Mujahida - Hakk ki Jung - 15 in Hindi Moral Stories by Chaya Agarwal books and stories PDF | मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 15

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मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 15

भाग। 15
पूरा दिन वो लोग खूब घूमें थे। वहाँ ठ़ड थी इसलिये रियाज़ ने उसका हाथ नही छोड़ा था। नैनी झील में जब वो लोग वोटिंग कर रहे थे तो रियाज़ ने उसके गाल पर, उसके हाथ पर कई बार चूम लिया था। उसे डर लगा था पर साथ में अच्छा भी लग रहा था। वो पहले भी कई बार यहाँ आई थी पर ये इतना खूबसूरत कभी नही था। पूरा नैनीताल उसे रोमांस से भरा हुआ लग रहा था। हर नजारा सुहाना लग रहा था। इतनी सुन्दर जिन्दगी का उसने कभी तसब्बुर नही किया था, इसलिये वो एक-एक लम्हा फिज़ा के साथ बाँटना चाहती थी। उसे बताना चाहती थी कि ये भी एक दुनिया है।
इस बीच शमायरा की कई बार फिज़ा से फोन पर बात भी हुयी थी। हर बार फिज़ा ने घबराई हुयी आवाज़ में कहा था कि वह जल्दी ही लौट आयें। नही तो वह आँटी को क्या जवाब देगी?
शमायरा ने उसे पूरी तसल्ली बँधाई, ये कह कर- "तू परेशान मत हो हम लोग वक्त से आ जायेंगें।"
शमायरा और रियाज़ पूरा दिन मस्ती करके वक्त से वापस आ गये थे। इस बीच फिज़ा के ज़हन में उन लोगों की अनगिनत रोमांस से भरी तस्वीरें बनती रहीं थी।
नैनीताल से लौटने के बाद शमायरा डेढ़ दिन तक उसके साथ रही थी। रात में भी वो फिज़ा के घर ही रूकी थी। उसके पेट में दर्द हो रहा था। वह ठंड का दर्द नही था। दिन भर अपने होने वाले शौहर के साथ बिताये हुये रुमानी पलों की हलचल थी जो जब तक बाहर नही निकल या एक-एक लम्हें का हिसाब फिज़ा से शेयर नही कर लेती उसका दर्द ठीक होने वाला नही था। दोनों रात भर एक ही बिस्तर पर मुँह से मुँह जोड़े पड़ी रही। इस बीच वो दोनों एक बार भी नही उठीं। फिज़ा ने कमरें का दरवाजा भेड़ लिया था ताकि उनकी आवाज़ कमरे से बाहर न जाये।
"चल अब बता क्या-क्या किया तुम दोनों ने वहाँ पर? हमारी तो जान ही सूख रही थी और तुम दोनों इश्क फरमा रहे थे।" फिज़ा के सुनने की बेसब्री उसके लब्जों से झलक रही थी। उसने उसे छेड़ते हुये कहा था।
शमायरा मुँह फाड़ कर हँस दी थी। उसने बताया- "रियाज़ बहुत खूबसूरत है। वह दिल का बहुत अच्छा है। हाँ थोड़ा सा शरारती जरुर है।" कह कर लजा गयी थी वो।
"अच्छा तो ये बात है? चल जरा हमें भी बता वो कहाँ से खूबसूरत है? फिज़ा अन्दर ही अन्दर उस रुमानी अहसास से खुद को भीगा हुआ सा महसूस कर रही थी। उसने शमायरा के चिकोटी काट कर अपनी उजलत दिखाई थी।
दोनों सहेलियाँ लेटे से उठ बैठीं और तकिया अपनी-अपनी गोद में रख लिया और एक-दूसरें का मुँह तकनें लगीं। उस वक्त शमायरा जैसे नशे में थी। एक बार तो फिज़ा को लगा जैसे उसने दारु चढ़ाई हो। उस पर आज दिन भर की खुमारी चढ़ी हुई थी। उसने बताया- " रियाज़ को खुली हुई लड़कियाँ पसंद नही हैं। उसे हमारी झिझक बहुत पसंद है। वह चलते-चलते भी शरारत करने से नही चूकता। फिज़ा, आज उसने भरपूर महोब्बत लुटाई है हम पर। हम तो जैसे कर्ज़दार हो गये हैं उसके।" शमायरा बोलती जा रही थी।
फिज़ा भी बहुत ध्यान से सब सुन रही थी। उसके दिल में भी गुदगुदी हो रही थी।
"अच्छा सुन फिज़ा, क्या शादी से पहले एक दूसरे को प्यार करना गुनाह होता है? हमारा तो रिश्ता तय हो ही चुका है?" उसने बेसाख़्ता सवाल कर दिया था।
"क्या किया है तूने? सच-सच बता, कहीँ कुछ ऐसा-वैसा तो नही कर डाला तुम दोनों ने? फिजा़ के शक की सुई उसके इर्द-गिर्द घूमने लगी। वह सुनने से पहले ही घबराने लगी।
"पागल, हमनें ऐसा कुछ नही किया, तेरी कसम। रियाज़ ने जब हमें किस किया था तो हम बहुत घबरा गये थे।" शमायरा ने अपनी गर्दन पर चिकोटी भरते हुये उसे यकीन दिलाया।
"अच्छा बस किस ही किया न?"
