Settlement in Hindi Moral Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | समझौता

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समझौता




कांट्रेक्ट मैरेज यानी संविदा विवाह कुछ निश्चित शर्तो के आपसी समझ बुझ का बंधन जिसे विवाह कहना न्यायोचित नही होगा ।।क्योकी विवाह दो जिस्म का एक जान हमेशा के लिये हो जाना जीवन के हर मोड़ सुख दुख में साथ निभाना विवाह का सही मतलब है समाजिक सबंधो और सांस्कारो में समयानुसार परिवर्तन होते रहते है स्वयंवर विवाह ,प्रेम विवाह, राक्षसी विवाह ,परम्परागत विवाह स्त्री और पुरुष के संबंध समाज निर्माण की महत्वपूर्ण कड़ी होती है ।।विश्व के हर धर्म समाज की अपनी सामाजिक धार्मिक व्यवस्था है जो उसके धार्मिक मान्यताओं पर आधारित होती है ।।आज कल तो लिविंग रिलेशनशिप को भी कानून वैवाहिक दर्जा प्राप्त है समय के अनुसार बदलते समाज का एक नया उदाहरण है ।।भारत के धर्मग्रंथों में संविदा शर्तो पर आधारित या कांट्रेक्ट मैरेज का कोई साक्ष्य नही है विवाह को जन्म जन्मांतर का रिश्ता माना जाता है और जीवन के अंत तक निर्वहन किया जाता है और विवाह एक परम्परागत पवित्र बंधन के रूप में स्वीकार किया जाता है ।।आधुनिक समय मे युवा परम्परागत सांस्कारो की मार्यादा में बंधने से ऊबन महसूस कर रहा है जिसके कारण लिविंग रिलेशनशिप की नई सामाजिक संबंधों की परंपरा चल पड़ी है सम्भव है दहेज प्रथा और तेजी से हो रहे विकास या पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हो इस्लस्मिक समाज मे सरियत विवाह की जो परिभाषा या परम्परा है वह संविदा वैवाहिक संबंध को प्रमाणित करता है कुछ निश्चित धनराशि की आपसी समझ बुझ से संबधों में शर्तो के अधीन किया जाता है जिसे मेहर की रकम कहते है मेहर का एक अर्थ औरत भी है यानी कीमत।हिन्दू धर्म मे एक ऐसा उदाहरण है जिसे कॉन्ट्रेक्ट मैरिज या संविदा विवाह कहा जा सकता है शांतनु का गंगा से विवाह निश्चित शर्तो पर हुआ था वह शर्त भी कन्या पक्ष यानी गंगा की थी गंगा ने शांतनु से विवाह करने से पूर्व यह शर्त रखी थी कि जब भी कोई संतान जन्म लेगी मैं उसे कुछ भी करू कोई सवाल नही पूछने की शर्त महाराजा शान्तनु के समक्ष रखी और यह भी कहा कि जब भी इस बाबत प्रश्न करोगे वह छोड़ कर चली जायेगी और हुआ भी ऐसा ही था शान्तनु और गंगा से जो संतान होती गंगा उंसे गंगा में प्रवाहित कर देती और शान्तनु महाराज कोई प्रश्न नही करते जब महाराज शान्तनु के सब्र का बांध टूटा और उन्होंने गंगा से सवाल किया तब गंगा शान्तनु महाराज को छोड़ कर चली गयी।।
महाराज शान्तनु का दूसरा विवाह भी
सत्यवती की शर्तों पर एक समझौता ही था जिसके कारण भीष्म को जीवन पर्यन्त अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी।।
