- हम सब गाड़ी में भी तो रात काट सकते हैं। सुबह होते ही बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लेंगे।
रश्मि- बात तो तेरी एकदम सही है सूर्या, लेकिन तुझे तो पता ही है न कि गाड़ी अपने आप चल रही थी।
रौनक रश्मि की बात का समर्थन करते हुए अटकते हुए कपकपाती आवाज़ में बोला- ल.ल..लॉक भी तो ऑटोमेटिक लग गए थे।
सभी दोस्त मिलकर क्या निर्णय लेंगे ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहिए।