भाग- 4
अब तक आपने पढ़ा कि गाड़ी के नीचे एक आदमी आ जाता है जिसके बाद गाड़ी अनियंत्रित होकर जंगल की ओर चली जाती है।
रात गहराने लगी थी। जंगल भी किसी महासागर सा लग रहा था, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। गाड़ी में बैठे सभी लोग दहशत में थे। सबकी सिट्टीपिट्टी गुल हो गई थी। जैसा सन्नाटा जंगल में पसरा हुआ था ठीक वैसा ही सन्नाटा गाड़ी के अंदर भी था।
कुछ देर पहले तक सभी लोग जिस प्रकृति की तारीफ़ में कसीदे गढ़े जा रहे थे, वही सब लोग अब प्रकृति के इस रूप को देखकर भयभीत हो रहे थे। दिन के उजाले में देवदार और चीड़ के जो पेड़ खूबसूरत दिखाई दे रहे थे वही अब रात के अंधेरे में बड़े भयानक जान पड़ रहे थे। हर एक पेड़ किसी हमलावर सा लग रहा था, मानों वह चलती गाड़ी को ही अपनी शाखाओं से उठा लेगा।
दूर जंगल से ही सियार के रोने की आवाज़ आने लगी। सियार के रोने की आवाज़ के साथ जंगल के अन्य पशु-पक्षी भी सक्रिय हो गए। न मालूम कौन सा पक्षी था जो बड़ी भयानक आवाज़ करता गाड़ी की सामने से गुजरा। देर तक उसकी आवाज़ सबके कानों में गूँजती रही थी...
गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी से आकर्षित होकर जंगली कीड़ों का झुंड लाइट पर मंडराने लगा। झुंड इतना अधिक बढ़ गया कि कीड़ों से पूरी हेडलाइट ढक गई। जिसके कारण रोशनी धीरे-धीरे कम होती हुई पूरी तरह से बन्द हो गई। अब तो गाड़ी के आगे घुप्प अंधेरा छा गया। एक हाथ को दूजा हाथ नहीं सूझ रहा था। गाड़ी भी अपनी ही धुन में सरपट दौड़े जा रहीं थीं। रौनक ने भी अब हार मानते हुए स्टीयरिंग व्हील से हाथ हटा दिया।
अजीब बात यह हुई कि बिना रौनक के भी गाड़ी स्वतः ही चल रही थी। अब तो रौनक के हाथ-पैर फूल गए। रौनक का कलेजा ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
रौनक (डरते-सहमते हुए)- द...द...दोस्तों गाड़ी अपने आप चल रही है।
आदि- "यार रौनक, ऐसे समय में भी तुझे मज़ाक सूझ रहा है। यहाँ हम सबकी जान हलक में आ गई है।"
रौनक के बग़ल वाली सीट पर ही रश्मि बैठी हुई थीं। उसने अंधेरे में ही टटोलकर स्टीयरिंग व्हील को ढूंढा तो पाया सच में वहाँ रौनक के हाथ नहीं थे। उसने कांपते हुए अपने हाथों को तेज़ी से पीछे लेते हुए सबसे गम्भीर स्वर में कहा- "गाड़ी सच में अपने आप चल रही है।"
रिनी- "हे भगवान ! ये हम किस मुसीबत में फंस गए..?
सूर्या- "लगता है हमारी गाड़ी भूत ने हाइजेक कर ली।"
आर्यन- "सूर्या प्लीज़ ऐसी बात मत कर । डर के मारे वैसे ही प्राण सूख रहे हैं।"
रौनक- "बी प्रैक्टिकल यार, कोई टेक्निकल ग्लिच होगा।"
अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा और गाड़ी रुक गई। सभी हैरानी से अंधेरे में भी एक-दूसरे को देखने लगे। किसी को कुछ नज़र नहीं आ रहा था। दरवाज़े से सटकर बैठी रिनी ने डोर लॉक खोला और तुरंत गाड़ी के बाहर निकल गई। उसके पीछे आदि, सूर्या और आर्यन भी बारी-बारी से गाड़ी से उतर गए।
रश्मि और रौनक अब भी गाड़ी में ही थे। शायद उनका डोर लॉक था जो खुल नहीं रहा था। सभी के चेहरे पर एक ही डर दिखाई दे रहा था कि कही गाड़ी फिर से स्टार्ट होकर चलने न लग जाए।
आर्यन- तुम दोनों पीछे की तरफ आओ और वहाँ से बाहर आ जाओ।
रौनक तुम पहले आ जाओ फिर रश्मि को भी ले लेना। जैसे ही रौनक पीछे की तरफ़ आया और गाड़ी का दरवाज़ा खोलना चाहा तो देखा वह भी लॉक था। गाड़ी के सभी दरवाज़े लॉक हो चुके थे। मौसम में हल्की ठंडक होने के बावजूद पसीने की महीन बूंदे रौनक के माथे पर छलक आई थी।
स्थिति ऐसी बन गई थी, कि किसी की भी बुद्धि उस समय काम नहीं कर रही थी। सभी ख़ौफ़ की जद में थे। काफ़ी जद्दोजहद के बाद गाड़ी का लॉक अपने आप खुल गया। बदहवास सी रश्मि गाड़ी के बाहर निकली। लड़खड़ाते कदमों से रौनक भी बाहर आया।
सबकी रगों में डर खून के साथ बह रहा था। कलेजा ऐसे धड़क रहा था कि फटकर अब बाहर आया कि तब बाहर आया। ब्लडप्रेशर भी ऊपर-नीचे हो रहा था।
आगे क्या होगा जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।