ठाकुर उम्मेद सिंह गांव के संभ्रांत और प्रतिष्टित व्यक्ति थे उनके एक बेटा उदय सिंह और पुत्री मान्या थी ठाकुर साहब के पास अच्छी खासी खेती थी खासा रसूख था निर्विरोध ग्राम प्रधान चुने जाते उनके समक्ष उनकी पीढ़ी या युवा पीढ़ी का कोई व्यक्ति ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने की हिम्मत नही करता ठाकुर साहब धर्म भीरू और मर्यादित आचरण के अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे खानपुर गांव में कभी कोई समस्या आती ठाकुर साहव का न्याय निर्णय सर्व मान्य होता ठाकुर उम्मेद सिंह सुबह सुबह नित्य कर्म से निबृत्त होकर अपने आलीशान हवेली के बरामदे में बैठ हुये थे तभी गांव का ही पल्टन भागता दौड़ा आया बोला ठाकुर साहब की दुहाई हो ठाकुर साहब बोले क्या बात है पल्टन क्यो इतना परेशान हो पल्टन बोला साहब गज़ब हो गया ठाकुर उम्मेद सिंह बोले क्या हुआ पल्टन बोला साहब हमारी बेटी पांच माह से पेट से है गांव का ही शोभन का लड़का सत्यम रूबी बिटिया को प्यार वार के झांसे में फंसा लिया और अब कहता है कि वियाह हम ना करब ठाकुर साहब और पल्टन की वार्ता अकेले एव गोपनीय होरही थी तब तक शोभन भी भागा दौड़ा आया और देखा कि पल्टन पहले से मौजूद है तो उसका मथा ठनका वह बोला ठाकुर साहब पल्टनवा आपके पहिले ही घुमाय चुका होई अब हमरे कहे खातिर कुछो नाही बचा है फ़िरो हम आपन बात जरूर आपसे बताउब ठाकुर उम्मेद सिंह ने कड़कती आवाज में बोले जल्दी बोल शोभन बोला मालिक पल्टनवा के बेटी बहुत जुलुम किहे बा हमरे बेटा सत्यम के जाने कौने जाल में फ़साय दिहे बा कि ऊ ससुरा ना कुछ खात पियत बा ना कुछ बोलत बा जब वोकर माई मुनिया सत्यमवा के बारे में पता लागाये तो पता चला कि पल्टनवा के बेटी रुबिया सत्यमवा पर दबाव बानाए बा कि वोकरे कोख मे सत्यमवा के पाप पली रहा बा ठाकुर उम्मेद सिंह बड़े धैर्य से बोले कि कल तुम दोनों अपने बेटे बेटियों को लेकर आओ गांव में किसी को कानो कान खबर नही लगनी चाहिये शोभन और पल्टन अपने अपने घर चले गए ठाकुर उम्मेद सिह पूरे दिन कार्य मे व्यस्त रहे जब शाम को सोने के लिये गये तो उनके शयन कक्ष में एक तरफ मीनाक्षी का पलंग था जिसे देखकर अपने पलंग पर लेट गए और हवेली की छत को देखने लगे हवेली की छत जिसे कोई फ़िल्म स्क्रीन हो और ठाकुर साहब अपने ही बेटे उदय का अतीत को देख रहे हो ठाकुर उदय सिंह ठाकुर उम्मेद सिंह की बड़ी संतान थे पड़े लाड़ प्यारे में उनका लालन पालन परिवश हुआ था उनकी शिक्षा के लिये सभी सुविधाएं दे रखी थी इस स्वतंत्रता के साथ कि उदय सिंह जीवन मे जो बनना चाहे बने उदय सिंह भी पिता के अरमानों पर खरे उतरते और उनका सर फक्र से ऊंचा करते पढ़ते समय उदय सिंह को शाम्भवी से प्यार हो गया शाम्भवी बेहद खूबसूरत और बिंदास अंदाज़ की आधुनिक सोच समझ की लड़की थी उसके पिता शंकर सिंह रैना भारतीय सेना में ब्रिगेडियर थे शाम्भवी का एक भाई सिंधु सिंह था जो मदान्ध और क्रूर स्वभाव का नौजवान था वह धर्म कर्म मर्यादा सिर्फ दौलत ताकत को मानता जिसके कारण उसकी संगत उसीके सोच समझ के लोंगो के साथ थी ।।