ब्रजमोहन शर्मा
(हिमालय के जंगलों में व्रद्धावस्था दूर करनेवाली चिरयुवा बूटी की खोज की सनसनी दास्तान)
समर्पण : भगवान भोलेनाथ के श्री चरणों में
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भूमिका :
मित्रों यह अत्यंत रोमांचक कहानी एक ऐसे आयुर्वेदिक वैद्य की दास्तान है जो हिमालय के जंगलों में मनुष्य के सभी दुखो व बुढ़ापे की समस्याओं को दूर करने वाली बूटी की खोज करता है | वह हिमालय के जंगलों में किसी सिद्ध संत की खोज में भटकता है | इस दौरान उसकी कहीं कुछ चमत्कारिक संतों से तो कहीं बनावटी संतों से भेंट होती है |
तब उसे किसी संत के पास उसे चिरयुवा बूटी के होने की पक्की खबर मिलती है ....
मंनुश्य के दुःख दूर कने वाले एवं उसे सर्वदा जवान बनाये रखने वाली बूटी के लिए किए गए अनुसंधानों की रोमांचक यात्रा पर निकालने के लिए आगे पढ़िए .......
(1)
राहत
मेाहन शीला से तलाक पाकर बड़ा खुश था। वह स्वयं को स्वच्छंद हवा मे पंछी जैसा अनुभव कर रहा था। शीला के कारण उसकी समाज मे बहुत बदनामी हुई थी। जब भी कभी जाने अनजाने में उसकी चर्चा वलती तो उसका दिल दुख के समंदर मे डूब जाता था।
कम से कम अब चर्चा निकलने पर वह यह कह सकता था कि उसका उस बदनाम बदचलन लड़की से कोई संबंध नही है। शीला के द्वारा दिए गये धोखे को याद करके वह दुख,घृणा,क्रोध,सहानुभूति व अपमान की अनेक मिश्रित भावनाओं से भर उठता था। शीला उसका घर छोड़कर चली गई |
जो हुआ अच्छा हुआ |
उसने भी शीला की अनेक बार जान लेने की कोशिश की | यदि वह उसके हाथों मारी जाती ! यह कल्पना करके वह सिहर उठता था । वह तो जिंदगी भर जेंल मे चक्की पीसता, उसका बच्चा अनाथ हो जाता | यदि वह बच भी जाती तो उसे जान से मारने के प्रयास मे वह कई वर्षों तक जेल काटता रहता |
इधर शीला रोज नये नये प्रेमियों के साथ तब तक गुलछर्रे उड़ाती जब तक वह बुरी तरह बूढी होकर थक नही जाती । यद्यपि ऐसे केस देखे गए हैं कि बूढ़े होने पर भी इंसान अपनी बुरी आदत नही छोड़ता वरन् अनेक बार उसकी कुटेव बुढ़ापे मे और बढ़ जाती है।
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महादुख
मोहन विचारों मे खोया एक बगीचे मे लेटा हुआ था।
बगीचे मे तरह तरह के फूल खिले थे, बीच मे एक छोटा फव्वारा था | वहां अंग्रेजों के जमाने की नग्न स्त्री की बड़ी सुन्दर मूर्ति थी । वह मूर्ति सफ़ेद मार्बल पत्थर की बनी हुई थी | बगीचे मे छुटृी का लुफ्त उठाने बहुत से लोग अपनी फेमिली के साथ वहां घूम रहं थे।
कुछ देर बाद वहां से एक पति पत्नि का जोड़ा हंसता हुआ गुजरा ।
उन्हांने अपने बच्चे का हाथ दोनो ओर से पकड़ा हुआ था।
बच्चा बार बार भागने का प्रयास कर रहा था। तभी वहां से एक गुब्बारा वाला गुजरा । बच्चा गुब्बारे के लिए मचलने लगा। वह सड़क पर लेट गया । पिता ने बच्चे को गोद मे उठाकर चूमा व उसे गुब्बारा दिलाया । उस बगीचे मे बच्चों की ट्रेन भी दौड़ती थी। कुछ देर बाद बच्चा ट्रेन मे बैठने की जिद करने लगा । उसके पिता ने उसे ट्रेन मे बिठा दिया। बच्चा खुशी से चीख रहा था।
मोहन कई बार इस बगीचे मे अपनी पत्नि शीला व बच्चे के साथ आया था । उसे अपने बीते दिन याद आ गए । वह दुख के समंदर मे डूब गया । वह कितना अभागा था ! दुंर्भाग्य के हाथों उसका सब कुछ छिन गया था।
वह तेजी से उठ कर अपने घर की ओर भागा किन्तु अब उसका घर कहां था ! उसके पत्नि व बच्चा उससे छिन चुके थे |
उसके दिल में घुप्प अंधेरा था।
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चार्वाक
मेाहन का एक मित्र सचिन था ।
वह चार्वाक के सिद्धांत पर जिंदगी जीने में विश्वास करता था ।
इस सिद्धांत के अनुसार :
‘ जब तक जिओ सुख से जिओ । ऋण लो और घी पीओ ।
मरने के बाद कुछ शेष नहीं बचता । आत्मा, परमात्मा व पुनर्जन्म ये सब धूर्त पंडितों की बनाई कल्पनाएं हें । ’
सचिन उपरोक्त सिद्धांत पर चलता व ऐश की जिंदगी बिताता था ।
वह कहता,
‘ मित्र ! मरने के बाद आदमी की ईश्वर के सामने पेशी होगी ।
ईश्वर तुमसे पूछेगा, तुमने मेरी बनाई सुंदर सृष्टि का आनंद लिया ? सुंदर युवतियों के नाच गाने व सेक्स का मजा लिया ? बढिया वाइन पी ? यदि नही तो जा फिर से संसार में जा व इस बार सूअर बन जा ।
मैं तो ईश्वर को रूष्ट नही करना चाहता । इसलिए खुब मजे करो । हर पल को मस्ती से जिओ ।
मोहन ! कल शाम तैयार रहना | मेरे साथ मजे करने चलना ।’
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चकला
दूसरे दिन शाम को सचिन मोहन को एक चकले पर ले गया ।
वहां चार पांच सुंदर युवतियों ने उसका बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया ।
एक युवती ने दोनों को पान भेंट किया ।
फिर एक युवती ढोलक व दूसरी हारमोनियम बजाने लगी । दो लड़कियां अपने गुप्तांग प्रदर्शित करते हुए नाचने लगी । वे तरह तरह से मटकते हुए, फिल्मो का गाना गाते हुए अपना हर गुप्तांग को अश्लील तरीके से दिखा रही थी | वे दर्शकों को अपने साथ अश्लील हरकते करने के लिए उकसा रही थी |
सचिन बार बार उन्हे चूमता | वह उनके पुट्ठे, गुप्तांगो व स्तन पर हाथ फेरता । साथ ही वह उन्हें रूपये देता जा रहा था । मोहन को यह सब अच्छा नहीं लगा । वह वहां से उठ कर चल दिया ।
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बौद्ध धर्म
मोहन के हृदय में भारी दुख घुमड़ रहा था । वह अपने दुःख को दूर करने के लिए अनेक ग्रंथों का अध्ययन कर रहा था |
उसने महात्मा बुद्ध के विषय में पढ़ा था |
‘ मनुष्य के दुःख बारे में जितना बुद्ध ने चिंतन किया, उतना शायद किसी अन्य संत ने नहीं । उनके अनुसार मानव अपने दुःख का खुद निर्माता है ।
मानव जाति ने जितने आंसू बहाए हैं, वे सभी समुद्रों के कुल पानी से भी अधिक हें ।
मानव ने परस्पर युद्ध करके सदैव खून की नदियां बहाई हैं ।
दुख निवृत्ति के लिए बुद्ध ने अष्टांग मार्ग बताया |
अष्टांग मार्ग निम्न प्रकार से है :
1 सम्यक दृष्टि 2 सम्यक निर्णय 3 सम्यक वचन
4 सम्यक चरित्र 5 आजीविका के शुद्ध साधन
6 सम्यक प्रयास 7 सम्यक मानसिकता 8 सम्यक एकाग्रता
बुद्ध की ध्यान प्रणाली, ‘ विपश्यना ’ आज दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ध्यान विधि मानी जाती है ।
मोहन से एक दिन एक बौद्ध साधू से पूछा ‘ क्या बुद्ध ईश्वर को मानते थे ? ’
उसने कहा ‘ बुद्ध निम्न प्रश्नों को अप्रासंगिक व मनुष्यकृत मानते थे :
1 क्या ईश्वर का अस्तित्व है अथवा नहीं है ?
2 सृष्टि का निर्माण किसने व कब किया ? उसका कब अंत होगा ?
इत्यादि और भी अन्य दार्शनिक प्रश्न सब अप्रासंगिक व अव्यवहारिक हैं |
ये आदमी के बनाए प्रश्न हैं । ये प्रश्न झूठे प्रश्न हैं व इनके झूठे उत्तर आदमी के बनाए हुए है। ।
मेाहन उस दिन एक विवाह आयोजन में आमंत्रित था ।
उस शाम वह पार्टी स्थल पर पहुंचा । वहां बड़े उत्साह का माहौल था । विवाह स्थल को रंग बिरंगी रौशनी से सजाया गया था । बैंड बाजे बज रहे थे ।
लड़की वाले सज धजकर बारात के स्वागत में खड़े थे । तभी वहां दूर से बारात आती दिखाई दी ।
बारात के आगे एक बैंड फिल्मी गाने की धुन बजाता चल रहा था ।
उस गाने की धुन पर बाराती नाच रहे थे ।
लड़की की मां ने दूल्हे व घोड़ी की पूजा की ।
दूल्हा दुल्हन एक सजे हुए मंच पर बैठ गए । दोनो ने एक दूजे को वरमाला पहनाई । अब लोग उन्हे प्रेजेंट देने लगे ।
कुछ देर बाद ही लोग मैदान में सजे पकवानों पर टूट पड़े ।
मोहन को अपने विवाह आयोजन की याद आ गई । उसके सामने अंधेरा छा गया । उसकी दुनिया लुट चुकी थी । उसकी पत्नि अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई थी ।
उसका ह्रदय दर्द से कराह उठा |
वह भारी मन से अपने घर लौट गया ।
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पंजाबी पार्टी
मोहन के घर के सामने एक पंजाबी परिवार रहता था ।
वे सरदारजी खाओ पीओ व मजे करेा के सिद्धांत पर चलते थे ।
एक दिन शाम को उनके यहां पार्टी थी । उन्होने मोहन को भी पार्टी मे बुलाया।
जब मोहन वहां पहुंचा तो वहां सरदारजी के अनेक मित्र इकठ्ठा होकर दारू पी रहे थे और मटन खा रहे थे । वे एक दूसरे को चुटकुले सुना रहे थे । वे सभी खूब हंसी मजाक करते हुए जोर जोर से हंस रहे थे |
मेाहन को देखकर सरदारजी बोले,
‘‘ आओ शर्माजी, लो ऐक पेग लगाओ ’’ ।
मोहन ने कहा ‘‘ धन्यवाद, न तो मै दारू पीता हूं और न ही मटन खाता हूं। ’’
उन्होंने कहा “तो फिर बैठो और चुटकुले सुनाओ | मोहन जिंदगी दो दिन की है । या तो हँस कर गुजार लो या रो कर ।
मोहनजी ! जिंदगी में दुख औेर सुख दोनो है । दुख या सुख मनाना, यह इंसान पर निर्भर है। हम तो जिंदगी में सुख छीनकर लेते हैं । हम जिंदगी के हर पल का मजा लूटने में विश्वास करते है | ’
मेाहन थोड़ी देर वहां बैठा किन्तु उसका दिल वहां नही लगा और वह उठ कर चल दिया।
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पतंजलि
मोहन ने पतंजलि सूत्र का अध्ययन किया । यह योगशास्त्र का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है ।
इस ग्रंथ के अनुसार:
‘ चित्त वृत्ति का निरोध ही योग है ’
अष्टांग योग के पालन के कुछ नियम हैं ।
मानव को यम नियम का पालन करना चाहिए ।
ये नियम निम्न हैं :
सत्य अस्तेय, अहिंसा,अपरिग्रह ब्रम्हचर्य्र आदि ।
अष्टांग योग अनुसार साधना के क्रम हैं,
१ यम 2 नियम आसन ४ प्राणायाम 5 प्रत्याहार धारणा 7 ध्यान 8 समाधि
योगी को दया शील संतोष आदि गुणों से युक्त होना चाहिए ।
उसे नित्य एकांत में ध्यान करने का अभ्यास करना चाहिए ।
नित्य नियम से ध्यान करने से अपने आप समाधि लगने लगती है ।
इस स्थिति में साधक दिव्य सत्ता से ऐकाकार हो जाता है । उसके सारे दुख दूर होकर वह परमानंद में निमग्न हो जाता है । ध्यान की उच्चावस्था में वह मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है ।
योगाभ्यास से उसे अनेक उच्चतर सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं ।
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रामानुज सिद्धांत
मोहन के मित्र वेंकट के पापा रामानुज मंदिर में पुजारी थे ।
वे रामानुज सिद्धांत के बड़े ज्ञाता थे ।
ऐक दिन व्यंकटेश मंदिर में ऐक उत्सव का आयोजन था |
पूजा के बाद स्वामीजी का लेक्चर हो रहा था ।
मोहन उस लेक्चर में उपस्थित था |:
वे कह रहे थे,
रामानुज सिद्धांत के अनुसार :
‘ ईश्वर सर्वश्रेष्ठ पुरूष हैं । वह सर्वान्तर्यामी अविनाशि व सूक्ष्म सत्ता हैं । ब्रम्ह अनंत सत्ता हैं । वह सर्वश्रेष्ठ गुणों से युक्त है । वे परम दयालु, पापी को क्षमा करने वाले भगवान हैं । वे अपने भक्तों की सर्वदा रक्षा करते हैं ।
ईश्वर से ही इस विश्व का जन्म होता है व उसी मे उसका लय होता है ।
प्रलय के समय विश्व बीज रूप में ई्रश्वर में विद्यमान रहता है । प्रकृति ईश्वर की शक्ति है व उसकी अनुचरी है ।
उनके श्रेष्ठ गुण हैं : अग्नि, तेजशक्ति व ज्ञान आदि ।“
रामानुज सिद्धांत विश्व में सबसे सशक्त धनात्मक ईश्वरीय विचारधारा है ।
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रेलयात्रा
मेाहन हिमालय की यात्रा के लिए ट्रेन से रवाना हो गया ।
वह इस दुनिया मे बिलकुल अकेला था ।
ट्रेन में कई यात्रि उतर व चढ़ रहे थे । वह अनेक स्टेशनों पर रूक रही थी ।
मोहन सोच में डूबा था |
हमारी जिंदगी भी बिलकुल रेलयात्रा के समान है जिसमें कई पढ़ाव आते हैं। हम अनेक लोगों से मिलते हैं और बिछुड़ते हैं ।
फिर एक दिन हमारे जीवन के सफर का भी अंत हो जाता है ।
अचानक रात के अंधेरे में गाड़ी ऐक नदी के उपर से गुजर रही थी ।
मोहन को लगा उस नदी में बाढ़ आ गई है ।
उसमें उसका पुत्र पप्पू और पत्नि शीला बहते चले जा रहे थे ।
वे दोनो चिल्ला रहे थे ‘बचाओ बचाओ ’
मोहन के मुंह से निकला, ‘ ओ पप्पू ! ओ शीला ! ’
थोड़ी देर बाद उसे होंश आया । वह एक ख्वाब था ।
जिंदगी भी ऐक ख्वाब है ।
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