"मजबूरियाँ क्या कुछ नहीं करवाती हैं,साहब !
खेलने की उम्र में खिलौने भी छीन लेती हैं, साहब ! "
यह कहानी उन गरीब बच्चों की है, जो बचपन में खेलने की बजाय मज़दूरी करते नज़र आते हैं ।
एक दिन की बात है । जब मैं रास्ते से गुज़र रही थी, उसी रास्ते में मुझे एक छोटी-सी बच्ची और उसका छोटा-सा , मासूम भाई तीन पहियेवाली साइकिल चलाते हुए
दिखे । बच्ची साइकिल चलाती थी और उसका भाई पीछे बैठा था । वो दोनों भाई- बहन कचरा इकट्ठा कर रहे थे । जैसे ही में उन दोनों की नज़दीक गई, मुझे देखकर वो दोनों धीरे से मुस्कुराऍ । बहुत ही प्यारी मुस्कुराहट थी ।
मैंने भी मुस्कुराकर पूछा कि, पढ़ाई करते हो ? उसने कहा, नहीं ! फिर मैंने पूछा, क्यो नहीं पढ़ते हो ? उसने जवाब देने की बजाय सिर्फ
" smile " दी । मैंने उसे कहा कि, ये सब काम क्यो करते हो !? जवाब सूनकर मैं हैरान रह गई ! बच्ची बोली, अच्छा लगता है दीदी ! मुझे सूनकर बहुत तकलीफ़ हुई । मैंने फिर पूछा, पढ़ाई करनी है ? अगर, करनी है तो मैं तुम्हें पढ़ाऊगी ! उसने बोला, नहीं ।
मैंने कहा कि, मैं टयूशन क्लास चलाती हूँ । आप दोनों को मुफ़्त में ही पढ़ाऊगी ! यदि तुम दोनों चाहों तो मेरे घर चलो । मैं आपको टयूशन क्लास दिखाती हूँ । वहाँ तुम्हारे जैसे छोटे बच्चे भी आते हैं, तुम्हें मज़ा आएगा ।
यह घटना एक साल पेहले की है । जब मैं टयूशन क्लास चलाती थी । सिर्फ अंग्रेजी में ही टयूशन देती थी । मेरी पेहली
student थी
" सौम्या "। जो चार साल की
थी । जब वो आई थी, तब उसे
ABCD का
'A' भी लिखना नहीं आता था । मैंने उसे हाथ पकड़कर ही लिखना सिखाया था । ओर भी लड़कियाँ थी , मैं सबको अच्छे से सिखाती थी । आज तो
" सौम्या " बहुत ही होशियार बच्ची हो गई है ।
अब मैं टयूशन नहीं दे पा रही हूँ । क्योकिं, मैं बहुत ही अपने काम में और पढ़ाई में व्यस्त रहेती हूँ । इसीलिए , वक़्त हीं नहीं मिलता है । जब मैंने टयूशन क्लास बंद किया, तब सौम्या और उसकी मम्मी को बहुत बूरा लगा । मुझे भी बहुत ही बूरा लग रहा था यह कहते हुए कि, मैं अब टयूशन नहीं दे पाऊँगी । पर न चाहते हुए भी मूझे टयूशन क्लास बंद करना पड़ा ।
मुझे एक साल पेहले जो गरीब बच्चे मिले थे । मैं उसकी जिंदगी को बेहतर बनाना चाहती थी । पर वो नहीं माने । उसकी चूपी जैसे ये बयान कर रहीं थीं , हम पढ़ेंगे तो फिर काम कौन करेगा !? अगर काम नहीं किया तो हम खाएंगे क्या?
मैंने घर आकर ये सारी बातें मेरे पापा को बताई सूनकर पापा भी हैरान रह गए । मैंने कहा कि, पापा कैसे अजीब बच्चे थे ! मैंने कहा कि, मैं पढ़ाऊगी फिर भी नहीं माने । पापा ने कहा, " मजबूरी " होती हैं बेटा । मैंने पूछा, मा-बाप नहीं होंगे क्या ? पापा ने कहा, वो भी मज़दूरी करते हैं और अपने बच्चों को भी मज़दूरी करना सीखा देते हैं । क्योकि, वो भी अनपढ़ होते हैं । इसीलिए उसके अंदर आगे सोचने की शक्ति उतनी नहीं होती; वरना वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला करवा देते और उसकी जिंदगी को सँवारते । पर एसा क्यो नहीं करते हैं, ये तूझे पता है? मैंने कहा, नहीं ! पापा बोले , क्योकि गरीबी और मजबूरियों ने उसकी सोचने की शक्ति को खत्म कर दिया होता है । अगर कोई उसे पढ़ाने की भी बात करे तो भी वो मना कर देते है । अब सोच कैसे विचार होगे? उनके बच्चे भी उन्ही की तरह सोचते हैं । " पढ़ाई से कुछ नहीं होता, पढ़ाई करने के लिए पैसे देने पडते है । यदि काम करे तो पैसे मिलते हैं, वो भी हर रोज । " एसे विचारो के कारण ही वह कभी ऊपर नहीं उठ पाते । ना ही आगे बढ़ पाते ।
फिर तब से ही मैंने सोच लिया कि , मुझे पेहले एसे बच्चों को शिक्षा नहीं, एक अच्छी सोच देनी है । जिसके चलते वो आगे जाकर खूद ही अपने दम पर ऊपर उठे । आगे बढ़े ....!!
अब मैं बहुत ही Hard work करती हूँ । मेरे लिए भी और उन मासूमो के लिए भी । मैंने पापा से कहा कि, मुझे एसे बच्चों के लिए कुछ तो करना ही है । मेरी बात सूनकर पापा थोड़ी देर प्यारी - सी मुस्कान के साथ मेरी ओर देखते रहे । फिर बोले, तेरी सोच कितनी अच्छी है । तुम बहुत ही पवित्र आत्मा हो ! हर कोई तेरी तरह नहीं सोच सकते । एसा तो कभी मैंने भी नहीं सोचा, ना सोच पाया।यह एक कुदरती बख्शीश होती हैं बेटा। जो हर किसी को नहीं मिलती !!
तब से लेकर आज तक; जब किसी गरीब बच्चों को देखतीं हूँ कि, महादेव को याद करते हुए कहती हूँ, " मूझे कब काबिल बनाएगा तू मेरे बाबा ..." मूझे उन सबको कीचड़ से बहार निकालना है ! एक अच्छी जिंदगी जीना सीखाना है ! फिर जैसे भोले बाबा कहते हैं कि , सबकुछ वक़्त आने पर तूझे मिलेगा, तेरी मेहनत का फल तूझे मिलेगा ही एक दिन। यह आत्मा की आवाज़ कहती हैं और आत्मा की आवाज़ ही परमात्मा की आवाज़ होती हैं ।
" हाय ! रे , मजबूरियाँ
तूने क्या कुछ नहीं करवाया
खेलने की उम्र में
उन्हे खिलौना भी
नसीब ना आया ।"
~PARI BORICHA ❤