शाम्भवी और उदय दोनों ही मेडिकल की शिक्षा पूर्ण किया एंट्रेन्सशिप किया और मेडिकल की उच्च शिक्षा के लिये साथ साथ दाखिला लिया उदय और शाम्भवी एक दूसरे से बेहद प्यार करते मेडिकल कालेज में शाम्बवी और उदय की जोड़ी मशहूर थी ।एक दिन उदय और शाम्भवी शाम को एक साथ बैठे थे शाम्भवी बोली डॉ साहब जीवन मे प्यार सिर्फ दो जिस्मो का मिलना नही होता बल्कि दो आत्माओं का समन्वयक सहर्ष समायोजन होता है जिसे किसी धर्म देश जाती की सीमाओं में नही कैद किया जा सकता प्रेम परमात्मा की सत्यता का एहसास है प्रेम जीवन की सच्चाई जीवन का सत्यार्थ है डा उदय एव ठाकुर दोनों की हैसियत से हमे वचन दो की तुम मुझे किसी भी स्थिति में धोखा नही दोगे उदय बिना कुछ कहे शाम्बवी का हाथ पकड़ा और उठाते हुये बोला उठो डॉ शाम्भवी मेरे साथ चलो शाम्भवी उठी और डॉ उदय के साथ चल दी दोनों पास के शिव मंदिर पहुंचे जो मेडिकल कालेज परिसर में ही था वहां पहुंचकर डा उदय बोला मैं आज सृष्टिं के सभी देवी देवताओं आदि शक्तियों दिशाओं अविनि आकाश को साक्षी मानकर बचन देता हूँ कि मैं किन्ही भी परिस्थितियों में तुम्हारा साथ नही छोडूंगा और शिवलिंग पर ज्यो ही माथा रखा बिना किसी चोट के उसके सर से रक्त स्राव होने लगा वह सीधे उठा और बोला ठाकुर खानदान की विरासत की औलाद हूँ आज मैं तुम्हारा मांग अपने रक्त से भरता हूँ शाम्भवी को लगा कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही डॉ उदय को जज्बाती जख्म दे दिया दोनों लौटकर अपने अपने होस्टल चले गए पी जी कोर्स दोनों ने पूरा कर लिया।।शाम्भवी का भाई सिंधु सिंह बाहुबली तो था ही राजनीति में बहुत आगे जाना चाहता था उसने चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर लिया राजनीतिक पार्टियों से टिकट के लिये बहुत भाग दौड़ कर लिया लेकिन उसकी सामाजिक स्तिति ऐसी थी कि कोई उंसे टिकट देने की हिम्मत नही करता अंत मे उसकी मुलाकात एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया शीलभद्र से हुई जो कभी सिंधु की बहन शाम्भवी के साथ पढ़ता था एक बार शाम्भवी ने भी उंसे चांटे मारते हुये जलील किया था उंसे उसके आचरण के लिये कॉलेज से निकल दिया गया था और राजनीतिक हैसियत बन गया था उसने सिंधु सिंह की मनसा भांप लिया कि सिन्धुसिंह राजनीतिक कीड़े से संक्रमित है और मेहनत सब्र से नही बल्कि तिकड़म से राज नेता बनाना चाहता है तो उसने सिन्धुसिंह से बेबाक कहा भाई ठाकुर साहब आपको शायद नही पाता मैं और डॉ शाम्भवी एक साथ पढ़ते थे और हम एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते है कल तुम डॉ शाम्भवी को साथ लेकर आओ साथ बैठते है
