Chityuva Buti - 3 in Hindi Short Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | चिरयुवा बूटी - 3

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चिरयुवा बूटी - 3

(3)

 
दाढ़ीवाले बाबा
ऋषिकेश में हिमालय की एक एकांत पहाड़ी पर रहने वाले संत दाढ़ीवाले बाबा का नाम बड़ा प्रसिद्ध था।

एक दिन भेार होते ही मोहन उनके दर्शन हेतु निकल पड़ा ।

उनके आश्रम में पहुंचने के लिऐ उसे दूर जंगल मे करीब ढाई कि.मी. पैदल एक पहाड़ी पर चढ़ना पड़ा ।

वह सुनसान जगह जंगली जानवरों से भरी हुई थी ।

वहां जंगली जहरीले साँपों बिच्छुओं व अन्य खतरनाक जीव जंतुओं का बड़ा खतरा था |

पहाड़ी की चोटी पर एक झोपड़ी बनी हुई थी । झोपड़ी के बाहर एक मंच था।

संत कुछ देर बाद कुटिया से बाहर आए । उनकी दाढ़ी बहुत बड़ी थी ।

संत के चलने पर उनके पीछे पीछे जमीन पर करीब बीस फीट लम्बी दाढी घिसटते हुए चलती थी ।

वे एक बड़े लंबे चैड़े व बलिष्ठ पहलवान प्रतीत होते थे।

वे किसी प्रकार का प्रवचन नही देते थे । उस बियाबान जंगल मे वे योग साधना कर रहे थे।

उनकी दाढ़ी ने उन्हे प्रसिद्ध बना रखा था ।

नमस्कार व भेंट के बाद मोहन पुनः अपनी लॉज के लिए चल दिया।

रास्ते मे मौसम बदल गया । आकाश मे घने बादल हो गए व आंधी चलने लगी ।

जैसे ही मोहन अपनी लॉज में पहुंचा, मूसलाधार बारिश होने लगी ।

मोहन ने उस बियाबान जंगल से सकुशल लौट आने के लिए भगवान को धन्यवाद दिया।

 

********

 

अनोखे संत

अनेक संतों से निराश मेाहन वापस अपने घर लौटने का उपक्रम करने लगा ।

उसने अपना सामान भी पेक कर लिया तभी उसे धर्मशाला में कुछ लोग किसी विचित्र साधू की प्रशंसा करते सुनाई पड़े । मोहन ने उस संत का पता पूछकर अंतिम बार उस साधु का दर्शन करने का निश्चय किया । उसने मन में कहा चलो यह आख़िरी बाजी आजमा ली जाए |

दूसरे दिन बड़े सवेरे वह उन संत की खोज में निकल पड़ा ।

उसे बियाबान जंगल में ऐक घंटे के पैदल सफर के बाद एक बरगद के पेड़ के नीचे ऐक कुटिया दिखाई दी ।

धूप निकल आई थी । गर्म हवा चल रही थी | चलते चलते वह पसीने मे तरबतर होकर थक गया था ।

उसने कुटिया में प्रवेश किया ।

वहां एक संत ऐक तख्त पर बैठे हुए थे । उनके चारों तरफ जड़ी बूटियों का ढेर लगा था ।

बूटियों की तरह तरह की गंध चारों तरफ फैली हुई थी ।

मोहन ने संत के पैर छूना चाहा किन्तु उन्होने मोहन को ऐसा करने से मना कर दिया ।

मोहन को विस्मय हुआ| उसके पूछने पर उन्होंने कहा ‘सभी मनुष्य समान हैं । ’

संत ने मोहन को पानी पिलाया व कुछ फल खाने को दिए ।

मोहन ने सोचा, आज तक जितने संत मिले वे लोगों से अपनी सेवा करवाते थे ।

ये पहले संत हैं जो स्वयं प्रत्येक आगंतुक की सेवा करते हैं ।

संत को शायद उपदेश देने की आदत नहीं थी । वे चुप बैठे रहे ।

बातचीत आरंभ करने के लिऐ मोहन ने कहा ‘ आप ऐसे बियाबान खतरनाक जंगल में अकेले रह रहे हैं ।’

संत ने कहा ‘ मित्र यह जंगल इंसान के बनाये सीमेंट के कृत्रिम जंगल से कहीं श्रेष्ठतर है । आदिम मनुष्य जंगली पशुओं का शिकार करता था । आधुनिक मनुष्य धन, सम्पत्ति व नाम की मरीचिका के पीछे भाग रहा है । उसकी आदिम प्रवृत्तियों ने मुखौटा बदल लिया है । ’

मोहन को संत के विचार बड़े मौलिक लगे । पहली बार मोहन को कोई विरला व्यक्ति मिला ।

उसने कहा ‘ आप पहुंचे हुए संत लगते हैं । ईश्वर बारे में आपके क्या विचार हैं ?’

वे बोले ‘ पहली बात तो यह कि मैं कोई सन्यासी या संत नहीं हूं ।

दूसरी बात, मैं ईश्वर के गुणगान करने या भक्ति करने में भी विश्वास नहीं करता । ’

‘क्या आप ईश्वर को नहीं मानते ? ’

‘ पहली बात तो यह कि ईश्वर है या नहीं, इसकी खोज होना चाहिए ।

पहले उसे खोजो तो । दुनिया की भीड़ का अनुकरण करते हुऐ उसके बारे में किताबों के आधार पर लिखी हुई व सुनी सुनाई चली आरही मान्यताओं के आधार पर चर्चा करना मूर्खता है । ’

मेाहन को उस दिन बड़ा संतोष हुआ । पहली बार उसका सामना किसी मौलिक विचारक से हुआ, वह भी जंगल में । उसकी खोज सार्थक हुई ।

कुछ देर बाद वहां कुछ मरीजों का आगमन होना शुरू हुआ । संत उनकी नाड़ी परीक्षा करके उन्हें औषधियां देने लगे ।

मरीज भी संतुष्ट होकर जा रहे थे ।

जब सब लोग चले गए तो मोहन ने संत से पूछा ‘ आप तो दवाओं के बड़े जानकार मालूम होते हैं । ’

वे बोले ‘ में आयुर्वेदाचार्य हूं “।

‘इतना बड़ा डाक्टर जंगल में अकेला बैठा हुआ है । आप समाज में रहकर लोगों की सेवा कर सकते हें । ’

‘ कैसे समाज की सेवा । वह समाज, जो परिग्रह काम क्रोध लोभ प्रतिस्पर्धा आदि विकारो पर आश्रित है । जहां हर व्यक्ति पद प्रतिष्ठा व धन की मूर्खतापूर्ण दौड़ में अंधे के समान भाग रहा है | वर्तमान समाज परिग्रह पर आधारित है और दिखावटी धर्म के आयोजन करता है | जहाँ हर व्यक्ति दूसरे को धकेलकर आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा में मशगूल है और यही शिक्षा उसे बचपन से दी जाती है | जहाँ गरीबों को हिकारत से देखा जाता है और लोभी धोखेबाज धनी लोगों को इज्जत से देखा जाता है | जो समाज पद प्रतिष्ठा व पैसे पर आधारित है | जहाँ गरीबों बेसहारों की कोई मदद नहीं करता, उन्हें एक पैसा न देकर भगवान जिन्हें एक पैसे की आवश्यकता नहीं, उन्हें व्यर्थ ही करोड़ों का धन भेंट किया जाता है | ऐसे नकली बनावटी समाज की सेवा से क्या लाभ ? ’

मेाहन मानव समाज के सटीक चित्रण से हतप्रभ था । संत ने पूरे समाज के कटु सत्य का उद्घाटन कर दिया था ।

