Khel Khauff Ka - 10 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 10

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खेल खौफ का - 10

अगले दिन जब मासी मां और अंकल दोनों बिजी थे मैं चुपके से रचना के पास चली गयी. मैंने आशीष को भी साथ लेने की कोशिश की मगर वो बेहद अजीब बर्ताव कर रहा था. न तो उसने मुझसे कोई बात की और न ही मेरी किसी बात का जवाब दिया. बस चुपचाप खड़े होकर मुझे एकटक देखता रहा. जैसे ही अंकल कोवालकी हमारे रूम में आये वो चुपचाप सर झुकाकर वहां से चला गया.

जब मैं उस पुराने मकान में पहुंची. रचना अब भी उसी कुर्सी पर बैठी थी.

"तुम ठीक हो?"

मुझे देख कर मुस्कुराई.

"बाकी सब कहाँ है?" मैंने हैरानी से चारों तरफ देखते हुए पूछा.

रचना - मैंने उन्हें आने से मना कर दिया है.

"लेकिन क्यों?"

रचना - क्योंकि मैं सिर्फ तुम्हारे साथ खेलना चाहती थी. देखें तो सही हममें से कौन जीतती है.

"ऑफकोर्स मैं ही जीतूंगी. आशीष के साथ रहते हुए मैं लुका छुपी की चैंपियन बन चुकी हूं." मैं हंसी.


रचना - लेट्स सी..

कहते हुए उसने सामने का दरवाजा खोल दिया. अंदर सामान लगभग बिखरा पड़ा था. जहां तहां फर्नीचर पड़े हुए थे जिनमें दीमक लगे हुए थे. पर्दे बुरी तरह गंदे होकर फट चुके थे. जहां तहां मकड़ी के जाले लटक रहे थे. चूहों और छिपकलियों का तो जैसे ये अपना घर था. सभी कमर खुलते ही यहां वहां दौड़ने लगे.

रचना (उदासी भरी आवाज में) - बेशक तुम्हें ये बहुत खूबसूरत न लगे. मगर यही मेरा घर है. यहां 2 फ्लोर हैं. पहला फ्लोर लेवल वन है अगर तुम इसमें पास हो जाती हो तो तुम पहले और दूसरे दोनो फ्लोर पर छुप सकोगी.

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आखिर ये लड़की ऐसे घर में अकेले क्यों रह रही थी. इसके पैरेंट्स कहाँ हैं? क्या उन्हें रचना की फिक्र नहीं होती होगी?

रचना ने मुझे अंदर की तरफ धक्का दिया और खुद दीवार की तरफ मुह करके काउंटिंग शुरू कर दी. मैं फौरन अंदर घुस गई. बाहर के कमरे में छुपने के लिए ज्यादा जगह नहीं थी सो मैं दूसरे रूम की तरफ बढ़ी. जो कि किचन था. वहां एक टूटी हुई टेबल, कुर्सी, खाने का सामान, एक बहुत ही बड़ा सा डस्टबिन और कुछ बड़े बड़े पेपर बैग्स पड़े हुए थे. मैंने झट से पेपर बैग से अपना सिर कवर किया और उस डस्टबिन के अंदर घुसकर बैठ गयी.

रचना - रेडी??? अवनी मैं आ रही हूँ.

मैं चुपचाप सांस रोके बैठी रही. वो मुझे पूरे घर में ढूंढती रही.

रचना - मानना पड़ेगा अवनी तुम बहुत स्मार्ट हो.

मुझे हंसी आ गयी मगर तुरन्त मेरी हंसी डर में बदल गयी. ऐसा लग रहा था जैसे डस्टबिन में कुछ धीरे धीरे हिल रहा हो. अगले ही पल मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी पीठ पर हाथ फेर रहा है. घबराहट में मैं फौरन डस्टबिन से बाहर आ गयी और अंदर झांका. वहां कुछ भी नही था.

रचना - धप्पा..आहा मैं जीत गयी. चलो अब तुम्हारी बारी तुम काउंट करो. मैं छुपती हूँ.

