Khel Khauff Ka - 13 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 13

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खेल खौफ का - 13

जब मेरी आँख खुली तो मैंने खुद को अपने कमरे में बिस्तर पर पाया. मैंने इधर उधर नजरें घुमा कर देखा. मैं अपने घर में थी. अपने पुराने घर में. मगर मैं यहां कैसे आयी. अभी मैं सोच ही रही थी कि मेरे रूम का दरवाजा खुला और मां के साथ पापा अंदर आ गए.

मां (टीवी ऑफ करते हुए) - फिर टीवी ऑन छोड़ दिया. केखोन शिखबे एई मेइटि... देखा लाइट भी ऑन है.

"मां ...पापा...आप दोनों कहां चले गए थे." मैंने उनको आवाज लगाई मगर वो तो जैसे मुझे सुन ही नहीं रहे थे. मां पापा के पास जाते हुए.. क्या हमें पुलिस को फोन कर देना चाहिए?

पापा - तुसी फिकर न करो.. सब चंगा होगा. असी साफ साफ मना कर देंगे ओहनु. जे फिर भी न माने ते पुलिस नू बुला लेवेंगे.

इसके बाद दोनों मेरे कमरे से बाहर निकल गए. मैं पीछे से लगातार उनको आवाज देती रही मगर सब बेकार. मैं तेजी से उनके पीछे दौड़ी. मगर लिविंग रूम से आती आवाजों को सुनकर रुक गयी. मैंने धीरे से बाहर झांका.

बाहर एक आदमी खड़ा था. वही आदमी जिसे मैंने उस रात अपने घर से निकलते देखा था. जिस रात मां पापा का मर्डर हुआ था.

पापा - प्लीज...आप उनसे बात कीजिये. हम जरूर कोई दूसरा रास्ता निकाल लेंगे.

तभी कमरे में एक और आदमी आया और बोला मिस्टर अथारस कोवालकी से मेरी बात हो गयी है. काम खत्म करो.

पहले वाले आदमी ने अपनी गन उठायी और पापा के माथे के ठीक बीचोबीच गोली मार दी. मैं चिल्ला उठी. मगर किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया. गोली की आवाज सुनकर माँ दौड़ती हुई वहां आयी और पापा को बेजान जमीन पर पड़ा देखकर उन्होंने अपना फोन निकाला और तेजी से बेड रूम की तरफ दौड़ गयी. वो आदमी और मैं भी उनके पीछे भागी. मां ने बेड के पीछे छुपने की कोशिश की मगर उसने उन्हें भी गोली मार दी. अपनी आंखों के सामने इसतरह अपने माँ पापा को मरते देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा सिर फट जाएगा.

-मिस्टर कोवालकी ने कहा है इस पुरानी वसीयत को यहीं कहीं छुपा देने . कहते हुए उसने दूसरे की तरफ एक पुराना से पेपर बढ़ाया. जिसे लेकर उसने वहीं एक आलमारी में रख दिया. ठीक उसी समय पुलिस ने घर में एंट्री की और चारों तरफ से फायरिंग होने लगी. तेज आवाज से परेशान होकर मैं अपने कानों पर हाथ रखकर चिल्ला उठी और एक झटके से उठकर बैठ गयी.

मेरे ठीक सामने रोहन बैठा था. मुझे होश में आया देखकर उसने रचना को आवाज लगाई. मैंने इधर उधर देखा मैं उस पुराने मकान में थी. रोहन ने मुझे उठकर बैठनेमें मदद करते हुए कहा, मुझे तो लगा था कि तुम ...तुम ठीक तो हो?
उसने मुझे देखते हुए बिल्कुल सीरियस होकर पूछा.

"क्या हुआ था मुझे?" मैंने अपना सिर पकड़े हुए पूछा.

रोहन - रचना ही तुम्हें यहां लेकर आई है. उसने बताया तुम किसी मुसीबत में थी.

मैंने रोहन के पीछे खड़ी रचना पर नजर डाली. वो बिल्कुल शांत खड़ी थी.

"क्या जानती हो तुम इन सब चीजों के बारे में? क्या सचमुच मेरा भाई मर चुका है? मैं कुछ नहीं जानती मुझे बस मेरा भाई वापस चाहिए.." मैं रचना को झकझोरते हुए चिल्लाई और वहीं बैठकर फूट फूट कर रोने लगी.

रोहन (मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए ) - डोंट वरी अवनी... वो तुम्हारी हेल्प करेगी.

रचना (रोहन की तरफ देखते हुए) - क्या तुम थोड़ी देर के लिए बाहर जा सकते हो?

रचना मुझे लेकर उस मकान की चौथी मंजिल पर पहुंची. वहां एक से बढ़कर एक खूबसूरत पेंटिंग्स दीवारों पर टंगी थी. किसी मे फैमिली थी तो किसी में बच्चे , बूढ़े या सोल्जर्स. सभी पेंटिंग इतनी खूबसूरत थी कि लग रहा था मानो अभी बोल उठेंगी. रचना एक पुराने टेबल के पास जाकर रुकी. मगर मैं अब तक उन पेंटिंग्स को ही देख रही थी. एक तस्वीर पर जाकर मीय नजर ठहर गयीं. ये एक 35 से 40 साल की औरत की तस्वीर थी. उस औरत का चेहरा काफी हद तक मां से मिल रहा था.