सिन्धुघर गया और शाम्भवी को सारी बाते बताई शाम्बवी तो पहले ही शीलभद्र का नाम सुनकर बहुत नाराज हुई लेकिन भाई सिंधु सिंह के बहुत समझाने पर उसके भविष्य के लिये साथ चलने को तैयार हुई दूसरे दिन सिन्धु औऱ शाम्भवी सीधे शीलभद्र से मिलने उसकी पार्टी मुख्यालय पहुंचे सिन्धुसिंह और शाम्भवी को देखते ही
शीलभद्र बोला क्या बात आज तो मेरी पार्टी मुख्यालय में दिन में चाँद निकला है हमारी पार्टी अबकी चुनाव में निश्चित बहुत बेहतर प्रदर्शन करेगी।। शीलभद्र ने अपनी योजना के अनुसार सिन्धुसिंह को कुछ देर के लिये बहाना बनाकर बाहर भेज दिया और शाम्भवी के साथ जबरन अपने साथियों के साथ दुष्कर्म किया और जब तक सिन्धुसिंह सिंह लौटा तब उसने बहन शाम्भवी की दशा देखकर बिफर गया और क्रोधित होकर ज्यो ही अपनी ताकत का हवाला दिया और धमकियां देनी शुरू किया तब शीलभद्र बोला कि बरखुरदार चैन से बैठो और उसने बताया कि जो भी डॉ शाम्भवी के साथ हुआ है उंसे कुछ ही लोग जानते है क्या चाहते हो कल दुनियां जाने इतना सुनते ही सिन्धुसिंह के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई शीलभद्र बोला कि सिन्धुसिंह जाओ चुनाव लड़ो भूल जाओ कुछ हुआ है डॉ शाम्भवी की दुनियां उझड चुकी थी वह कुछ बोल सकने की स्थिति में नही थी सिन्धुसिंह सिंह और डा शाम्भवी किसी तरह से किसी अपराधी की तरह लौट कर घर आये डा शाम्भवी गुमसुम रहने लगी मा ऋतु के लाख पूछना चाहा पर उसने कुछ नही बताया इधर सिन्धुसिंह चुनाव जीत कर अच्छे राजनीतिक कद पद पर पहुंच चुका था डॉ शाम्भवी मेडिकल कॉलेज लौट आयी और उसने डॉ उदय से सारी सच्चाई बताई डॉ उदय ने कहा मैं बड़ा बेशर्म आशिक हूँ मैं तुम्हें किसी भी स्थित में ना त्यागू तुमने वचन लिया है तो चिंता मत करो डॉ शाम्भवी कुछ नही बोली पता नही उसकी शोखियां कहां गायब हो चुकी थी एकाएक एक दिन शाम्भवी को पता चला कि वह माँ बनने बनने वाली है मेडिकल कालेज के चिकित्सकों ने उसकी जांच की और बताया की शाम्बवी की कोख में पल रहे बच्चे का एबॉर्शन नही हो सकता है यदि ऐसा किया गया तो डॉ शाम्भवी की जान नही बचाई जा सकती है और इस बच्चे को जन्म देने के बाद शाम्भवी फिर कभी माँ नही बन सकती यह सच्चाई डा उदय को मालूम थीं अब डॉ उदय अपने पिता उम्मेद सिंह से सारी सच्चाई बताई और बोला पिता जी मैं शाम्भवी से शादी करूँगा पिता उम्मेद सिंह ने बेटे को बहुत समझाया मगर बेटे की ज़िद्द के सामने झुक गए और शादी के लिये राजी हो गए उन्होंने बेटे को एक सुझाव दिया बोले बेटे पढ़े लिखे व्यक्ति जो भी कार्य करते है सोच समझ कर और हर दशा में निर्बिघ्न कार्य का निर्णय लेते है तुम शीलभद्र को सादर बुलाओ मैं कुछ बात करना चाहता हूँ डा उदय ने शीलभद्र को बुलाया और उम्मेद सिंह ने ब्रिग्रेडियर शंकर सिंह रैना और उनकी पत्नी ऋतु को सभी के एकत्र होने पर उम्मेद सिंह ने पूरी घटनाक्रम को ब्रिग्रेडियर साहब को बताया जिन्हें सच्चाई की जानकारी नही थी ब्रिग्रेडियर आबे से बाहर शीलभद्र को गोली से भून डालने पर आमादा थे उम्मेद और डॉ उदय के बहुत समझने पर उन्होंने खुद को शांत किया उम्मेद सिंह ने शीलभद्र से कहा कि तुमने जो किया उसके लिये ईश्वर जो सजा देगा वह ईश्वर जाने अब तुम्हे हम लोंगो को लिखित तौर पर आश्वस्त करना होगा कि तुम कभी किसी प्रकार से शाम्भवी के कोख में पल रहे बच्चे पर अपना अधिकार नही प्रस्तुत करोगे साथ ही साथ शाम्भवी के साथ जो भी तुमने दुर्व्यवहार किया है उसके साक्ष्य जो तुमने बना रँखे है उंसे नष्ट करके सदाके लिये शाम्भवी की जिंदगी से निकल जाओगे शीलभद्र बोला हमें शाम्भवी द्वारा किये अपमान का बदला चुकाना था चुका दिया अब हमें शाम्भवी से कुछ भी लेना देना नहीं है मैं तैयार हुँ पिता उम्मेद सिंह ने पुत्र डॉ उदय सिंह से कहा बेटे तुम शाम्भवी से कोर्ट मैरेज के लिये आवेदन करो और शीलभद्र से बोले मिस्टर लीडर तुम सारी करतूतों के लिये हम लोंगो की शर्तों के अनुसार अपने तरफ से माफीनामा और समझौता शर्त जो हमने बताया है दाखिल करो हम लोग तुम्हे माफ करने के लिये और शाम्बवी को स्वीकार करने हेतु माननीय न्यायालय से गुहार करेंगे जस्टिस मुकुल का न्यायालय आज इस बिचित्र समझौते पर न्यायालय की प्रतिक्रिया जानने के लिये खचाखच भरा था जस्टिस मुकुल ने अपने नीर्णय मे लिखा आज मेरे न्यायिक जीवन का सर्वश्रेष्ठ मामला है जहाँ मानवीय दानवीय शक्तियों के बीच एक ऐसे समझौते की बुनियाद रखने जा रहा है जिससे मानवता लज़्ज़ित भी है और गौर्यान्वित भी शीलभद्र के कृत्य से मानवता शर्मशार है तो उम्मेद डॉ उदय,ब्रिग्रेडियर शंकर सिंह रैना ,मीनाक्षी और ऋतु से मानवता गौर्यान्वित भी आज ईश्वर भी न्याय के इस निर्णय का साक्षी है कि दो प्रेम करने वालो को जीवन मे एक दानवीय की क्रूरता की शर्त समझौते के दायरे में विवाह जैसे पवित्र बंधन का निर्वहन करना होगा ऐसे महान मानवीय मुल्यों को न्याय और न्यायलय नमन करता है उम्मेद ने बेटे डा उदय की शादी बड़े धूम धाम से डॉ शाम्भवी से कर दिया छत की दीवार पर बेटे के अतीत की पूरी तस्बीर एक जीवंत मूवी की तरह उम्मेद के सामने गुजर गई कब सबेरा हुआ पता ही नही चला।।
सुबह पल्टन शोभन रूबी और सत्यम को लेकर उम्मेद सिंह की हवेली पर आए उम्मेद सिंह ने रुबी और सत्यम कि जुबानी सुनी और फिर पल्टन और शोभन की और एक समझौता तैयार करवाया और पल्टन एव शोभन के साथ साथ रूबी सत्यम के भी सहमति लिये और दोनो का विवाह ग्राम पंचायत द्वारा कराया और स्वय कन्या दान किया उम्मेद सिंह को अपने बेटे डॉ उदय और शाम्भवी के समझौते के संबंध की टिश स्प्ष्ट महसूस हो रही थी
तभी नन्हा सा प्यारा सा उम्मेद का पौत्र कुंदन उनकी गोद मे आकर बैठा
बोला बाबा जी कहां खो जाते हो मैँ तुम्हारे पास हूँ।।

कहानीकार---नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश