Khel Khauff Ka - 9 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 9

Featured Books
Categories
Share

खेल खौफ का - 9


मां बाप और टीचर्स बच्चों को गलती करने पर अलग अलग तरह की सजा देते हैं. जैसे कभी बाथरूम में बंद करना, खेलने जाना बंद करवा देना, खाने में लगातार दलिया खिलाते रहना, एक्स्ट्रा होमवर्क करवाना वग़ैरह वगैरह. मुझे अभी भी याद है एक बार लिया के साथ खेलते हुए मुझसे कुछ सामान टूट गया था और उसके लिए सजा के रूप में मां ने मुझे लगातार एक हफ्ते तक सुबह के ब्रेकफास्ट में दलिया खिलाया था. मां पनिशमेंट भी हेल्दी देती थीं. मगर आज शाम 6 बजे के बाद घर आने की वजह से मुझे कुछ अलग ही सजा मिली थी.

अंकल कोवालकी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचते हुए बाहर गार्डन में ले आये.

कोवालकी (मेरे सामने खड़े होकर मुझे घूरते हुए) - अगर तुम्हें घर से बाहर वक्त बिताने का इतना ही शौक है तो तुम्हारे लिए इससे बेहतर पनिशमेंट और कुछ हो भी नहीं सकती. आज की पूरी रात तुम यहाँ गार्डन में बिताओगी. ध्यान रखना एक भी चीज टूटनी फूटनी नहीं चाहिए. न ही किसी पौधे को कोई नुकसान पहुंचे. रात को यहां बड़े बड़े छछूँदर घुस आते हैं. उन्हें भगाना तुम्हारा काम है. अगर जरा भी गड़बड़ हुई तो तुम्हें लगातार अगले 2 हफ्तों तक पूरे गार्डन में अकेले पौधों को पानी देना होगा.

सुनकर ही मेरा दिमाग खराब हो गया था. पूरे गार्डन में कम से कम 200 पौधे और अलग अलग तरह के फूल लगे हुए थे. मुझे तो हैरानी इस बात की थी कि सुनयना मासी पूरे गार्डन में एक दिन में पानी दे कैसे देती होंगी ? वो भी तब जब उन्हें घर के भी काम करने पड़ते हैं. भला हो आफरीन का जो चुपचाप आकर यहां काम कर जाती है.

आसमान में चाँद पूरा खिल चुका था. चांदनी में नहाया हुआ गार्डन हमेशा की तरह बेहद खूबसूरत लग रहा था. आज बहुत ज्यादा ठंड नहीं थी. मगर फिर भी रात के साथ साथ ठंडक बढ़ रही थी. मैंने जैकेट्स पहन रखे थे. उसके ऊपर से खुद को ऊनी शॉल से अच्छे से कवर कर गार्डन में घूमते हुए मैं रचना के बारे में सोचने लगी. आज इतने दिनों बाद किसी के साथ खुलकर बात कर मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था. हमने एक दूसरे की पसंद नापसंद से लेकर फेवरेट हॉरर मूवी तक की बाते आपस में शेयर की. मैंने उसे ये भी बताया कि मैं हमेशा से ऐसे ही किसी सुनसान खंडहर जैसी जगह पर अपने दोस्तों के साथ लुका छुपी खेलना चाहती थी. इनफैक्ट मैंने तो उससे रिक्वेस्ट भी की कि हम अभी एक बार ये गेम खेल सकते हैं. मगर उसने साफ मना कर दिया यह कहकर कि उसे अंधेरे में खेलना बिल्कुल पसंद नहीं है.

