ऐसी मान्यता है कि जो आत्मा आकस्मिक अपूर्ण इच्छा के साथ शरीर का त्याग करती है वह अपने शुक्ष्म अलौकिक अस्तित्व में ब्रह्मांड में विचरण करती है और अपने जीवन अस्तित्व की अत्रितप्ता की तृप्तता हेतु युगों युगों विचरती है और जब कभी उसकी अतृप्त आत्मा को तृप्तता प्राप्त हो जाती हैं उससे मुक्त हो जाती है ।माना जाता है कि शरीर का त्याग विवशता या बेवस लाचारी की आत्मा जब करती है तो शरीर त्यागते समय उसके विचार भाव ही उसके शुक्ष्म शरीर आत्मा ब्रह्मांड में विचरण का मूल उद्देश्य बन जाता है जिसे किसी कभी वर्तमान का भूत प्रेत कहते है विज्ञान भी अपने अनेको शोध के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता हैं की अतृप्त आत्मा का छद्म जीवन अदृश्य अवस्था मे विद्यमान रहता है शरीर मे जीवंत अवस्था मे जो उसकी प्रबृत्ति होती है वही उसकी प्रबृत्ति शुक्ष्म अलौकिक स्थिति में होती है बहुत से मिथक कहानियां सुनी जाती है विज्ञान द्वारा उसकी सच्चाई की परख की जाती है तो शरारती तत्वों द्वारा इसके आड़ लेकर समाज को भयाक्रांत कर आतंकित किया जाता है ।यह कहानी इन्ही सच झूठ की अवधारणा की वास्तविकता का एक पहलू है आज का मध्य प्रदेश आजादी से पूर्व छोटे छोटे रियासतो में बंटा हुआ था उन्ही रियासतों में एक रियासत ओरछा था ओरछा से संबंधित मिथक कहानियां आज भी प्रचलित है ओरछा का स्वरूप चार पांच सौ वर्ष पूर्व विल्कुल अलग था ओरछा के राजा चंन्द्रचूड सिंह बहादुर और योग्य शासक के साथ साथ जनता के सुख दुःख का गमम्भीरता से खयाल रखने वाले जनप्रिय राजा राज्य की प्रजा उन्हें न्याय का देवता और भगवन का दूसरा रूप मानती राजा चंद्रचूड़ सिंह के दो पुत्र विक्रांत सिंह और विक्रम सिंह थे पिता की तरह पुत्र भी होनहार और जनप्रिय राज कुमाए थे विक्रांत सिंह बड़ा और विक्रम सिंह छोटा था दोनों भाईयों में भी बहुत सामंजस्य था राजा चंद्रचूड़ सिंह के जीवन मे किसी प्रकार की कोई कमी नही थी ।संतुष्ट प्रजा होनहार संतान ओरछा राज्य के मंत्री थे मन्वत सिंह और सेनापति थे लोहा सिंह राजा चंद्रचूड़ सिंह का राज्य प्रबन्धन सेना प्रबन्धन सभी बहुत प्रासंगिक एव प्रमाणित परिभाषित थे राजा चंद्रचूंड सिंह अपने दोनों बेटों विक्रांत और विक्रम को राजनीति और युद्ध की बारीकियां समझाते और तरह तरह के युद्ध कौशल युद्व नीति राज नीति की प्रायोगिक शिक्षा देते उनके दोनों बेटे आज्ञाकारी पित्र भक्त थे शौम्य और मृदुभाषी थे राजा चंन्द्रचूड सिंह को विश्वास था कि उनके बाद भी उनका साम्राज्य सुरक्षितः संवर्धित होगा उनको अपने पुत्रों पर भरोसा था
राज कुमार विक्रांत को अपने पिता की अनुमति शिकार के लिये मिल गयी अपने ही राज्य के जंगलों में गए सेना की एक टुकड़ी साथ राजकुमार शिकार को निकले।। विक्रांत दिन में शिकार करते और शाम को अपने शिविर में विश्राम करते दो चार दिन तो सब कुछ ठीक ठाक था मगर पांचवे दिन से एक अजीबो गरीब घटना घटी राजकुमार की सेना का एक जवान सुबह लापता था और खून की फुहार जैसे कि सावन में वारिस बरसने लगी पूरे शिविर में अफरा तफरी मच गई एक तो सिपाही का गायब होना साथ साथ खून की फुहार सारे सैनिकों और राजकुमार के मनोबल को हिला दिया उनकी समझ मे नही आ रहा था कि माजरा क्या है सब इधर उधर भागते अपनी रक्षा की एक दूसरे की गुहार लगा रहे थे खून की फुहार ऐसे आ रही थी जैसे सूर्य की लाल किरणे ही रक्त फुहार हो बहुत देर अफरा तफरी के बाद राजकुमार विक्रांत ने खुद को संभालते हुये सैनिकों में आशा विश्वास के सांचार की नीयत से बोला मेरे प्यारे बीर सैनिकों तुम लोग ओरछा की साहसी और पराक्रमी परम्परा के बीर हो तुमने अपने शौर्य बीरता के भरोसे कितने ही इतिहास रचे है आज सम्भव हैं किसी अदृश्य शत्रु ने छद्म युद्ध के लिये पीठ पीछे से घृणित कृत्य धोखे फरेब का सहारा लेकर किया हो राजकुमार विक्रांत के उत्साह के बाद सेना की टुकड़ी पुनः एकत्र हुई खून की बौझार बन्द हो चुकी थी राज कुमार और उनके सैनिक हृदय विदारक घटना के कारण पर कयास लगा अपने अपने सोच समझ से विचार व्यक्त कर ही रहे थे।। एक भयानक आवाज आई सूरज धीरे धीरे चढ़ेगा ढलेगा रात आएगी फिर सावन की रक्त वर्षा होगी राज कुमार विक्रांत और सैनिकों का रहा सहा धैर्य जबाब दे गया सभी ने जानने की कोशिश करने लगे कि आवाज कहाँ से आ रही है देखा तो पता चला कि काली सिंह जो राजकुमार की सेना का सबसे बहादुर वीर विश्वनीय सैनिक जो रात से गायब था का कटा सर पेड़ पर एक डाल पर लटक रहा था और धड़ दूसरी डाल पर और आवाज भी काली सिंह कि ही थी बड़ा आश्चर्य तो यह था कि कटा सर बोल कैसे सकता है राजकुमार ने कहा मेरे विश्वस्त बीर सैनिक काली सिंह तुम्हारी यह दयनीय दशा कैसे हुई पुनः काली सिंह के कटे सर से आवाज आई राजकुमार विक्रांत मैं हारा नही मैने तो आपकी रक्षा में नमक का हक अदा किया है जब आप एव सभी सैनिक रात्रि में नीद में सो रहे थे और मैं रतन सिंह, लखा,शाम्भा सिंह रात को शिविर की रखवाली कर रहे थे तभी मध्य रात्रि को राजकुमारी शाकम्भरी आयी थी और उन्होंने मेरे साथ निगरानी कर रहे रतन सिंह लाखा सिंह और शाम्भा सिंह को अपने सम्मोहन विद्या से अचेत कर दिया और मुझसे युद्ध करने के लिये कहा मैंने उनसे कहा कि मैं नारी वह भी अकेली निशस्त्र से युद्ध नही कर सकता यह राजपूताना और युद्ध नीति के विरुद्ध है अतः युद्ध नही कर सकता तब राजकुमारी शाकम्बरी ने कहा ठीक है तुम युद्ध नही कर सकते तो मैं तुम्हे बिना युद्ध के ही सर धड़ से अलग कर तुम्हारे रक्त से स्नान करती हूँ और मेरा सर इस डाली पर कैसे आ लटका धड़ दूसरी डाली पर कैसे गया पता नही फिर शाकम्बरी बोली काली चिंता मत करो मेरा प्रतिशोध पूरा होते ही तुम पुनः अपने स्वरूप में लौट आओगे राजकुमार विक्रांत काली की जुबानी सुनकर दंग रह गए साथ ही साथ सैनिकों के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा अब सबके मन मे एक ही सवाल जोर मार रहा था कि शाकम्बरी कौन सी बला है और राजकुमार विक्रांत से उसका क्या संबंध मित्रता या शत्रुता का है तभी काली के कटे सर से आवाज आई राजकुमार आप अपने राज्य लौट जाईये या तो शाकम्बरी का शिकार बनिये निर्णय अपको करना है राजकुमार विक्रांत सोच में पड़ गया फिर उसने अपने सैनिकों से पूछा मुझे लौट जाना चाहिये या शाकम्बरी की जानकारी में जुटना चाहिये सैनिकों ने एक स्वर में कहा कि नही राजकुमार हमे लौटने की आवश्यकता नही है चुकी काली ने अपने जीवन की बलि चड़ाई है हमे उंसे व्यर्थ करने का कोई अधिकार नही है सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि आधी सेना जागेगी और आधी सेना आराम करेगी पूरे दिन राजकुमार शिकार पर नही निकल सके रात ढली और निर्णय के अनुसार आधी सेना जाग रही थी और आधी सेना आराम कर रही थी मध्य रात्रि को एका एक अचानक जाग रहे सैनिकों के सर अपने आप धड़ से अलग होकर पेड़ पर लटकने लगे सबके सर एक डाली पर और धड़ दूसरी डाली पर और पुनः खून की बौछारें फुहारे चलने लगी सेना की आराम कर रही टुकड़ी जागी सभी खून से लथपथ अफरा तफरी दहशत का माहौल सभी बचे सैनिक अपने प्राण रक्षा के लिये गुहार लगाने लगे तब सभी को ध्यान आया कि राजकुमार विक्रांत कहा है सबने राजकुमार विक्रांत को खोजने की कोशिश करने लगे राजकुमार अपने शिविर से लापता थे अब तो सैनिकों में बची खुची हिम्मत ने भी जबाब दे दिया अब एक ही रास्ता था कि सुबह की प्रतीक्षा और राजकुमार की तलाश सभी सौनिक एक दूसरे का हाथ पकड़ कर मानव श्रृंखला बना कर शास्त्रों से सुसज्जित युद्ध की मुद्रा में सुबह कि प्रतीक्षा करने लगे आधे सैनिकों का सर और धड़ ऐसे लटक रहा था जैसे पेड़ पर उल्टे लटके चमगादड़ सुबह हुए आकाश में उड़ते मांसाहारी पक्षियों का कोलाहल गिद्धों की खुशी उत्साह का हुजूम और पेड़ से टपकते खून बहुत भयानक दृश्य गिद्ध आकाश में मंडरा तो रहे थे मगर लटकते सर धड़ के पास तक नही जाते बचे सैनिक राजकुमार विक्रांत को खोजने निकल पड़े सुबह से शाम फिर रात हो गयी राजकुमार विक्रांत का ना तो कही पता चला ना ही कोई सुराग मिला सैनिक प्रति दिन सुबह से शाम राजकुमार विक्रांत को खोजते मगर कोई सुराग नही मिल रहा था खास बात यह थी कि राजकुमार के गायब होने के बाद सैनिकों का सर से धड़ से अलग होना खून की बौछार बन्द हो गया ।। कुछ सैनिकों का विचार था कि वापस ओरछा लौट चला जाय लेकिन राजकुमार विक्रांत के विषय मे राजा चंद्रचूड़ को क्या जबाब देंगे ख्याल आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते फिर बेवस लाचार राजकुमार विक्रांत की खोज में ऐसे भटकते जैसे कि रेगिस्तान में प्यासा मृग पानी की तलाश में ।।महीनों हो गए और ओरछा छोड़े तो लगभग छ महीने हो चुके थे।।
राजकुमार विक्रांत की आंख खुली उस समय वह भयानक जंगल मे चारो तरफ से बेहद खूबसूरत सुंदरियों का घेरा और बेहद खूबसूरत वारावरण लेकिन डरावना राजकुमार के आंख खुलते ही वातावरण में शोर व्याप हो गया राजकुमारी शाकम्भरी राजकुमार जग गए कुछ देर बाद अप्सरा सी सुंदर बेहद प्रभवी व्यक्तित्व की धनी शाकम्बरी राजकुमार के सामने आई और बोली राजकुमार विक्रांत क्या सजा मिलनी चाहिये तुम्हें राजकुमार विक्रांत बोला किस बात की कैसी सजा मैंने आपको पहचाना नही शाकम्बरी ने कहा राजकुमार कैसे पहचान सकते हो तुम्हारे पिता टीकम गढ़ के राजा मृत्युंजय सिंह याद है विक्रांत बोला मैं किसी मृत्युंजय को नही जानता तुम क्या कह रही हों मेरी समझ से परे है शाकम्बरी ने बताया कि राजकुमार तुम मेरे प्यार हो जिसके लिये मैंने अपना सब कुछ खो दिया