"यहां कुछ था..." मैंने घबराई हुई आवाज में कहा.

रचना (मेरे कंधे थपथपाते हुए) - कोई बड़ी बात नहीं है यहां बहुत से चूहे हैं. शायद वही होंगे.

"ओके .." मैंने अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए कहा.

अब मैंने काउंटिंग शुरू की और रचना छुपने अंदर चली गयी. मैंने 5 तक ही गिना था कि उसकी आवाज आनी बंद हो गयी. काउंटिंग पूरी कर मैं अंदर आयी. पूरा लिविंग रूम किचन सब जगह देख लिया वो कहीं नहीं थी. मैं दूसरे रूम में घुसी. यहां जरूरत से ज्यादा पर्दे और फर्नीचर थे. मुझे एक कुर्सी पर कोई बैठा दिखा. उसने खुद को ब्लैंकेट से पूरी तरह कवर कर रखा था.

"मुझे नहीं पता था तुम इतनी आसानी से मीय पकड़ में आ जाओगी." कहकर मैंने हंसते हुए ब्लैंकेट खींच दिया. ब्लैंकेट खींचते ही मेरे मुंह से एक जोरदार चीख निकली.

ब्लैंकेट के नीचे कुछ भी नहीं था कुर्सी बिल्कुल खाली पड़ी थी. मैंने अपनी तेज चलती साँसों को किसी तरह काबू किया और घबराहट में वापस ब्लैंकेट कुर्सी पर फेंक दिया. एंड फ़ॉर माय सरप्राइज वापस वहां किसी की मौजूदगी झलकने लगी थी.

क्या यहां सच में कोई है या ये बस रचना की एक चाल है गेम से मेरा ध्यान भटकाने के लिए? हम्म...जरूर ये रचना ने ही किया होगा. सोचते हुए जैसे ही मैंने दूसरी तरफ देखा. मेरी रूह तक कांप गयी. सामने की दीवार के साथ लगकर एक आदमी खड़ा था. उसने फौजियों जैसे कपड़े पहन रखे थे जो जगह जगह से फटे हुए थे. वो बुरी तरह घायल था और उसके शरीर से खून भी बह रहा था.

मैं डरकर दो कदम पीछे हटी और मेरे पीछे से एक तेज आवाज आई

- धप्पा...

मैं इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी और मैंने घबराहट में रचना को बुरी तरह धक्का दे दिया. मैंने पीछे मुड़कर देखा वो हांफती हुई जमीन पर पड़ी मुझे बेहद गुस्से में देख रही थी. मैंने दोबारा तेजी से पलट कर पीछे देखा. अब वहां कोई नहीं था.

"अ.. आई एम सॉरी...मुझे लगा तुम यहाँ ब्लैंकेट के नीचे हो ...देखो..."
मगर मेरी बात तब अधूरी रह गयी जब मैंने देखा ब्लैंकेट कुर्सी पर बेतरतीब तरीके से पड़ा था.

उसने भी एक नजर ब्लैंकेट पर डाली और दोबारा मेरी तरफ देखने लगी.

"मैंने अभी वहां एक आदमी को देखा. मैं सच कह रही हूँ. वो बहुत इंजर्ड लग रहा था."


इतना सुनने के बाद उसने मुझे घूरना बंद किया और अपने कपड़े झाड़ते हुए उठकर खड़ी हो गयी.

मैं कुछ पल अनिश्चितता से उसकी तरफ देखती रही. फिर अचानक ही मैंने पूछ लिया.

"क्या तुम भूत प्रेत आत्मा वगैरह में यकीन करती हो? आई मीन क्या सच में ऐसा कुछ होता है?"

रचना (मेरी आँखों में देखते हुए मेरे करीब आते हुए) - बिल्कुल होते हैं. क्या तुम्हें उनकी मौजूदगी पर यकीन नहीं है?

मुझे उससे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. मुझे लगा बाकी लोगों की तरह वो भी इसे किस्से कहानियों या हंसी में उड़ाएगी. मगर वो तो ऐसे नार्मल बिहेव कर रही थी जैसे भूत देखना उसके लिए रोज की बात हो.

रचना (मुस्कुराते हुए) - क्या हुआ इतनी कंफ्यूज क्यों लग रही हो?

"नहीं...वो...एक्चुअली मैं जबसे यहां आयी हूँ मेरे साथ कुछ अजीब सा ही घट रहा है. मुझे कई बार ऐसी चीजें नजर आती हैं जो बिल्कुल समझ से परे होती हैं." मैंने परेशानी से कहा.

रचना पहले तो मुझे एकटक देखती रही फिर उसने कुछ कहने को मुंह खोला, मगर तभी डोर नॉक करने की आवाज आई और वो चुप हो गयी.

निक्की (तेज आवाज में) - रचना कहाँ हो? दरवाजा खोलो प्लीज..मैं हूँ...

रचना तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ी और दरवाजा खोल दिया. सामने निक्की और रोहन खड़े थे. आज उनके साथ अर्श नहीं आया था.

निक्की (खुशी से चहकते हुए) - अरे वाह...अवनी भी है यहां. मगर तुम्हारा चेहरा क्यों इतना उतर हुआ है? तुम ठीक तो हो?

मैं बस उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी.

रचना (सपाट भाव से) - इसने अभी यहां एक भूत देखा है.

निक्की - ओह..तुम ठीक हो?

मुझे सच मे ताज्जुब हो रहा था ये सारे लोग इस बात पर इतना नॉर्मल रिएक्ट कैसे कर सकते हैं. अगर कोई और बच्चा होता तो इस बात को सुनने के बाद अभी तक मारे सदमे की चिल्लाना चीखना शुरू कर देता और शायद कभी दुबारा इस तरफ रुख भी नहीं करता.


निक्की (वापस चहकते हुए) - रचना कल हमारा गेम अधूरा रह गया था. आज उसे पूरा कर लें? अर्श के बदले आज अवनी होगी हमारे साथ.

रचना (मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए) - बिल्कुल, अगर अवनी खेलना चाहे तो...

"यार तुम सब इतना नॉर्मल बिहेव कैसे कर रहे हो? आई मीन ...यहां किसी सोल्जर की आत्मा भटक रही है फिर भी तुम सब यहां खेलने की बात कर रहे हो? " मैंने लगभग झल्लाते हुए कहा.

रचना ने एक ठंढी सांस भरी और मेरे पास आते हुए बोली, अवनी....आत्माएं कभी किसी को तबतक नुकसान नहीं पहुंचाती हैं जब तक कि तुम खुद उनके लिए कोई खतरा न बन जाओ. इसलिए जब भी ऐसा कुछ दिखे उसे इग्नोर करो...सिम्पल!

" हाँ... जैसे ये सब इतना आसान है. मैं एक बहुत ही नॉर्मल लैअफ़ जीने वाली सीधी साधी लड़की हूँ. और अचानक से मेरी जिंदगी इतनी अजीबोगरीब चीजों से भर जाती है जिसे मैं ठीक से बयान तक नहीं कर सकती...चारों तरफ मुझे आत्माएं , भूत- प्रेत और यहां तक कि अननोन क्रिएचर्स भी दिखते हैं , और तुम कह रही हो मैं उन्हें सिम्पली इग्नोर कर दूं? क्या वाकई इन चीजों को इग्नोर करना इतना आसान है?" मैंने गुस्से में कहा.

निक्की और रोहन बिल्कुल चुपचाप खड़े मुझे देख रहे थे.

रचना ने मुस्कुराते हुए दोनों हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए पूछा, क्या उनमें से किसी ने भी तुम्हें हर्ट किया?

"नहीं.." मैं असमंजस में बुदबुदाई.

रचना (मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए) - तो फिर इग्नोर करो उनको. चलो गेम कम्प्लीट करते हैं.

To be continued...