उसने मुझे कल दिन में वहां फिर से बुलाया था. और सच कहूँ तो मुझसे भी अब वेट नहीं हो रहा था. मगर आज की रात बहुत ज्यादा लंबी होने वाली थी. गार्डन में घूमते हुए मुझे करीब एक घंटा होने जा रहा था. मैं बुरी तरह थक कर चूर हो चुकी थी. ठंड भी लगातार बढ़ती जा रही थी और इसके साथ ही अब हल्की धुंध भी छाने लगी थी. मैंने डिसाइड किया किसी भी तरह सुनयना मासी से कहकर अंकल कोवालकी को मना लूंगी और अपनी पनिशमेंट माफ करवा लूंगी. ये सोचकर मैं जैसे ही घर की तरफ बढ़ी अचानक पीछे से कुछ आवाज आई. मैं डर से लगभग उछल गयी थी. मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि मैं उसकी आवाज भी साफ साफ सुन सकती थी. मैंने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा. कहीं कोई नहीं था. तो फिर आवाज कहाँ से आई? आवाज की दिशा में गौर से देखने पर पता चला कि फाउंटेन के पास ऊपर पत्थर पर रखा एक गमला नीचे गिर गया था.

"ओह गॉड....प्लीज नो...नो...नो... मुझे 2 हफ्ते तक इस गार्डन में पानी देने का बिल्कुल शौक नही है."

मैं इन उम्मीद में दौड़कर वहां पहुंची कि सबकुछ सलामत होगा. मगर उम्मीद से उलट गमला नीचे गिरकर बुरी तरह टूट चुका था. उसकी मिट्टी और साथ में फूल भी जमीन पर बिखरे हुए थे. मैं चारों तरफ नजरें दौड़ाने लगी. आखिर इतना भारी गमला खुद से तो गिरेगा नहीं. मगर जैसा कि अंकल कोवालकी ने कहा था यहां एक भी छछूँदर मौजूद नहीं था. बल्कि मुझे तो लग रहा था यहां ऐसा कुछ है ही नहीं . उन्होंने बस मुझे एक कहानी बनाकर सुना दी होगी. मैंने एक बार फिर से जमीन पर पड़ी हुई मिट्टी पर एक नजर डाली और मेरी जैसे जान निकल गयी. वहां एक बहुत ही बड़े पंजे की छाप पड़ी हुई थी. मैंने उसे अपने हाथ से कम्पेयर किया. कम से कम 10 गुना ज्यादा बड़ा निशान था वो.

मेरी सांसे तेज चलने लगी. मैंने इसी वक्त घर के अंदर जाने का फैसला किया. मैं तुरन्त उठकर खड़ी हो गयी. मगर तभी एक के बाद एक गमले टूटने की आवाज वहां गूंजने लगी. अब धुंध भी गहराने लगी थी. मुझे कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था. मगर इतना तो क्लियर हो चुका था कि मैं उस गार्डन में अकेली तो बिल्कुल नहीं हूँ. अंधेरा और सन्नाटा मिलकर हर पल खौफ को और बढ़ा रहा था. मैं बिना कुछ सोचे समझे घर की तरफ दौड़ी. तभी मुझ एक गुर्राहट की आवाज आई. दौड़ते दौड़ते मेरे कदम उस आवाज को सुनकर रुक से गए. अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए खुद को मजबूत कर मैंने हल्के से मुड़कर पीछे देखा और मारे घबराहट के मैं वहीं जमीन पर गिर पड़ी. सामने जो कुछ था उसे देखकर मैं जैसे सांस लेना भी भूल चुकी थी. मेरे सामने दो लंबे पैर थे. इतने लंबे कि बाकी की बॉडी नजर भी नहीं आ रही थी. अब मैंने और ऊपर नजर डाली.

"ये है क्या .." मैं खुद में ही बड़बड़ाई.

उसके पैर तो इंसानों जैसे ही थे मगर इसकी चमड़ी गहरी भूरी और चितकबरी रंगत लिए थी. साथ ही बेहद रफ भी थी मानों किसी जानवर की खाल हो. उसके सिर पर बेहद लंबे सफेद बाल थे. उसका सिर्फ एक ही हाथ था. और गर्दन दाईं तरफ इस कदर झुकी हुई थी मानों किसी ने उसे पकड़ कर तोड़ डाला हो. मेरे सामने खड़े हो वो मेरी ही तरफ देख रहा था था. एक मिनट....इसकी आंखें कहाँ पर हैं? एग्जैक्टली! इसकी आंखें नहीं थी मगर जिस तरह यह मेरे सामने खड़ा था मैं 100% श्योर थी चाहे जैसे भी हो ये मुझे ही देख रहा था.

अचानक उसने अपनी गर्दन झटकी और वातावरण में वापस कुछ टूटने की तेज आवाज गूंजी. जैसे जैसे वो अपनी बॉडी को झटका दे रहा था. उसके हड्डियों की तेज आवाज आ रही थी. मैं सदमें से जमीन पर पड़ी यह सब अपनी आंखों के सामने होते देख रही थी.

- तुम्हें ऐसे देख कर मुझे वाकई बहुत खुशी हुई.

अचानक उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा. उसकी आवाज ऐसी थी मानों एक साथ 4 - 5 औरतें बात कर रहीं हों.

मैंने किसी तरह खुद को संभाला और तेजी से उठ कर खड़े होते हुए वापस घर की तरफ दौड़ लगा दी. मैं पूरी ताकत लगा कर भाग रही थी. भागते हुए मैंने एक बार पीछे मुड़कर देखा तो मेरी हालत और खराब हो गयी. वो जो कोई भी थी. अपने 2 पैरों और एक हाथ के सहारे दौड़ते हुए मुझ तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी. वो गुस्से में बुरी तरह गुर्राते हुए न जाने कौन सी लैंग्वेज में चीख रही थी. उसके चिल्लाने पर उनके मुंह से तेज लाल रंग की रोशनी निकलती थी. मैंने पूरी ताकत झोंक दी और दरवाजे के बेहद करीब पहुंच गई मगर चाहकर भी दरवाजे तक नहीं पहुंच पा रही होऊं. शायद उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया था. मैं अब होश खोने लगी थी. अपनी बंद होती आंखों से मैंने पीछे मुड़कर देखा. मेरे ठीक पीछे अंकल कोवालकी खड़े थे. उनके होठों पर एक व्यंग्य से भरी मुस्कुराहट थी. मानों मुझे सजा देकर उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गयी हो.

अंकल कोवालकी (मुझे उठाते हुए) - व्हाट हैपेन्ट अवनी?

"अंकल आप? जल्दी अंदर चलिए वरना वो हम दोनों को मार डालेगी." मैंने घबराते हुए उनका हाथ पकड़ कर उन्हें अंदर खींचने की कोशिश की.

मगर उन्होंने मेरा हाथ झटक दिया और मुझे कंधे से पकड़कर पीछे घुमा दिया. वहां कोई नहीं था. चुपचाप खड़े पेड़ों के सिवा. चारों तरफ घनघोर सन्नाटा पसरा हुआ था.

अंकल कोवालकी (फिक्र जताते हुए) - तुम्हारी तबियत कुछ सही नहीं लग रही. चलो ठीक है मैं तुम्हारी पनिशमेंट माफ करता हूँ मगर बदले में तुम्हें कचरा फेंकने में मेरी मदद करनी होगी.

मैंने सहमति में गर्दन हिला दी. और आने साथ एक बड़ा सा ब्लैक कलर का बैग लेकर आये. उसका मुंह जरा सा खुला और बदबू का एक भयानक से भभका मेरी नाक से टकराया. बदबू इतनी तेज थी कि मुझे उल्टी आने लगी थी.

अंकल कोवालकी ने भी मेरे चेहरे के एक्सप्रेशन देखे और बोले, तुम्हारी मासी मां को बाहर कचरा फेंकने जाना पसंद नहीं है. और मुझे कुछ दिनों से इस काम के लिए वक्त ही नहीं मिल रहा था.

हम दोनों उस बैग को घसीटते हुए गार्डेन के एक छोर पर बने गड्ढे के पास ले आये. ये गड्ढा कंपोस्ट तैयार करने के लिए खोदा गया था. मैंने बैग को मजबूती से पकड़ा और तभी अचानक उस बैग में जोर की हलचल हई. मैंने उसपर बिल्कुल ध्यान नही दिया. शायद कोई छछूँदर घुस गया होगा. वैसे भी आज मैंने इतना कुछ देख लिया था कि और कुछ देखने की मेरी हिम्मत भी नही थी. यहां तक कि मेरा ध्यान इस बात पर भी नहीं गया कि ये वही बैग था जिसमें मैंने कल रात सपने में अंकल कोवालकी को उस औरत की लाश रखते देखा था.

To be continued...