The sad story of the witch brought tears to my eyes in Hindi Horror Stories by Ravinder Sharma books and stories PDF | चुड़ैल की दुखभरी कहानी, आ गया मेरे आँखों में भी पानी

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चुड़ैल की दुखभरी कहानी, आ गया मेरे आँखों में भी पानी

रमेसर बाबू अपने कार्यालय में अपनी सीट पर बैठकर फाइलों को उलट-पलट रहे थे। उनका कार्यालय ग्रामीण क्षेत्र में था जहाँ जाने के लिए कच्ची सड़कों से होकर जाना पड़ता था। अरे इतना ही नहीं, कार्यालय के आस-पास में जंगली पौधों की अधिकता थी, कहीं कहीं तो ये जंगली पौधे इतने सघन थे कि एक घने जंगल के रूप में दिखते थे। कार्यालय के मुख्य दरवाजे को छोड़ दें तो बाकी हिस्से पूरी तरह से घाँस-फूँस आदि से ढंके लगते थे। कार्यालय के कमरों की खिड़कियों आदि पर लंबे-लंबे घास-फूँसों का साम्राज्य था। दिन में भी कार्यालय में एक हल्का अंधकार पसरा रहता था, जिससे ऐसा लगता था कि यह कार्यालय हरी-भरी वादियों में शांत मन से बैठा हुआ किसी गहरे चिंतन में डूबा हुआ हो। क्योंकि इस कार्यालय में कुल कर्मचारियों की संख्या मात्र 5 ही थी जिसमें से एक रामखेलावन थे, जो चपरासी के रूप में यहाँ अपनी सेवा दे रहे थे। रामखेलावन ही वह व्यक्ति थे जिनके कार्य-व्यवहार से यह शांत कार्यालय कभी-कभी मुखर हो उठता था और कर्मचारियों की हँसी-ठिठोली से जाग उठता था।

रामखेलावन जी, पास के ही एक गाँव के रहने वाले थे और प्रतिदिन कोई न कोई असहज घटना कार्यालय के बाकी 4 कर्मचारियों को सुनाया करते थे। वे विशेषकर जब भी कार्यालय में प्रवेश करते तो सबसे पहले रमेसर बाबू के कमरे में जाते और राम-राम कहने के साथ ही शुरू हो जाते कि बाबू कल तो गाँव में गजब हो गया था। रमदेइया को जंगल में चुडैल ने पकड़ लिया था तो मनोहर का सामना एक भयानक भूत से हो गया था। जबतक रामखेलावन जी सभी कर्मचारियों से मिलकर कुछ भूत-प्रेत, गाँव-गड़ा की बातें नहीं बता लेते, उन्हें कल (चैन) नहीं पड़ता था। कोई कर्मचारी रामखेलावन की बातों को सहजता से सुनता तो कोई केवल हाँ-हूँ करके उस ओर कान नहीं देता और उन्हें स्टोप जला कर चाय बनाने के लिए कह देता या पानी की ही माँग करके उनसे बचने की कोशिश करता। पर रामखेलावन की बातों को रमेसर बाबू बहुत ही सजगता से सुनते और पूरा ध्यान देते हुए बीच-बीच में हाँ-हूँ करने के साथ कुछ सवाल भी पूछते।

एक दिन की बात है, रामखेलावन जी कार्यालय थोड़ा जल्दी ही पहुँच गए और सीधे रमेसर बाबू के कमरे में घुस गए। पर उस समय रमेसर बाबू अपनी कुर्सी पर नहीं थे, शायद वे अभी कार्यालय पहुँचे ही नहीं थे। रामखेलावन थोड़ा डरे-सहमे लग रहे थे और बार-बार अपने माथे पर आ रहे पसीने को गमछे से पोछ रहे थे। वे ज्यों ही कमरे से बाहर निकले त्यों ही कार्यालय के प्रांगण में उन्होंने रमेसर बाबू को अपनी साइकिल को खड़े करते हुए देखा। वे दौड़कर रमेसर बाबू के पास पहुँच गए और बिना जयरम्मी किए ही हकलाकर, घबराकर बोले, “बाबू, बाबू! कल रात को तो गजब हो गया। मेरा पूरा परिवार आफत में आ गया है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूँ?” रमेसर बाबू ने उन्हें अपने कमरे की ओर चलने का इशारा करते हुए आगे-आगे तेज कदमों से अपने कार्यालय-कक्ष में प्रवेश किए। फिर एक कुर्सी पर रामखेलावन जी को बैठने का इशारा करते हुए अपने झोले को वहीं मेज पर रखकर एक गिलास में पानी लेकर कक्ष के बाहर आकर हाथ-ओथ धोए। उसके बाद कमरे में लगे हनुमानजी की फोटो को अगरबत्ती दिखाने के बाद अपनी कुर्सी पर बैठते हुए रामखेलावनजी से बोले, “रामखेलावनजी, अब अपनी बात पूरी विस्तार से बताइए।”

