soi takdeer ki malikayen - 57 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 57

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 57

 

सोई तकदीर की मलिकाएँ 

 

57


चाँद अपना दामन समेटता हुआ गायब हो गया । तारे पहले ही सोने चल पङे थे । सूर्य देव ने अपना सात घोङों वाला रथ निकाला और जग भ्रमण के लिए चले । देर से सोने के बावजूद जयकौर भोर की पहली किरण के साथ उठ बैठी । नल पर जाकर पानी के छींटे मारे । आँचल के पल्लू से ही मुँह पौंछती हुई जयकौर एक बार फिर दरवाजे से निकल कर गली में निकल आई । गली में लोगों का आना जाना शुरू हो चुका था । लोग उसे वहाँ देख दो घङी रुकते । उसका हाल चाल पूछते , सरदार की तारीफ में दो लाईनें बोलते और आगे बढ जाते । आखिर लंबे इंतजार के बाद उसे सुभाष आता दिखाई दिया । वह प्रसन्न हो गई । दो कदम आगे बढ कर सङक के बीचोबीच आ गयी ।
सुन हम आज ही वापस चलेंगे ।
पर अभी तो आए हुए महज कुछ घंटे ही हुए हे और आते हुए हमारी दो दिन रुकने की बात हुई थी । वैसे ही अभी तक न तो हम अपने दोस्तों से मिल पाए हैं, न घर वालों से जी भर कर बातें कर पाया हूँ । बस आज का दिन रूकते हैं , कल सुबह चलेंगे । और वह बिना उसका जवाब सुने आगे बढ गया । जयकौर वहीं खङी रह गई । अब आज यहीं रुकने के सिवा कोई चारा नहीं था ।
वह भीतर लौटी । नलका चला कर बाल्टियां भरी और भतीजे भतीजियों को नहलाने लगी । उन्हें नहला कर खुद भी नहा ली । तब तक परौंठे बन गये थे । छिंदर कौर ने बच्चों और उसके लिए दही के साथ आलू के परौंठे परोसे और साथ में लस्सी का गिलास भर दिया । परौंठे बहुत स्वादिष्ट बने थे । मन न होते हुए भी उसने तीन तो खा ही लिए । हाथ धोते हुए उसने कहा – लो भाभी अब मैं बनाती हूँ , तुम और भाई दोनों खा लो । इसी तरह छोटे मोटे काम करते हुए आखिर वह पूरा लंबा सा दिन बीत गया । शाम को उसने भाभियों से कहा – भाभी मैं कल सवेरे संधवा जाऊंगी ।
अभी से , अभी कल तो आई हो । अभी चौबीस घंटे ही तो हुए हैं । दो चार दिन रहो फिर चली जाना ।
नहीं भाभी , इस बार तो जरूरी जाना है । वहाँ खेती और कामकाज का बहुत हर्जा हो रहा है । अगली बार जल्दी आऊँगी ।
अगली बार एक दो दिन के लिए नहीं , हफ्ता – दस दिन के लिए आना । कुछ दिन हमारे साथ रह कर जाना ।
जी भाभी । पर इस बार तो सुबह नौ बजे ही जाना होगा ।
ठीक है । सुबह भेज देंगे ।
अभी किसी को भेज कर सुभाष को बुला दो ।
अंग्रेज कौर ने बेटे को भेज कर सुभाष को बुलवा दिया । संदेश मिलते ही सुभाष उल्टे पैर चला आया ।
आपने बुलाया – सरदारनी शब्द उसके गले में ही अटक गया था । जयकौर ने उसकी हालत देखी तो मुस्करा दी ।
हां भई , वो सरदार जी को हमने वादा किया था कि बुधवार को हर हालत में लौट आएंगे तो कल सुबह चलना है ।
जी मैं सुबह तैयार होकर आ जाऊंगा । कितने बजे चलना है ।
नौ बजे चल पङेंगे ।
ठीक है । मैं सही नौ बजे तैयार रहूंगा । सुभाष लौट गया । जयकौर की वह रात भी करवट बदलते हुए कटी । सारी रात उसने भय के साये में निकाली । पता नहीं रिपोर्ट में क्या लिखा होगा । डाक्टर क्या बोलेगी । घर जाकर वह रिपोर्ट के बारे में कैसे बता पाएगी और किसे बताएगी औऱ बच्चा कोई छिपने वाली बात तो है नहीं । आज नहीं तो कल सच सबके सामने आ जाएगा । भोला सिंह सुन कर कैसे उसे मारने आएगा , सोच कर ही उसके रोंगटे खङे हो गये ।
सुभाष ने घर पहुँच कर सबको अपने सुबह जाने के बारे में सूचना दी । माँ ने कहा – दो चार दिन तो रह कर जाते । ये क्या आना हुआ । भागते आए और दौङते चले गये । अभी तो तुम्हें जी भर कर देखा भी नहीं है । न ही मन की बातें साझा की हैं ।
भाभी ने कहा , मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि यहीं रह कर कोई काम धंधा कर लो । यहाँ कौन सा काम की कमी है जितना और जैसा चाहो . काम मिल जाएगा । जाओ और जयकौर को मना कर दो कि तुम उसके साथ नहीं आ रहे ।
पर भाभी जाना तो पङेगा । एक तो मैंने सरदार को कुछ बताया नहीं है । दूसरा जयकौर साथ है । इसे सही सलामत हवेली में पहुँचाना मेरी जिम्म्दारी है ।
रमेश हँस पङा – जाने दो इसे । ये नहीं रुकने वाला । पर सुभाष घर जल्दी जल्दी चक्कर लगाते रहना । ठीक है ।
सुबह जयकौर समय से उठी । नहा धोकर तैयार हो गई । सही नौ बजे सुभाष आ पहुँचा । भाईयों और भाभियों के गले मिल और बच्चों के सिर पर हाथ फेर उसने सभी बच्चों को दो दो सौ रुपए दिए और आँचल से आँसू पौंछती हुई गली में निकल आई । शरण ट्रैक्टर निकाल लाया । सुभाष और जयकौर ट्रैक्टर पर बैठ गये और शरण ने उन्हें अड्डे पर छोङा । बस अड्डे पर बस तैयार खङी थी । वे बस में सवार हुए और कोटकपूरा पहुँचे । वहाँ से आटो लेकर डाक्टर कटारिया के क्लीनिक जाना था । जयकौर को अपने होंठ सूखते लगे । दिल अलग घबरा रहा था । उसने एक रेहङी पर जाकर दो शिकंजी के गिलास बनाने के लिए कहा । दुकानदार ने तुरंत जग धोया । उसमें चीनी और नमक डाल कर मिलाया । और नींबू निचोङने लगा । बर्फ ढेर सारी डालना भइया । दुकानदार ने मुट्ठी भर कर कुटी हुई बर्फ गिलासों में डाल दी फिर छलनी से छान कर तरल डाला और दोनों गिलास जयकौर की ओर बढा दिये । जयकौर ने गिलास सुभाष को पकङाना चाहा तो उसने हाथ जोङ दिए – नहीं मुझे नहीं चाहिए । अभी थोङी देर पहले तो चाय पीकर निकले हैं । जयकौर दोनों ही गिलास पी गयी । उसे पैसे चुका कर वे आटो रिक्शा में बैठे । जयकौर ने सुभाष को टटोलने के लिए पूछा – अगर रिपोर्ट में कोई ऐसी वैसी बात निकल आई तो हम क्या करेंगे ।
ऐसी वैसी मतलब ?
मतलब बच्चे वाली बात ?
किसका बच्चा ?
तूने सुना नहीं ? डाक्टर तेरे सामने ही तो बता रही थी कि तेरह हफ्ते की अनुमान है । तब तू कहाँ खोया था । सारे टैस्ट तो तेरे सामने हुए ।
टैस्ट तो ठीक हैं । मुझे लगा तेरी तबीयत कुछ ढीली लग रही है इसलिए टैस्ट करवाने हैं । चल अब सुन लिया न , जल्दी से फैसला ले कि तुमने इस बारे में क्या सोचा है ।
आटो डाक्टर कटारिया के क्लीनिक पहुँच चुका था । जयकौर उतर कर सीधे रिसैप्शन की ओर बढी । सुभाष ने आटो वाले को पैसे चुकाए और वह भी पीछे लपका ।

 

बाकी फिर ....