Khel Khauff Ka - 11 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 11

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खेल खौफ का - 11

हम सब को छुपना था और रोहन हमें खोजने वाला था. जैसे ही रोहन ने काउंटिंग शुरू की सब छुपने के लिए दौड़े. मैं भी वापस उसी रूम में आ गयी जहां मुझे वो सोल्जर की आत्मा दिखी थी. और पता है मैंने क्या किया? मैंने वो ब्लैंकेट उठाया और उसे बिल्कुल ऐसे कुर्सी पर एक कुशन के सहारे रख दिया मानों वहां कोई बैठा हो. फिर मैं झट से जाकर कमरे के दरवाजे के पीछे छुप गयी. मैंने सोचा जैसे ही रोहन कमरे में आकर उस ब्लैंकेट को हटाने की कोशिश करेगा, मैं फौरन यहां से निकल कर बाहर वाले रूम में जाकर छुप जाऊंगी और उसके यहां से जाते ही वापस उसी रूम में अपनी जगह पर छुप जाऊंगी और इस तरह वो मुझे कभी खोज नहीं पायेगा. हालांकि वो इतना क्यूट दिखता था कि मेरा उसको गेम में हराने के बिल्कुल भी मन नहीं था. मगर चूंकि मुझे इन सब पर अपना एक अच्छा इम्प्रेशन बनाना था सो मैं इसके लिए भी पूरी तरह तैयार थी.

थोड़ी देर बाद रोहन के आने की आवाज आई और मैं सांस रोके दीवार से चिपक गयी. मगर मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि रोहन उस रूम में दाखिल ही दरवाजे के पीछे की तरफ देखते हुए हुआ. मानों उसे पहले से पता हो कि मैं यहां छुपी हुई हूँ.

रोहन (अपनी एक आंख दबाते हुए) - यू आर आउट... इतनी भी आसान जगह मत छुपो की गेम बोरिंग हो जाये.

मैं मुंह फाड़े उसे देखती ही रह गयी. और वो बाकी लोगो को खोजने दूसरे रूम की तरफ बढ़ गया.

कुछ ही देर बाद सब लोग वापस लिविंग रूम में इकट्ठा हो गए. वो सभी एक दूसरे से हंसी मजाक कर रहे थे. मगर मैं बिल्कुल चुपचाप खड़ी थी.

रचना (मुझे साइड हग देते हुए) - हेय...डोंट बी सैड. बहुत जल्दी तुम भी खेलना सीख जाओगी.
बाकी सब उसकी इस बात पर हंस दिए. मगर मैं चिढ़ गयी. मुझे शायद पहली बार किसी ने किसी भी गेम में इतनी बुरी तरह हराया था और ये बात मुझे चुभ रही थी.

रोहन - कोई बात नहीं अवनी आई प्रॉमिस...तुम भी बहुत जल्दी हमारी तरह ही इस गेम में बेस्ट हो जाओगी.

रचना - ओके अवनी इट्स योर टर्न नाउ..

अब मैंने काउंट करना शुरू किया. मैंने बस 5 तक ही काउंट किया था कि सबकी आवजें आनी बंद भी हो गयी. आखिर ये लोग इतनी जल्दी छुप कैसे जाते हैं. मैंने 20 तक काउंट किया और उन्हें खोजने निकल गयी. 10 मिनट तक मैं उनको पूरे घर में खोजती रही. बेड के नीचे, आलमारी के पीछे, फर्नीचर के पीछे, दीवारों के पीछे बनी जगहों और यहां तक कि डस्टबिन के अंदर और घर के बाहर तक जाकर मैंने उन्हें खोज लिया मगर किसी का कहीं अता पता नहीं था. मानो सब के सब हवा में घुल गए थे. हारकर मैं वापस लिविंग रूम में आ गयी. और तेज आवाज में बोली,

"मैं हार मानती हूँ. बाहर आ जाओ."

एक पल भी नहीं बीता था कि मेरे पीछे से उन सबके हंसने की आवाज आने लगी. मानो वो वहीं कहीं छुपे बैठे थे. और अवाज़ लगते ही मेरे सामने आ गए.

"तुम लोग कैसे कर लेते हो ऐसा." मैंने हैरानी और परेशानी दोनों के मिले जुले भाव के साथ पूछा.

रचना (अपनी एक आंख दबाते हुए) - एक्चुअली हमारे पास चैंपियंस को हराने की बहुत सारी ट्रिक्स हैं.

उसकी बात पर निक्की और रोहन भी हँसने लगे.

रोहन(मेरी तरफ देखते हुए) - यार अवनी इतना भी बुरा नहीं खेलती है...

मगर मैं अब तक बुरी तरह गुस्सा हो चुकी थी. शायद पहली बार हारने की खीझ ज्यादा थी. मैं गुस्से में तेज कदमों के साथ बाहर निकल गयी. रचना पीछे से मुझे आवाज लगाती रह गयी मगर मैंने अनसुना कर दिया.

मैं अभी कुछ ही दूर गयी थी कि रोहन दौड़ता हुआ मेरे पास आ पहुंचा और मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया.

"ये क्या हरकत है? रास्ता छोड़ो मेरा." मैंने झल्लाते हुए कहा.

रोहन (मेरी आँखों में देखते हुए) - तुम अब भी नहीं समझी अवनी? रचना बस तुम्हारी हेल्प करने की कोशिश कर रही है.

"रियली?? और किस चीज में हेल्प कर रही है वो मेरी? मुझे एक सिली से गेम का चैंपियन बनाने में?" मैंने रोहन की तरफ देखते हुए तंज कसा.

रोहन ने एक बार ठंढी सांस भरते हुए नीचे देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोला, नहीं...ये सिर्फ गेम नहीं उससे कहीं आगे की चीज है. तुम्हें पता भी नहीं है अवनी तुम कितनी बड़ी मुसीबत में फंसी हुई हो. और रचना बस तुम्हें उसे बाहर निकलने में मदद कर रही है. टेक केयर..

कहता हुआ वो वापस उस मकान की तरफ दौड़ गया. मैं उलझन से उसे जाते हुए देखती रह गयी.

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मैं डोर ओपन करके अंदर जाने ही वाली थी कि मुझे सुनयना मासी के गुस्से से भरी आवाज सुनाई दी और मैं अंदर जाते जाते रुक गयी.

सुनयना - ना...आमी एई जात्या किछु न कोरबे..आई थॉट यू आर चेंज्ड... बट नो...यू आर नॉट.

अंकल कोवालकी (ठंडेपन से) - मैं अब बहुत आगे निकल चुका हूँ सुनयना. अब वापस कदम खींचना मेरे बस में नहीं है. यू हैव टू डू इट.

मैंने इंतजार किया मगर इसके बाद कोई और आवाज नहीं आयी तो मैं धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर आ गयी. अंकल कोवालकी दरवाजे के ठीक सामने खड़े थे.

अंकल कोवालकी (तंज कसते हुए) - जरा देखो तो कौन आया है...

और मेरी जैसे धड़कनें रुक गयी. मैं चुपचाप उनको देख रही थी. अंकल कोवालकी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचते हुए दरवाजे से बाहर ले आये. उन्होंने लगभग पटक कर दरवाजा बंद कर दिया और चलते चलते ही मुझसे पूछा, आज कहाँ गयी थी तुम?

"म..मैं यहीं थी...बस थोड़ा टहलने चली गयी थी यहीं आस पास में.." मैंने अपनी घबराहट को छुपाते हुए कहा.

उन्होंने एक झटके से मुझे खींचकर अपने करीब कर लिया. अब मुश्किल से हमारे बीच कुछ इंच का फासला बचा था. उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली और हवा में जैसे कुछ सूंघते हुए से बोले, आई कैन स्मेल द लाइज इन द एयर...

मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. मैं तब तक सांस रोके खड़ी रही जब तक उन्होंने मुझे पीछे की तरफ धक्का देते हुए छोड़ नहीं दिया.

अंकल कोवालकी ने अपनी उंगली से मेरी तरफ पॉइंट करते हुए वार्निंग देने वाले अंदाज में कहा - डोंट इवेन ट्राई टू लीव दिस हाउस ...अदर वाइज तुम खुद अपने लिए बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी कर लोगी.

इतना कहकर उन्होंने वापस से दरवाजा ओपन कर दिया और ऐसे मुस्कुराते हुए मुझे लेकर घर के अंदर चले गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

To be continued...