सुहासिनी उस रात अकेले रहने का वह दर्द आज तक नहीं भूल पाई थी। गीता मैडम के समझाने पर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और उसने कहा, “गीता दीदी आप लोग पिकनिक पर क्यों चले गए थे, मुझे अकेला छोड़कर …”
बीच में ही गीता मैडम ने कहा, “सुहासिनी विजय राज जी ने सभी की बुकिंग कर दी थी। अच्छा होटल, अच्छा खाना-पीना, बहुत सारे कमरे भी बुक किए थे उन्होंने। उनका बहुत पैसा लग गया था इसलिए हम वह पिकनिक कैंसिल नहीं कर सकते थे। वैसे भी यहाँ के बच्चों के लिए कौन इतना करता है? कौन इतना सोचता है? वही तो हैं जो हमारे अनाथाश्रम के पालन हार हैं। उन्हें दुखी करना तो ग़लत हो जाता ना?”
“गीता दीदी, काश उसे ही दुखी कर दिया होता।”
“सुहासिनी तुम कहना क्या चाहती हो? अब खुल कर कह दो?”
“गीता दीदी आप लोगों के जाने के बाद उसी रात को वही पालन हार अनाथाश्रम में आया था और …”
“और क्या? बोलो सुहासिनी …”
“गीता दीदी मैं सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी। तभी डोर बेल बजी, मैं उठी और दरवाज़ा खोला, देखा तो वह सामने खड़ा था। मुझे देखते ही उसने पूछा अब कैसी तबीयत है बेटा? मैं ख़ुश हो गई सोचा कितना ख़्याल रखता है यह हम सभी का। किंतु उतने में ही उसने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर दिया।”
“यह क्या कह रही हो सुहासिनी? मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।”
“हाँ दीदी उसके बाद मेरा हाथ पकड़ कर उसने कहा, ओफ्फ़ ओह तुम्हारा शरीर तो बुखार से तप रहा है कहते हुए उसने मुझसे कहा …”
“क्या कहा?”
“उसने कहा सुहासिनी तुम बहुत प्यारी हो। मुझे बहुत अच्छी लगती हो। चलो मैं तुम्हारे माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रख देता हूँ।”
“मैंने कहा नहीं सर इतना भी तेज बुखार नहीं है मुझे। मैं ठीक हूँ किंतु उसके बाद उसने मुझे जबरदस्ती अपनी गोद में उठा लिया और एक कमरे में लेकर चला गया । मैंने शोर मचाने की बहुत कोशिश की किंतु मेरी आवाज़ सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था। वह 6 फीट का ऊँचा पूरा, उसके आगे मेरी शक्ति की कोई औकात नहीं थी। मैं हार गई दीदी, मैं हार गई।”
सुहासिनी को सीने से लगाते हुए गीता मैडम ने कहा, “मेरा दिल कांप रहा है मेरे कान डर रहे हैं। यह शब्द मेरे शरीर को झकझोर रहे हैं।”
“आपका डरना, आपका काँपना सब कुछ जायज है दीदी। उसने उस रात एक अनाथ को अपनी हवस का शिकार बना डाला।”
गीता मैडम के आश्चर्य का ठिकाना न था, उन्होंने कहा, “सुहासिनी तुमने मुझे बताया क्यों नहीं? इतने वर्षों से हम उस शैतान को भगवान मानते चले आ रहे हैं। काश तुम मुझे बता देतीं।”
इसी वक़्त आयुष्मान वहाँ आया और कमरे के बाहर से उन दोनों की बात सुनने लगा।
“गीता दीदी शायद वह एक ही बार होता तो मैं आपको बता देती लेकिन दूसरे दिन भी वह सुबह आया और उसने फिर से वही सब दोहराया। मुझे लगा अब तो जब भी इसे मौका मिलेगा, यह मेरे साथ ऐसा ही करेगा। इसी डर के कारण मैंने अपना यह प्यारा घर छोड़ दिया और ऐसी अँधेरी दुनिया में गुम हो गई, जहाँ कोई मुझे ना पहचान सके।”
चश्मे के अंदर बहते हुए आँसुओं को चश्मा उतार कर पोंछते हुए गीता मैडम ने कहा, “फिर तुम कहाँ चली गई थीं सुहासिनी? उसके बाद तुम्हारे साथ क्या हुआ?”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः