story of grandmother in Hindi Moral Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | नानी की कहानी

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नानी की कहानी

आमतौर पर देखा गया है कि हम जो सामने देखते हैं उसे ही सच मान बैठते हैं बिना सोचे समझे सच्चाई जाने बगैर किसी को भी कोसने लगते हैं इसी तरह की एक घटना कुछ दिन पहले हमारे सामने आई जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए पिछले दिनों में काम के सिलसिले में बैंक गया था ।
जो हमारे छोटे से गांव बिलावटिया खेड़ा के पास के गाँव जुनिया के बीचोंबीच में स्थित था उसकी सीढ़ियां चढ़ रही थी तभी मैंने देखा लगभग पैसठ वर्षीय वृद्ध महिला दुर्बल शरीर के साथ सड़क पार कर रही थी, इतने में अचानक एक गाड़ी कहीं से आई है और उस महिला को टक्कर मार तेजी से निकल पडी, चोट लगते ही महिला जमीन पर गिर पड़ी चारों ओर से लोगों उन्हें संभालने के लिए दौड़ पड़े ।

कुछ लड़कों ने गाड़ी वाले को आवाज लगाई भीड़ में से एक सज्जन ने तुरंत गाड़ी का नंबर नोट कर लिया दो-चार तो गाड़ी लेकर उसका पीछा करने दौड़े पड़े, इधर महिला बेहोश हो गई, लोगों ने हाथ का सहारा दे उन्हें सड़क से एक और ले गए, थोड़ा मुंह पर पानी छीटा तो वह दर्द से कराह रही थी । हाथ पर चोट ज्यादा थी, रक्तस्राव निरंतर हो रहा था, तभी लड़के गाड़ी वाले को पकड़ लाए । भीड़ को अपनी ओर आता देख गाड़ी वाले ने तुरंत अपना रवैया बदल लिया, और समय की नजाकत को भांपते हुए बोला, आप लोग जाइए हम माजी को दवाखाने ले जाते हैं । वहां में नवजवान होने की वजह से मुझे भी उनके साथ दवाखाने जाना पड़ा, जाने के बाद मैंने देखा कि वह वृद्ध महिला कुछ कहना चाहती है, थोड़ी देर संभालने के बाद वह बोली भैया आप मुझे दो सौ रूपये दे दो मैं घर जाना चाहती हूं, मुझे यह देख उस वृद्ध महिला पर बहुत गुस्सा आया, पर मैं कुछ न कह सका सो सौ रूपये लेकर उसने मुझे घर तक छोड़ने का आग्रह किया, न चाहते हुए भी मुझे वृद्धा को उसके घर तक छोड़ना पड़ा । मैंने वहां पहुंच कर देखा कि दो छोटे-छोटे मासूम बच्चे बाहर बरामदे में बैठकर अपनी माजी की बाट जो रहे हैं, उसे देखते ही उससे लिपट कर रोने लगे और कहने लगे "दादी आप हमारे लिए क्या लाई हो" उनकी मासूमियत पर मुझे बहुत तरस आ रहा था, तभी उस महिला ने मुझे उन्हीं पैसा में से पचास रूपये दिए और कहने लगी बेटा इनके लिए कुछ खाने को ला दीजिए, मैं जल्दी से पास की दुकान से खाने का सामान लेकर आया, और उन्हें दे दिया, तभी वृद्धा ने मुझसे कहा पचास कि कल किताब-कॉपी लाऊंगी और सौ रूपये का अनाज, खुद की परवाह न करते हुए इलाज के पैसों का ऐसा इस्तेमाल देख मेरी आंखें नम हो आई । मैंने पूछ लिया है इनके माता-पिता कहां है ? इस पर वह फूट-फूट कर रो पड़ी कहने लगी, ये बेचारे अनाथ है इनके माता-पिता दो-तीन वर्ष पहले खेती-बाड़ी में नुकसान का सामना करते हुए कर्ज के चलते आत्महत्या कर बैठे । यह लोग उस समय छुट्टी में अपने मामा के यहां आए थे इसलिए बच गए लेकिन इस घटना के बाद मामा को ऐसा लगा कहीं इनकी जिम्मेदारी मुझ पर न आ जाए, उसने भी इन्हें अपने घर से निकाल दिया । "मैं इनकी नानी लगती हूं, मुझसे देखा नहीं गया, और मैं भी इनके साथ घर से निकल आई, अब मेरा खुद का शरीर साथ नहीं देता, इन बदकिस्मतों की देखभाल कैसे करूं ? इसलिए मैंने अपना इलाज ना करवाते हुए पैसे मांग लिए"... पांच सौ रूपये देकर में भी उनको सरकारी योजनाओं के बारे मे अवगत करवाकर व पढाई के लिए सरकारी स्कूल, पढाई खर्च के लिए पालनहार, माजी को भी विधवा पेंशन, खाने के लिए इंदिरा रसोई तथा सोने के लिए रैन बसेरा आदि की जानकारी प्रदान की व आवेदन खर्च हेतु जेब से दो सौ का नोट वृद्धा को देकर अपने घर को निकल गया...

मुझे किसी शायर की लिखी वह लाइन याद आने लगी " नारी तेरी यही कहानी आंचल में दूध आंखों में पानी ममत्व कि तु मूरत निराली ।"