habitual love in Hindi Love Stories by Sanjay Nayak Shilp books and stories PDF | आदत बनी मुहब्बत

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आदत बनी मुहब्बत

आदत बनी मुहब्बत.....(एक कहानी जो पढ़नी चाहिये)

नफ़रतें जीने नहीं देती हैं,
मुहब्बत मरने नहीं देती...

ये सुनने में जरूर अटपटा लगता होगा, मगर ये प्रकाश के होना जितना सत्य है, अगर किसी ने प्रेम किया हो तो ही वो जान सकता है कि प्रेम उसके जीवन में किस तरह से बस गया है, वो इंसान मरते वक्त तक अपने उस प्रेम को जिया करता है उसे मरने नहीं देता।

एक शाम मैं यूँ ही घूमते हुए एक शमशान घाट पर चला गया, वहाँ अनेकों गुमटियां बनी हुई थीं, जो मरने वालों की याद में बनाई गईं थी, वहाँ पर गुमटी के पास एक पढ़ा लिखा सा आदमी बैठा था और वो जरूर किसी सरकारी सेवा से रिटायर हुआ होगा । मैं टहलते हुए उसके पास गया, पर उसे इस बात का एहसास नहीं हुआ कि कोई उसके पास आ खड़ा हुआ है।

मैंने उसका अभिवादन किया, उसने मुझे हैरत से देखा, " माफ़ कीजिए मैंने आपको पहचाना नहीं।" उसने कहा।

मैंने बताया कि मैं भी आपको नहीं जानता। बस यूँ ही इधर घूम रहा था, आप दिखे सोचा आपसे ही बात कर लूँ ।

"ये कोई घूमने की जगह है?" उसने मुझसे हैरानी से पूछा। "जी... यही सवाल मैं आपसे करूँ, क्या ये कोई बैठने की जगह है?" मेरी इस बात पर वो मुस्कुराया।

"मेरे तो यहाँ बैठने की वजह है और मैं रोज यहाँ आता हूँ।" उसने बताया।

"अगर आपकी निजता में कोई खलल न हो तो मैं जानना चाहता हूँ कि आपके यहाँ रोज आकर बैठने की वो वजह क्या है? माफ़ कीजिएगा , मैं एक लेखक हूँ , और ऐसे अनेक किस्से कहानियाँ लिखता रहता हूँ।" मैं ये कहते हुये उसके करीब बैठ गया।

"तुमने किसी से प्रेम किया है?" उसने पूछा।

"ज...जी ये कैसा सवाल है?" मैं थोड़ा हकबकाया।

"जो प्रेम को नहीं जानता वो इस मेरी बात को भी नहीं समझ सकता । फिर भी मुझे नहीं लगता तुमने किसी से प्रेम न किया हो, वैसे भी लेखक ज्यादातर प्रेम में होते हैं क्योंकि या तो उन्होंने किसी को खो दिया होता है या पा लिया होता है । अब तुम खो चुके हो कि पा चुके हो मैं नहीं जानता, मैं जहाँ बैठा हूँ, तेरह साल पहले मेरी बीवी की चिता यहाँ जली थी, उसके बाद मैं रोज यहाँ आता हूँ । अगर कभी बाहर होता हूँ तो ही नहीं आ पाता।"

"जी ऐसा करने की कोई ख़ास वजह ...मतलब रोज यहाँ आना??" मैं उत्सुक था।

"बहुत उतावले हो रहे हो, कोई नई कहानी तो नहीं खोज रहे हो? उसने हँसते हुए कहा।

"जी ..मैं तो कहानियां ही खोजता रहता हूँ , कहीं से भी कोई भी मिल जाये, मगर ये कहानी बहुत दिलचस्प होने वाली है, ऐसा लग रहा।" मैंने मुस्कुराते हुये कहा।

"अच्छा ...सुनना चाहते हो ये कहानी???" उसने कहा।

"जी.. बहुत अपनत्व से।" मेरा जवाव।

" कहाँ से शुरू करूँ ....समझ नहीं आता, पर सुनो, बताता हूँ…मैं सोलह साल का हुआ था , इंटर में पढ़ रहा था । एक दिन कुछ लोग घर में आये, मुझसे कुछ सवाल पूछे, फिर मुझे घर के अंदर भेज दिया गया । थोड़ी देर में मुझे फिर बुलाया गया, और शगुन के ग्यारह रुपये दिए , मुझे तो कुछ पता न था । दादी ने बताया लल्ला तेरा ब्याह हो रहा है , सुंदर सी दुल्हन आएगी जो हम सब से ज्यादा तेरा ख्याल रखेगी तुझे प्रेम करेगी।

