[ गणित पर रामानुजन का कार्य ] रामानुजन के कार्य का ब्योरा इस प्रकार से दिया जा सकता है—
• इंग्लैंड जाने से पूर्व के कार्य।
• इंग्लैंड में पाँच वर्ष रहकर किए गए कार्य।
• भारत लौटकर एक वर्ष में किए गए कार्य।
• सन् 1976 में अचानक प्रकाश में आए उनके कार्य और
• कदाचित् अभी तक अप्राप्य उनके कार्य।
इंग्लैंड जाने से पूर्व के कार्य:सन् 1903 से 1914 तक, केंब्रिज जाने से पूर्व तक, उनके द्वारा निकाले गए सूत्र तीन खंडों में हैं। ये उनकी तीन ‘नोट-बुक्स’ में संगृहीत हैं। पहली नोट बुक में 16 अध्याय हैं और इसमें 134 पृष्ठ हैं। दूसरी नोट बुक को पहली नोट बुक का परिवर्धित रूप माना जा सकता है। इसमें 21 अध्याय तथा 254 पृष्ठ हैं। तीसरी नोट बुक में 33 पृष्ठ हैं। इसमें कार्य को पहली दो के अनुसार संयोजित नहीं किया गया है। इनमें कुल मिलाकर 4000 से अधिक परिणाम अंकित हैं। परंतु प्रथम नोट-बुक के कुछ परिणाम किसी-न-किसी रूप में द्वितीय नोट बुक में आए हैं।
यदि इन दोहरे परिणामों को एक बार ही माना जाए तो एक गणना के अनुसार इन तीनों नोट-बुक्स में कुल मिलाकर 3,542 प्रमेय हैं। ये प्रमेय रामानुजन ने अंकित भर कर दिए हैं; इनकी उपपत्तियाँ (proofs) उन्होंने नोट-बुक्स में नहीं दी हैं।
वह अपने पाँच शोध-लेख ‘जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी’ में प्रकाशित करा चुके थे एवं पाँच अन्य सन् 1915 में इसी जर्नल में इंग्लैंड जाने के बाद प्रकाशित हुए।
रामानुजन के इन परिणामों को देखने से सभी को आश्चर्य होता है। इनमें लंबी-लंबी राशियाँ तथा वर्गमूलों आदि के बड़े ही चौंका देने वाले चिह्न हैं। उदाहरण के लिए रामानुजन के तीन सरलतम निष्कर्षों को देखिए—
1. 3=√(1 2 √1 3√1 4√1 5√1 .....
2. 32 146410001³/48400 -6 146410001/48400 √32 146410001³/48400 -6 146410001/48400⅙ —1 =100
3. (a b 1) a²/b (a b 3) a(a 1)²/b(b 1)
(a b 5) a(a 1) (a 2)²/b(b 1)(b 2) ..n term.= a² - (a n)²un / (b-a-1), b a 1
जहाँ un = a(a 1)(a 2).. (a n-1)/b(b 1) (b 2)..(b n-1)
सबके मन में एक प्रश्न स्वतः उठता है कि रामानुजन ने उन्हें कैसे लिख दिया? यह भी प्रश्न उठता है कि उन्होंने उन परिणामों अथवा प्रमेयों को क्यों खोजा?
पहले प्रश्न से चकित सभी व्यक्ति इस बात से सहमत हैं कि रामानुजन असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे और गणितीय सूत्रों में उनकी दृष्टि अपरिमेय थी। परंतु अन्य धारणाओं में अंतर है। यह प्रश्न स्वयं रामानुजन से भी कतिपय व्यक्तियों ने पूछा था। उनके द्वारा दिए उत्तर के आधार पर कई व्यक्तियों की ऐसी धारणा बन गई है कि वह नामगिरी देवी से उनको प्राप्त हुए। प्रो. हार्डी इस बात से सहमत नहीं हैं। उन्होंने रामानुजन की तुलना अन्य गणितज्ञों से एक विशेष प्रकार से की थी। उनका कहना था कि यदि 0 से 100 तक विभिन्न व्यक्तियों को प्रतिभा के आधार पर अंक दिए जाएँ तो वह स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्मनी के गणितज्ञ डी. हिल्वर्ट को 80 तथा रामानुजन को 100 अंक देंगे। इसमें विशेष देखने की बात यह है कि उन्होंने रामानुजन को पूरे के पूरे अंक दिए। अतः वह रामानुजन में पूरे गणितज्ञ की छवि देखते हैं।
इलिनाय विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रो. ब्रूस बर्नडट ने रामानुजन की तीनों नोट-बुक्स पर बीस वर्ष तक शोध कार्य किया है। उन्होंने सभी 3,542 परिणामों की विधिवत् उपपत्तियाँ भी दी हैं, जो पाँच खंडों में उपलब्ध हैं। इन पाँच खंडों के अतिरिक्त ब्रूस बर्नडट ने रामानुजन के कार्य पर सौ से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं और कई अन्य शोधकर्ताओं के साथ सम्मिलित कार्य भी किया है। पहले वह भी किसी सीमा तक रामानुजन के कार्य में दैवी पक्ष मानते थे, परंतु बाद में उनकी धारणा बदली है। उनका कहना है— “बहुत से व्यक्ति रामानुजन की रहस्यवादी (अथवा अलौकिक ) गणितीय विचार-शक्ति को बल देते हैं। यह ठीक नहीं है। उन्होंने बड़े ध्यान से प्रत्येक परिणाम को अपनी तीन नोट-बुक्स में अंकित किया है।”
सूत्रों की उपपत्तियाँ नोट-बुक्स में न रहने के बारे में वह कहते हैं— “कागज पर रामानुजन के लिए गणित का कार्य कर पाना संभव नहीं था। इसलिए वह स्लेट पर कार्य करते थे और परिणामों को नोट बुक में, बिना उपपत्तियों के, लिख देते थे। ऐसा नहीं था कि उन्हें परिणाम किसी दैवी शक्ति से प्राप्त होते थे।”
रामानुजन के कार्य के मूल्य के बारे में एक और प्रश्न उठाया जा सकता है। उनका कार्य एकदम पुरातन तो नहीं है, जिसका आधुनिक अथवा प्रचलित गणित से कोई सरोकार ही न हो?
देखने में रामानुजन का कार्य अवश्य पुरातन लगता है, परंतु वह अपने समय से बहुत आगे थे। उनके द्वारा निकाले गए कितने ही परिणामों ने समय के साथ नए विषयों (थ्योरियों) की नींव डाली है, जिनमें ‘एनालिटिक नंबर’ थ्योरी विशेष है। उनके द्वारा प्राप्त नए परिणामों का प्रभाव केवल गणित में ही नए शोध पर नहीं हुआ, बल्कि अन्य क्षेत्रों, जैसे— भौतिकी, कंप्यूटर साइंस एवं सांख्यिकी (स्टेटिस्टिक्स) में भी हुआ है। बाद में उनके परिणामों का प्रयोग कैंसर रोग के निदान में भी हुआ। आज सूचना संचार (Information Technology) तथा कूट-संवाद (क्रिप्टोलॉजी) में उनके निकाले सूत्रों के अच्छे प्रयोग हैं।
रामानुजन की सौवीं जन्मतिथि के अवसर पर संसार भर के गणितज्ञ इलिनाय विश्वविद्यालय, आरबाना- शैंपेन, यू.एस.ए. में 1 से 5 जून तक इकट्ठे हुए। वहाँ रामानुजन के कार्य को आधुनिक गणित के संदर्भ में रखने के प्रयास हुए। सबने नंबर थ्योरी एवं एनालिसिस के क्षेत्र में उनके योगदान की विशेष सराहना की। परंतु कुछ ऐसे क्षेत्रों का भी पता लगा जिनकी कल्पना पहले नहीं की गई थी। उदाहरण के लिए—
भौतिकी की ‘स्ट्रिंगी थ्योरी’
कंप्यूटर साइंस के ‘फास्ट अलगोरिथम।’
‘पालो आल्ट्रो में सिंबोलिक्स, इन्क’ के विलियम गोस्पर ने कुछ वर्ष पहले एक नया कंप्यूटरी अलगोरिथम निकाला था, जिससे पाई के मान के 17.5 मिलियन अंक निकाले जा सकते हैं। परंतु उनके ही अनुसार उनके उत्कृष्ट विचार रामानुजन ने पहले ही खोज निकाले थे।
इस प्रश्न का कि रामानुजन को इन परिणामों, जो उन्होंने निकाले, में क्यों रुचि हुई, का उत्तर अभी तक ठीक से देना किसी के लिए भी संभव नहीं हुआ है। अवश्य ही संख्याओं से उनकी अभिन्न मित्रता थी और उन्होंने अपने कुछ सूत्रों के प्रयोग से पाई के मान निकालने में भी रुचि दिखाई।
इंग्लैंड में पाँच वर्ष रहकर किया गया कार्य:रामानुजन अपनी तीनों नोट-बुक्स को इंग्लैंड साथ ले गए थे। उन्होंने इन्हें प्रो. हार्डी और अन्य व्यक्तियों को दिखाया तथा अध्ययन के लिए दिया था। परंतु अपने एक मित्र को लिखे उनके पत्र से यह पता लगता है कि वहाँ उन्हें अपनी उन नोट-बुक्स को देखने का समय नहीं मिला और उन्होंने उनका कोई उपयोग नहीं किया। अत: वहाँ का कार्य अपने आप में अलग है और वह वहाँ से प्रकाशित शोध-लेखों में अथवा प्रो. हार्डी, लिटिलवुड, वाटसन आदि द्वारा उनकी मृत्यु के बाद के विविध लेखों, व्याख्यानों तथा संकलित साहित्य में उपलब्ध है।
प्रकाशित बीस शोध-लेख उनके अपने हैं तथा सात प्रो. हार्डी के साथ हैं। इनकी एक सारणी इस पुस्तक के अंत में दी गई है।
उनके प्रकाशित सैंतीस शोध-लेखों को एक साथ अलग 'कलेक्टेड पेपर्स बाई श्रीनिवास रामानुजन' में छापा गया है, जिसका संपादन प्रो. जी. एच. हार्डी, प्रो. पी. वी. शेषु अय्यर तथा बी. एम. विल्सन ने किया है। इसका प्रकाशन पहले सन् 1927 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से तथा बाद में 1962 में पुनः चेल्सिया से हुआ।
प्रो. हार्डी, जिन्होंने रामानुजन को प्रश्रय देने का सराहनीय कार्य किया, ने बाद में अमेरिका तथा इंग्लैंड के विविध विश्वविद्यालयों एवं सोसाइटियों में रामानुजन के कार्य पर सन् 1936 में व्याख्यान दिए। इनके अतिरिक्त उन्होंने रामानुजन के कार्य पर प्रिंसटन विश्वविद्यालय (यू.एस.ए.) तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालय में कोर्सेज भी दिए। उनके द्वारा दिए बारह व्याख्यानों का संकलन रामानुजन के कार्य पर शायद सबसे अधिक उद्धृत पुस्तक है। हार्डी की इस पुस्तक का नाम है ‘रामानुजन : ट्वेल्व लैक्चर्स ऑन सब्जेक्ट्स सजेस्टेड बाई हिज लाइफ एंड वर्क’, जो सन्
1940 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हुई थी।
इन बारह व्याख्यानों के शीर्षक हैं—
1. he Indian Mathematician amanujan
2. amanujan and the theory of rime numbers
3. ound numbers
4. ome more roblems of the analytic theory of numbers
5. lattice– oint roblem
6. ramanujan's ork on artitions
7. y ergeometric series
8. sym totic theory of artitions
9. he re resentation of numbers as sum of's uares
10. ramanujan's function n
11. efinite integrals
12. lli tic and modular functions.
भारत लौटकर एक वर्ष के बीच किए गए कार्य:भारत आकर रामानुजन बीमारी की अवस्था में भी शोध में सतत लगे रहते थे। चूँकि तब भी वह स्लेट का प्रयोग करते रहे, अतः प्रो. ब्रूस बर्नडट का ऊपर दिया गया यह तर्क कि आर्थिक रूप से समर्थ न होने के कारण स्लेट का प्रयोग करते थे, निरस्त्र हो जाता है। यहाँ आकर सीधा प्रकाश में आया कार्य मॉकथीटा फंक्शन का रहा, जो उन्होंने प्रो. हार्डी के पास भेजा था।
रामानुजन की खोई नोट बुक: अचानक रामानुजन द्वारा किया कार्य, जो अज्ञात था, सन् 1976 में प्रकाश में आया। इसका श्रेय जॉर्ज एंडूज को जाता है। उन्होंने इस कार्य को 'लॉस्ट बुक ऑफ रामानुजन' का नाम दिया। इस कार्य का प्रकाश में आना एक अजीब संयोग ही है।
अप्रैल 1976 में जॉर्ज एंडूज, जो तब युवक ही थे, को एक सप्ताह की एक कॉन्फ्रेंस में विस्कोन्सिन से फ्रांस जाना था। उनके साथ उनकी पत्नी तथा दो बेटियों को भी जाना था। वह सस्ते हवाई टिकट की खोज में थे। उन्हें पता लगा कि यदि वह तीन सप्ताह के लिए जाएँगे तो हवाई यात्रा के टिकट का मूल्य एक सप्ताह के टिकट के मूल्य से काफी कम होगा। प्रश्न था कि दो सप्ताह का अतिरिक्त समय कैसे और कहाँ व्यतीत किया जाए। एक मित्र ने पहले उन्हें सुझाया था कि सन् 1965 में कैंब्रिज के प्रो. जी. एन. वाटसन की मृत्यु के पश्चात् उनके कुछ अप्रकाशित एवं अधूरे लेख पड़े हैं, वह कभी उनको देखने पर विचार करें। बस, जॉर्ज एंडूज ने कैंब्रिज जाने का निश्चय कर लिया।
वाटसन, जिन्होंने रामानुजन के शोध-लेखों पर कार्य किया था, रॉयल सोसाइटी के फेलो थे। जब सन् 1965 में उनकी मृत्यु हुई तो सोसाइटी ने उनकी जीवनी लिखने का आग्रह जे. एम. विटेकर से किया। ह्विटेकर ने वाटसन की पत्नी से उनके लेखों को देखने के लिए घर आने की अनुमति माँगी। वाटसन की पत्नी ने सहर्ष उन्हें दोपहर के भोजन पर बुलाया और बाद में वाटसन के अध्ययन-कक्ष में ले गईं।
वाटसन कभी कुछ फेंकते नहीं थे, चाहे वह कोई गणित का लेख हो, कोई पत्र, किसी की रसीद या फिर आयकर फॉर्म का पुराना ड्राफ्ट ही। वहाँ ह्विटेकर ने देखा कि फर्श पर बहुत से कागज बिखरे पड़े हैं, जिनकी मोटाई लगभग एक फुट की रही होगी। वास्तव में उनको जला देने के लिए ही वहाँ फेंक दिया गया था। ह्विटेकर को समझ में ही नहीं आया कि वह क्या देखें और क्या छोड़ें। खैर, भाग्य का खेल देखिए कि एक बार झुककर जो कागज उन्होंने उठाया तो वह 140 पृष्ठ की वह गड्डी थी, जो सन् 1923 में मद्रास विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री ड्यूसबरी ने प्रो. हार्डी के पास भेजी थी। यह किसी प्रकार वाटसन के पास पहुँच गई थी। ह्विटेकर ने कागजों की वह गड्डी रॉबर्ट रैंकिन को दे दी। ह्विटेकर तथा रैंकिन— दोनों ही अच्छे गणितज्ञ थे, परंतु इन कागजों पर किया गया कार्य उनके क्षेत्र का नहीं था। अतः उसपर कुछ भी निर्णय लिये बिना ही रैंकिन ने सन् 1968 में वे कागज ट्रिनिटी कॉलेज को दे दिए और वह हस्तलिखित सामग्री ट्रिनिटी कॉलेज के 'रेन पुस्तकालय' में सिमटकर रह गई।
जॉर्ज एंड्रूज सन् 1976 में वहाँ पहुँचे तो उनपर उनकी दृष्टि पड़ी। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उनके पी.एच.डी. थीसिस में किए गए मॉकथीटा फंक्शन पर कुछ सूत्र वहाँ पर थे। लिखावट से तथा ड्यूसबरी के पत्र से उन्होंने जान लिया कि यह रामानुजन का अपने अंतिम दिनों में किया गया कार्य है। उनका मन बाँसों उछलने लगा।
एंड्रूज तत्काल पुस्तकालय की सेवा डेस्क पर पहुँचे और उस पांडुलिपि की फोटो कॉपी करने की बात कही।
“हवाई डाक से इसे अमेरिका भेजने का व्यय 7 पाउंड पड़ेगा। क्या आपको यह स्वीकार है?”