उनकी अनुमति मिलते ही रामखेलावनजी कहना शुरू किए, “बाबू, कल मैं जब शाम को घर पर पहुँचा तो पता चला की मेरी बहू कुछ लकड़ी आदि की व्यवस्था करने जंगल की ओर गई थी और वहीं उसे किसे चुड़ैल ने धर लिया था। वह इधर-उधर जंगल में भटक रही थी तभी कुछ गाँव के ही गाय-बकरी के चरवाहों की नजर उस पर पड़ी। वे लोग स्थिति को भाँप गए और मेरी बहू को पकड़कर घर पर छोड़ गए। फिर गाँव के ही सोखा बाबा ने झाँड़-फूँक की उसके बाद उस चुड़ैंल से छुटकारा मिला। पर आज सुबह फिर से उस पर चुड़ैल हावी हो गई है, सुबह से ही सोखा बाबा उसे उतारने में लगे हैं, पर वह छोड़कर जाने का नाम ही नहीं ले रही है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?”

रामखेलावन की बातों को सुनकर रमेसर बाबू थोड़े गंभीर हुए और अचानक पता नहीं क्या सूझा कि हँसने लगे। रमेसर बाबू की यह हालत देखकर रामखेलावनजी तो और भी हक्के-बक्के हो गए। उन्हें समझ में नहीं आया कि आखिर इनको क्या हो गया, कहीं इनपर भी तो किसी भूत-प्रेत का साया नहीं पड़ गया? अभी रामखेलावनजी यही सब सोच रहे थे तभी रमेसर बाबू अपनी कुर्सी पर से उठे और बिना कुछ बोले रामखेलावन को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए कमरे से बाहर निकल गए। कमरे से बाहर निकल कर रमेसर बाबू पास की ही एक झाँड़ी से कुछ पत्तों को तोड़ा और मन ही मन कुछ मंत्र बुदबुदाए फिर रामखेलावन को उन पत्तों को देते हुए बोले कि आप इसे पीसकर अपनी बहू को पिला दें, और अपने घर पर ही रूकें। मैं कार्यालय में कुछ जरूरी काम-काज निपटाकर अभी 1-2 घंटे में आपके घर पर पहुँचता हूँ।

रामखेलावनजी बिना कुछ बोले, केवल सिर हिलाए और उन पत्तों को लेकर घर की ओर बढ़ें। रास्ते में उन्हें केवल एक ही बात खाए जा रही थी कि रमेसर बाबू को यहाँ आए 3 साल हो गए पर कभी उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया कि वे भूत-प्रेतों को उतारना भी जानते हैं। कहीं वे मजाक में तो इन पत्तों को तोड़कर, झूठ-मूठ में कुछ बुदबुदाकर मुझे नहीं दे दिए? पर रमेसर बाबू ऐसा नहीं कर सकते, वे तो बहुत गंभीर आदमी हैं, और हमारी सारी बातों को भी तो बहुत गंभीरता से लेते हैं और समय-समय पर हर प्रकार से हमारी मदद भी तो करते रहते हैं। ना-ना, वे मेरे साथ मजाक नहीं कर सकते। यही सब सोचते-सोचते रामखेलावनजी घर पर पहुँच गए। घर के बाहर 10-15 गाँव-घर के ही लोग बैठे नजर आए। एक खटिया पर सोखा बाबा भी बैठकर लोगों से कुछ बात-चीत कर रहे थे। रामखेलावनजी को देखते ही सोखा बाबा बोल पड़े, “रामखेलावन, यह चुड़ैल तो बहुत ढीठ है, रात को छोड़ तो दी थी पर सुबह फिर से आ गई। 2-3 घंटे मैंने कोशिश किया पर छोड़कर जाने का नाम ही नहीं ले रही है, अभी भी आंगन में नाच-कूद रही है। मेरे मंत्रों का अब तो उस पर कुछ असर भी नहीं हो रहा है, यहाँ तक कि मेरा भी मजाक उड़ा दी। इतना सब होने के बाद मैं उसे छोड़कर बाहर आकर बैठ गया हूँ। मैं अब कुछ नहीं कर सकता। मेरा जितना पावर था, वह सब अजमा लिया।”

