Khel Khauff Ka - 12 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 12

Featured Books
Categories
Share

खेल खौफ का - 12

मैं वहां से सीधे अपने रूम में पहुंची और लिया को वीडियो कॉल कर दिया. मैंने उसे आज अब तक यहां जो कुछ भी हुआ था एक एक चीज बताई. ये भी कोवालकी अंकल कितने अजीब हैं. गार्डन में मैंने कितने अजीब से क्रिएचर को देखा और ये भी कि आज मैंने एक भटकती आत्मा को देखा.

लिया - डोंट वरी अवनी सब ठीक हो जाएगा. अभी भले ही तुम्हें ये सब बुरा लग रहा हो मगर कौन जानता है इन सबमें ही तुम्हारी भलाई छिपी हो...सो ज्यादा मत सोचो.

मुझे आज भी ऐसा ही लग रहा था कि लिया को मेरी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. आखिर कौन सी ऐसी दोस्त होगी जो किसी भटकती आत्मा के दिखने में आपकी अच्छाई खोज कर निकालेगी?

सुनयना (तेज आवाज में ) - अवनी...शोना ...डिनर रेडी है नीचे आ जाओ.

"ओके लिया...मैं तुमसे बाद में बात करूंगी. मासी मां बुला रही हैं."

लिया (मुस्कुरा कर ) - ओके...

मैं नीचे आयी तो देखा सुनयना मासी वहां खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी.

"मासी आज इतनी जल्दी डिनर के लिए कैसे बुला लिया आपने? रोज तो शाम 7 बजे डिनर का टाइम होता था. अभी तो सिर्फ साढ़े 6 बजे हैं." मैंने चेयर खींचते हुए पूछा.

सुनयना - हां मैंने आज थोड़ा जल्दी खाना बना लिया था.

मैंने नोटिस किया उनके हाथ में एक बड़ा सा पेपर पीस था और वो मुझे आंखों के इशारे से उसकी तरफ देखने को कह रही थीं. मैंने पेपर पर नजर डाली वहां बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था, "भाग जाओ यहां से और दुबारा कभी वापस मत आना."

मेरी आँखें हैरानी से फैल गईं. जैसे ही उन्होंने अंकल कोवालकी के कदमों की आहट सुनी फौरन उस कागज को मोड़कर अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया और मुस्कुराती हुई मेरी तरफ देखकर बोली, आई होप यू अंडर स्टैंड!

वो किचन में चली गयी. अंकल कोवालकी ने वहां आकर सस्पीशीयस सी नजर मुझपर डाली और अपनी चेयर खींचते हुए सीधा सवाल पूछा, क्या कह रही थी तुम्हारी मासी मां?

"उम्म...वो बस ...पूछ रही थी कि आज उन्होंने पास्ता में एक्स्ट्रा सॉस डाल दिया है. तो...मुझे कोई प्रॉब्लम तो नहीं है ना." मैंने जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करते हुए सफाई से झूठ बोला.

उन्होंने मेरे चेहरे को ऐसे देखा मानो उसे पढ़ने की कोशिश कर रहे हों. इससे पहले की वो मेरा झूठ पकड़ लें मैंने खुद पर से उनका ध्यान हटाने के लिए पूछा, "आपने आशीष को कहीं देखा है? वो नहीं आया डिनर के लिए."

अंकल कोवालकी ( मुझे उसी तरह घूरते हुए) - वो अपने रूम में खेल रहा है.

"ओके...मैं उसे लेकर आती हूँ." कहते हुए मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी.

ऊपर आशीष के कमरे में पहुंचकर मैंने देखा वो अपनी टॉय कार के साथ खेल रहा था. उसने बस एक टीशर्ट और हॉफ पैंट पेह रखा था. मुझे हैरानी हुई. घर में रूम हीटर की वजह से गर्माहट जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि वो ऐसे कपड़े पहन कर रहे. मैंने जाकर उसे पीछे से हग करते हुए प्यार से कहा, "मेरा छोटा सा बेबी... भूख नहीं लगी है? चलो आज मैं तुम्हें अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी."

मगर उसने मेरा हाथ झटक दिया. और वापस खेलने लगा. मैं उसके इस बर्ताव से अब अंदर ही अंदर टूटने लगी थी.

"आशीष मैं जानती हूँ अब तुम मुझसे बात भी नहीं करना चाहते...तुम्हें शायद अपनी दी से ज्यादा इन खिलौनों से और अंकल कोवालकी से प्यार है. पर फिर भी कम से कम हम साथ में डिनर तो कर सकते हैं ना." मैंने बुझी हुई सी आवाज में उससे कहा.

मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश की मगर उसने गुस्से में मेरा हाथ झटक दिया.

अब मैंने उसे आगे बढ़कर गोद में उठा लिया. मगर वो मुझसे छूटने के लिए बुरी तरह छटपटाने लगा.

आशीष (चिल्लाते हुए) - छोड़ो मुझे.

"लेकिन क्यों? क्या हो क्या गया है तुम्हें आशीष? "

आशीष - क्योंकि मैं कहीं नहीं जा सकता. अंकल कोवालकी ने मुझसे कहा है कि मैं कहीं भी नहीं जा सकता. मुझे यहीं रहना होगा.
ये कहते हुए उसने खुद को छुड़ा लिया और मेरी तरफ अपनी पीठ फेर ली. मेरा हाथ उसकी पीठ पर लगा और उसकी टीशर्ट पर कुछ खून के धब्बे उभरने लगे.

"आशीष तुम्हें चोट लगी है?" मैंने घबराते हुए पूछा. और तुरंत उसकी टीशर्ट उतार दी. आशीष की पीठ पर एक दो नहीं कई बड़े बड़े जख्मों के निशान थे. मैंने घबरा कर अपने मुंह पर हाथ रख लिया. मेरी आंखों से आंसू लुढ़क कर गालों पर आने लगे. मैंने आशीष को अपनी तरफ घुमाया. और ये देखकर मेरी बची खुची हिम्मत भी जवाब देने लग गयी कि उसकी छाती पर भी वैसे ही बड़े बड़े जख्म भरे हुए थे. मानो किसी ने बड़े से चाकू से उसपर कई बार वार किए हों. मुझे हैरानी हो रही थी इतने बड़े जख्मों के बावजूद वो आखिर इतना शांत कैसे है?

"आशीष ...ये सब कैसे हुआ?" मैंने रोते हुए उसे हिलाकर पूछा. मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया. अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ. मैंने उसे गोद में उठाया और फौरन नीचे की तरफ दौड़ गयी. पूरे रास्ते आशीष एक ही बात दोहराता रहा. कि वो यहां से बाहर नहीं जा सकता मगर मैंने उसकी एक भी बात नहीं सुनी. लकिली अंकल कोवालकी नीचे मौजूद नहीं थे और सुनयना मासी भी किचन में थीं. सो मैं आसानी से आशीष को लेकर घर से बाहर निकल गयी. अब यहां बस एक ही इंसान था जिससे मैं मदद की उम्मीद कर सकती थी. रचना!

मगर जैसे ही मैने गार्डन के बाहर अपना कदम रखा आशीष का हाथ मेरे हाथ पर कस गया.

आशीष - मैंने कहा था न मैं यहां से बाहर नहीं जा सकता...

इसके साथ ही वो जैसे हवा में गायब हो गया. मैं पागलों की तरह चारों तरफ देखकर जोर जोर से उसका नाम लेकर उसे पुकारने लगी. अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था. मैं वहीं घुटनों के बल गिर पड़ी और जोर जोर से रोने लगी. काश कि ये भी बस एक डरवाना सपना हो. अभी मेरी आँख खुल जाए और सब कुछ पहले जैसा हो जाये. मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ.

मैं जब रोते रोते थक गई तो अंदर जाने के लिए वापस पलटी और मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा. आशीष वहीं दरवाजे पर सुनयना मासी के साथ खड़ा था. मैं पागलों की तरह उसकी तरफ दौड़ी. मगर सुनयना मासी ने मुझे बीच में ही रोक लिया और मुझे गले से लगाकर रोते हुए बोली, आई एक सॉरी शोना, मुझे लगा था अथारस बदल गए हैं. तुम दोनों के आ जाने के बाद हम एज अ पैरेंट्स एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे. मगर मैं गलत थी. अवनी...बच्चे प्लीज भाग जाओ यहां से वरना ये आदमी तुम्हें भी मार डालेगा...

"मैं आशु को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली हूँ." मैंने लगभग गुस्से में उन्हें खुद से दूर करते हुए कहा. और तेजी से आशीष की तरफ बढ़ी मगर मासी ने मुझे पीछे की तरफ धक्का दे दिया और तेजी से दरवाजे के अंदर चली गयी.

सुनयना (भर्राई हुई आवाज मे) - आई एम सॉरी शोना...मगर आशु मर चुका है. प्लीज भाग जाओ यहां से.

कहते हुए उन्होंने तेजी से दरवाजा बंद कर लिया. मगर मैं बेतहाशा दरवाजा पीटते हुए आशु का नाम पुकारने लगी.

मुझे अपने पीछे अचानक कुछ टूटने की बेहद तेज आवाज आई. मैंने हड़बड़ा कर पीछे मुड़कर देखा तो मेरी जान हलक में आ गयी. 2 जलती हुई सी आंखें मुझे घूर रही थी. आस पास काफी अंधेरा हो चुका था और धुंध भी फैलने लगी थी. मेरे कदम लडखडाये और सब कुछ अंधेरे में डूब गया.

To be continued...