"सच में फिज़ा, पर हमें अच्छा लगा था।"
"तू रियाज़ को चाहने लगी है न?" फिज़ा ने हल्की सी मुस्कान बिखेर कर कहा।
"हाँ, फिज़ा हमें रियाज़ का साथ बहुत अच्छा लगता है। अब हमें लगता है लोग मोहब्बत क्यों करते है? क्यों एक दूसरे के लिये जान देते हैं? कितना मजा है इसमे? जहाँ इन्सान सब भूल जाता है। बस उसे हर तरफ मोहब्बत ही मोहब्बत नजर आती है। फिर क्यों लोग इसे बुरा कहते हैं? क्यों जीने नही देते मोहब्बत करने वालों को? कितना सुकून होता है उन लम्हों में? दिल करता है बस यूँ ही जिन्दगी कट जाये। कितनी खूबसूरत हो जाती है पूरी दुनिया? फिज़ा जब तुझे भी किसी से इश्क हो जायेगा तो तू समझ पायेगी ये सब?" शमायरा बस बोलती ही जा रही थी। थोड़ा रूक कर उसने फिर कहा- "पता है फिज़ा? आज उसने मुझे दो बार गले से भी लगाया बिल्कुल नजदीक लाकर।"
"ओहह. फिर..फिर क्या हुआ..?" उसने उजलत में पूछा।
"जब उसने हमें कस कर गले लगाया था , तब हमारा कुर्ता और भी कस गया था। हमनें अलग हटने की बहुत कोशिश की थी मगर उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी। वह हमें कसता ही जा रहा था। जब तक हमारी चीख न निकल गयी।" बताते-बताते उसका चेहरा लाल पड़ गया था। शमायरा की खुशी उसके जिस्म के हर हिस्से से टपक रही थी।
दोनों ने पूरी रात आँखों में काट दी। पर बातें थीं कि खत्म ही नही हो रही थीं। शमायरा नही जानती थी कि फिज़ा को उसकी बातों से थोड़ी-थोड़ी जलन भी होने लगी थी। ऐसा होना कोई बड़ी बात नही है। अक्सर जब एक सहेली की शादी पहले हो जाये तो दूसरी को ऐसा होता ही है।
शमायरा की इन सभी बातों को लेकर फिज़ा भी ख्यावों में खो जाती थी और सोचने लगती, उसके लिये भी अल्लाह ताला ने कोई शहजादा जरुर बनाया होगा। जिसके साथ वह भी घूमेगी। अकेले में बातें करेगी। मूवी जायेगी, वह भी उसके साथ वही सब करेगी जो शमायरा और उसका शौहर करते हैं। कितने हसीन लम्हें होगें? जो उसकी जिन्दगी में भी आयेगें?
कितना खूबसूरत होता है किसी के साथ निकाह में बँधना? जब दोनों एक इन्सान दूसरे में खो जाता है। एक हो जाते हैं। समा जाते हैं एक दूसरे के अन्दर और जिन्दगी इसी तरह बिताना चाहते हैं। शायद इसी को मोहब्बत कहते हैं। इसीलिए सब निकाह जरुर पढ़वाते हैं।
अपने लिये वही सब बाते तसब्बुर कर फिज़ा बैठे-बैठे मुस्कुरा उठती और खो जाती उस दुनिया में जहाँ से वो वापस आना नही चाहती थी। अपने अन्दर होने वाली इस गुदगुदी को वह सबसे छुपा कर रखती थी। वह नही चाहती थी कि सबको उसकी शरारती ज़हनीयत का पता चले।
शमायरा की शादी में उसने दिन-रात एक कर दिया था। एक तरह से सारी तैयारियां ही उसके हाथ में थीं। दोनों ने मिल कर खूब शाॅपिगं की थी। उसके कपड़ो से लेकर चूड़ी, मेक अप, चप्पल सब कुछ। इन सभी तैयारियों में वह इस तरह उलझ गयी थी कि कभी-कभी तो उसे लगता कि जैसे ये शयायरा का नही उसी के निकाह पढ़ने की तैयारी हो रही हों।
तोहफे में देने के लिये शमायरा की अम्मी जान ने कुछ अच्छे और मँहगे कपड़े खरीदने को बोला था। जो उसके होने वाले शौहर के लिये थे। जिसकी जिम्मेदारी भी उन्हीं दोनों पर ही थी। इस बात को लेकर वह बहुत जोश में थी। उसने अपनी इस खुशी को सिर्फ फिज़ा के सामने ही जाहिर किया था, मगर अपनी अम्मी जान के सामने हमेशा उसे ख़जालत ही महसूस हुई। ऐसे मौंको पर वह उसे ही ढ़ूढती थी और वह भी बड़ी सफाई से शमायरा की तरफ से रजामंदी दे दिया करते थी।
जब भी शमायरा अपने होने वाले शौहर के लिये के लिये कुछ भी खरीदती थी मुस्कुरा उठती थी, उसे कई मर्तवा छूती थी। उसके तास्सुरात नशीले से हो जाते थे। शायद वह अपने सुनहरे मुस्तकबिल में खो जाती थी। ऐसे में अक्सर ऐसा हुआ था जब-जब वह उसके ख्याबों में खोई उसी वक्त उसके शौहर का फोन आ गया और फिर दोनों घण्टों बातें करते थे। हलाकिं उसके शौहर से हमारी कोई वकफियत नही थी बावजूद इसके वह हमारी भी बात करवा दिया करती थी। तब हमें बहुत डर लगता था और हम नमुतमईन से हो जाते थे। इस बात पर शमायरा जोर से हँसती और कहती- "मोहतरमा, इसमें डरने जैसी क्या बात है? हमारे शौहर आपके भी कुछ लगते हैं।" इस बात पर दोनों ही ठहाका लगा कर हँस देती थी।
क्रमश: