Prem Gali ati Sankari - 50 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | प्रेम गली अति साँकरी - 50

Featured Books
Categories
Share

प्रेम गली अति साँकरी - 50

50---

===========

उस दिन वाकई बड़ा मज़ा आया | पहले तो जितने भी दोस्त आए थे वे मुझ पर चिढ़ गए, मैं होस्ट थी और मैं ही लेट पहुंची थी फिर जो मस्ती की है कि लोगों को लगा वह किन्ही पागलों का ग्रुप है | मुझे लग रहा था ज़िंदगी में कभी पागल बनना भी बहुत जरूरी है | एक बच्चे जैसा मासूम और मस्त रहने में ही आम जीवन की बकवासबाज़ी को एक कोने में सरका सकते हैं !

उधर शीला दीदी और रतनी की मुसीबत चल ही रही थी | हाँ, एक बात थी----जब से पुलिस ने उनके रिश्तेदारों के सामने दो लाख रुपए की बात की थी तब से उन्होंने आस-पड़ौस में बकवास करनी बंद कर दी  थी लेकिन सबको गाँव ले जाने का उनका प्रैशर अभी  भी बना हुआ था जिसके बारे में शीला दीदी बड़ी चिंतित थीं उनके रंग-ढंग इतनी जल्दी कैसे बदल सकते थे जब वे मन में इतनी पक्की योजना ही बनाकर आए थे| 

जो भजन-कीर्तन उन लोगों को करवाने थे वो तो हो ही गए थे | जगन की तेरहवीं पर उन रिश्तेदारों ने सारे मुहल्ले को इक्कठा कर लिया और दावत दे डाली| क्या-क्या मिष्ठान और न जाने कितने व्यंजन बनवाए थे उन्होंने | उनकी जेब से पैसा तो जा नहीं रहा था सो बल्ले-बल्ले हो रही थी | बेचारी शीला दीदी और रतनी न कुछ कहने की, न ही सुनने की | छोटे ने शीला दीदी की परेशानी पापा को बतलाई तो पापा ने उन्हें फ़ोन किया कि चुप रहें, हाथी निकल गया है, पूँछ रह गई है, निकल जाने दें | लेकिन उन्हें अजीब लगा, वह कोई शादी-ब्याह का, खुशी का अवसर था क्या?उन्होंने शीला दीदी से कहा कि वे करने दें जो कर रहे हैं, खाने-पीने दें सबको और किसी न किसी तरह सबको विदा करें| क्या होगा ?ज़्यादा से ज़्यादा कुछ और अधिक खर्चा यही न! वे उन रिश्तेदारों को अपने घर से किसी भी तरह खदेड़ें और शांति से आकर अपने फ़्लैट में रहें| 

सब रीति-रिवाज़ हो चुके तब भी जाने के समय उन्होंने अपने-अपने पोटलों में खाने का कितना सामान मठरी, लड्डू, कचौरियाँ --सब बिना किसी से पूछे ही बाँध लिया और फिर से दोनों महिलाओं को घेर लिया| अब तक दिव्य पक चुका था| जब उसके सामने फिर से वे सब मिलकर गाना गाने लगे कि जगन के पीछे वे इस परिवार को संभालेंगे, ये उनकी जिम्मेदारी है | तब दिव्य से रहा ही नहीं गया ;

“आप लोग किस मिट्टी के बने हुए हैं, मुझे नहीं पता पर ये समझ लें कि अब हमारे ऊपर कृपा करनी छोड़ें और हमें अपने लिहाज़ से जीने दें---| ”

“और वो जो तेरे बाप ने हमसे पैसे उधार लिए थे, वो कौन देगा ?” एक ने कहा तो दूसरा भी पीछे कहाँ रहता?

“ये नई बात ---अचानक याद आ गया क्या आप लोगों को---?”शीला तो अब सचमुच जल भुन गई थी| 

“ले ---अचानक भी याद आता होगा ?हम तो इसलिए चुप थे कि उस मरे हुए की आत्मा की शांति हो जाए। बाद में बात करेंगे !!”

कितने बेशर्म लोग थे !एक तरफ़ परिवार को साथ ले जाने की बात करके यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि न जाने कितने अपने थे और अब साथ ले जाकर इनका पालन-पोषण करेंगे तो दूसरी ओर न जाने  अपने कौनसे उधार की बात कर रहे थे और जितने दिन यहाँ रहे थे उतने दिन जो उधम मचाया था, वह तो अलग ही नाटक था!