मोहन अवाक् होकर उन्हें सुनता रहा |

उसने पूछा ‘ क्या आपके पास मनुष्य के दुख दूर करने व उसे चिरयौवन देने की कोई जड़ी बूटी है ? ’

‘अवश्य’ संत ने पूरे विश्वास से जबाब दिया ।

‘मैं बड़ा दुखी हूं । क्या आप मेरे दुख दूर करने की कोई दवा दे सकते हैं ? ’

‘ अपने दुख का मूल कारण बताइये ? ’

‘ मेरी पत्नि मुझे छोड़कर मेरे बच्चे के साथ उसके प्रेमी के साथ रह रही है । ’

‘ क्या आप अपनी पत्नि को ऐक निर्जीव वस्तु मानते हैं ? वह चाहे जिसे प्यार करने में स्वतंत्र हे । इंसान के नियम कायदे शारीरिक आकर्षण की प्रकृति व प्रवृत्ति को नहीं रोक सकते ।

आप उस पर अपना अधिकार क्यों मानते हें ? वह दूसरे के साथ प्रेम से रहती है, रहे । वो उसकी मर्जी में खुश रहे, आप अपने तरीके से जीवन जिएं । क्या समाज की सदियों से चली आ रही रूढिया, मान्यताएं ही आपको दुखी नहीं कर रही है ?

आपके अचेतन मन में पड़े संस्कार, मान्यताएं ही आपको दुखी कर रही है, आपकी पत्नि का वियोग नहीं | दूसरों पर आदमी के बनाये नियम न थोपें फिर चाहे वह आपकी पत्नि ही क्यों न हो । ’

ये बातें सुनकर मोहन को लगा उसके मन ने छिपे दुःख का कारण उसके सामने आ गया है | अचानक उसे लगा जैसे उसका दुख दूर हो गया है ।

फिर संत ने उसे एक जंगली बूटी दी व उसे पानी के साथ खाने को कहा ।

उसे खाते ही मोहन केा लगा जैसे उसका सारा दुख काफूर हो गया हो । उसका हृदय उल्लास से भर गया ।

उसने संत से पूछा, क्या आप मुझे इस दुख निवारक बूटी का का नाम बताने की कृपा करेंगे ?

संत ने कहा, “ मै आपको इस दवा का नाम नहीं बतला सकता “

“ मै समाज की निस्वार्थ सेवा करना चाहता हूँ “|

“कृपया बार बार न पूछें “ |

“ मै भी एक आयुर्वेदिक वैद्य हूँ “

संत चुप रहे व मोहन के बार बार प्रश्न पूछने पर उठकर अन्दर चले गए |

संत से मोहन ने समाज हित में दवा का नाम बताने का बार बार निवेदन किया । किन्तु संत ने स्पष्ट रूप से द्यढ़ता के साथ मना कर दिया ।

*********

 

चोरी

मेाहन अनेक बार अनोखे संत के चक्कर लगाकर उनसे दिव्य बूटियों के बारे में जानने का प्रयास कर रहा था किन्तु संत उसे कुछ नहीं बतला रहे थे |

उसने अनेक बार उनसे बूटी देने की प्रार्थना की किन्तु उसे कोई सफलता नहीं मिली ।

अंत में उसने एक खतरनाक फैसला किया ।

एक दिन बडे सवेरे जब अँधेरा था,वह संत की कुटिया के सामने छुपकर बैठ गया । कुछ समय बाद संत नित्य क्रिया के लिए दूर जाते दिखाई दिए । एक घंटे के पहले उनके लौटने की कोई संभावना नहीं थी |

मोहन ने शीघ्र कुटिया में प्रवेश किया व वहां बिखरी हुई समस्त जड़ी बूटियों के एक एक नमूने को अपने झोले में एकत्रित कर लिया |