तुम्हे याद नही पहली बार हमारी तुम्हारी मुलाकात तब हुई थी जब मै मोहन मलाह की बेटी और तुम कातिक केवट के बेटे थे हम दोनों की झोपड़ी नदी के किनारे थी और बचपन से ही हम दोनों साथ साथ खेलते घूमते शरारते करते तब मेरे पिता मोहन और कातिक ने एक दूसरे के विवाह का फैसला कर लिया दोनों परिवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति एक ही थी हम दोनों दुनियां से अनजान बेफिक्र घूमते फिरते एक दिन मेरे और तुम्हारे परिवार के लोग नदी से कुछ दूर पूजा करने गए थे हम तुम नदी के किनारे खेल रहे थे तभी एक मुसाफिर वहा आया और नदी पार करने के लिये कहा हम लोंगो ने उन्हें बताया कि हमारे माँ बाप नही है और हमे मना करके गए है कि किसी को नदी पार न कराए मगर वह मुसाफिर जिद कर बैठा और हम लोंगो का बाल मन मान गया जब नाव नदी के मध्य में पहुंची उस मुसाफिर ने मुझे जबरन अपने दोनों बाहों में जकड़ लिया और मुझसे सम्भोग के लिये जबर्दस्ती करने लगा तुमने पतवार से उसके सर पर जबजस्त प्रहार किया उसके सर से रक्त के फव्वारे फुट गए वह क्रोधित हुआ विकराल व्यक्तित्व बल का स्वामी तुम्हें उठा कर नदी में फेंक दिया ज्यो ही ऊसने तुम्हे नदी में फेंका मगर मच्छ ने तुम्हें अपना आहार बना डाला पूरी नदी तुम्हारे रक्त से लाल हो गयी और उस दानव द्वारा जबरन संभोग करने के कारण मैं भी रक्त से सराबोर जब मैं दानव कि हवस से छुटी नदी में कूद गई और मुझे भी मगरमच्छ निगल गया।।फिर मेरी और तुम्हारी मुलाक़ात हुई अफ्रीका के जन जातिय क्षेत्र में जहां मैं एक जनजातीय समुदाय के कबीले के सरदार की बेटी और तुम कबीले के दूसरे परिवार के बेटे हम दोनो बेफिक्र जंगल मे घूमते फिरते हम दोनों के प्यार कबीले की देवता का आशीर्वाद मानकर सभी बहुत इज़्ज़त करते लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था हम लोग खेलते घूमते फिरते अपने कबीले से बहुत दूर निकल गए जहां दूसरे कबीले वालो ने हम दोनों को पकड़ लिया और अपने देवता को मेरी बलि दे दी और मेरे सर को पेड़ पर लटकाया जिससे टपकते रक्त उनके देवता पर गिरता वे मेरे धड़ को टुकड़ो में काट कर खा गए जब हमारे कबीले वाले वहाँ पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी दोनो कबीलों के बीच बेहद खतरनाक युद्ध बहुत दिनों तक चला दोनों कबीले आपस मे लड़कर कट मरे और समाप्त हो गये।।हम दोनों ने हार नही मानी फिर जन्म लिया भारत के पूर्वोत्तर के जंगली जन जातियों के बीच इस जन्म में भी हम दोनों में बेहद प्यार था बचपन की शरारते खेलना घूमना फिरना साथ साथ दोनों अपने माता पिता के प्रिय संतानों में एक दिन मैं और तुम अकेले ही बैठे बाते कर रहे थे उसी समय जंगली डाकुओ का गिरोह आया मुझे ज़बरन उठाकर एक पहाड़ी पर ले गए और तुम भी पीछे पीछे भागते उस पहाड़ी पर पहुंच गए तुम्हे डाकुओं ने बहुत क्रूरता के साथ प्रताडित किया और अंत मे तुम्हे शेर के सामने छोड़ दिया और शेर ने बड़ी बड़ी बेरहमी से तुम्हे मार कर खा गया फिर मेरे साथ अपनी काम वासना की भूख शांत करते रहे महीनों बाद डॉकुओं ने मुझे भी शेर के सामने फेंक दिया मैं तड़फ तड़फ कर मरी और शेर का शिकार बन गयी।। शाकम्भरी राजकुमार विक्रांत को अपने बीते प्यार के लम्हो को बताये जा रही थी मगर राजकुमार विक्रांत को बकवास और मनगढ़ंत कल्पना और किसी शत्रु द्वारा मनोबल तोड़ने की साजिश ही लग रही थी उधर राजा चंद्रचूड़ के महल में अजीबो गरीब घटनाएं घटने लगी कभी उनके महल के ऊपर गिद्ध मंडराते