Rani Chennamma in Hindi Motivational Stories by नीतू रिछारिया books and stories PDF | रानी चेन्नमा

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रानी चेन्नमा

भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने वाले शासको में रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) का नाम सबसे पहले लिया जाता है। सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से भी 33 वर्ष पूर्व सन 1824 में उन्होंने हडप निति के विरुद्ध अंग्रेजो से सशस्त्र संघर्ष किया था। संघर्ष में वह वीरगति को प्राप्त हुयी। रानी चेन्नमा भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थी | रानी चेन्नमा का जन्म सन 1778 में हुआ। वह काकतीय राजवंश से संबध रखती थी। चेन्नमा जैसी सुंदर पुत्री पाकर पिता पुल्ल्पा देसाई और माता पद्मावती की प्रसन्नता की सीमा न रही। रानी चेन्नमा बहुत ही सुंदर और रूपवान थी इसलिए माता-पिता उन्हें इसी नाम से पुकारते थे ।

संस्कारशील माता पिता की सन्तान भी अच्छे संस्कारों से युक्त होती है। चेनम्मा के माता -पिता ने अपनी पुत्री को भारतीय संस्कृति की महानता एवं गौरव का परिचय दिया और सदाचार की शिक्षा भी दी। बालिका चेन्नमा ने उर्दू , मराठी, कन्नड़ एवं संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया तथा शस्त्र विद्या में भी महारत पायी। बाल्यकाल से ही उनमे वीरता कूट-कूट कर भरी थी | जब भी वह अपने अश्व पर सवार हो, निकलती , तो लोग दूर से ही पहचान लेते। जब चेन्नमा ने युवावस्था में पदापर्ण किया। उनके रूप एवं शौर्य की चर्चा दूर दूर तक फ़ैली थी।

बेलगाँव से कुछ ही दूरी पर कित्तूर नामक राज्य था | कित्तूर राज्य का वैभव किसी से छिपा न था। ऊँचे दुर्गो एवं सम्पन्न ग्रामो से घिरे राज्य में धन-धान्य का कोई अभाव नही था | प्रजा अपने महाराज मल्लसर्ज से प्रसन्न और संतुष्ट थी। बचपन से ही घुड़सवारी , तलवारबाजी ,तीरंदाजी में विशेष रूचि रखने वाली रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) की शादी बेलगाँव के कित्तूर राजघराने में हुयी। चेनम्मा (Rani Chennamma) का विवाह महाराजा मल्लसर्ज के साथ हुआ तो ऐसा लगने लगा मानो “सोने पे सुहागा”। उनके पहली पत्नी का नाम था रुद्र्म्मा | चेन्नमा ने सहपत्नी भाव त्याग कर उन्हें अपनी बड़ी बहन बना लिया। दोनों रानियों के साथ महाराजा मल्लसर्ज शान्तिपूर्वक रहने लगे। रुद्र्म्मा एवं चेन्नमा दोनों ही पति से भरपूर स्नेह और सम्मान पाती थी।

कालान्तर में दोनों रानियों ने एक एक पुत्र को जन्म दिया | प्रजा ने जी भर खुशियाँ मनाई | कैदियों को मुक्त कर दिया गया | निर्धनों में धन बांटा गया और विद्वानों को महाराज द्वारा पारितोषिक प्रदान किये गये | पुरे नगर में कई दिन तक उल्लास का वातावरण छाया रहा | प्रत्येक पुरवासी को ऐसा लगता था मानो उसी के घर में उत्सव हो किन्तु परमात्मा ने सारी खुशियाँ पल भर में बहा दी | काल के एक कुटिल प्रहार ने रानी चेन्नमा के पुत्र को उनसे छीन लिया | हंसते खेलते राज्य को जैसे किसी की बुरी नजर लग गयी | महाराज मल्लसर्ज ने कित्तूर को सर्वसम्पन्न वैभवशाली राज्य बनाने का स्वप्न पाल रखा था परन्तु उनका यह स्वप्न उनके जीवनकाल में पूर्ण नही हो पाया | राजा पटवर्द्धन ने उनके साथ विश्वासघात किया जिसके फलस्वरूप वह बंदी बना लिए गये | बंदी जीवन में ही महाराजा का प्राणांत हो गया |