वह तेजी से भाग चला । पकड़े़ जाने के भय से वह बार बार मुड़़कर पीछे देख लेता था ।

ऐक घंटे की तेज दौड़ के बाद वह बद्रीनाथ धाम जाने वाली मुख्य सड़क पर पहुँच गया ।

वह पसीने में भीगा हुआ था व बुरी तरह हाँप रहा था |

कुछ देर बाद,

उसे एक बस आती हुई दिखाई दी जो बद्रीधाम जा रही थी । वह फुर्ती से उसमें सवार होगया । बस तेजी से भाग रही थी । उसने ऐक लंबी सांस ली ।

बूटियों से भरा बेग उसके पास था । उनमें वह दिव्य बूटी अवश्य होगी जिसके लिए वह अनोखे संत के यहाँ अनेक दिनो से चक्कर लगा रहा था । थके होने पर उसे गहरी नींद लग गई । जब वह जागा तो सुबह हो चुकी थी । बस सघन हिमालय के एक गांव में रूकी हुई थी । लोग चाय नाश्ता ले रहे थे ।

मोहन उस गांव मं उतर गया । उसने कुछ दिन तक वहीं रहने का फैसला किया ।

उसने वहा एक बड़ा मकान किराये पर ले लिया । उस जगह का दृश्य अत्यंत सुंदर था ।

नीचे सुन्दर घाटी में अलकनंदा नदी बह रही थी | दूसरी ओर बर्फ से ढके मनोहारी पर्वत अपनी सुन्दर छठा बिखेर रहे थे | सारा वन्य प्रान्त सुन्दर देवदार व एन्य वृक्षों व झाड़ियों से भरा पड़ा था |

उसने मकान मालिक से पूछा ‘क्या यहां कोई जड़ी बूटी का जानकार व्यक्ति मिलेगा जो रिसर्च कार्य में मेरी मदद कर सके ? ’

उसने कहा ‘ इस गांव का रामलाल जड़ी बूटी का बड़ा जानकार है । वह कई सालों से इस गांव मे जड़ी बुटियों को खोजने वालों की मदद करता रहता है । ’

 
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जड़ी बूटी का जानकार
‘क्या आप रामलाल को यहां भेज सकते हो ?’

‘ वह पास में ही रहता है | मै अभी जाकर उससे बात करता हूँ | वह थोड़ी देर में यहां आ जाएगा ।’

कुछ देर बाद उसे एक व्यक्ति मकान की ओर आता दिखाई दिया । वह नाटे कद का एक बुजुर्ग व्यक्ति था |

उसका चेहरा झुर्रियों से भरा था | उसका रंग लाल सुर्ख था |

उसने पाजामा,सर पर टोपी व कोट पहन रखा था |

उसने मोहन को सलाम करते हुए कहा ‘राम राम साबजी ! मैं रामलाल । ’

मेाहन ने कहा ‘ मेने सुना आप हिमालय की जड़ियों के जानकार हो । ’

‘मै पिछले पच्चीस साल से यहां जडि बूटियों की खोज करने वालों के साथ काम कर रहा हूं । ’

मोहन ने अपना थैला उसे बताया । रामलाल ने कुछेक बूटियों को छोड़कर सभी बूटियों के नाम व उपयोग बता दिए । ’

मेाहन को बड़ा संतोष हुआ । वह सही जगह पहुंच चुका था । ईश्वर उसके साथ था ।

मेाहन ने कहा ‘रामलाल मै यहां जड़ी बूटी की खोज करने आया हूं । मुझे इस कार्य के लिए चार लोगों की टीम चाहिए ।’

‘मैं आज ही चार अनुभवी लोगों की टीम लेकर आपके पास आता हूं ।’

‘रामलाल, आज तो मैं थक चुका हूं । कल मुझे उनसे मिलवाना । हम परसों से काम शुरू कर देंगे।

रामलाल ने मोहन के लिए वहां रहने, खाने पीने का सारा इंतजाम कर दिया ।

थके होने से मोहन को शाम होते ही गहरी नींद लग गई ।

 

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