उल्लू बोलते चमगादड़ लटकते हड्डि मज्या रक्त की वारिस होती अजीबो गरीब आवाजे आती जैसे किसी युद्ध भूमि से मरने चीखने चिल्लाने एव भयानक डराववनीं आवाजे आती पूरे महल में अफरा तफरी का माहौल था राजा चंद्रचूड़ सिंह ने विद्वत मंत्रियों संतो पंडितों से मशविरा किया कि क्या माजरा है कि छ महीने से ज्यादा बीत गए मगर राजकुमार विक्रांत को शिकार पर गए हो गए ना तो कोई सूचना मिली ना तो कोई सैनिक को लौट कर आया महल में अजीब सा माहौल चीखने चिल्लाने मातम जैसा वातावरण हो गया था जो महल खुशियों की खुशबू का केंद्र एव जनता की आकांक्षाओं का मन्दिर की स्थिति भयावह शमशान जैसी हो गयी थी रात को जब दिए जलाए जाते अपने आप बुझ जाते या जलते ही नही महल में ना तो कोई सो पाता ना जागे ही रह पाता राज्य के विद्वत मंत्रियों ने राजा चंन्द्रचूड को सलाह दिया कि राजा रानी राजपरिवार कुल मन्दिर के पास आश्रम बनाकर रहे राज्य का संचालन करें जब तक इस समस्या का हल ना निकल जाये राजा चंन्द्रचूड ने ऐसा ही किया महल की तरफ से कोई दिन में भी नही गुजरता राज को विक्रांत की चिंता तो साताये ही जा रही थी नई मुसीबत से उनको कोई रास्ता नही सूझ रहा था।।
उधर शाकम्बरी ने विक्रान्त पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर उसे कुछ याद दिलाने की कोशिश जारी रखा राजकुमार विक्रांत तुम दक्षिण भारत के एक सम्पन्न राज घराने के बहुत बीर, बहादुर, और समझदार राजकुमार थे मैं तुम्हारे शत्रु राजा की इकलौती बेटी तुम्हारे पिता देव धरन धर्म भीरू और मर्यादित आचरण के अनुशासन प्रिय राजा थे तुम्हारा नाम राजकुमार हरिहरन था मेरी तुम्हारी मुलाकात एक संयोग थी तुम शिकार के लिये जंगल गए थे शिकार का पीछा करते करते तुम बहुत दूर निकल गए मैं भी शिकार के लिये जंगल गयी थी तुम अनजाने में हमारे वन सीमा में पहुंच गए और तुम्हारी मेरी मुलाकात हुई मैं और मेरी सेना तुम्हारी हत्या कर देना चाहते थे लेकिंन जब मैंने तुम्हारे सर को धड़ से अलग करने के लिये तलवार उठाया आचानक मुझे लगा कि मेरे हाथ से किसी अदृश्य शक्ति ने तलवार छीन कर फेंक दिया हो और मुझे गुजरे जन्मों की सभी घटनाएं याद आ गयी अब मुझे अपना प्यार मिल चुका था मैंने अपनी सेना को राजकुमार हरिहरन को किसी प्रकार की छती पहुचने या परेशान करने से मना किया कुछ दिन हम जंगलों में साथ रहे फिर तुम अपने राज्य लौट गए और मैं अपने राज्य तुम और मैं छुप छुप कर मिलते और प्यार की बहुत सारी बाते करते कहते है प्यार छुपता नही तुम्हारे पिता को जब पता लगा कि तुम शत्रु राजा की बेटी से प्यार करते हो तो बिना दिमाग का प्रयोग किये की मैं शत्रु एकलौती बेटी उसके बेटे से विवाह के उपरांत दोनों राज्यो में सरहदे समाप्त हो जायेंगी और एक नए सम्बन्धों के युग का सूत्रपात होगा धोखे से रात के अंधेरे में चोर लुटेरों की तरह मेरे राज्य पर आक्रमण कर दिया और सोते हुये सैनिकों के सर एव मेरे माता पिता का सर भी धड़ से अलग करके उनको अलग अलग लटकवा दिया मेरा राज्य राजा विहीन था मैं एक दिन के लिये अपनी सहेलियों के वैवाहिक संस्कार में सम्मिलित होने गयी थी मेरे बचे हुये सैनिक भागे भागे मेरे पास आये और बताया कि महल शमसान बना दिया है तुम्हारे क्रूर नासमझ पिता