भाग- 3
अब तक आपने पढ़ा कि सभी लोग हिमाचलप्रदेश की सीमा में प्रवेश कर गए थे।
शाम के करीब पांच बज रहे थे। मनाली अब भी दूर था। लगभग एक घण्टा और लग जाना था वहां पहुंचने में। सफ़र इतना खूबसूरत था कि मंजिल की दूरी मायने ही नहीं रख रही थी। सांझ ढलने को थी। पहाड़ी रास्ता औऱ गाड़ी में बजता मधुर संगीत सफ़र को और अधिक ख़ुशनुमा बना रहा था।
खिड़की से झाँकते हुए रिनी ने कहा- "जीवन तो पहाड़ों में ही बसता है। हम लोग तो जिंदगी काट रहे हैं, घुटन भरे शहरों में। असल जिंदगी तो यहाँ के लोग जीते हैं। प्रकृति की गोद में रहना बिल्कुल वैसा है मानों ईश्वर की गोद में ही हो।"
आर्यन रिनी की बात का समर्थन करते हुए कहा- "सच कह रही हो तुम; ये ऊँचे पहाड़, इन पहाड़ों से बहते छोटे-छोटे झरने, सड़क किनारे कतार से लगे देवदार औऱ चीड़ के पेड़... सब कुछ कितना सुंदर है न.. जैसे कोई जादुई दुनिया हो।"
आदि- " जादू ही है जो मुझ पर भी छा रहा है। पहाड़ी इलाके का जीवन देखकर मेरा तो मन कर रहा हैं, कि मैं यही बस जाऊं। इन्हीं पहाड़ों को काटकर एक गुफ़ा बना लूं और फिर आदि से आदिमानव बन जाऊं।"
रश्मि- "कॉम्पलिटली एग्री विथ यू गाइस ! दिस प्लेस इज़ रियली सो ब्यूटीफुल ! लाइक अ हैवेन..."
रौनक- "पहाड़ों के पीछे छुपता सूरज और आसमान में बिखरी उसकी किरणें कैसी लग रही है न, मानो सूरज अपनी किरणों को समेट कर इन पहाड़ो में छुपा रहा हो।"
रिनी- हम्म... यहाँ तो सूरज के भी रंग बदल गए। अठखेलियाँ कर रहा अपनी किरणों के साथ।
आर्यन- ज़रा उन फूलों के खेतों को तो देखों ! कितने प्यारे लग रहे हैं! जैसे कोई सतरंगी चादर बिछी हुई हो।
रश्मि- "अद्भुत ! खूबसूरत नजारा है।
अभी ही इतना अच्छा लग रहा। सोचो मनाली में कितना मज़ा आएगा..?"
आदि- "हाँ, बहुत ज़्यादा.... वी विल एन्जॉय अ लॉट..."
रिनी- क्या बात है ..? सूर्या अब तक चुप है..? न कोई धुन बजाई न कोई गीत गुनगुनाया ?
सूर्या- "यारों, मुझे तो यहाँ की हवा भी स्वर लहरियां छेड़ती महसूस हो रही है। इसलिए आज कोई धुन नहीं गुनगुनाई। तुम लोग भी गौर से सुनो.. हवा की सायं-सायं में भी कोई गीत सुनाई देगा। आज तो गिटार के तारो सा मेरा रोम-रोम झंकृत हो रहा है।"
सूर्या की बात सुनकर सभी लोग कान लगाकर हवा के शोर को सुनने लगते हैं। सभी को उनके नाम से पुकारती एक आवाज़ सुनाई देती है। अचानक माहौल बदल जाता है। सबके चेहरे डर के कारण पीले पड़ गए। सबके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी।
सब लोग कुछ समझ पाते इसी बीच एक और हादसा इतनी तेजी से घटित हुआ की किसी को कुछ भी समझ नहीं आया।
सड़क के बीचों-बीच एक लंबे कद का आदमी लेटा हुआ था, जिसने काले रंग का लबादा पहना हुआ था।
रौनक ने गाड़ी का ब्रेक लगाना चाहा लेकिन लगा जैसे ब्रेक फैल हो गया।
सड़क पर लेटे हुए उस अजीब से शख्स को बचाने के लिए रौनक ने गाड़ी को साइड करना चाहा लेकिन गाड़ी साइड न होकर उसी शख्स के ऊपर से गुज़रती हुई आगे जाकर अनियंत्रित होती हुई मुख्य सड़क से नीचे उतर गई।
गाड़ी से आती तेज़ चीखे वीरान जगह पर गूँजने लगी साँझ को रात ने निगल लिया था और चारों तरफ घनघोर अंधेरा पसर गया।
दाएं-बाएं चलती हुई गाड़ी देवदार के ऊँचे वृक्षों से घिरे जंगल को चीरती हुई आगे बढ़ती चली जा रही थी। रौनक़ लगातार ब्रेक पर अपने पैर जमाए हुए था और गाड़ी रोकने की भरसक कोशिश कर रहा था, लेकिन गाड़ी तो किसी बेलगाम घोड़े की तरह चली जा रही थी।
सबके कानों में किसकी आवाज़ सुनाई दी थी ? सड़क पर लेटा हुआ वह अजीबोगरीब शख्स कौन था ?
जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।