“जी हाँ! मैं यह सब खर्च वहन करने के लिए तैयार हूँ।” एंड्रूज ने कहा।
एंड्रूज ने लिखा है कि वह इसको प्राप्त करने के लिए 7 पाउंड खर्च करने की बात तो दूर रही, अपना घर भी गिरवी रखने के लिए तैयार हो जाते। लगभग पचपन वर्ष पहले तैयार रामानुजन की यह धरोहर किसी प्रकार बची रहकर गणित-जगत् को मिली।
बाद में सन् 1984 में नरोसा पब्लिशिंग हाउस ने चेन्नई में जब अपनी शाखा आरंभ करने के अवसर पर टाटा
इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च द्वारा सन् 1957 में प्रकाशित 'नोट-बुक्स ऑफ श्रीनिवास रामानुजन' का पुनः मुद्रण किया, तब कुछ विशिष्ट गणितज्ञों ने यह आशा व्यक्त की कि रामानुजन की 'लॉस्ट बुक' का भी मुद्रण होना चाहिए। बात सन् 1987 तक टलती रही। उस वर्ष 22 दिसंबर को रामानुजन की जन्म शताब्दी से पूर्व यह कार्य संपन्न करने के विचार से इस पर अगस्त में कार्य आरंभ हुआ। ट्रिनिटी कॉलेज के रेन पुस्तकालय ने तत्परता से मूल पांडुलिपि की फिल्म बनाकर भेजी। पेन्सिल्वेनिया स्टेट विश्वविद्यालय के प्रो. जॉर्ज एंडूज ने उसकी भूमिका लिखी। इसमें रामानुजन की कुछ अन्य अप्रकाशित सामग्री तथा पत्रों को सम्मिलित करके 'श्रीनिवास रामानुजन : द लॉस्ट बुक एंड अदर अनपब्लिश्ड पेपर्स' नाम से यह पुस्तक छपी। 9 इंच चौड़ाई और 12 इंच लंबाई के आकारवाली इस पुस्तक में कुल 419 पृष्ठ हैं। सम्मिलित सामग्री की तालिका इस प्रकार है—
• Acknowledgement vii
• Publisher's Note ix
• Introduction xi-xxv
• The Lost Note book 1-90
• Letters from Srinivas Ramanujan to GH Hardy and some sheets from Lost Notebook 91-132
• Properties of p(n) and (n)133-215
• Loose Papers on Reciprocal Functions, Approximate Summations of Series Involving Prime
Numbers and Forty Identities, etc. 217-243
• Other Unpublished Papers 245-412
• Obituary on Ramanujan from 'Nature', 1921 413-414
• Letter of Francis Dewsbury to Hardy of August 2, 1923 415-416
• Letter of Francis Dewsbury to Hardy of August 6, 1923 417
• Notes on biographical sketch of Ramanujan 418
• Letter of Francis Dewsbury to Hardy of August 30, 1923 419
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें पृष्ठ रामानुजन के हस्तलिखित, ज्यों-के-त्यों ले लिये गए हैं। कई पृष्ठों पर आड़ी-तिरछी पंक्तियाँ हैं, कटे-फटे अंश हैं। इनसे रामानुजन के सोचने तथा काम करने की विधि का अनुमान लगाना संभव है। कई स्थानों पर रामानुजन के हस्ताक्षर हैं। कुछ पृष्ठों पर प्रो. हार्डी की हस्तलिखित टिप्पणियाँ हैं। अमेरिका के उन विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में, जहाँ शोध कार्य होता है, इसकी प्रति मिल जाती है।
अभी तक अप्राप्य उनके कार्य:रामानुजन के शताब्दी समारोह के अवसर पर उनकी पत्नी से हुए साक्षात्कार से ऐसा पता चलता है कि उनके अंतिम दिनों में किया गया कुछ कार्य मद्रास विश्वविद्यालय के पास नहीं पहुँचा। ब्रूस बर्नडट के अनुसार, उनकी पत्नी ने ब्रूस को बताया कि जब रामानुजन की चिता जल रही थी तब रामानुजन के गणित के एक अध्यापक मद्रास विश्वविद्यालय से उनके घर आए और सब कागज बटोरकर ले गए। ब्रूस का कहना है कि 'रामानुजन की मृत्यु के पश्चात् कहीं अधिक पेपर्स थे, जो अभी तक हमारे पास नहीं पहुँचे हैं।' उन्हें शंका है कि अवश्य इनमें से कुछ पत्र कहीं मद्रास विश्वविद्यालय में धूल में लिपटे, अनदेखे पड़े हैं। परंतु पुस्तकालय के कर्मचारियों का कहना है कि जहाँ तक उनकी समझ है, रामानुजन की लिखी कोई सामग्री अब उनके पास नहीं है। बहुत संभव है कि किसी दिन किसी स्थान पर दैवयोग से रामानुजन की लिखी कोई सामग्री प्रकाश में आ जाएँ। उनके कुछ काम के विलुप्त रहने की पूरी संभावना मानी जाती है।
यदि विलुप्त अथवा अप्राप्य सामग्री का विचार छोड़ भी दें तो प्राप्य कार्य को समझाने और उसे विस्तार देने की असीम संभावनाएँ स्पष्ट रूप से मानी जाती हैं।