मुझे कुछ न पता था इन सब का , पर ये एहसास हुआ कि कोई आने वाला है, जो कि केवल मेरा होगा । मेरा ही ख़याल रखेगा , मेरी हर ज़रूरत को पूरी करेगा । मैं उस मेहमान के लिए मन में तस्वीरें बनाने लगा, मन ही मन उसकी ताबीर करता पर मन में कोई चेहरा न उभरा ।कभी नीलम दिखती कभी फ़रहा तो कभी मीनाक्षी शेषाद्रि, पर मुझे ख़यालों में उससे प्रेम हो गया।"

" एक दिन हमारी शादी हो रही थी , वो घूँघट में थी । मैं उसे बार बार देखने की कोशिश कर रहा था, पर वो चेहरा नजर न आया । ख़ैर .... मैंने सोचा आज नहीं तो कल देख ही लूँगा । शादी के बाद भी मैं उसका चेहरा न देख पाया, शादी के दूसरे दिन ही उसे उसके घरवाले ले गए । मैं बहुत चाहता था उसे देखूं, वो नीलम सी लगती थी या फ़रहा सी या मीनाक्षी सी।" उसने एक ठंडी आह भरी।

हमारी शादी को दो साल हो गए थे, मेरा गौना न हुआ था । मैने एक दिन दादी से पूछा दादी ! अंजू कब आएगी ? मेरी ब्याहता का नाम अंजू था, दादी ने बताया अभी न आने वाली तेरा गौना न हुआ है ।मुझे गुस्सा आ गया , शादी की है तो गौना भी करो, नहीं तो मैं आज से खाना न खाऊंगा । बस जिद तो जिद, और मेरी जिद ससुराल तक पहुँची की लड़का जिद कर रहा है ।

लड़के की जिद के आगे गौना कर दिया गया । एक नेवली दुल्हन घर पर आ गई थी, मेरी सबसे पक्की दोस्त तो दादी ही थी । मैंने उसे पान की रिश्वत दी और कहा दादी मुझे एक बार अंजू का चेहरा देखने दे न , दादी हँसने लगी, बोली आज तू उसके पास ही सो जाना, चेहरा देख लेना। ये सुनकर मैं शरमाया नहीं , क्योंकि मैं जानता ही न था दुल्हन के पास सोना क्या होता है ।

रात होने को थी, मैं हमेशा की तरह दादी की बगल में जाकर सो गया । दादी ने कहा यहाँ क्यों आया है ? अपनी अंजू के पास सो.... मैं कुछ न समझा , दादी ने चाची को बुलाया, कहा जाओ इसको ऊपर चौबारे में सुला दो । चाची मुझे ले गई और चौबारे में छोड़ दिया । वहाँ अंजू पहले से गठरी बनी हुई बैठी थी । कमरे में एक मद्धिम सी बल्ब की रोशनी थी । मेरे कमरे में जाने के बाद अंजू ने कहा , सुनो जी ! मेरा घूँघट में जी घबरा रहा है , क्या मैं घूँघट हटा लूँ ?

मुझे तो जैसे मन की मुराद मिल गई थी । मैं उसे घूंघट हटाने का कैसे कहूँगा, ये अभी तक न सोच पाया था । मैंने झट से हामी भर दी, और उसने अपने घूँघट को उलट दिया । मैं देखना चाहता था वो नीलम जैसी है फ़रहा सी या मीनाक्षी सी .... पर उसका चेहरा देखते ही मेरा चेहरा बुझ गया । वो एक साँवली और सामान्य चेहरे वाली लड़की थी, उसे देख कर मेरा मन दुखी हो गया ।

वो तो किसी भी हीरोइन सी न दिखती थी, मैं बहुत ही मायूस हो गया था, जिसके साथ मुझे जीवन गुजारना था, वो तो किसी भी हिरोइन जैसी न दिखती थी। मैं गुस्से में भरकर कमरे के बाहर आ गया और बिना बिस्तर के ही लेट गया। मुझे गुस्से में देर तक नींद न आई, फिर नींद ने मुझे आ घेरा।

सुबह मेरी आँख खुली तो देखा वो बगल में सोई पड़ी है । मैंने हैरानी और गुस्से से उसे जगाया, "तुम्हें यहाँ आकर सोने की किसने कही वो भी मेरे पास।"

"वो जी .....अकेले में डर लग रहा था, और फिर आप ज़मीन पर सोएंगे तो मैं कैसे ऊपर सोती ? इसलिए सो गई, यहाँ आकर।" ये कहकर वह मुस्कुराई और मैं उसे देखता रह गया। कैसी पागल लड़की थी वो अंजू। उसने एक ठंडी आह भरी।

