"पिता, प्रेम और त्याग"
ट्रेन में समय गुजारने के लिए बगल में बैठे बुजुर्ग से नीति बात करना शुरु किया...
" आप कहाँ तक जाएंगे दादा जी "
" इलाहाबाद तक । "
नीति ने मजाक में कहा " कुंभ लगने में तो अभी बहुत टाइम है।"
" वहीं तट पर बेठकर इंतजार करेंगे कुंभ का
बेटी ब्याह लिए हैं, अब तो जीवन में कुंभ नहाना ही रह गया है। "
" अच्छा परिवार में कौन कौन है । "
" कोई नहीं बस बेटी थी पिछले हफ्ते उसका ब्याह कर दिया । "
" अच्छा ! दामाद क्या करता है । "
" उ हमरी बेटी से पियार करता है । " कहते हुए उन्होंने नम आंखें पंखे पर टिका दी।
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद जब नीति ने उनके कंधे पर हाथ रखकर धीरे से कहा " दुख बांटने से कम होता है बाबा" तो आंखों से आँसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा उनकी । थोडा शांत होने के बाद उन्होंने बताया " बेटी ने कहा अगर उससे शादी नहीं हुई तो जहर खा लेगी । बिन मां की बच्ची थी उसकी खुशी के लिए सबकुछ जानते हुए भी मैंने हां कह दी और पूरे धूमधाम से शादी की व्यवस्था में जुट गया जो कुछ मेरे पास था सब गहने जेवर आवभगत की तैयारियों में लगा दिया । तभी ऐन शादी के एक दिन पहले समधी पधारे और दहेज की मांग रख दी । जब मैंने मना किया तो बेटी ने कहा आपके बाद तो सब मेरा ही है तो क्यों नहीं अभी दे देते। तो हमने घर और जमीन बेचकर नगद की व्यवस्था कर दी । "
" सबकुछ तो उसका ही था बेबकूफ लडकी, आपको मना करना चाहिए था कह देते आपके मरने के बाद सब बेचकर ले जाए " नीति ने कसमसाते हुए कहा
बुजुर्ग मुस्कुरा उठे नीति के इस तर्क पर " कोई बाप अपने सुख के लिए बेटी के गृहस्थी में क्लेश नहीं चाहता बेटा । "
" हद है मतलब उस लडकी के दिल में आपके लिए जरा भी प्यार नहीं । "
" नहीं ऐसा नहीं है विदाई के वक्त बहुत रोई थी । "
"और आप "
उन बुजुर्ग ने एक फीकी मुस्कान बिखेरी " हम तो निष्ठुर आदमी है हमारी पत्नी सुधा जब उसको हमरी गोद में छोडकर अर्थी पर लेटी थी
उसकी लाश सामने रखी थी और तब भी हम रोने के बदले चुल्हे के पास बैठकर बेटी के लिए दूध गरम कर रहे थे । "
आजकल के बच्चे नही समझ सकते एक पिता का प्रेम त्याग और तकलीफ़ (किस्सा, संकलित)