[ धन की समस्या ]
रामानुजन इंग्लैंड जाने के लिए तैयार हुए तो सबसे पहले उनके लिए वहाँ पर किए जाने वाले धन के प्रबंध की समस्या खड़ी हुई। नेविल ने इस बारे में प्रो. हार्डी को लिख दिया था। हार्डी ने ‘इंडिया ऑफिस’ का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि पहले वह उन्हें इस बारे में बताकर उनसे रामानुजन का संपर्क करा चुके थे; परंतु लंदन स्थित ‘इंडिया ऑफिस’ के श्री मैलेट, जिन्होंने पहले भारत में अपने सहकर्मी डेविस को लिखा था, ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि इस प्रकार के कार्य के लिए धन देने की कोई व्यवस्था उनके पास नहीं है। उन्होंने भी लिखा कि कैंब्रिज और मद्रास के विश्वविद्यालय भी इसमें कुछ नहीं कर पाएँगे।
यह सुनकर हार्डी हिल गए। उन्होंने नेविल को लिखा— “डाक न निकल जाए, इसलिए मैं जल्दी में लिख रहा हूँ। तुम्हें थोड़ी सावधानी से काम लेना होगा। धन का प्रबंध करना होगा। दो वर्ष के लिए वह और लिटिलवुड ही 50 पाउंड प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष देने को तैयार हो जाएँगे। परंतु अभी रामानुजन को यह सब नहीं बताना।” उन्होंने ‘इंडिया ऑफिस’ के पत्र के आशय को भी नेविल को बताना चाहा और उनका मंतव्य इस प्रकार लिखा— “हम पहले भी बहुत बार इस प्रकार के अज्ञात प्रतिभावान् व्यक्तियों के बारे में सुन चुके हैं। वह अपने भारतीय मित्रों को चकाचौंध कर देते हैं, और जब हम उन्हें इंग्लैंड लाते हैं तो केवल सामान्य से कुछ ही अच्छे स्कूल के विद्यार्थी जैसा पाते हैं। कुछ सप्ताहों में ही उनकी प्रतिभा काफूर हो जाती है और हमारी कृपा से किसी प्रकार भला होने के स्थान पर हानि ही हाथ लगती है।”
नेविल ने जब यह पढ़ा तो उन्हें लगा कि प्रो. हार्डी का इस प्रकार के ‘इंडिया ऑफिस’ के विचारों का अनुमोदन यह दिखाता है कि उनका संशय मात्र धन के प्रति न होकर रामानुजन की क्षमता के प्रति भी है। उन्हें हार्डी की कमजोरी पर हँसी आई। उन्होंने अपने मन में सोचा— “हार्डी के इस असंतुलन का कारण यह है कि उन्होंने रामानुजन की नोट बुक नहीं देखी, जबकि मैंने देखी है।”
जब प्रो. हार्डी का एक पत्र नेविल को मिला तब तक नेविल ने धन के प्रबंध का मामला मद्रास में ही आगे बढ़ा दिया था। ऑक्सफोर्ड में पढ़े रिचर्ड लिटिलहेल, जो प्रेसीडेंसी कॉलेज में गणित के प्राध्यापक थे और पहले नियमों के आधार पर रामानुजन को छात्रवृत्ति देने का विरोध कर चुके थे, ने उनका परिचय विश्वविद्यालय तथा सरकार के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों से कराया था। उन्होंने सीधे रजिस्ट्रार से बातें की होंगी। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री फ्रांसिस ड्यूबरी ने 26 जनवरी को एक पत्र लिखा—
“विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन की खोज हमारे समय की, गणित में बहुत बड़ी घटना होने की संभावना है। इसके लिए उनके यूरोप जाने के लिए धन के प्रबंध होने में मुझे कोई संशय नहीं लगता। वास्तव में रामानुजन के इंग्लैंड जाने से यूरोप के उत्तम कोटि के गणितज्ञों का अच्छा प्रभाव उन पर होगा। और तब गणित के इतिहास में उनका इतना ऊँचा नाम होगा कि मद्रास नगर तथा विश्वविद्यालय को ऐसे व्यक्ति की सहायता करके, उन्हें अंधकार से निकालकर यश की दुनिया में ले जाने का गर्व होगा।”
अगले ही दिन प्रो. लिटिलहेल ने ड्यूबरी से रामानुजन के लिए 250 पाउंड प्रतिवर्ष की छात्रवृत्ति के साथ 100 पाउंड का अनुदान कपड़े, सामान तथा मार्ग व्यय के लिए स्वीकृत करने की विधिवत् याचना कर डाली। उन्होंने लिखा— “रामानुजन एक बहुत ही असाधारण गणितीय क्षमता के विलक्षण व्यक्ति हैं, जिन्हें अलंकारित शब्दों में कहें तो वह एक ऐसा प्रकाश है, जो मद्रास के डिब्बे में बंद है।”
अगले सप्ताह ही मद्रास के गवर्नर लॉर्ड पेटलैंड के पास रामानुजन का मामला पहुँचा। सर फ्रॉसिंस स्प्रिंग को पता लगा कि विश्वविद्यालय रामानुजन के दो वर्ष के लिए 10 हजार रुपए अर्थात् 600 पाउंड का प्रबंध करने के लिए तैयार है, परंतु इसकी स्वीकृत ऊपर से होने पर ही इसका मिलना संभव होगा। वह चाहते थे कि महामहिम पेटलैंड इसमें पूरी तरह सहयोग करें। उन्होंने उनके निजी सचिव श्री सी. बी. कॉटरेल को एक पत्र लिखा— “मैं उनके उस मामले में रुचि लेने को आतुर हूँ, जो मेरा अनुमान है कि उनके सम्मुख कुछ ही दिन में आने वाला है।
यह मामला, हालात को देखते हुए, बहुत शीघ्र निपटारा भी चाहता है। इसका संबंध मेरे दफ्तर के लिए लिपिक एस. रामानुजन से हैं, जिसके बारे में मैंने महामहिम से पहले भी चर्चा की है। गणित के सर्वोच्च अधिकारियों ने उसे एक ऊँचे दर्जे का कदाचित् विलक्षण गणितज्ञ बताया है।”
लॉर्ड पेटलैंड एक वर्ष पहले ही गवर्नर बनकर आए थे। उनकी यह मान्यता थी कि शासन का यह दायित्व है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को अपने विकास के समुचित अवसर प्रदान करे। पिछली बार जब रामानुजन को विशेष छात्रवृत्ति मिली थी, तब वह उसको अनुमति दे चुके थे। यह दूसरी बार रामानुजन का मामला उनके सामने आया था। उनके सचिव ने सर फ्रांसिस स्प्रिंग को लिखा—“महामहिम आपकी इस इच्छा से कि रामानुजन कैंब्रिज में अपना शोध चलाने के लिए जाएँ, से हार्दिक सहानुभूति रखते हैं और इसमें भरसक सहायता करने से वह प्रसन्न होंगे।”
और अंतत: रामानुजन को छात्रवृत्ति देने की स्वीकृति मिल गई।