चेन्नमा (Rani Chennamma) के जीवन में प्रकृति ने कई बार क्रूर मजाक किया | पहले पति का निधन हो गया | कुछ साल बाद इकलौते पुत्र का निधन हो गया और वह अपनी माँ को अंग्रेजो से लड़ने के लिए अकेला छोड़ गया | रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) अपने पुत्र एवं पति को खोकर बिल्कुल अकेली हो गयी थी | इस शोक से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने महाराज की बड़ी रानी के पुत्र शिवलिंग रूद्रसर्ज को गोद ले लिया था | वही बालक उनकी समस्त अभिलाषाओ का केंद्रबिंदु बन गया | वह जानती थी कि शिवलिंग ही कित्तूर का भावी शासक है अत: उन्होंने उसकी शिक्षा -दीक्षा एवं शस्त्र अभ्यास का सारा भार स्वयं सम्भाल लिया | इसी गुरुतर कर्तव्यभाव ने उनकी समस्त पीडाए एवं शोक हर लिए | अब उनकी एक ही इच्छा शेष थी “शिवलिंग अपने राज्य का सफलतापूर्वक संचालन कर सके”

अंग्रेजो की निति Doctrine of Lapse के तहत दत्तक पुत्रो को राज करने का अधिकार नही था | ऐसी स्थिति आने पर अंग्रेज उस राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लेते थे | 1857 के आन्दोलन में भी इस निति की प्रमुख भूमिका थी और अंग्रेजो की इस निति सहित विभिन्न नीतियों का विरोध करते हुए कई रजवाड़ो ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था | सब कुछ ठीक चल रहा था किन्तु नियति ने एक ही क्रूर झटके में सब मटियामेट कर दिया | उन दिनों अंग्रेजो का शासन था | पुरे भारत में लार्ड डलहौजी का नाम एक आतंक की तरह गूंज रहा था | वह देशी रियासतों को अंग्रेजी राज्य में मिला रहा था | विलय की इस प्रक्रिया में गोद लिए पुत्रो को उत्तराधिकारी नही माना जाता | ऐसी अवस्था में कित्तूर राज्य पर दृष्टि पड़ना स्वाभाविक ही था। सो उसने सरकार की ओर से सुचना भिजवा दी | जिससे स्पष्ट रूप में लिखा था “सरकार आपके दत्तक पुत्र , शिवलिंग रूद्रसर्ज को राज्य का उत्तराधिकारी नही मानती | आप शीघ्र ही कित्तूर को सरकार को सौंपने का प्रबंध करे”

धारवाड़ के कलेक्टर ने रानी चेनम्मा को इस विषय में सूचित‌ की। तो पल भर को तो वह सुन्न रह गयी | फिर अपने को सम्भाला और जोश भरे स्वर में बोली “कित्तूर का राज्य , मेरे पुत्र शिवलिंग का है। इसे मै किसी दशा में अंग्रेजो को नही सौंपूंगी, चाहे मेरे प्राण ही क्यों न चले जाए। शायद अंग्रेज हमारे मानसिक एवं शारीरिक बल से परिचित नही | हम अपनी आखिरी साँस तक उनसे टक्कर लेंगे”। रानी चेन्नमा के दरबार में ग्ज्वीर तथा चेन्नावासप्पा जैसे वीर योद्धा थे उन्होंने भी रानी का अनुमोदन किया | कित्तूर राज्य के दरबार का एक भी व्यक्ति राज्य सौंपने के पक्ष में न था। अंग्रेजो तक यह समाचार पहुचा तो उन्होंने क्रोधित होकर युद्ध की तैयारिया आरम्भ कर दी।

रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) भी शांत नही बैठी । उन्होंने अपने भाषणों के माध्यम से कित्तूर की प्रजा को आगामी खतरे से सावधान किया एवं सहयोग के लिए प्रार्थना की | रानी होती हुयी भी वह गाँव देहात घूमी और इस आन्दोलन के कारण लोग जागृत हुए। जब रानी चेन्नमा गरजदार स्वर में कहती “मेरे रहते कोई कित्तूर में प्रवेश नही कर सकता ….” तो लोगो का देशप्रेम हिलोरे लेने लगता | प्रजा धन एकत्रित कर रानी चेन्नमा को सहायता देने लगी। सेना के लिए धन एवं जन दोनों ही की आवश्यता थी।राज्य के कितने ही युवक स्वेच्छा से सेना में भर्ती हो गये। रानी के नेतृत्व में एक मजबूत सेना का गठन किया जा चूका था। रानी साहिबा प्रात:काल जल्दी उठ जाती। राज्य के विभिन्न गाँवों में दौरे करने के साथ साथ वह सैनिको के शस्त्र अभ्यास पर भी ध्यान देती। उनके कुशल नेतृत्व में सेना , शीघ्र ही अंग्रेजो से युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गयी। सेना के पास कई आधुनिक शस्त्र भी जमा हो गये।

अंग्रेज को भी इस बात की भनक लग गयी थी। वे रानी की गतिविधियों से अनजान नही थे। शीघ्र ही कलेक्टर थेंकरे भारी सेना सहित आ पंहुचा। रानी ने अपने सिपाहियों का मनोबल बढाने के लिए उन्हें स्वयं ही संबोधित किया और युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। रानी की एक आवाज सुनकर ही उसकी सेना उत्साह के साथ रणभूमि में आ डटी। रानी चेनम्मा (Rani Chennamma) के ओजस्वी शब्दों ने सेना पर जादुई प्रभाव डाला। प्रथम दिन भयंकर युद्ध हुआ जिसमे अंग्रेजो की सेना ने मुंह की खाई किन्तु अंग्रेज सरकार के पास सेना की कमी नही थी। अगले ही दिन , मैदान में अंग्रेज पुन: आ डटे। रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) भी वीरता की जीती जागती प्रतिमूर्ति थी। उन्होंने दुगुने उत्साह के साथ युद्ध किया और अंग्रेज परास्त हुए। लेकिन इस युद्ध के बाद रानी की सेना थक चुकी थी

अधिकांशत: सैनिक मारे जा चुके थे। अंग्रेज जब तीसरी बार सेना लेकर मैदान में उतरे तो रानी की सेना उनका सामना न कर सकी। पर रानी ने साहस नही छोड़ा मुट्ठी भर सैनिको के साथ भी अंग्रेजो ने मुकाबला किया लेकिन रानी चेन्नमा को बंदी बना लिया गया।

Dcotrine of Lapse के अलावा रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) का अंग्रेजो की कर निति को लेकर विरोध था और उन्होंने मुखर आवाज दी। रानी चेन्नमा पहली महिलाओं में से थी जिन्होंने अनावशक हस्तेक्षेप और कर संग्रह प्रणाली को लेकर अंग्रेजो का विरोध किया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष के पहले ही रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) ने युद्ध में अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए थे। अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध में रानी चेन्नमा ने अपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया। हालांकि उन्हें युद्ध में कामयाबी नही मिली और उन्हें कैद कर लिया गया। उन्हें कैदकर बेलहोंगल किले में रखा गया जहां उनकी 21 फरवरी 1829 को मौत हो गयी। रानी चेन्नमा (Rani Chennamma) की वीरता और साहस की वजह से देश के कई जगहों पर विशेष सम्मान दिया गया।उनके सम्मान में संसद भवन में उनकी प्रतिमा लगाई गयी।