soi takdeer ki malikayen - 54 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 54

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 54

54

 

जयकौर और सुभाष कम्मेआना के लिए घर से निकले और बस अड्डे पहुँच गये । वहाँ पहले से ही बीसेक लोग खङे थे पर न वे उनमें से किसी को पहचानते थे न कोई उन्हें पहचानता था । अगर एक भी उन्हें पहचानने वाला निकल आता तो अब तक उनके पास आकर हजारों सवाल पूछ चुका होता और इस समय जयकौर किसी के भी सवालों का उत्तर देने की मनस्थिति में नहीं थी ।
करीब दस मिनट के इंतजार के बाद कम्मेआना की बस आकर अड्डे पर लगी । भीङ में से पांच सात आदमी बस में चढे । सुभाष ने भी बस का हैंडल पकङा तभी जयकौर ने उसका हाथ पकङ कर पीछे खींच लिया । बस एक झटके के साथ धङधङाती हुई चली गई ।
सुभाष ने गुस्से से पैर पटका – तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया । ये बस क्यों निकाल दी तूने ।
जयकौर जोर से खिलखिला दी – क्योंकि मुझे इस बस में नहीं जाना था ।
जानती है , अगली बस एक घंटे से पहले आने वाली नहीं । अब एक घंटा यहीं धूप चढने तक खङी रहेगी और झक मारेगी ।
नहीं झक तो नहीं मारुंगी । वह देख , सामने से बस आ रही है ।
आ तो रही है पर यह तो कम्मेआना नहीं , कोटकपूरा मोगा जाएगी ।
हाँ मुझे कोटकपूरा ही जाना है । वहाँ कोटकपूरा में थोङा काम है । वह करने के बाद कम्मेआना चलेंगे ।
तब तक बस आकर लग गई थी । जयकौर बस में चढ गई और दो वाली सीट पर जा बैठी । सुभाष भी अनमने मन से बस में चढा । पंद्रह बीस मिनट बाद ही बस कोटकपूरा बस अड्डे पर जा लगी । दोनों बस से उतरे । सामने रिक्शा और आटो वाले सवारियों के इंतजार में खङे पुकार रहे थे । उन्हें अपनी ओर आता देख कर रिक्शा वाले आगे आ गये ।
चलो जी कहाँ चलेंगे । हम ले चलते हैं ।
जयकौर ने उन्हें गौर से देखा और एक अधेङ उम्र के रिक्शा वाले की ओर बढ गयी – सुनो भाई , यहाँ किसी अच्छे डाक्टर को , डाक्टरनी को जानते हो क्या ?
हाँ जी , कई हैं , डाक्टर बराङ हैं , डाक्टर कटारिया हैं .पवित्र कौर है डाक्टर सिन्हा है । आपको किसके यहाँ जाना हैं , बता दो । मैं पहुँचा दूँगा ।
जयकौर ने दो मिनट सोचा फिर बोली – चलो डाक्टर कटारिया के ही चलो ।
और वह रिक्शा में बैठ गयी ।
बहन जी , वहाँ तक के पूरे तीस रुपए लगेंगे ।
ठीक है , ले लेना ।
सुभाष अभी तक असमंजस में घिरा हीं खङा था ।
अब आ भी जा कि पंडित से मुहुर्त चढवा कर बैठेगा – जयकौर ने पुकारा तो वह उखङा हुआ रिक्शा में आ गया ।
हम अस्पताल डाक्टर के पास क्यों जा रहे हैं ? वहां कोई रिश्तेदार दाखिल है क्या ?
नहीं रिश्तेदार तो दाखिल नहीं है । मुझे खुद को दिखाना है ।
सुभाष बुरी तरह से चौंक गया – तू बीमार है ? क्या हुआ है तुझे ? तूने घर में क्यों नहीं बताया ?
जयकौर हँस पङी । सुभाष हैरान परेशान उसका मुँह देख रहा था । य़ह आज की जयकौर उसके लिए पहेली हो गई थी । तभी रिक्शा रेलवे रोड होते हुए शास्त्री मार्किट में दाखिल हो गई । सङक के दोनों ओर कपङे और रेडीमेड कपङों की दुकाने आ गई थी । जयकौर ने रिक्शा वाले को एक रेडीमेड कपङे की दुकान पर रुकने के लिए कहा और भतीजे भतीजियों के लिए कपङे खरीदने लगी ।
ओह तो जयकौर को अपने घर ले जाने के लिए सामान खरीदना था । अब तक जो भी उसने कहा , वह सब दिल्लगी थी , निरा मजाक । सुभाष की सांस में सांसें लौट आई । जयकौर ने चार ड्रैस पसंद की । बिल अदा किया और सामान लेकर फिर से रिक्शा पर सवार हो गई । चलो भाई । रिक्शा वाले ने रिक्शा डाक्टर कटारिया के क्लीनिक के सामने रोक दी । ये दोनों भी उतरे और रिक्शा का भाङा चुका कर भीतर पहुँचे । भीतर बहुत भीङ थी । कोई भी कुर्सी या बैंच खाली नहीं था । खङे होकर प्रतीक्षा करने के अलावा कोई चारा न था । करीब दो घंटे बाद उनकी बारी आई । रिसैपश्निस्ट ने पूछा , नाम बताओ – जयकौर
पति का नाम – जयकौर ने सुभाष की ओर देखा । वह बाहर सङक पर देख कर बढती धूप का अनुमान लगाने में व्यस्त था । उसने धीरे से कहा – सुभाष चंदर । रजिस्टर में नाम दर्ज हो गया ।
दो सौ रुपये निकालिए ।
जयकौर ने दो सौ रुपए चुकाए और पर्ची पकङ कर डाक्टर के कैबिन में घुस गयी ।
डाक्टर ने जांच करते हुए पूछा – माहवारी कब आई थी ? बंद हुए कितने महीने हो गये ?
यह तो याद नहीं ।
डाक्टर मुस्कराई । उसके पास गाँव की ऐसी कितनी ही औरतें हर रोज आती रहती थी जिनका जवाब यही होता था । उसने जाँच की । पर्ची पर कुछ लिखा और जयकौर से कहा – जाइए और अपने पति को बुला लाइए । जयकौर बाहर निकली तो सुभाष परेशान और चिंतित इधर उधर देख रहा था । जयकौर ने उसे बताया कि डाक्टर उसे भीतर बुला रही है तो और घबरा गया ।
भीतर जाते ही उसने हाथ जोङ कर डाक्टर से पूछा – डाक्टर साहब ये ठीक तो है न । इसे क्या हुआ है ।
डाक्टर हँस पङी – घबराइए मत । मिठाई खिलाइए । आपकी पत्नि माँ बनने वाली है । मेरे हिसाब से तेरह हफ्ते की प्रैगनैसी हो गई है । बाकी आप ये टैस्ट करवा लीजिए तो पक्का हो जाएगा ।
जयकोर बुरी तरह से चौकी पर डाक्टर न तो मुझे कोई उल्टी कभी आई , न चक्कर फिर आप ये कैसे कह सकते हो ?
उल्टी आना एक लक्षण हो सकता है पर हमेशा हर किसी को उल्टियाँ नहीं होती । आपने अभी बताया न कि सुबह आलस आता है , उठने को मन नहीं करता ये भी एक लक्षण है । बाकी टैस्ट रिपोर्ट आने दीजिए फिर पक्का कह सकेंगे ।
डाक्टर ने घंटी बजाई । एक नर्स और एक बीस बाइस साल का लङका अंदर दाखिल हुए – देखो इन्हें साथ ले जाएं और इनके सारे टैस्ट अच्छे से कर दें ।
नर्स ने बाजू पकङ कर जयकौर को उठाया और लैब में ले गई । उसके सारे टैस्ट हो गये ।
ये रिपोर्टें कब मिलेंगी ?
कल शाम तक ले लीजिएगा ।
कल शाम की जगह अगर परसों दोपहर में ले लें ।
कोई परेशानी नहीं । आप परसों किसी भी समय आकर रिपोर्टें ले लीजिएगा । डाक्टर आपको काफी बातें समझा देगी ।
जयकौर और सुभाष वहाँ से निकले और रिक्शा लेकर बस अड्डे पहुँचे । सामने फरीदकोट की बस लगी खङी थी । दोनों बस में चढे । एक सीट खाली थी । जयकौर को उस पर बैठा कर सुभाष पीछे के दरवाजे के पास खङा हो गया । बस चल पङी । दोनों अपने अपने तरीके से हालात का विश्लेषण कर रहे थे ।

 

बाकी फिर ...