रामखेलावनजी सोखा बाबा के ही बगल में बैठते हुए अपनी लड़की को आवाज लगाए, उनकी लड़की घर में से दौड़ते हुए बाहर निकली। फिर रामखेलावनजी ने उन पत्तों को उसे देते हुए कहा कि अभी इसे पीसकर बहू को पिला दो। अगर ना-नूकर करती है तो जबरदस्ती पिलाओ। इसके बाद रामखेलावन की लड़की उन पत्तों को लेकर घर में गई तथा उन पत्तों को पीसकर अपनी भाभी को पिलाई। अरे यह क्या, एक घूँट अंदर जाते ही रामखेलावन जी की बहू तो काफी शांत हो गई और वहीं आंगन में ही एक तरई पर बैठ गई। अब उसके व्यवहार में काफी अंतर आ गया था। उसका कूदना-नाचना बंद हो गया। रामखेलावनजी की लड़की दौड़ते हुए घर में बाहर निकली और रामखेलावनजी की ओर देखकर बोली, “बाबू, बाबू! भउजी को अब आराम हो गया है, वे आंगन में ही अब शांति से बैठ गई हैं।”

बाहर जितने लोग बैठे थे, वे सब हतप्रभ हो गए। आखिर जो चुड़ैल इतने बड़े सोखा से बस में नहीं आई, वह दो-चार पत्तों को पिलाने से कैसे बस में आ सकती है? आखिर वे कैसे पत्ते थे? क्या किसी धर्म-स्थान से लाए गए थे या किसी बहुत बड़े पंडित, ओझा, सोखा आदि ने दिए थे? वहाँ बैठे लोगों में से एक ने रामखेलावनजी की ओर देखा पर कुछ बोले इससे पहले ही रामखेलावनजी ने उन पत्तों के बारे में बता दिया। सभी लोग बिन देखे उस रमेसर बाबू के प्रति नतमस्तक हो गए। सोखा बाबा ने कहा कि वास्तव में आपके रमेसर बाबू तो बहुत पहुँचे निकले। जिस चुड़ैल को बस में करने के लिए मैंने सारे के सारे हथकंडे अपना लिए, उसे उनके मंत्रित दो-चार पत्तों ने बस में कर लिया। फिर तो रामखेलावनजी थोड़ा तन कर बैठ गए और लगे रमेसर बाबू का गुणगान करने। अभी वे लोग आपस में बात कर ही रहे थे तभी रमेसर बाबू की साइकिल वहाँ रूकी।

रमेसर बाबू को देखते ही रामखेलावनजी दौड़कर रमेसर बाबू के हाथ से साइकिल लेकर खुद ही खड़ी करते हुए बोले, रमेसर बाबू, आपके पत्तों ने तो कमाल कर दिया। अब बहू काफी अच्छी है और शांति से आंगन में बैठी है। रमेसर बाबू के इतना कहते ही वहाँ बैठे सभी लोग खड़े हो गए और रमेसर बाबू की जयरम्मी करने लगे। रमेसर बाबू सबका अभिवादन स्वीकार करते हुए उन लोगों के बीच ही एक खाट पर बैठ गए। फिर रमेसर बाबू ने रामखेलावनजी की बहू को घर में बाहर बुलवाया। वह काफी शांत थी पर रमेसर बाबू को लगा कि अभी भी वह चुड़ैल यहीं है और पत्ते का असर खत्म होते ही फिर से इसे जकड़ लेगी। रमेसर बाबू ने रामखेलावनजी की बहू को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए कुछ मंत्र बुदबुदाने लगे। अरे यह क्या, रामखेलावनजी की बहू घबराकर बोल उठी, मुझे छोड़ दीजिए, मैं जा रही हूँ, मैं अब कभी भी इसे नहीं पकड़ूँगी। मुझे जाने दीजिए, मुझे जाने दीजिए, मैं जल रही हूँ, मुझे छोड़ दीजिए। उस चुड़ैल को इस तरह गिड़गिड़ाते हुए देखकर रामखेलावनजी की काफी हिम्मत बढ़ गई। वे बोल पड़े, रमेसर बाबू, इसे छोड़िएगा मत। इसे जला कर भस्म कर दीजिए। पर वह चुड़ैल रामखेलावनजी की ओर ध्यान न देते हुए, रमेसर बाबू की ओर दयनीय स्थिति में देखते हुए अपने प्राणों की भीख माँगती रही।

रमेसर बाबू काफी गंभीर लग रहे थे। वे रामखेलावनजी की बहू की ओर गुस्से से देखते हुए बोले कि तुम कौन हो और इसे क्यों पकड़ीं? इस पर वह चुड़ैल गिड़गिड़ाते हुए बोली की मैं पास के ही जंगल में रहती हूँ। मैं बंजारा परिवार से हूँ, एकबार हमारे परिवार ने इसी जंगल के बाहर अपना टेंट लगाया था। शाम के समय मैं लकड़ी लेने जंगल में प्रवेश की। मुझे पता नहीं चला कि कब मैं घने जंगल में पहुँच गई और रास्ता भी भटक गई। तब तक रात भी होने लगी थी। जंगल में पूरा अंधेरा पसरना शुरू हो गया था। मैं थोड़ी डर गई थी पर हिम्मत नहीं खोई थी। अचानक मेरे दिमाग में एक विचार आया। मैंने सोचा कि रात के इस अंधेरे में अब रास्ता खोजना ठीक नहीं। कहीं किसी जंगली जानवर की शिकार न हो जाऊँ। इसलिए मैंने हिम्मत करके वहीं एक मोटे जंगली पेड़ पर चढ़कर बैठ गई। मैंने सोचा कि सुबह होते ही मेरे परिवार के लोग जरूर मुझे खोजने आएंगे और अगर नहीं भी आए तो मैं दिन में अपना रास्ता खोज लूँगी। पर वह रात शायद मेरे जीवन की ि के लिए ही आई थी। मैं जिस पेड़ पर चढ़कर बैठी थी, उसी पर एक प्रेत का डेरा था। आधी रात तक तो सब कुछ एकदम ठीक-ठाक था पर उसके बाद अचानक वह प्रेत कहीं से उस पेड़ पर आ बैठा।

उसके आते ही जैसे पूरे जंगल में भयंकर तूफान आ गया हो। अनेकों पेड़ों की डालियाँ तेज हवा से डरावने रूप से हिलने लगी थीं। मुझे देखते ही वह जोरदार ढंग से अट्टहास किया और मुझे कोई प्रेतनी ही समझ कर बोला कि तुम्हें पता नहीं कि यह मेरा निवास है। मैं कुछ जरूरी काम से जंगल से बाहर क्या गया, तूने मेरे बसेरे पर कब्जा कर लिया। मैं तूझे छोड़ूँगा नहीं, इतना कहकर वह मेरे तरफ झपटा, अत्यधिक डर से तो मेरी चींख निकल गई। मैं बहुत तेज चिल्लाई की मैं कोई प्रेतनी नहीं हूँ। मैं इंसान हूँ इंसान। मेरी बातों को सुनकर तो वह और जोर से अट्टहास करने लगा और बोला कि मुझे एक संगिनी चाहिए। तुझे अगर सही-सलामत रहना है तो मुझसे विवाह करना होगा। मरता क्या न करता। मैंने सोचा कि अब इस समय बस एक ही रास्ता है कि इसकी बातों को मान लिया जाए और दिन उगने के बाद यहाँ से खिसक लिया जाएगा। मैंने उसके हाँ में हाँ मिलाते हुए अपनी सहमति दे दी। मुझे क्या पता था कि यह सहमति मुझपर बहुत भारी पड़ेगी।

इतना कहने के बाद रामखेलावन की बहू पर सवार वह चुड़ैल फूट-फूटकर रोने लगी। रमेसर बाबू थोड़े भावुक हो गए और उसके प्रति थोड़ी नरमी दिखाते हुए पानी भरा लोटा उसको पीने के लिए दे दिए। दो-चार घूँट पानी पीने के बाद उसने फिर से कहना शुरू किया। मेरी सहमति देने के बाद वह प्रेत पता नहीं कहाँ गायब हो गया, उसके गायब होते ही मैंने थोड़ीं चैन की साँस ली पर यह क्या अभी 10-15 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि उस जंगल में जैसे भूचाल आ गया हो। एक बहुत बड़ा तूफान आ गया हो। कितने पेड़ों की पता नहीं कितनी डालियाँ टूटकर धरती पर पड़ गईं।

कम से कम सैकड़ों भूत-प्रेत वहाँ उपस्थिति हो गए थे। चारों तरफ चीख-पुकार मचा हुआ था। कुछ डरावनी अट्टहास कर रहे थे तो कुछ इस डाली से उस डाली पर कूद-फाँद रहे थे, तो कुछ ताली बजाकर नाच रहे थे। मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। तब तक वही प्रेत फिर से मेरे पास प्रकट हुआ और बोला की विवाह की व्यवस्था करने चला गया था। अपने परिवार वालों को बुलाने चला गया था। शादी में इन सबको भी तो शरीक करना होगा। अरे यह क्या अब तो मेरी शामत आ गई। पूरा शरीर पीला पड़ गया। कुछ बोलने की हिम्मत नहीं रही, तभी अचानक एक प्रेतनी वहां प्रकट हुई और उस प्रेत से लड़ने लगी। वह प्रेतनी बोल रही थी कि मेरे रहते तूँ दूसरी शादी करेगा, कदापि नहीं, कदापि नहीं। मैं ऐसा नहीं होने दूँगी और इतना कहने के साथ ही उस प्रेतनी ने उस डाल से मुझे धक्का दे दिया और जमीन पर गिरने के कुछ ही समय बाद मेरी इहलीला हो गई थी। इतने कहने के साथ ही वह चुड़ैल फिर से रोने लगी थी।

इसके बाद रमेसर बाबू ने उस चुड़ैल को चुप रहने का इशारा करते हुए कहा कि आज के बाद तूँ इन गाँव वालों को कभी परेशान नहीं करोगी। चुड़ैल ने हामी भरते हुए कहा कि ठीक है। पर मैं तो एक बहुत ही छोटी आत्मा हूँ। इन पास के जंगलों में पता नहीं कितनी भयानक-भयानक आत्माएँ विचरण करती हैं। आप उन सबसे इस गाँव वालों को कैसे बचा पाएँगे। उस चुड़ैल की इस बात को सुनते हुए रमेसर बाबू हल्की मुस्कान में बोले। तूँ तो बकस इन लोगों को, बाकी भूत-प्रेतों से कैसे निपटना है, वह तूँ मुझपर छोड़। इसके बाद रमेसर बाबू ने लोगों को अब कभी न पकड़ने की बात उस चुड़ैल से तीन बार कबूल करवाई तथा साथ ही उसे थूककर चाटने के बाद ही जाने दिया।

तो पाठकगण, रमेसर बाबू ने उस चुड़ैल से तो गाँव वालों को छुटकारा दिला दिया पर क्या वे दूसरे भूत-प्रेतों से उन गाँव वालों की रक्षा कर पाए??? राज को राज ही रहने दिया जाए। खैर आप लोग बताएँ कि यह भूतही काल्पनिक कहानी आप लोगों को कैसी लगी??? जय बजरंग बली।