Yugantar - 25 in Hindi Moral Stories by Dr. Dilbag Singh Virk books and stories PDF | युगांतर - भाग 25

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युगांतर - भाग 25

संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा, जिस पर कभी कोई मुसीबत न आई हो। हाँ, मुसीबतों की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है और यह भी कहा जा सकता है कि मुसीबतें बड़ी-छोटी भी हो सकती हैं। वैसे मुसीबत को बड़ी-छोटी मापने का कोई पैमाना नहीं। एक व्यक्ति जिस मुसीबत को बहुत बड़ी समझ लेता है, दूसरा उसे उतनी बड़ी नहीं समझता और इसका कारण है कि हर व्यक्ति की मनोस्थिति अलग-अलग होती है और अलग-अलग मनोस्थितियों के चलते ही कोई व्यक्ति मुसीबत आने पर टूट जाता है, तो कोई निखर जाता है। मुसीबतें व्यक्ति पर कैसा प्रभाव डालेंगी यह मनोस्थिति पर तो निर्भर करता ही है, साथ ही इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसके परिवारवाले, दोस्त कैसे हैं। यदि कोई मोरल स्पोर्ट देने वाला हो तो वह व्यक्ति जो टूट सकता था, बड़ी सरलता से मुसीबतों पर जीत हासिल कर लेता है। हाँ, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें सहयोग मिले-न-मिले उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ता और ऐसे लोग या तो बहुत निराशावादी होते हैं या फिर बुलंद हौसलों वाले। निराशावादियों को कोई बचा नहीं सकता और बुलन्द हौसले वालों को कोई गिरा नहीं सकता, बुलंद हौसले वाले तो हर मसीबत से निखर कर आते हैं। ऐसे लोग आमतौर पर कम ही होते हैं और ज्यादातर लोग इन दोनों स्थितियों के बीच के होते हैं यानी कभी निराश हो जाना और कभी मुसीबतों के सामने डट जाना। ऐसे लोगों के लिए मुसीबत से निकलना ही बहुत बड़ी बात होती है।
यादवेंद्र न तो बहुत निराशावादी था और न ही बुलन्द हौसले वाला। वह अपने दम पर मुसीबतों से पार शायद ही पा सकता था, लेकिन परिवार का सहयोग पाकर वह बड़ी आसानी से उबर सकता था। यादवेंद्र इस मामले में भाग्यशाली था कि उसकी पत्नी रमन ने मुसीबत के समय उसका पूरा साथ दिया। यूँ तो शंभूदीन ने भी उसकी काफी मदद की, लेकिन रमन उसका इस प्रकार सहयोग करेगी, इसकी उसे जरा भी आशा न थी, क्योंकि वह नशे के व्यापार के सख्त खिलाफ थी, इसके लिए तंज कसती रही थी, लेकिन जमानत पर घर आने के बाद रमन ने एक बार भी उसे ऐसा कुछ नहीं कहा कि मैं तो आपको रोकती थी, लेकिन आप मानते ही नहीं थे या आपके साथ ऐसा ही होना चाहिए था। रमन ने इस मुद्दे पर बात करने की बजाए सिर्फ इतना कहा कि हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा। वह भगवान पर आस्था रखने वाली औरत थी और उसका विश्वास था, जिसने मुसीबत दी है, वही मुसीबत से निकलने का हल देगा। वह कहती थी कि मुसीबतें हमें सिखाने के लिए ही आती हैं। यादवेंद्र उसकी इस सोच से बहुत प्रभावित था। वह भी बुरे वक्त से सीखने का हुनर सीखने लगा। रमन ने जब से रश्मि को गोद लिया था, तब से वह खुद को उसके अहसान तले दबा पाता था। कभी-कभार उसने इसे शब्दों में कहना भी चाहा, लेकिन रमन इस बात को आगे नहीं बढ़ने देती क्योंकि पति को अहसानमंद करके वह पति को छोटा साबित नहीं करना चाहती थी। उसकी सोच थी कि पति को राजा बनाकर ही पत्नी रानी बन सकती है। सहानुभूति किसी का दर्द कम नहीं कर सकती, किसी का बोझ उतार नहीं सकती। जो गलती जिसने की होती है, उसकी सज़ा आखिर में उसी को भुगतनी होती है, जो दर्द जिसको मिला है, उसी को सहना होता है, इसके बावजूद सहानुभुति से ऐसी ऊर्जा का संचार होता है, जिससे हर बोझ हल्का हो जाता है, हर दर्द कम हो जाता है। सहानुभूति और प्रेम की इसी मरहम को पाकर मुसीबतों भरे पाँच साल कब बीत गए, यादवेंद्र को पता नहीं चल। जब दोबारा उनकी पार्टी सत्ता में आई तो उसने सोचा था इस बार धन कमाने के लिए कोई गैरकानूनी काम नहीं करेगा और न ही दिल को किसी सुंदरी की जुल्फों में उलझने देगा, लेकिन कई बार आप चाहकर भी अपनी मर्जी अनुसार काम नहीं कर सकते, इसीलिए तो मानव को परिस्थितियों का खिलौना कहा जाता है।
शंभूदीन ने जिस तरह से उसे स्मैक बेचने का कहा, उससे यादवेंद्र की अनेक भ्रांतियाँ दूर हो गईं। सच कहीं छुपा हुआ नहीं होता, वह सदा हमारे सामने होता है, लेकिन ऑंखों पर कई प्रकार के पर्दे पड़े रहते हैं, जिससे न सिर्फ सच आँखों से ओझल रहता है, अपितु सच से बड़ा झूठ हमें कुछ नहीं लगता। कल तक कोई अगर यादवेंद्र को कहता है कि वह शंभूदीन का दोस्त नहीं, अपितु उसका मोहरा है, तो यादवेंद्र उसका गला पकड़ लेता, लेकिन आज बिना किसी के कहे, उसे लग रहा था कि वह शंभूदीन के हाथों इस्तेमाल हो रहा था। यूँ तो कहा जाता है कि जब जागो, तभी सवेरा, लेकिन यह कहावत हर बार सच हो, ज़रूरी नहीं। यादवेंद्र जागने को तो जाग गया था, लेकिन सवेरा उससे कोसों दूर दिख रहा था। मंत्री जी को इंकार करने का अर्थ था, मुसीबत को निमंत्रण देना। उस पर केस तो चल ही रहा है, ऐसे में उस पर शिकंजा कसा जाना बड़ा आसान था, इसलिए उसने सहमति देने में ही भलाई समझी, लेकिन बीते वक्त की सीख बता रही थी कि सत्ता जाते ही वह पुनः सलाखों के पीछे होगा, इसलिए उसने अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए कि वह उस समय कैसे बच पाएगा, जब वे सत्ता में नहीं होंगे।
जब भी हम अंधभक्ति से बाहर आते हैं, जब भी आँखों से पर्दा उतरता है, तब बहुत कुछ साफ-साफ दिखने लगता है। उसे दिख रहा है कि बड़े नेता उस कद्र एक-दूसरे के दुश्मन नहीं, जिस कद्र पार्टी के वर्कर हैं। बड़े नेता तो अनेक अवसरों पर इकट्ठे खाते-पीते, एक दूसरे के पारिवारिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। ऐसा सोचते ही उसका ज्ञानचक्षु खुल गया। उसे रास्ता दिखने लगा कि वह सिर्फ शंभूदीन का पिछलग्गू बना नहीं रहेगा, अपितु विरोधी पार्टियों के नेताओं से अच्छे संबन्ध स्थापित करेगा ताकि भविष्य में आने वाली मुसीबतों से बच सके।

क्रमशः