“ठीक है, मैं सर को बता देता हूँ---वो ही तो हमारे लिए पैसा लेने-देने का काम करते हैं| पता नहीं उस दिन भी पुलिस बिना पैसे के तो गई नहीं होगी---” दिव्य को उन सबका नाटक समझ तो पहले से ही आ रहा था लेकिन वह जान-बूझकर चुप था| अब उससे चुप नहीं रहा गया | 

अचानक सबको जैसे साँप सूँघ गया, सर का नाम सुनते ही उन्हें पुलिस वाले की बात याद आ गई| उन्हें लगा कि हो न हो वो ज़रूर फिर से पुलिस से बात करेंगे और फिर दो लाख की बात सामने आएगी ही आएगी| उन्होंने आपस में कुछ खुसर-फुसर की, अपना बोरिया-बिस्तर समेटा और एक के बाद एक निकल गए| 

शीला दीदी, रतनी और दोनों बच्चों ने लंबी साँस ली और भगवान का धन्यवाद किया| अगले दिन से उन्होंने संस्थान में आना शुरू कर दिया | 

शीला और रतनी के संस्थान में दिखाई देने से जैसे सूखे, ठहरे हुए से संस्थान में जान आ गई थी | जो सूनापन इतने लोगों के रहते हुए भी पसरा हुआ था, वह शनै:शनै: समाप्त होने लगा | एक दिन अच्छा सा समय देखकर फ़्लैट में पूजा रखवाई गई और सब लोग सड़क पार के मुहल्ले से इधर आ गए | अब वे उस सड़क पार के नहीं थे | 

सब काम ठीक तरह से चलने लगा –मतलब, काम तो पहले से चल ही रहा था लेकिन जैसे पेड़ तो बागीचे में खड़े हुए हों लेकिन पेड़ों में इतना पानी डालने के बावज़ूद भी सूखा पड़ा हुआ हो और अचानक खाद मिलने के कुछ दिनों बाद वे हरियाली में अपनी नवीन टहनियों में नवीन कोंपल लेकर मुस्कुराने लगें ऐसा ही कुछ बदलाव संस्थान में होने लगा था | पहले जैसी बयार भरने लगी और प्यार उस बयार से झरकर जैसे मुस्कान फैलाने लगा| 

दिव्य का काम चल रहा था, अब वह शाम को खुलकर रियाज़ करता | संस्थान में एक से एक गुरु थे और वह परिवार अब संस्थान का ही हिस्सा था| सबके चेहरों पर जैसे एक सुकून सा पसरने लगा था| डॉली-- जिसे डांस का इतना शौक था कि वह जब कभी उसे मौका मिलता शीशे के सामने खड़ी होकर नृत्य मुद्राएं बनाती थी| उसे कितनी बार ऐसे देखा गया था लेकिन एक ही था उनकी रुचियों को पिजरे में कैद करने वाला, अब उन सबको ही उनसे मुक्ति मिल गई थी | सच कहूँ, तो मुझे देखकर दुख भी होता था, कहा जाता है कि मनुष्य जन्म न जाने कितने जन्मों के बाद मिलता है उसमें आनंदित रहने की ज़रूरत है | एक बार गया आदमी वापिस नहीं आता लेकिन जगन ने परिवार के किसी भी सदस्य के मन में अपने प्रति कोई कोमल संवेदना नहीं छोड़ी थी | 

अम्मा के मस्तिष्क में न जाने कब से शांति दी के प्रेमी के बारे में बात करने की इच्छा थी | काफ़ी उम्र होने के बावज़ूद भी जितना सुख उन्हें मिल सके, क्या बुराई थी?ये जीवन एक बार गया तो गया | जगन के कारण वैसे ही सबके जीवन की यात्रा का अधिक भाग तय हो चुका था ---अब जितना भी हो, वह क्यों न आनंद में जीया जाए !

“शीला ! मैं समझती हूँ, अब तुम्हें देर नहीं करनी चाहिए और अब ---सॉरी, मुझे नाम नहीं मालूम लेकिन उन्हें बुलाकर अब बस घर बसा लो ---” अम्मा ने सबके सामने ही कहा | 

शीला दीदी के मुख पर जैसे गुलाब चटकने लगे, एक सुगंधित मलय से उनका मुख और तन-बदन जैसे अचानक ही स्फुरित होने लगा | 

“मेरा तो जो होगा, देखा जाएगा –लेकिन मैं भी आपसे और सर से कुछ बात करना चाहती थी---”उन्होंने कुछ संकोच से कहा | 

“हाँ, करो न क्या बात करना चाहती हो ---” पापा भी वहीं बैठे थे| 

“मैं आप लोगों से मिलवाकर ही कुछ करना चाहती हूँ---”शीला दीदी ने बड़े संकोच से कहा| 

“हाँ, तो बढ़ो न आगे ---” अम्मा ने कहा

“तुम सब जानते हो, हम तुम सबके साथ हैं---”

अम्मा-पापा दूसरों के बारे में कितने चिंतित रहते थे फिर मैं तो उनकी बेटी थी, मेरे बारे में कितना कुछ सोचते होंगे| कुछ दिन तो मैं भी जी लूँ अपनी ज़िंदगी जो बिना बात ही आधी-अधूरी सी निकलती जा रही  थी !

तीन/चार दिन में शीला दीदी अम्मा-पापा से किसी को मिलवाने लेकर आईं | 

“आइए---”उनका सबने स्वागत किया | शायद वे वही सज्जन होंगे जो शीला दीदी की प्रतीक्षा में अब तक बैठे थे, कमाल ही था, प्रेम के कई रूप देखने को मिल रहे थे| लेकिन अभी तक उनका परिचय नहीं हुआ था| स्वस्थ्य, सलीकेदार प्रौढ़ आदमी जो ‘वैल-मैनर्ड’ था | उन्होंने झुककर सबको नमस्ते की, एक दृष्टि में सबको अच्छा लग जाने वाला व्यक्ति था --लेकिन कौन ? क्या नाम?