Khel Khauff Ka - 8 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 8

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खेल खौफ का - 8

आफरीन की बातें सुनकर मुझे अब ये घर और यहां के लोग दोनों ही अजनबी और अजीब दोनो लगने लगे थे. काश कि उन पुलिस ऑफिसर्स ने अब तक मेरी नानी मां का पता लगा लिया हो और मुझे और आशु को यहां से वापस हमारे शहर ले चलें. मुझे अब यहां और नहीं रुकना. मगर दिल के किसी कोने में मैं पहले से जानती थी कि ये पॉसिबल नहीं है. जब मुझे और कुछ नही सूझा तो मैंने चोरी छुपे उस मकान में जाने का निश्चय किया. वैसे भी अंकल कोवालकी आजकल अपने आर्ट वर्क में बिजी थे. उनको क्या ही पता चलेगा इस बारे में. मगर मुझे क्या ही पता था कि मैं खुद अपने हाथों से अपनी मुसीबत को इनवाइट करने निकल पड़ी थी.

यहां से देखने पर वो घर जितना नजदीक लगता था असल में उतना था नहीं. उबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्तों और झाड़ियों से होकर गुजरते हुए मुझे वहां तक पहुंचने में गकरीबन 15 मिनट का समय लग गया था. उस घर के सामने खड़े होकर मैंने उसे एक बार अच्छे से देखा पूरे घर के दीवारों पर काई सी जमी हुई थी. दीवारों की दरारों में जहां तहां पेड़ उग आए थे. खिड़कियों के शीशे और दरवाजे लगभग टूटे हुए थे. थोड़ी सी मरम्मत और देखभाल के बाद ये घर पहले की तरह रहने लायक बन सकता था. न जाने क्यों अंकल कोवालकी ने इसे ऐसे छोड़ रखा था.

- धप्पा...

तभी अचानक वहां एक तेज आवाज गूंजी. इसके साथ ही किसी के हंसने की आवाज आने लगी.

- धप्पा ...

- धप्पा...

एक के बाद एक कई स्वर उभरने लगे. मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा था. इस घर में कोई मौजूद था. नहीं बहुत सारे लोग थे और वो इस वक्त लुका छुपी खेल रहे थे. एक पल को मुझे खुशी भी हुई कि अगर आशीष को इस बारे में पता चलेगा तो वो कितना खुश हो जाएगा और फिर से हम दोनों साथ में खेला करेंगे पहले की तरह. मैं करीब 10 मिनट तक वहीं खड़ी चुपचाप उनकी बातें सुनने की कोशिश करती रही. अंदर जाने से पहले मैं अंदाजा लगा लेना चाहती थी कि उनका नेचर कैसा है. तभी एक लड़की और लड़का एक दूसरे के पीछे खिलखिलाते हुए भागते हुए एक खिड़की के पास आ गए और उनकी नजर मुझ पर पड़ गयी. मुझे देखकर वो दोनों एक पल को रुके और फिर अंदर भाग गए.

- रचना....बाहर कोई है.

और अगले ही पल मेरे ही उम्र की एक लड़की घर से बाहर निकली. और मुझे ऐसे देखने लगी जैसे जिंदगी में पहली बार उसने कोई लड़की देखी हो.

"हाय..." मैंने मुस्कुरा कर हाथ हिलाया. "मैं बस अकेली बोर हो रही थी तो आसपास घूमने निकल गयी. यहां से आती आवाजें सुनकर देखने रुक गयी."

रचना - तुम्हारा नाम क्या है?

वो अब भी मुझे वैसे ही देख रही थी. जिससे मैं थोड़ी अनकम्फर्टेबल फील कर रही थी. उसका चेहरा पीलापन लिए हुए था. मानों कई दिनों से घर से बाहर भी न निकली हो. कुछ कुछ उलझे हुए से खुले बाल उसके कंधे तक आ रहे थे. सबसे अजीब बात तो ये थी कि इतनी ठंड में भी उसने बिल्कुल पतले से कपड़े पहन रखे थे.

"मेरा नाम अवनी है. "

अचानक उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी.

रचना (मुस्कुराते हुए ) - अंदर आ जाओ अवनी..

बाकी सारे बच्चे भी जो अब तक छुप छुप कर मुझे देख रहे थे अब सब खिलखिलाते हुए मेरे पास आने लगे थे. बाकी सब रचना से छोटे लग रहे थे. मैं रचना के पीछे सीढियां चढ़ती हुई ऊपर जाने लगी. और बाकी बच्चे मुझसे बातें करने की कोशिश करने लगे. सीढियां चढ़ते हुए एक घुमावदार मोड़ पर अचानक एक बच्चा कूदकर मेरे और रचना के बीच में आ गया. उसके कपड़े बहुत स्टाइलिश लग रहे थे. उसने स्टाइल से अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछा,

- हैलो ब्यूटीफुल... आई एम अर्श. और मैं 12 साल का हूँ. मेरी गर्लफ्रेंड बनोगी?

मुझे उसकी बात सुनकर हंसी आ गयी. मैंने भी मुस्कुरा कर उसके साथ हैंड शेक किया और बोली,

"हैलो हैंडसम ... बट सॉरी गर्लफ्रेंड तो नहीं फ्रेंड बन सकती हूँ क्योंकि मैं 16 साल की हूँ."

अर्श (दिल पर हाथ रखते हुए रोनी सूरत बना कर) - उफ्फ... न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन...जब प्यार करे कोई तब देखे केवल मन.

रचना (अर्श के सिर पर चपत लगाते हुए) - चुप हो जा नौटंकी. इसकी बातों का बुरा मत मानना अवनी. फिल्मी कीड़ा काट गया है इसे. इसलिए हमेशा ऐसे बिहेव करता है.

"इट्स ओके...ही इज क्यूट." मैंने हंसते हुए कहा. बाकी सब भी हंसने लगे.

एक लड़की मेरे करीब आई. वो देखने से ही बहुत चुलबुली और खुशमिजाज लग रही थी.

- हाय... मेरा नाम निक्की है और मैं 11 साल की हूँ. और ये मेरा भाई है...रोहन.

उसने एक लड़के को अपनी तरफ खींचते हुए कहा.

"हैलो रोहन ..." मैंने प्यार से उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए कहा. मगर वो इतना ज्यादा शर्मा रहा था कि उसने एक बार भी मुझे नजर उठा कर देखा तक नहीं.

निक्की (रोहन को कंधे से पकड़ कर हिलाते हुए) - ये बहुत शर्मिला है. मगर जब तुम्हारी इससे दोस्ती हो जायेगी न तो तुम्हें भी ये बहुत अच्छा लगेगा.

"ये तुम्हारा छोटा भाई है?"

निक्की - अरे नहीं... ये तो तुमसे भी बड़ा है. 17 साल का है ये.

मैंने हैरानी से रोहन की तरफ देखा. मुझे निक्की की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था क्योंकि रोहन की हाइट मुझसे कम से कम 1 फ़ीट तो जरूर कम थी. साथ ही वो बिल्कुल किसी प्यारे से बच्चे जैसा दिख रहा था.

निक्की ( मेरे साथ सीढियां चढ़ते हुए) - तुम्हारा घर कहाँ है अवनी?

अब तक हम लोग छत पर पहुंच चुके थे.

"वो ...वहां सामने जो घर दिख रहा है ना...मैं वहीं रहती हूँ."

मेरी बात सुनते ही वहां जैसे सन्नाटा छा गया. और सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे.

रोहन - तुम्हें पता है वहां...

मगर उसकी बात पूरी होने से पहले ही निक्की बीच में बोल पड़ी,
ओह वाओ... वो घर तो बहुत ही खूबसूरत है. और काफी बड़ा भी.

"इतना भी अच्छा नहीं है वो घर ." मैंने दूसरी तरफ देखते हुए ठंडेपन से कहा.

रचना - मैं समझ सकती हूँ. इतने बड़े घर में अकेले रहना. न कोई दोस्त ना ही पड़ोसी. सचमुच तुम तो बोर हो जाती होगी.

"बिल्कुल."

रोहन - मुझे कुछ काम है सो मुझे जाना होगा. (मेरी तरफ देखते हुए) तुमसे मिलकर अच्छा लगा अवनी. आई होप अब हम मिलते रहेंगे.

"जरूर "

रोहन के साथ ही निक्की और अर्श भी चले गए. मैं और रचना उन्हें तब तक देखते रहे जब तक वो हमारी नजरों से ओझल नहीं हो गए. मेरे और रचना के बीच कुछ देर के लिए खामोशी सी छा गयी.

रचना (मेरी तरफ देखते हुए) - मुझे नहीं पता था अंकल कोवालकी की कोई दूसरी बेटी भी है.

"उन्होंने हमें अडॉप्ट किया है. मैं और मेरा छोटा भाई आशीष यहां करीब 2 महीने से रह रहे हैं. एक मिनट...क्या तुम उनकी बेटी को जानती हो?" मैंने चौंकते हुए पूछा.

रचना (रेलिंग से हटकर पास पड़ी एक टूटी हुई सी आराम कुर्सी पर बैठते हुए) - हम्म...मैंने उसे कई बार उस घर मे देखा था.

"फिर वो अब कहाँ है?"

रचना (अपने कंधे उचकाते हुए) - हो सकता है वो यहां खुश न हो...और यहां से भाग गई हो. या फिर उन्होंने खुद ही उसे कहीं और भेज दिया हो.

इससे पहले कि मैं कुछ कहती उसने खुद ही बोलना शुरू कर दिया,

रचना - मैं समझ सकती हूँ तुम वहां कितनी अकेली होगी. तुम जब चाहो यहां आ सकती हो. हमारे पास. और जितनी देर चाहो हमारे साथ रह सकती हो कोई तुम्हें नहीं रोकेगा. जो चाहो खाओ पियो और जैसे मन करे रहो. यहां हर फैसिलिटी मौजूद है.

मुझे सुनकर जैसे झटका लगा.

"तुम इस घर में रहती हो? वो भी अकेली?" मैंने उसे हैरानी से देखते हुए पूछा.

रचना - बिल्कुल...मुझे ऐसी जगहें बहुत पसंद हैं. मुझे लुका छुपी खेलना बहुत पसंद है. और ऐसी जगहें इस गेम के लिए परफेक्ट होती हैं. हम सारे फ्रेंड्स मिलकर खूब मस्ती करते हैं यहां पर.

"अरे वाह ...सच में? आशीष को भी ये गेम बहुत पसंद है. पहले हम दोनों ये गेम हमेशा साथ में खेलते थे. "

रचना (आंखें बंद कर चेयर से सिर टिकाते हुए) - जानकर अच्छा लगा कि तुम भी इस गेम में इंटरेस्टेड हो. तुम अब भी जब चाहो हमारे साथ खेल सकती हो. यू आर ऑलवेज वेलकम.

To be continued...