मैंने रचना की तरफ देखा वो हाथ में एक मैग्निफाइंग ग्लास लिए खड़ी थी.

"ये तस्वीर तुमने बनाई है?" मैंने उससे पूछा.

अचानक से रचना का चेहरा पीला पड़ गया, नहीं ये तस्वीर मेरे पापा ने बनाई थी.

मुझे जैसे झटका लगा. ये अंकल कोवालकी का पुराना घर है और रचना यहां रहती है. तो क्या वही उनकी बेटी है? मैंने उसे घूरा मानो पूछ रही हूँ क्या मैं सही सोच रही हूँ?

उसने एक गहरी सांस ली और उस मैग्निफाइंग ग्लास को उस पेंटिंग पर घुमाया. और मुझे जैसे जिंदगी का सबसे बड़ा सदमा लगा.

"ये...ये...ये आंखें तो असली हैं.." मैं दहशत से भरकर चीखी.

सही पहचाना. ये तुम्हारी माँ की ही आंखें हैं. मुझे यकीन नहीं हो रहा था. रचना ने आगे कहा, मेरे पापा आर्ट वर्क्स के पीछे पूरी तरह पागल थे. और वो अक्सर जिंदा चीजों को तस्वीरों में शामिल करते थे ताकि उनकी बनाई तस्वीरें जिंदा हो सकें.

अंकल आंटी को ये बात पता थी इसलिए उन्होंने तुम्हारा मुझसे मिलना जुलना बंद करवा दिया. मैं घर छोड़कर भाग गई थी. मगर उन्होंने मुझे वापस खोज लिया और अपने साथ यहां ले आये.

"तुम शुरू से मुझे जानती थी. इनफैक्ट ये सब कुछ जानती थी. फिर भी मुझे कुछ बताया क्यों नहीं? " मैं चिल्लाई.

रचना शांति से अपनी जगह खड़ी रही - क्योंकि तुम सच सुनने के लिए तैयार नहीं थी.

"कौन सा सच? ये कि तुम्हारे पापा एक साइको हैं?" मैंने उसपर तंज कसा.

रचना - नहीं..ये सच कि मैं मर चुकी हूं.

मेरा दिमाग काम करना बंद कर चुका था.

"तुम...तुम मर चुकी हो?" मैंने हकलाते हुए पूछा.

रचना (मेरे हाथ पकड़ते हुए)- पापा को तुम्हारी आत्मा चाहिए थी. जिससे वो और ताकतवर बन सकें. अवनी सिर्फ तुम ही हो जो हम सबकी मदद कर सकती है.

"तुम सबकी?" मैंने घबराते हुए अपना हाथ उससे छुड़ा लिया.

इससे पहले की वो कुछ जवाब देती. पेंटिंग में हलचल होने लगी. अचानक उसमें से एक हाथ बाहर आया. फिर पैर, और उसके बाद पूरी की पूरी बॉडी बाहर आ गयी.

"मां..." मेरे मुंह से बस इतना ही निकला. उनका पूरा चेहरा नीला पड़ चुका था. और वो एकटक शून्य में देखे जा रही थी.

"हो क्या रहा है यहां?" मैं रचना की तरफ देखते हुए चिल्लाई.

रचना (तेज आवाज में जल्दी से बोली) - अवनी भागो यहां से. इसी वक्त कोवालकी मेंशन में जाओ. उन्होंने वही कहीं एक ब्लैक बॉक्स छुपा रखा है. कुछ भी करके ढूंढो उसे और यहां लेकर आओ. इस काम में रोहन तुम्हारी मदद करेगा. एक बार तुम वो बॉक्स यहां ले आयी तो मैं वादा करती हूँ मैं तुम्हें तुम्हारा भाई वापस लाकर दूंगी.

मैंने दीवार पर नजर डाली. एक एक करके सब तस्वीरों में से लोग निकलकर बाहर आने लगे. कुछ देर पहले तक जो तस्वीरें बेहद खूबसूरत लग रही थी. अब वो खौफ का ऐसा नजारा दिखा रही थी कि किसी भी धड़कन बंद हो जाये. मैं फौरन नीचे की तरफ दौड़ी. अचानक मुझे महसूस हुआ मेरे सिर के ऊपर दीवार पर कुछ रेंग रहा है. मैंने ऊपर की तरफ देखा तो मेरी रूह कांप गयी. एक औरत वहां दीवार पर उल्टी लटक कर चल रही थी. उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया मगर इससे पहले कि वो मुझे पकड़ पाती रोहन ने फौरन मुझे एक झटके से दूसरी तरफ खींच लिया.

To be continued...