मुझे पता चला वो केवल चौथी तक पढ़ी थी, पर उसे किताबों का बहुत शौक था । मैं जब पढ़ता था तो सारी किताबें अस्त व्यस्त छोड़कर सो जाता था । सुबह उठता तो देखता सब किताबें व्यवस्थित पड़ी हैं, मैं उस पर चिल्लाता मेरी चीजों को न छेड़ाकर, पर उसे तो सबसे ज़्यादा मेरी चीजें छेड़कर ही आनन्द आता था।

वो बहुत बातूनी थी, सवाल पर सवाल पूछती । आज क्या क्या हुआ, ऐसा क्यों हुआ, ऐसा क्यों न किया, फिर मुझे गुस्सा आ जाता और मैं उसकी चोटी खींच देता था । मुझे उससे प्रेम तो नहीं हुआ था पर मुझे उसकी आदत हो गई थी । मैं जानता था वो फिर से सवाल पूछेगी और मैं उन सवालों के झूठे सच्चे जवाब बनाकर तैयार रखता था।

हमें साथ रहते हुए तीन महीने हो गए थे, पर मैं कभी उससे एकाकार न हुआ । एक रोज उसे लिवाने उसके घरवाले आ गए । मैं कॉलेज गया हुआ था और घरवालों ने उसे मेरे आने से पहले भेज दिया। मैं अपने कमरे में गया तो देखा कि मेरी सारी किताबें बिखरी पड़ी हैं जैसे किसी ने गुस्से से फैलाई हों और मेरे सारे कपड़े भी, मैं समझ गया सब उसकी कारस्तानी है।

मुझे बहुत गुस्सा आया उस पर , उस वक़्त वहाँ होती तो उसकी चोटी खींच देता। पर उस दिन लगा कि मैं उसे मिस कर रहा हूँ । हर जगह वो थी पर नहीं थी , मैं रात भर कभी बाहर आकर लेटता कभी अंदर जाकर पर नींद न आ रही थी।
रात यूँ ही कट गई। ऐसी एक रात नहीं बल्कि बहुत रातें कटी, दो महीने बाद उसे फिर से पिताजी लेकर आए ।

मैं उस दिन उसके आने के लिए बेचैन था । जब वो आई तो दौड़कर उसके पास जाना चाहता था, पर मैं ऐसा कर नहीं पाया। मैं रात को अपने कमरे में गया, उसने बात नहीं की । मैं उससे पहले बात नहीं करना चाहता था , उससे नाराज़गी जताना चाहता था कि बिना बताए गई और बिना बताये आई , इसलिए मैं पहली रात की तरह फिर से बाहर आकर लेट गया । मुझे इंतज़ार था कि वो आएगी , पर वो नहीं आई। मुझे भी लेटे लेटे नींद आ गई थी।

इस बार उसके आने के बाद मैंने नोटिस किया कि वो बहुत संजीदा हो गई थी । मेरी हर चीज़ पहले की तरह सलीके से होती थी पर उसके सवाल गायब थे । मैं उसकी चोटी खींचता तो वो पहले की तरह चिल्लाने के बजाय अपनी आँखों में पानी भर लेती थी । मुझे उसका ये बदला हुआ रूप पसन्द नहीं आ रहा था । मुझे उससे छेड़खानी करना अच्छा लगता था, पर अब एक तरफ़ा बात होने से मैं भी उससे कट गया था।

समय गुजरता जा रहा था .... हम दोनों केवल नाम के पति पत्नी थे । मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी , इस दौरान वो एक दो बार मायके गई पर अब उसके जाने आने से मुझे कोई ख़ास तकलीफ़ महसूस न हुई।

मैं कम्पीटिशन की तैयारी कर रहा था, मैं रात में जब तक पढ़ता वो एकटक बैठी रहती और मुझे घूरती रहती, मेरे सोने के बाद किताबें समेट कर रख देती और सो जाती।

एक सर्दी की रात उसे बुखार था, अमूमन हम बिस्तर पर दूर दूर ही सोते थे, पर उसे ठंड लग रही थी तो मैं उसके सटकर सो गया । उसने मुझ पर बाहें डाल दीं , मुझे अचानक एहसास हुआ अरे ये तो मेरी बीवी है ! और मैं आज तक इससे दूर भागता रहा ? ये बेचारी नीलम, मीनाक्षी या फ़रहा नहीं तो इसका क्या दोष मैं कौन सा गोविंदा हूँ ?

मैंने उसे अपने से चिपका लिया, और हम एकाकार हो गए। मैंने पहली बार महसूस किया कि वो एक औरत भी है। जो बहुत नाजुक है जिसे बहुत प्रेम किया जा सकता है, हर पल अपमान और तिरस्कार ही उसके हिस्से नहीं आना चाहिए।

अब मैं उसको चाहने लगा था, अब मैं उसकी हर छोटी बड़ी बात का सम्मान करने लगा था । उसके सवाल फिर शुरू हो गए थे और मेरे जवाब । कुछ रोज बाद पता चला वो माँ बनने वाली है, मेरा भी रेलवे में सलेक्शन हो गया था । उसके माँ बनने की ख़बर से मैं खुश नहीं था, मैं अभी बच्चा नहीं चाहता था । मैं हमेशा कहता अभी बच्चा नहीं होना चाहिए, पर वो मुस्कुराते हुये कहती जब हो जाएगा न मुझे एक पल भी न गोद में लेने दोगे, इतना तो जानती हूँ मैं ।

जब उसे प्रसव हुआ तो ऐसी सिचुएशन बन गई कि बच्चे और माँ में से एक को बचाया जा सकता था, मैंने अंजू को चुना। डॉक्टर ने ये भी घोषणा कर दी थी कि वो अब माँ नहीं बन सकती । इस दुर्घटना ने उसे तोड़ दिया और फिर से वो उसी संजीदगी भरी दुनिया में चली गई।

उसके संजीदा होने से मैं भी अब चुप चुप गुमसुम हो गया था। उसे उसके घरवाले लिवा ले गए। मुझसे रहा न गया तो मैं उसे महीना भर होने से पहले ही ले आया । मेरे ससुराल में उसने मुझे कहा कि मेरी छोटी बहन को ब्याह लो बच्चा हो जाएगा । मुझे गुस्सा आ गया और उसे थप्पड़ जड़ दिया, वो फूट फूटकर रोने लगी, मैंने उसे गले से लगा लिया।

हम वापस आ गए थे, अब वो संजीदगी से बाहर आ गई थी, उसे महसूस हो गया था मैं उससे प्रेम करता हूँ । उसके वाहियात सवाल जो कि मेरी दिनचर्या से जुड़े थे, सब पूछती थी, पूरे दिन का हिसाब लेती थी । हमने बड़े भाई साहब का बच्चा गोद ले लिया था । अब वो शारिरिक संसर्ग के प्रति उदासीन हो गई थी । शायद उसे लगता था बच्चा तो होगा नहीं , तो ये सब व्यर्थ है।

उसकी इस उदासीनता ने मुझे भटकाव के रस्ते पर ला खड़ा किया । मैं कॉलोनी की ही एक औरत के प्रेम में पड़ गया था । एक रोज़ अंजू ने मुझे उसके साथ हमबिस्तर देख लिया। उसने कुछ न कहा बस बहुत रोई और फिर से संजीदगी में चली गई । मैं अब भी रोज़ उसे दिनचर्या बताता था, पर उसकी और से कोई प्रश्न नहीं उठता था। पर मुझे महसूस हुआ मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ ।

मैं अपने गुनाह के लिए उससे माफ़ी माँगता था, पर ऐसा करने पर उसकी आँखें भर आती थीं। मैंने फिर वो ज़िक्र करना छोड़ दिया । मैं उसका बहुत ख़याल रखता था , वो भी मेरा, पर उसे संजीदगी से बाहर न ला पाया । फिर वो बहुत बीमार हो गई, पता चला उसे कैन्सर हो गया है , मैं टूट गया था ।

मैं उसे बचाने के लिए अपनी जान भी देने को तैयार था पर भगवान जान के बदले जान नहीं बख़्शता , वो और संजीदगी में चली गई वो जानती थी मैं उसके जाने के बाद टूट जाऊंगा और एक दिन मुझे पूरी तरह तोड़कर ये दुनिया छोड़कर चली गई।

मैं पगला गया, यहाँ रोज आकर उससे बात करता, उसे अपनी दिनचर्या बताता । फिर ये मेरी आदत हो गई , जीने का सहारा हो गया । मैं रोज़ यहाँ आता हूँ और अपनी दिनभर की दिनचर्या अंजू को बताता हूँ । मन में एक हूक सी उठती है कि अभी पहले की तरह कोई नया सवाल पूछ लेगी। मैं अपने आखिरी दम तक अंजू को पल पल याद करते रहूंगा, उसके बिना जीना मुहाल है, सच है
नफ़रतें जीने नहीं देती हैं,
मुहब्बत मरने नहीं देती...

ये कहते हुए उस आदमी की आँखों से आँसुओं की धार बह निकली मैं भी उसकी कहानी सुनकर संजीदा हो गया था, कुछ देर बाद उसने कहा, "आओ चलते हैं, सूरज ढलने वाला है।"

संजय नायक "शिल्प"