काउंटडाउन शुरू हो चुका था. किसी भी तरह मुझे वो बॉक्स खोजना ही था. अपने भाई की जिंदगी के लिए.
मैं दौड़ती हुई सीधे चौथे फ्लोर पर जा पहुंची. वहां कोई भी रूम लॉक्ड नहीं था. सो मैं आराम से कमरे के अंदर जा घुसी. अंदर सैकड़ों की संख्या में पेंटिंग्स, मूर्तियां, एक से बढ़कर एक बेहतरीन टेराकोटा पड़े हुए थे. सभी पेंटिंग्स एक से बढ़कर एक खूबसूरत लग रही थी मानो अभी बोल पड़ेंगी. हर तस्वीर और मूर्ति की आंखें मानो मुझे घूर रही थी. मुझे बहुत अनकम्फर्टेबल फील होने लगा था. मुझे उनकी नजरें चुभती हुई सी महसूस हो रही थी. 3 मिनट ऑलरेडी बर्बाद हो चुके थे सो मैंने उन तस्वीरों और आर्ट वर्क्स पर से अपना ध्यान हटाया और उसपर फोकस किया जिसके लिए मैं यहां आयी थी. वो ब्लैक बॉक्स..! कहाँ हो सकता है वो. मैंने उसे हर जगह खोजना शुरू किया. दराज में, आलमारी में, मूर्तियों के पीछे, पेंटिंग के पीछे, हर जगह मैंने उसे खोजा. मगर नतीजा सिफर. 8 मिनट बीत चुके थे. मैं अब हिम्मत हारने लगी थी. तभी मेरे पीछे से एक आवाज आई, और मेरा दिल मारे घबराहट के मानो उछल के हाथ में आ गया.
-दी..
मैंने पीछे मुड़कर देखा. आशीष वहां खड़ा मुझे चुपचाप देख रहा था. मैंने झट से दरवाजा बंद किया और उसे कसकर गले से लगा लिया. मेरी आँखों में आंसू आ गए थे.
मगर उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और खुद को मुझसे छुड़ाते हुए मेरा हाथ पकड़ कर दरवाजे के बाहर लेकर आ गया. वहां जमीन पर एक कोने में एक अजीब सा बॉक्स रखा हुआ था. किसी मैटीरियल के बजाय यह उंगलियों से बना हुआ था. इंसानी उंगलियो से बना हुआ बॉक्स. उसके ऊपर मोम की परत चढ़ाई गयी थी. तो ये है ब्लैक बॉक्स? अब मुझे रोहन की कही बात याद आयी. बॉक्स वाकई खुली जगह पर ही रखा गया था. उसे छुपाने की कोई कोशिश नहीं की गयी थी.
"तुम जानते हो ये क्या है?"
आशीष ने न में सिर हिला दिया और धीमी आवाज में बोला, नहीं मैं बस उस खूनी किताब को जानता हूँ.
"क्या .." मुझे समझ नहीं आया वो क्या कह रहा है.
तभी रोहन ने मुझे जोर से आवाज लगाई, अवनी जल्दी करो... देर हो रही है.
मैंने फुर्ती से पलट कर आशीष का चेहरा अपने हाथों में भरते हुए कहा, "आशु तुम बिल्कुल मत घबराना , मैं तुम्हें यहां से बहुत जल्दी लेकर जाऊंगी." कहते हुए मैंने उसके माथे पर किस किया और नीचे की तरफ बढ़ गयी.
आशीष (पीछे से धीरे से बोला) - अंकल कोवालकी बहुत बड़ी तैयारी कर रहे हैं दी...
"किस चीज की तैयारी? " मैंने कन्फ्यूजन से पूछा.
आशीष (शून्य में ताकते हुए) - आपके साथ आखिरी खेल खेलने की ...खेल...खौफ का ! आप प्लीज यहां से भाग जाओ. कहते हुए उसने मुझसे मुंह फेर लिया.
मेरी आँखों में आंसू आ गए. मगर इस वक़्त यहां से निकलना ज्यादा जरूरी था. सो मैंने खुद को मजबूत किया और उस बॉक्स को अपने कपड़ों में छुपाकर दौड़ती हुई नीचे आ गयी.
जैसे ही मैं नीचे पहुंची रोहन ने मेरा हाथ पकड़ा और हमने बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. हम दोनों जितना हो सके उतनी तेजी से दौड़ रहे थे. कुछ ही देर में हम दोनों वापस उस पुराने मकान के सामने खड़े थे. अंदर पहुंचकर हमने देखा. रचना के साथ वहां अर्श और निक्की भी मौजूद थे. हमें वापस आया देखकर रचना के चेहरे पर चमक आ गयी.
"क्या यही वो बॉक्स है?" मैंने वो बॉक्स उसे देकर बुरी तरह हांफते हुए पूछा.
रचना (खुशी से भरकर) - हां ...यही तो है वो बॉक्स जो मुझे यहां से आजादी दिलाएगा. यकीन नहीं होता इतने सालों बाद आखिरकार मैं भी आजाद हो जाऊंगी.
रोहन उसे इतना खुश देखकर मुस्कुराने लगा.
रोहन - इसे खोलो तो सही.
रचना बॉक्स हाथ में लेते हुए - हां...
बॉक्स में खोलने के लिए कोई जगह ही नहीं थी. उसने उसे जोर से दबाया और ऊपरी हिस्से में बनी उंगलियां चटक कर टूटने लग गयी. सच बताऊं तो मेरा यह सब देखकर उल्टी करने का मन हो रहा था. साथ ही मेरी धड़कने भी सुपर फास्ट स्पीड में चल रही थी. न जाने अगले पल क्या होने वाला था. बॉक्स के टूटते ही अंदर कुछ पाउडर जैसा कुछ दिखने लगा था. अलग अलग पैकेट में ढेर सारे पाउडर उसमें भरे पड़े थे.
"ये क्या है?" मैंने हैरानी से अंदर देखते हुए पूछा.
रोहन - राख..इंसानी शरीर की राख है ये.
"तुम्हें पता है इनमें से तुम्हारा वाला कौन सा है?" मैंने रचना की तरफ देखते हुए पूछा. जो कन्फ्यूजन से सब पैकेट्स को देख रही थी.
रचना के चेहरे पर अब एक अजीब सी ही मुस्कुराहट आ गयी थी. मानो उसने कुछ डिसाइड कर लिया हो. मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश की मगर देर हो चुकी थी. उसने पास पड़े टेबल पर से एक चाकू उठाया और एक साथ सारे पैकेट पर एक लंबा कट मार दिया.
"रचना नो...किसी को भी नहीं पता अगर तुमने गलत पैकेट खोला तो उसका अंजाम क्या होगा." मैं दहशत से भरकर चिल्लाई. बाकी सब भी ये देखकर सकते में आ गए थे.
पैकेट्स में भरा पाउडर भरभराकर रचना के चारों तरफ बिखर गया. और इसके साथ ही वो भी फर्श पर गिर गयी.
रचना (गुस्से में चिल्लाते हुए) - नहीं ये नही हो सकता. उसने हमें धोखा दिया है.
कुछ ही पलों पहले जहां वो खुशी से चहक रही थी अब ये कहते कहते हताशा साफ साफ उसकी आवाज में झलक रहा था. रोहन ने आगे बढ़कर उसे उठाने की कोशिश की. तभी हमारे कानों में एक धीमी गुर्राहट से भरा स्वर टकराया. हमने चौंक कर इधर उधर देखा. आवाज ऊपर वाले कमरे से आ रही थी. अगले ही पल वहां तरह तरह की आवाजें गूँजनी शुरू हो गयी, बच्चो, बूढ़ों, आदमी, औरत यहां तक कि जानवरों और चिड़ियों की भी बेतहाशा चीखने की आवाजें वहां गूँजनी शुरू हो गयी. उनकी आवाज में बेहद दर्द और गुस्सा भरा था. हम सबने अपने कानों पर हाथ रख लिया. रचना ने उठकर एक नजर हम सब पर डाली और निराशा से बोली, मैं कभी भी ये जगह छोड़कर नहीं जा पाऊंगी ..है ना?
अचानक उसने गर्दन झुका ली और कसकर अपनी मुट्ठियाँ भींच ली. उसके चेहरे और हाथों पर नसें उभरने लगी थी. उसके दांत बड़े और खतरनाक तरीके से बाहर निकलने लगे. जब उसने अपना चेहरा उठाकर हम सबको देखा तो उसका यह रूप देखकर हम सब घबराकर कुछ कदम पीछे हट गए.
रोहन (घबराहट में चिल्लाते हुए) - हो क्या रहा है यहां??
"मुझे नहीं मालूम. मैं बस इतना जानती हूँ कि जो भी है सही नहीं है, भागो यहां से." मैंने चिल्लाते हुए कहा.
मगर तभी अर्श के जोर से चीखने की आवाज आई. हम सबका ध्यान उधर गया . वहां 3 बच्चे खड़े थे जिन्होंने अपने चेहरे पर अजीब से डरावने मास्क लगा रखे थे.
ठीक उसी समय किसी ने मेरे दोनो हाथों को पीछे करते हुए बुरी तरह कस दिया और मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया. शायद मेरे पूरे चेहरे को कवर कर दिया गया था. और फिर मेरे कानों से एक जानी पहचानी सी आवाज टकराई.
- तो खेल शुरू करें? खेल ...खौफ का!
To be continued...