ने मैं स्वयं सेना के साथ युद्ध के लिये ललकारा और तुम्हारे राज्य और सेना को तहस नहस कर डाला तब तुम्हारे पिता ने तुम्हे ढाल बनाकर मेरे सामने युद्ध मैदान में भेज दिया मगर तुम निशस्त्र आये मुझे ऐसा लगा कि मेरा प्यार अपने कृत्य पर शर्मिंदा है और प्रेम शांति का प्रस्ताव लेकर आया है वास्तव में तुम्हे भी नही मालूम था कि तुम्हारा बाप तुमको मोहरा बनाकर छल कर रहा है तुम्हारे सामने आते ही मेरे मन मे जन्मों का प्यार की नारीत्व ने जन्म ले लिया मैं तुम्हे निहार ही रही थी कि थोखे से तुम्हारे सेना पति ने मेरा सर धड़ से अलग कर दिया और उन्माद में मेरा सर युद्ध मैदान के ऊंचे बृक्ष पर लटका दिया तुम यह हृदयविदारक दृश्य देझ नही सके और तुमने मेरा नाम लेते प्राण त्यग दिया अब राकुमार विक्रांत को धीरे धीरे शाकम्बरी द्वारा बताई एक एक घटना याद आने लगी और वह अपराध बोध एव प्रयाश्चित भाव से बोला शाकम्बरी तुम मेरा वर्तमान आतीत और भविष्य हो मैं तुम्हारे प्यार के लिये जन्म लेता मरता फिर जन्म लेता रहूँगा मैं लज़्ज़ित हूँ और तुम्हारे साथ हुये अन्याय के लिये क्षमा याचना करता हो शाकम्बरी ने कहा कि तुमने तो मुझे स्वीकार कर लिया अब जाकर अपने पिता चंद्रचूड़ से कहो कि वे स्वयं जाए केरल के अंतिम छोर पर जहाँ युद्ध मे मेरे साथ छल किया था वहाँ जाकर प्रयाश्चित यज्ञ एव मेरी आत्मा शान्तिं के लिये तुम्हारी माँ और पिता दोनों अनुष्ठान करे तब जाकर मुझे मुक्ति मिलेगी मैं तुम्हे मुक्त इसलिये करती हूँ तुम जाकर सच्चाई जाकर बताओ और अनुष्ठान पूर्ण कराओ मैं तुम्हारी आत्मा शरीर में तब तक तुम्हारी अर्धांगिनी बनकर रहूंगी और तुम्हारी सेना जो साथ आई थी मृत अचेतन अवस्था मे जंगल मे ज्यो ही अनुष्ठान पूर्ण होगा मुझे मुक्ति मिलेगी मैं तुम्हारे अगले जन्म का इंतज़ार करूंगी और तुम्हारी सेना तुम्हारे राज्य को लौट जाएगी शाकम्बरी राजकुमार के आत्मा शरीर में प्रतिस्थापित हो गयी राज कुमार विक्रांत पीता राजा चंद्रचूड़ से मिलने कुल देवता मन्दिर आश्रम गया और सारी सच्चाई बताई जब कही कोई बात भूलता उसकी आत्मा शरीर मे समाहीत शाकम्बरी सुधार कर देती राजा चंद्रचूड़ बेटे विक्रान्त के बताए स्थान केरल के अंतिम छोर पर पहुंचे जहाँ जंगल ही जंगल था वहाँ सपत्नीक पुत्र विक्रांत द्वारा बताए गए अनुष्ठान को सम्पन्न किया शाकम्बरी के आत्म शान्तिं के लिये अनुष्ठान सम्पन्न कराया शाकम्बरी विक्रांत का शरीर आत्मा छोड़कर चली गयी राजा चंद्रचूड़ लौटकर ओरछा आये उससे पहले विक्रांत के साथ गए सैनिक काली के साथ लौटकर राजा साहब का इन्ज़ातर कर रहे थे राजा चंन्द्रचूड जब ओरछा पहुंचे उनको लगा उनका राज महल उनकी प्रतीक्षा कर रहा है सब कुछ पूर्वत हो गया।
प्रज्ञा प्रियांशु को जब अपनी यह सच्चाई बताई तो बोला डार्लिंग तुम स्वयं एक वैज्ञानिक हो और मैं इंजीनियर क्या विज्ञान इन तथ्यों पर विश्वास करेगा कि तुम और मेरे पिछले जन्म होते रहे है प्रेमी के रुप मे और अब बैज्ञानिक और इंजीनियर के मिलन तुम्हारे मेरे प्यार का एक पडाव है पज्ञा बोली डार्लिंग विज्ञान जो मानता हो माने विश्वास करें ना करे लेकिन मैं सच्चाई जानती भी हूँ मानती भी हूँ।।
कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश