परिणाम की घोषणा के दो दिन बाद यादवेंद्र शंभूदीन की कोठी पर पहुँचा। वहाँ मौजूद अमित ने व्यंग्य किया, "बड़ी जल्दी आए यादवेंद्र।"
"महेश को बधाई देने गए होंगे।" - दूसरे वर्कर ने तंज कसा।
शंभूदीन ने न तो अपने वर्करों को तंज करने से रोका और न ही साथ दिया। उसने यादवेंद्र को बैठने के लिए कहा और पूछा, "कहाँ रह गए थे यादवेंद्र।"
"अचानक पत्नी का पथरी का दर्द ज्यादा बढ़ गया था। उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। आप गिनती में गए हुए थे, आपसे उस समय बात न हो पाई और फिर पत्नी को संभालने वाला मेरे सिवा कौन था, इसलिए बात न हो सकी।"
"हम तो कुछ और ही सुन रहे थे।"
"सुना तो वही जाता है, जो सुनाया जाता है और सुनाने वाले क्या-क्या सुना सकते हैं, इस पर तो कोई रोक नहीं।"
"यानी तूने महेश जैन की मदद नहीं की।"
"अगर आप ऐसा सोच सकते हैं, तो इसका एक ही अर्थ है कि पार्टी के लिए की गई इतने वर्ष की मेहनत असफल हुई। मुझे आप ही राजनीति में लेकर आए थे और आपको धोखा देने से पहले मैं मर जाना पसंद करूँगा।"
"सन्नी...।" - अमित ने कोई तर्क देना चाहा, जिसे यादवेंद्र ने बीच में ही रोक दिया।
"यह मेरा और नेता जी का मामला है और हमारी दोस्ती आज की नही कॉलेज के दिनों की है, इसलिए तुम हमारी बात में न ही पड़ो तो अच्छा है।" - फिर वह नेता जी से मुखातिब होते हुए बोला, "नेता जी अगर आपको भी इस बारे में कोई संदेह है, तो इसके लिए मैं आपसे अलग से बात करूँगा, एकांत में।"
नेता जी ने सबको वहाँ से जाने के लिए कहा। सबके चले जाने पर वे बोले, "यादवेंद्र मन तो मेरा भी नहीं मानता तू मुझसे गद्दारी करेगा, लेकिन सबूत तेरे विरुद्ध जा रहे हैं।"
"सबूत तो पैदा भी कर दिए जाते हैं और जब हमारे मन में संदेह हो तो हर झूठी-सच्ची बात सबूत लगती है। मुझे दुख है तो सिर्फ इस बात का कि आपने मुझसे पूछने की बजाए, दूसरों की बात को सच समझना जरूरी समझा।"
"तो क्या सन्नी से तेरी दोस्ती की बात झूठ है।"
"सन्नी से मेरा संपर्क है, मैं इस बात से इंकार नहीं करता, लेकिन चुनाव में मैने तन-मन-धन से आपका साथ दिया है। फिर आप अकेले तो नहीं हारे, पूरी पार्टी की हार हुई है। जनता अब हर पाँच साल बाद बदलाव चाहने लगी है, पड़ोसी राज्यों में भी यही हो रहा है। हम भी इसी का शिकार हुए हैं।"
"जब तुझे पता है कि सन्नी विरोधी पार्टी के नेता का बेटा है, फिर उससे मित्रता क्यों की तूने।"
"इसी डर से कि अगर हम हार गए। मैं नहीं चाहता था कि सत्ता से बाहर होने के बाद मुझ पर फिर शिकंजा कसे, बस इस नाते उससे दोस्ती की, लेकिन उसे भी स्पष्ट कहा था कि चुनाव के समय मेरी निष्ठा सिर्फ शंभूदीन के लिए होगी।
"सन्नी के कहने पर तूने लोगों के काम भी मुझसे करवाए।"
"हाँ।"
"फिर तो कैसे कह सकता है कि तूने मेरे खिलाफ जाकर महेश जैन की मदद नहीं की।"
"मैं समझा नहीं।"
"सन्नी ने जो काम करवाए, उन्हीं के नाम पर वोट माँगे।"
"नेता जी, मुझे पता है कि यह आप नहीं बोल रहे, यह अमित के शब्द हैं। अमित मुझसे उसी समय से ईर्ष्या करता है, जबसे मैंने कुछ व्यक्तियों को नौकरी दिलवाने की डील की।"
"जी भी हो, सच तो है ना।"
"नहीं, आप खुद ही सोचिए क्या नौकरी लगने वाले को नहीं पता कि नौकरी मंत्री जी की कलम से मिली है। फिर कितने लोगों के काम करवाए। क्या उन सौ-दो सौ वोटों से ही हारे आप।"
"फिर भी...।"
"नेता जी आप क्या सोचते हैं, यह तो मैं बदल नहीं सकता, लेकिन इतना कह सकता हूँ कि राजनीति में मेरी निष्ठा आपके साथ थी, आपके साथ है और तब तक आपके साथ रहेगी, जब तक आप मुझ पर यकीन करते रहेंगे। सन्नी से संबन्ध रखने का मतलब है अपनी चमड़ी बचाना और यह तो कोई गुनाह नहीं। फिर उस समय जैसे काम उसने हमसे करवाए, वैसे अब हम भी उससे करवाएँगे। ये तो सौदा था। एक हाथ ले, एक हाथ दे वाली बात।"
"वाह... बहुत समझदार हो गया तू। राजनेताओं से ही राजनीति करने लगा है।"
"नहीं, नेता जी अगर मेरे मन में खोट होता तो मैं आपको सच नहीं बताता। ऊपर से अब मेरे पास महेश जी के पाले में जाने के रास्ते खुल हुए हैं और इस समय जाना मेरे लिए फायदेमंद ही होगा, लेकिन मैं नहीं जाऊँगा, क्योंकि आज वे जीते हैं, कल हम जीतेंगे। सत्ता की गोद में बैठने वालों में यादवेंद्र नहीं है। आप जीतें या हारें, यादवेंद्र आपके साथ खड़ा होगा।"
शंभूदीन मन-ही-मन यादवेंद्र की इस बात से सहमत था कि अगर वह चाहता तो अब उसे छोड़कर जा सकता था। यादवेंद्र की ईमानदारी और सच बोलने की आदत से वह सदा से ही प्रभावित था। हाँ, उसे लग रहा था कि यादवेंद्र अब उतना भोला नहीं रहा, जितना वह पहले था, इसलिए इससे सावधान रहना ज़रूरी है, लेकिन उसकी वफादारी पर अब भी संदेह नहीं किया जा सकता था। महेश जैन से वे भी अपने काम करवाएँगे, ऐसा यादवेंद्र ने भले कहा था, लेकिन शंभूदीन को इसकी जरूरत नहीं थी। उसका कद आज भी इतना बड़ा था कि वह अपने काम तो आसानी से निकलवा लेगा। हाँ, यादवेंद्र खुद बचा रह सकता है, उसका काम धंधा चलता रह सकता है। इस दृष्टि से यादवेंद्र ने अपनी सुरक्षा का जो रास्ता चुना वह उसकी जरूरत भी थी। शंभूदीन ने उसे कहा, "ठीक है यादवेंद्र, मैं तेरे जवाब से फिलहाल संतुष्ट हूँ, लेकिन तुझे अपनी वफादारी पार्टी के साथ बनाए रखनी होगी।"
"आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी।"
"मुझे तुझमे यही आशा है।"
इसके बाद शंभूदीन हाल से उठकर अंदर चले गए। यादवेंद्र के मन में शंभूदीन को छोड़ने का पहले भी कोई इरादा नहीं था और अब भी वह अपने मत पर अडिग था। उसने सोच लिया था कि वह राजनीति की बजाए अपना ध्यान अपने धंधे पर केंद्रित करेगा और बड़े बिजनेसमैन की तरह दोनों पार्टियों को चंदा देगा, दोनों का कमाऊ पूत बनेगा, जिससे सरकार किसी भी दल की हो उसका व्यापार चलता रहे। राजनेता से वह कब कुशल व्यापारी की तरह सोचने लगा, इससे वह खुद हैरान था।
क्रमशः